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Friday, 19 April, 2024
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तेलंगाना में भाजपा क्यों असफल रहेगी?

तेलंगाना में भाजपा हिंदुत्व कार्ड खेलकर केवल कुछ सीटें ही जीत सकती है. इसके अलावा उनके पास कुछ भी नहीं है.

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हैदराबाद के गोशामहल निर्वाचन क्षेत्र में मुसलमान खुद को वास्तव में वंचित और शोषित महसूस करते हैं. पास का निर्वाचन क्षेत्र असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाले अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) का गढ़ है. लेकिन गोशामहल से विधायक भारतीय जनता पार्टी के नेता टी राजा सिंह लोध हैं. एआईएमआईएम इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही है लेकिन तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के उम्मीदवार का समर्थन कर रही है.

टी राजा सिंह लोगों को उकसाने वाले नेता हैं जो सुर्खियां बटोरने में माहिर हैं. वे हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने का वादा कर रहे हैं. वे हैदराबाद शहर को एक मिनी-पाकिस्तान भी कहते हैं. वह पश्चिम बंगाल में हिंदुओं से, 2002 में गुजरात में जो हुआ था वैसा ही कुछ करवाना चाहते हैं. और उन्होंने पद्मावत फिल्म को दिखाने वाले थिएटर के मालिकों को धमकी भी दी थी.

उनके निर्वाचन क्षेत्र में चारों तरफ घूमना और मतदाताओं से बात करना डर की खोज करने के जैसा एक अभ्यास है. कई हिंदू और मुसलमान उनकी विवादास्पद टिप्पणियों के बारे में की गई बात को टालते हैं. हैदराबाद में लंबे समय से कोई भी दंगा नहीं हुआ है और लोग ऐसे किसी घटना को नहीं चाहते हैं. लेकिन फिर भी कुछ हिंदू मतदाता सामने आये उन्होंने राजा सिंह को एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के लोकसभा सांसद के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी के जवाब के रूप में बताया.

अकबरुद्दीन ने हाल ही में कहा कि जो भी मुख्यमंत्री बनेगा वह एआईएमआईएम के सामने झुकेगा. राजा सिंह ने अकबरुद्दीन को चुनौती देते हुए जवाब दिया कहा था कि ‘मुझे पांच मिनट दें और यदि आपका सिर मेरे पैर के नीचे नहीं हुआ तो मैं राजा सिंह नहीं कहलाऊंगा.’

सहयोगियों के मुद्दें

2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 119 में से मात्र पांच सीटें जीतीं थी. बंडारू दत्तात्रेय ने राज्य के 17 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से केवल एक सिकंदराबाद सीट से जीत दर्ज की थी. 2014 के बाद भाजपा के विस्तार और पंचायत से संसद तक हर चुनाव जीतने की महत्वाकांक्षा को देखते हुए मजे की बात यह है कि पार्टी तेलंगाना में खाता खोलने में विफल रही है. लेकिन यह इस चुनाव में मुद्दा नहीं है. अगर 2014 नहीं हुआ होता तो यह ऐसा ही होता.

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यह और भी निराली बात है क्योंकि बीजेपी वास्तव में यहां सफल हो सकती है. राज्य में 12.5 प्रतिशत मुसलमान हैं जो खिलाफ जा सकते हैं. यहां पर आरएसएस का एक मजबूत नेटवर्क है और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस है जिसको भाजपा तोड़ सकती है जैसाकि अन्य राज्यों में किया था.

फिर भी भाजपा जो कुछ भी कर सकती है वह है हिंदुत्व कार्ड खेलकर कुछ सीटें ही जीत सकती है. इसके अलावा उनके पास करने के लिए कुछ नहीं है.

त्वरित कारण यह है कि भाजपा को राज्यसभा और अन्य मामलों में सत्तारूढ़ टीआरएस की जरूरत पड़ती है. चाहे वह राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का चुनाव हो या जीएसटी हो. के चंद्रशेखर राव भी ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की तरह ही दूर से एक भरोसेमंद मित्र की तरह मदद के लिए तैयार रहे. उन्होंने अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की है और स्थानीय भाजपा नेताओं के साथ अच्छे संबंध को सार्वजनिक रूप से बनाए रखा. इस प्रकार से राज्य से उखाड़ फेंकने की भाजपा की कोशिश को और मुश्किल बना दिया.

