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Friday, 19 April, 2024
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इंडियन मेडिकल सर्विस को कौन रोक रहा? सरकार को लगता है कि IAS अधिकारी सक्षम हैं

15वें वित्त आयोग ने भी यह प्रस्तावित किया है कि इस कैडर को आईएएस की तर्ज पर ही गठित किया जाए. पुनः मार्च 2021 में स्वास्थ्य मामलों की एक संसदीय समिति द्वारा भी सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए इस तरह की सेवा के विकास की वकालत की गई थी.

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हाल के वर्षों में भारतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग (इंडियन मेडिकल सर्विसेज कैडर) की आवश्यकता कई बार महसूस की गयी है और इस पर काफी सारी चर्चा भी की गई है. कोविड-19 की महामारी ने इस कैडर के तात्कालिक महत्व को और अधिक मजबूत आधार दिया है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), और भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) की तरह ही देश भर में स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण को प्रशासित और प्रोत्साहित करने के लिए एक भारतीय चिकित्सा सेवा (इंडियन मेडिकल सर्विस- आई.एम.एस.) की सख्त आवश्यकता है.

15वें वित्त आयोग ने भी यह प्रस्तावित किया है कि इस कैडर को आईएएस की तर्ज पर ही गठित किया जाए. पुनः मार्च 2021 में स्वास्थ्य मामलों की एक संसदीय समिति द्वारा भी सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए इस तरह की सेवा के विकास की वकालत की गई थी. इसके बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी आईएमएस की स्थापना की मांग की थी.

देश भर में स्वास्थ्य सेवा के प्रशासकों की भारी कमी के बीच आईएमएस सार्वजनिक स्वास्थ्य सूचना और निर्णय लेने के बीच लगने वाले लंबे समय से बनी हुई खाई को पाटने में सक्षम होगा. इससे पहले कि इस मामले में बहुत देर हो जाए, हमारा लक्ष्य इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण प्रगति करना होना चाहिए.

ब्रिटिश भारत के बाद से निष्क्रिय पड़ा आईएमएस कैडर

अखिल भारतीय चिकित्सा सेवा एक ऐसी चीज है जो इस देश में पहले भी देखी गई है. पूर्व में इसकी स्थापना ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान जमीनी स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने के लिए की गई थी. हालांकि इस कैडर को मुख्य रूप से सैन्य जिम्मेदारियों को निभाने के इरादे से गठित किया गया था, लेकिन कभी-कभी इसका उपयोग नागरिक कार्यों को करने के लिए भी किया जाता था. उस समय काल में इसने हैजा और ग्लूकोमा जैसी पुराने समय से चली आ रही बीमारियों के उपचार में काफी हद तक सहायता की थी. इसके अलावा, आईएमएस ने स्वच्छता को बढ़ावा देने और इसे प्रबंधित करने की भी कोशिश की.

इसके अलावा, कई प्रेसीडेंसी वाले शहरों एवं कस्बों में अस्पतालों की स्थापना में सहायता करने के बाद इस सेवा द्वारा किए जा रहे प्रयासों को पूरी दुनिया भर में सराहना मिली. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई कारणों, जिसमें भारतीय अधिकारियों को अस्थायी और आपातकालीन सेवा अवधि तक सीमित करना, आईएमएस के अधिकारियों को उनकी सेवानिवृत्ति तक वेतन सहित छुट्टी की पेशकश, और अंत में, देश का विभाजन आदि शामिल थे, की वजह से आईएमएस का अस्तित्व समाप्त सा हो गया. इसके बाद से आईएमएस को फिर से लागू करने के विचार को कई बार उठाया गया है, मगर लगातार विरोध के कारण इस मामले में बहुत कम प्रगति हो सकी है.

