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Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतमोदी के भारत में मुसलमानों के साथ जो हो रहा है वह मनोवैज्ञानिक 'आतंकवाद' से कम नहीं है

मोदी के भारत में मुसलमानों के साथ जो हो रहा है वह मनोवैज्ञानिक ‘आतंकवाद’ से कम नहीं है

भाजपा के मंत्री जब ईसाई समुदाय पर जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप लगाते हैं तो प्रधानमंत्री मोदी पोप से जाकर मिल आते हैं और ऐसी आवाजें चुप हो जाती हैं, मगर मुसलमान इतने खुशकिस्मत नहीं हैं. 

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अवैध घोषित, अमानवीय बरताव झेल रहे, अलग-थलग कर दिए गए, दुनिया और अपने ही मुल्क में बेसहारा भारतीय मुसलमानों को अब अपने अधिकारों और इज्जत के लिए लंबी और अकेली लड़ाई लड़नी है. बुलडोजर से ढहा दिए गए अपने पिता की जूस की दुकान के मलबे से सिक्के उठाते मुस्लिम बच्चे की तस्वीर को महज एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. आप उसे देखते हैं, आपमें से कुछ के दिल को बुरा लगता है, आपमें से कुछ इसे देखकर खुश भी हो सकते हैं. लेकिन ज़्यादातर आप फिर से अपनी जिंदगी के कारोबार में व्यस्त हो जाते हैं.  

मध्य प्रदेश के खरगोन में कटे हुए हाथों वाले एक शख्स के खिलाफ पत्थर फेंकने का मामला दर्ज किया गया है. उसकी आमदनी के एकमात्र स्रोत, उसकी दुकान को बुलडोजर से ढहा दिया गया है. आप उसकी तस्वीर भी देखते हैं, आपको शायद बुरा लगता है लेकिन फिर आप अपने कामकाज में व्यस्त हो जाते हैं. लेकिन मुसलमान क्या करते हैं? उनके लिए तो यह रोज-रोज की हकीकत है. उन्हें जब साजिश करने वाला, आतंकवादी, अवैध प्रवासी, दंगाई और पत्थरबाज़ बताकर मानसिक रूप से ध्वस्त किया जा रहा है तब भारत में उनका भविष्य क्या है?   

तुष्टिकरण पर सवाल 

क्या भारत में मुसलमान ही एकमात्र अल्पसंख्यक हैं जिन्हें उपेक्षित और दरकिनार किया जा सकता है और किसी को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता या कोई इसके लिए सरकार से जवाब तलब नहीं कर सकता? क्योंकि सिख जब गणतंत्र दिवस पर देश की राजधानी पर चढ़ आते हैं और भाजपा के मंत्री और मीडिया का सरकार समर्थक हलका जब उन्हें खालिस्तानी आतंकवादी घोषित करने लगता है, तब कनाडा और ब्रिटेन की सरकारों के सिख मंत्री अपने समुदाय के पक्ष में तथा नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि कानूनों के विरोध में आवाज उठाने लगते हैं और सरकार कदम वापस खींच लेती है. अब चाहे यह पंजाब चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया हो या और किसी वजह से, यह अलग बात है. प्रधानमंत्री सिख समुदाय से अपनी करीबी दिखाने के लिए गुरु तेग़ बहादुर की याद में लाल किले में शानदार समारोह करते हैं. तब कोई भाजपाई मंत्री या मीडिया सिखों को खालिस्तानी कहने की हिम्मत नहीं करता. 

या जब भाजपा के मंत्री ईसाई समुदाय पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगाते हैं और प्रधानमंत्री जब पोप से जाकर मिलते हैं तब सबकी जुबान बंद हो जाती है. तब उनके लिए ‘चावल की बोरी’ (हिंदुओं को अनाज और पैसे देकर धर्मांतरण करने के कारण ) जैसे अपमानजनक जुमले ट्विटर पर नहीं दिखे. भारत के प्रधानमंत्री ने साफ संदेश दिया, वे ईसाई समुदाय के साथ हैं. 

इन सभी स्वागतयोग्य दिखावों की, जिन्हें समन्वयवादी कोशिशें माना जाना चाहिए था, भाजपा अब तक तुष्टिकरण बताकर निंदा किया करती थी. लेकिन भाजपा अल्पसंख्यकों की ओर हाथ बढ़ाने के अपने ही प्रधानमंत्री के इन प्रयासों को तुष्टिकरण कहने की हिम्मत नहीं कर सकती, जबकि कांग्रेस के इन प्रयासों को हमेशा वह अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण बताकर आलोचना किया करती थी. 