बीजेपी और टीआरएस अब और भी करीब आ गए हैं क्योंकि दोनों के पास एक इकलौता दुश्मन है- तेलुगू देशम पार्टी के एन चंद्रबाबू नायडू.

लेकिन यही सब कुछ नहीं है. बीजेपी ने कांग्रेस को भी तोड़ने की कोशिश की है. इनके स्थानीय नेताओं को केवल एक खेल पता है वो है हिंदुत्व और वे जाति जैसे अन्य कार्ड खेलने में असमर्थ हैं.

टीआरएस फैक्टर

राजा सिंह के गोशामहल क्षेत्र में हिंदू मतदाता शिकायत करते हैं कि उन्होंने विकास नहीं किया है. जब क्षेत्र में बीजेपी के मतदाताओं से पूछा जाता है कि उनकी पसंदीदा पार्टी तेलंगाना में क्यों अपना वर्चस्व नहीं स्थापित कर पायी है तो उन्होंने जवाब दिया कि ‘टीआरएस है ना’.

जो लोग बीजेपी के लिए मतदान करने की इच्छा रखते है. जब उन्हें लगता है कि भाजपा जीतने की स्थिति में नहीं है तो टीआरएस के पाले में चले जाते हैं और दूसरी तरफ बीजेपी की प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस है. बहरहाल बीजेपी और टीआरएस सहयोगी हैं, लेकिन अभी तक रिश्ते औपचारिक रूप से सबके सामने नहीं हैं. बीजेपी आधिकारिक तौर पर टीआरएस का विरोध कर रही है.

केवल राव ही बीजेपी और एआईएमआईएम दोनों को दोस्त बना सकते हैं. उनकी सरकार सभी धर्मों को समान रूप से खुश करने में लगी रहती है यहां तक कि लोगों को उनकी धार्मिक त्योहारों की छुट्टियों पर उपहार भी देती है.

टीडीपी से गठबंधन के कारण बीजेपी ऐतिहासिक रूप से तेलंगाना में भी हार गई. टीडीपी आंध्र प्रदेश के विभाजन का विरोध करने वाली मुख्य पार्टी थी. तेलंगाना का विरोध करने वाली पार्टी के साथ गठबंधन करने के बाद भाजपा को अब नए राज्य में स्थापित होने में मुश्किल आ रही है.

तेलंगाना के बीजेपी प्रवक्ता कृष्ण सागर राव का कहना है कि टीडीपी ‘परजीवी’ सहयोगी थी उसने भाजपा को तेलंगाना में बढ़ने नहीं दिया. कुछ हद तक टीडीपी के साथ बीजेपी का अलग होने का निर्णय भाजपा के लिए लंबे समय के लिए अच्छा होगा. भाजपा सभी 119 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

बीजेपी और टीआरएस एक-दूसरे पर सार्वजनिक रूप से आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं . मोदी चाहते हैं कि मतदाता केसीआर की विरासत को खत्म कर दें और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह मुसलमानों के लिए केसीआर के द्वारा प्रस्तावित आरक्षण को मुद्दा बना रहे हैं. इस प्रकार का विरोधाभास ये धारणा बनाने में मदद कर रहा है कि टीआरएस 2019 के चुनावों के पहले या बाद में मोदी का सहयोग करेंगे या नहीं.

दूसरे शब्दों में यह सिर्फ काल्पनिक लड़ाई है. जब मोदी कहते हैं कि टीआरएस आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नायडू की ‘गुलाम’ है, तो आप यह समझ सकते हैं कि भाजपा वास्तव में इस चुनाव से क्या चाहती है. इसका मतलब टीडीपी की हार और टीआरएस की जीत.

इस लेख का अंग्रेजी से अनुवाद किया गया है. मूल लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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