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लेकिन पिछले 20 महीनों से चली आ रही कोविड की महामारी ने आईएमएस की आवश्यकता को फिर से महत्वपूर्ण बना दिया है. इस महामारी के दौरान पीपीई किट, अस्पतालों में बेड, स्वास्थ्य कर्मियों, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर को इकट्ठा करने की कवायद गंभीर रूप से बाधित हुई. यहां प्रशासनिक तंत्र की कमी के कारण एक असाधारण संकट उत्पन्न हुआ, जिसने लाखों लोगों के जीवन को संकट में डाल दिया. जमीनी स्तर पर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं सम्बन्धी प्रशासनिक जिम्मेदारियों के निर्वहन लिए नौकरशाहों को तैनात किया गया था. लेकिन स्पष्ट रूप से स्थिति उनके हाथ से निकल गई क्योंकि उनके पास स्वास्थ्य सम्बन्धी आपातकाल का प्रबंधन करने के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल और डोमेन अंडरस्टैंडिंग (क्षेत्र विशेष की समझ) की कमी थी.

ये प्रशासक लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार लाने में विफल रहे क्योंकि उनके पास सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों से सम्बंधित बहुत कम या फिर न के बराबर विशेषज्ञता थी. इस महामारी ने हमें बहुत सी मूल्यवान सीखें दी हैं, और शायद उनमें से सबसे महत्वपूर्ण सीख यह है कि एक आईएमएस कैडर की स्थापना अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण विषय है.


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वर्तमान में कैसी है भारत के स्वास्थ्यकर्मियों की व्यवस्था?

वर्तमान में, चिकित्सा सेवाओं के लिए, संघ लोक सेवा आयोग (यू.पी.एस.सी) द्वारा संयुक्त चिकित्सा सेवा (सीएमएस) परीक्षा आयोजित की जाती है. इस सीएमएस परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले चिकित्स्कों को चिकित्सा अधिकारियों के रूप में चुना जाता है, लेकिन उनकी नियुक्ति भारत सरकार के तहत कार्यरत कई संगठनों, जैसे रेलवे, दिल्ली नगर निगम और भारतीय आयुध कारखानों तक सीमित हैं. ठीक इसी तर्ज पर पुरे देश के स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों के प्रबंधन और पर्यवेक्षण (निगरानी) के लिए एक अखिल भारतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग की आवश्यकता महसूस होती है.

हमारे देश में स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों पर ज्यादातर संकट के समय में ही खास ध्यान दिया जाता है. ये आमतौर पर ऐसे उपाय होते हैं जिन्हें समस्या उत्पन्न होने के बाद ही स्वीकार किया जाता है. वास्तव में, उनमें से अधिकांश नुकसान को सीमित करने वाले उपाय ही होते हैं. आईएमएस संवर्ग की स्थापना और इसका विकास इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को प्रबंधकीय पदों पर लाने और स्वास्थ्य के विषय को एक अधिक समग्र दृष्टिकोण से देखने की दिशा में काम करेगा.

जब स्वास्थ्य प्रबंधन की बात आती है तो यह केवल सेवाओं और उपकरणों तक पहुंच बढ़ाने के बारे में ही नहीं है, बल्कि इसमें पेयजल और स्वच्छता, पर्यावरणीय स्वास्थ्य, स्वास्थ्य के सामाजिक आर्थिक निर्धारक (डिटर्मिनेंट), क्षेत्र में किसी रोग का फैलाव, और स्वास्थ्य सम्बन्धी वित्त व्यवस्था पर काम करना भी शामिल है.

फ़िलहाल, आईएएस अधिकारी ही अपने-अपने जिलों में स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों के प्रभारी होते हैं. उनकी शिक्षा में स्वास्थ्य संबंधी कोई विशेष ज्ञान शामिल नहीं होता है. एक छोटे लेकिन प्रभावी आईएमएस संवर्ग के साथ प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य स्तर की सेवाओं को बेहतर ढंग से व्यवस्थित किया जा सकता है. इसके अलावा, अधिक प्रभावी और सकारात्मक स्वास्थ्य नीतियों को विकसित करने के लिए भी आईएमएस का उपयोग किया जा सकता है.

