नोटबंदी, जीएसटी और फिर सबसे बढ़कर कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए की गई देशबंदी यानी लॉकडाउन की वजह से लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है. इस कारण ग्रामीण इलाकों में लोग कम उम्र में लड़कियों की शादियां कर बोझ टाल रहे हैं. महाराष्ट्र के बीड के ग्रामीण इलाकों में काम कर रही चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के मुताबिक 9 साल तक उम्र की बच्चियों की शादी के मामले आ रहे हैं. 15 साल की लड़कियों की शादी 50 साल की उम्र के लोगों के साथ हो रही हैं. बड़ी संख्या में बच्चे-बच्चियों का स्कूल जाना बंद है. बच्चों का उत्पीड़न इस कदर बढ़ा है कि इस साल मई से जुलाई के बीच सरकार की नोडल एजेंसी चाइल्डलाइन के पास 93,203 शिकायतें आईं, जिनमें से 5,584 मामले बाल विवाह से जुड़े थे.
इसका सीधा संबंध देश की आर्थिक स्थिति से है. हालात इतने गंभीर हैं कि विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जा सकती है, जबकि 5 साल पहले तक बड़ी संख्या में भारतीय गरीबी रेखा से निकलकर निम्न मध्य वर्ग में शामिल हो रहे थे. इसकी बड़ी और बुरी मार देश महिलाओं पर पड़ रही है, जो पहले से ही भारतीय सामाजिक व्यवस्था में दबी कुचली हैं.
शादियों का खर्चा घटा, दहेज भी कम
जल्दी और कम उम्र में विवाह को इसलिए भी प्राथमिकता दी जा रही है, क्योंकि पहले जहां 200 अतिथियों को खिलाने पर 2 लाख रुपये खर्च आता था, अब 20,000 रुपये के खर्च में शादियां हो जा रही हैं. साथ ही दहेज भी घटा है. मराठवाड़ा में मराठा, लिंगायत जैसी जातियों में जिन परिवारों में पहले 5 लाख दहेज लगता था, अब एक लाख रुपये में मामला बन रहा है. वहीं मजदूरी करने वाले तबके की दहेज की मांग एक लाख रुपये से घटकर 20,000 रुपये पर आ गई है.
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भारत में कम उम्र में विवाह की समस्या पुरानी है. भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त द्वारा कराए गए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के 2018 के आंकड़ों के मुताबिक 2.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 साल की उम्र के पहले हो जाता है. भारत में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 18 साल तय की गई है. ग्रामीण इलाकों में 37.4 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 से 20 साल की उम्र के बीच हो जाता है.
एक और सरकारी सर्वे में लड़कियों के बाल विवाह की विकृत तस्वीर सामने आती है. नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) के मुताबिक 2015-16 में हर 10 में 1 लड़की की शादी 18 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही हो गई थी. वहीं बाल विवाह में पश्चिम बंगाल ने बिहार को पीछे धकेल दिया है.
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया की बालिका दुल्हनों में एक तिहाई भारत में हैं, यानी भारत इस वैश्विक समस्या का केंद्र है. इससे न सिर्फ बच्चियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, और कई बालिकाएं कम उम्र में मां बनने के कारण मर जाती हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ी भी कुपोषित पैदा हो रही है और शिशु मृत्यु दर भी बढ़ जाती है.
बाल विवाह रोकने का कारण बेअसर
भारत में पुरुषों व महिलाओं के विवाह की न्यूनतम उम्र क्रमशः 21 साल और 18 साल तय की गई है. 1978 में बाल विवाह से जुड़े इस अधिनियम में इस उम्र से पहले होने वाली सभी शादियों को ‘बाल विवाह’ के रूप में चिह्नित किया और उसे कराने वालों को कानून के तहत दंड देने का प्रावधान किया गया है.
इसके पहले 1930 के शारदा अधिनियम के तहत लड़कियों के लिए शादी की कानूनी उम्र 14 और लड़कों के लिए 18 साल तय की गई. इस कानून का समाज पर असर भी पड़ा और 1990 में भारतीय महिलाओं के लिए शादी में प्रभावी औसत आयु बढ़कर 19.3 हो गई और आंकड़ों के मुताबिक 2018 में यह और बढ़कर 22.3 हो गई है.
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विभिन्न सर्वे के विवाह संबंधी आंकड़े देखें तो पता चलता है कि शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में कम उम्र में शादियां होती हैं. एनएफएचएस-4 के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में 14.1 प्रतिशत शादियां, जबकि शहरी इलाकों में 6.9 प्रतिशत शादियां निर्धारित कानूनी उम्र की सीमा से कम उम्र में होती हैं. लैंगिक भेद भी इसमें उभरकर सामने आता है. पुरुषों का विवाह ज्यादा उम्र में होता है, जबकि महिलाओं का विवाह कम उम्र में ही हो जाता है. इसमें राज्यवार आंकड़ों में भी फर्क है.
स्थिति फिर से बिगड़ने लगी है
आर्थिक दुर्दशा और महंगी होती शिक्षा व अन्य तमाम परिस्थितियों के कारण समय का चक्र अब उलटी दिशा में घूम चुका है. मराठवाड़ा सहित कर्नाटक और कई अन्य इलाकों से आ रही खबरें भयावह हैं, जहां लोग लड़कियों को आर्थिक विपत्ति मानकर उनकी शादी करके तथाकथित बोझ निपटाने में जुट गए हैं. ये गौरतलब है कि अंग्रेजों के शासनकाल में बाल विवाह आम था और 1875 के आसपास इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ी गई. राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक सहित तमाम पुरातनपंथी नेताओं ने शादी की उम्र में सरकार के हस्तक्षेप को अनुचित करार देते हुए इसे भारतीय संस्कृति पर हमला बताया था. तिलक ने इसे ‘पागलपन वाली कवायद’ कहते हुए खारिज किया. उन्होंने हिन्दू समुदाय के आंतरिक मामलो में सरकार के हस्तक्षेप की आलोचना की. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर 12 साल उम्र के पहले इंटरकोर्स करने पर पति को जेल में डाला जाता है तो सरकार वास्तव में पत्नी को ही सजा देगी क्योकि पति के जेल जाने का मतलब ‘द सिविल डेथ आफ हिन्दू वाइफ’ होगा. (तिलक्स नैशनलिज्म, परिमाला वी राव पेज 123, 125). लेकिन उनकी बात मानी नहीं गई.
मनमोहन सिंह सरकार में विवाह को लेकर गठित एक कार्यबल ने 2015 में अपनी रिपोर्ट में शादी की कानूनी उम्र महिलाओं व पुरुषों के लिए एकसमान करने की सिफारिश की थी. हालांकि इस पर कोई काम नहीं हो सका. नरेंद्र मोदी सरकार ने मातृत्व मृत्यु दर कम करने और महिलाओं के पोषण में सुधार संबंधी जांच के लिए जून 2020 में एक कार्यबल गठित किया है. वहीं मोदी ने 15 अगस्त के अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में कहा, ‘हमने यह सुनिश्चित करने के लिए एक समिति बनाई है कि बेटियां अब कुपोषण से पीड़ित न हों और उनकी शादी सही उम्र में हो. रिपोर्ट पेश होते ही बेटियों की शादी की उम्र के बारे में उचित फैसला लिया जाएगा.’ कार्यबल की रिपोर्ट आने वाली है.
लेकिन कानून के बावजूद बड़ी संख्या में हो रहे बाल विवाह का मतलब है कि कानून से स्थिति को बदलने में एक हद तक ही मदद मिल सकती है.
(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं. यह लेख उनका निजी विचार है)