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Sunday, 22 December, 2024
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जब नई दिल्ली सीट से एक मलयाली अटल जी को हराने वाला था

1980 में अटल बिहारी वाजपेयी जनता पार्टी के टिकट पर प्रतिष्ठित नई दिल्ली सीट से लड़े. उनके सामने कांग्रेस ने कमोबेश एक अंजान शख्स सी.एम. स्टीफन. को उतारा था.

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नई दिल्ली: हालांकि, 1977 में सत्ता पर काबिज हुई जनता पार्टी सरकार अपने वरिष्ठ नेताओं के आपसी मनमुटाव और वैचारिक मतभेद के कारण 1979 में ही बिखर गई थी, पर उस सरकार के विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश को प्रभावित किया था. उन्होंने 4 अक्टूबर, 1977 को संयुक्त राष्ट्र आम सभा में हिंदी में भाषण देकर कम से कम हिन्दी राज्यों में अपनी एक खास छवि विकसित कर ली थी.

इमरजेंसी के हटने के बाद हुए आम चुनाव में पहली बार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में गैर कांग्रेस सरकार बनी थी. लेकिन जनता पार्टी सरकार गिर जाती है. उसके बाद कांग्रेस के सहयोग से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन समर्थन ज्यादा दिनों तक नहीं रहा. तब राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने लोकसभा को भंग कर दिया. इसके साथ ही देश में नई लोकसभा को चुनने के लिए चुनावों का रास्ता साफ हो गया था.

कौन थे सीएम स्टीफन ?

अटल बिहारी वाजपेयी जनता पार्टी की टिकट पर प्रतिष्ठित नई दिल्ली सीट से लड़े. तब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठन नहीं हुआ था. मतदान 3 जनवरी, 1980 को हुआ. जनता पार्टी के प्रयोग से देश नाराज तो था, पर उम्मीद थी कि अटल जी आराम से अपनी सीट निकाल लेंगे. वे सीटिंग एमपी भी थे. वे 1977 में इस सीट से जीते थे. कांग्रेस ने उनके सामने कमोबेश एक अंजान शख्स को उतार दिया. उनका नाम था सी.एम.स्टीफन. वे 12 अप्रैल 1978 से तक 9 जुलाई 1979 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता थे. वे केरल कांग्रेस के नेता थे. वे जनता पार्टी सरकार के दौरान विपक्ष के नेता भी रहे थे. वे केरल में श्रमिक नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे. पर वे नई दिल्ली के मतदाताओं के लिए नए थे.

हिन्दी-मलयाली की टक्कर

खैर, चुनाव प्रचार शुरू हो गया. अटल बिहारी वाजपेयी अपने चिर-परिचित अंदाज में मतदाताओं को रिझाने लगे. उनकी मिन्टो रोड, सुपर बाजार, गोल मार्केट, लोधी रोड वगैरह की सभाओं में खासी भीड़ भी जुटी. पर हैरानी तब हुई जब मलयाली में नई दिल्ली के मतदाताओं से मुखातिब होने वाले स्टीफन मैदान में उतरे. वे धोती-कुर्ता और चप्पल पहन कर नई दिल्ली के चप्पे-चप्पे में जाने लगे. उनका प्रचार सघन होने लगा. वे मलयाली में भाषण देते. उनके भाषणों का हिन्दी में अनुवाद होता. स्टीफन मलयाली के प्रखर वक्ता थे.


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वे केन्द्र सरकार के बाबुओं के हित में काम करने का वादा कर रहे थे. चूंकि नई दिल्ली सीट पर सरकारी बाबुओं का तगड़ा वोट बैंक रहा है, इसलिए वे इन्हें अपनी तरफ खींच रहे थे. वे माता सुंदरी रोड, बैरन रोड, गोल मार्केट वगैरह की झुग्गी और धोबी बस्तियों में भी जा रहे थे. उनका हिन्दी में भाषण ने दे पाने की असमर्थता आड़े नहीं आ रही थी. इधर के मतदाता उनसे अपने आप को जोड़ रहे थे. लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में वे जनता पार्टी सरकार को आड़े हाथों ले रहे थे.

प्याज का दामों ने निकाले आंसू

दरअसल, 1980 के चुनाव में प्याज की बढ़ती कीमतों पर बहस हो रही थी. स्टीफन प्याज की बढ़ी हुई कीमतों को अपनी सभाओं में उठा रहे थे. वो संसद में प्याज की माला पहन कर भी आ चुके थे. वे वादा कर रहे थे कि कांग्रेस सरकार के बनने पर प्याज के दाम पर लगाम लगा देंगे. उनकी नेता इंदिरा गांधी भी प्याज की कीमत को बार-बार उठा रही थीं. बहरहाल, मतदान से पहले कहीं न कहीं अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी कैंपेन को देख रहे नेताओं को संकेत मिल गए थे कि स्टीफन साहब को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है. इसलिए अटल जी की सभाएं बढ़ा दी गईं. वे बोट क्लब और मिन्टो रोड सरकारी प्रेस के बाहर दो बार से ज्यादा सरकारी बाबुओं से मिलने के लिए आए. हालांकि, उनकी जीत के प्रति सब आश्वस्त थे, पर वे अजेय तो नहीं थे. वे 1957 में मथुरा से मात खा चुके थे. फिर भी वे 1967 से लगातार लोकसभा में पहुंच रहे थे.

सघन चुनाव प्रचार के बाद मतदान हुआ. कहने वाले कहने लगे कि स्टीफन हार जाएंगे. क्योंकि तब तक अटल जी का कद बहुत बड़ा हो चुका था. उनकी अखिल भारतीय छवि बन चुकी थी. पर चुनाव की गिनती जब 6 जनवरी,1980 को चालू हुई तो बड़ी उलटफेर की आशंका बनने लगी. अंत में अटल बिहारी वाजपेयी बड़ी मुश्किल से जीते. अटल जी को 94,098 और स्टीफन को 89,053 वोट मिले. यानी अटल जी लगभग पांच हजार मतों से जीते. उस चुनाव को दैनिक हिन्दुस्तान के लिए कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार बताते हैं कि सी.एम. स्टीफन को मिन्टो रोड और गोल मार्किट नगर निगम क्षेत्रों में विजय मिली थी. जो हर लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि थी. वो हार कर भी नैतिक रूप से जीते थे.

पर स्टीफन को उस हार के तुरंत बाद कर्नाटक के गुलबर्ग लोकसभा सीट के लिए हुए उप-चुनाव में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया. इस बार वे जीतकर लोकसभा पहुंच गए. उन्हें संचार मंत्री भी बना दिया गया. उधर, अटल बिहारी वाजपेयी ने 1980 के बाद नई दिल्ली सीट को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर पहले ग्वालियर और फिर लखनऊ का रुख कर लिया.

(वरिष्ठ पत्रकार और गांधी जी दिल्ली पुस्तक के लेखक हैं )

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