इस बात से मुंह मोड़ना असंभव है कि इस संवर्ग को न केवल अपने ज्ञान द्वारा समर्थन देने के लिए बल्कि तकनीकी और प्रशासनिक सहायता के लिए भी नियोजित किया जाएगा. प्रचार सम्बन्धी प्रयासों, निगरानी और स्वास्थ्य सुविधाओं एवं उपकरणों की उपलब्धता सहित कई कारणों से उत्पन्न चिंताओं पर तत्काल और प्रभावी रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है. भारत एक इतना बड़ा और विविध देश है कि इसके सभी जिलों, सबसे बड़े से लेकर सबसे छोटे तक, को औपचारिक स्वास्थ्य प्रशासन के बिना संभालना मुश्किल है.

आईएमएस संवर्ग की स्थापना की राह में उपस्थित बाधाएं

कई सारे प्रमुख हितधारकों ने आईएमएस कैडर की स्थापना पर अपनी-अपनी आपत्तियां व्यक्त की हैं. उनके बीच विवाद का एक मुख्य बिंदु यह है कि जब जिला कलेक्टर और अन्य प्रशासक पहले से ही स्वास्थ्य सम्बन्धी के मुद्दों के प्रभारी होते हैं तो एक नए कैडर की कोई आवश्यकता नहीं है. दूसरों का तर्क है कि सामान्य चिकित्स्कों की प्रबंधन और प्रशासन सम्बन्धी ‘अक्षमता’ को एक सार्वभौमिक सत्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. उनकी चिंता का एक अन्य स्रोत यह भी है कि चिकित्सा संवर्ग को स्थापित करने से स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल की प्रणाली नौकरशाही वाली बन जाएगी. इसके अतिरिक्त भारत में फ़िलहाल स्वास्थ्य राज्य का विषय है और लोगों को इस बात की चिंता है कि इसमें इस तरह का कोई भी बदलाव इसे एक केंद्रीय विषय बना देगा.

इन सारे विपक्षी तर्कों के अलावा, इस कैडर के कार्यान्वयन में आने वाले अन्य कठिनाइयों को भी अनुभव किया जाता है. एक सवाल यह है कि यह किस संरचना पर आधारित होगा? इसकी परीक्षा देने के लिए कौन से लोग पात्र होंगे? क्या इसमें केवल एमबीबीएस स्नातकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के पेशेवरों को ही भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए? क्या स्वास्थ्य क्षेत्र को विभिन्न पेशेवर क्षेत्रों से सम्बंधित उत्साही लोगों द्वारा प्रशासित किया जाना चाहिए? इसके अलावा, उन्हें कैसे प्रशिक्षित किया जाना चाहिए? क्या यह आवश्यक है कि अन्य संवर्गों द्वारा प्राप्त प्रशिक्षण की तरह इसका प्रशिक्षण भी सभी के लिए एक समान हो? ये सभी आवश्यक चिंताएँ हैं और कोई भी समाधान निकालने से पहले इनका जवाब अवश्य ढूंढा जाना चाहिए.

वर्तमान प्रशासनिक संरचना देश की स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं की पहचान करने और उन्हें पूरा करने में विफल है. इन लंबे समय से चली आ रही बाधाओं को अधिक दूरंदेशी और वर्तमान परिप्रेक्ष्य वाले दृष्टिकोण के साथ तुरंत दूर किया जाना चाहिए. एक छोटा लेकिन प्रभावी आईएमएस कैडर उन सभी महत्वपूर्ण बदलावों को लाने की क्षमता रखता है जिनकी भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को लम्बे समय से आवश्यकता है.

(लेखिका तक्षशिला संस्थान में सहायक कार्यक्रम प्रबंधक के पद पर हैं. वह @maheknankani के हैंडल से ट्वीट करती हैं. व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं.)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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