भाजपा को अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण तभी नज़र आता है जब वह मुसलमानों के लिए होता है. लेकिन मुसलमानों का तुष्टिकरण कांग्रेस के वर्चस्व के जमाने से ही एक फरेब है. उनका तुष्टिकरण हुआ होता तो इस समुदाय की कुछ जरूरतें तो पूरी हो ही गई होतीं और उसकी कुछ तो तरक्की हुई होती. लेकिन, 2006 में सच्चर आयोग ने जो रिपोर्ट दी थी उसके मुताबिक मुसलमान लगभग सभी सामाजिक-आर्थिक संकेतकों के हिसाब से सबसे निचले पायदान पर थे और उन्हें अनुसूचित जातियों के बराबर माना जा सकता था, जिन्हें आरक्षण हासिल है. 

हालांकि, 2014 के बाद से मुस्लिम विरोधी माहौल कायम है लेकिन जमीनी स्तर पर उन्हें जो नुकसान पहुंचाया जा रहा है. वह कहीं ज्यादा चिंताजनक है. भाजपा के मंत्रियों ने पश्चिम बंगाल और असम में मुसलमानों के बड़े समूह को अवैध प्रवासी घोषित करके एकमुश्त गैरकानूनी ठहरा दिया है. लेकिन अब इसके बहाने उनकी आजीविका के साधनों, उनकी झोपड़ियों और दुकानों पर बिना पूर्व-सूचना के बुलडोजर चलाने को उचित ठहराया जा रहा है. ऐसी कार्रवाई को भले ही वैध बताया जा रहा हो, लेकिन क्या पत्थर केवल मुसलमानों ने फेंके? हथियार लेकर शोभायात्रा निकालने वालों की दुकानों और घरों पर बुलडोजर क्यों नहीं चलाए गए? 


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व्यापक भेदभाव 

इस तरह की अविवेकपूर्ण कार्रवाई केवल भाजपा नहीं कर रही. मुसलमानों की उपेक्षा इतनी वास्तविक है कि ‘आप’ की आतिशी जैसी सुशिक्षित और उदार नेता जहांगीरपुरी के बांग्लाभाषी मुसलमानों को बांग्लादेशी और रोहिंग्या प्रवासी बताने से बाज नहीं आतीं, जिन्हें भाजपा ने दंगों में इस्तेमाल करने के लिए इन इलाकों में बसाया है.  

मुसलमानों के लिए अभिशाप यह है कि उनका वजूद ही उन्हें खलनायक बना रहा है, क्योंकि 9/11 कांड के बाद, बंदूक उठाए किसी भी मुसलमान को सीधे ‘आतंकवादी’ घोषित कर दिया जाने लगा है लेकिन बंदूक उठाए किसी श्वेत, किसी अश्वेत, किसी एशियाई या किसी भारतीय को ‘गनमैन’ भर बता दिया जाता है. मुसलमानों के साथ व्यापक भेदभाव आज दुनियाभर में एक सच्चाई बन गई है, लेकिन 9/11 के बाद से आम मुसलमानों को जो उत्पीड़न भुगतना पड़ रहा है उसे दुनिया भर में महसूस भी किया जा रहा है और उसके खिलाफ आवाज़ भी उठ रही है. ‘मॉरिटैनियन’ जैसी व्यावसायिक फिल्में या मुसलमानों के हालात पर बने वृत्तचित्र उनकी सामाजिक उपेक्षा और अपमान के प्रभावों का अंदाजा देते हैं.  

लेकिन, जिन घटनाओं ने दोनों पक्षों को गलत साबित किया है उनके लिए केवल एक पूरे समुदाय को जिस सख्ती से शर्मसार और अपमानित किया गया है उसकी भारत में शायद किसी को परवाह नहीं है. किसी को भी नहीं. मीडिया या इस माहौल से फायदा उठाने वाले हमेशा बड़ी आसानी से मुसलमानों पर दोष नहीं मढ़ सकते है. 

अगर मोदी सरकार को यह एहसास नहीं होता कि वह भारत के मुसलमानों को किस अंधेरे गर्त में धकेल रही है तो इस दौर को इतिहास में और कुछ नहीं बल्कि एक पूरे समुदाय के खिलाफ उसके अपने ही मुल्क में ‘मनोवैज्ञानिक आतंकवाद’ के दौर के रूप में ही दर्ज किया जाएगा और इसका दोष इस दौर में राज कर रही सरकार के माथे ही मढ़ा जाएगा, जो देश के हर अल्पसंख्यक के लिए एक माहौल तैयार कर रही है, सिवाय मुसलमानों के. 

(लेखक एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं जो @zainabsikander पर ट्वीट करती हैं. उनके ये विचार व्यक्तिगत हैं.)


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(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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