scorecardresearch
Friday, 3 May, 2024
होममत-विमतबेहतर होता कि दिल्ली महिला आयोग ‘ब्यॉयज लॉकर रूम’ ग्रुप के किशोरों की काउंसिलिंग कराता, ना कि सुर्खियां बटोरता

बेहतर होता कि दिल्ली महिला आयोग ‘ब्यॉयज लॉकर रूम’ ग्रुप के किशोरों की काउंसिलिंग कराता, ना कि सुर्खियां बटोरता

अब इन लड़कों के खिलाफ बच्चों का यौन अपराधों से संरक्षण कानून, भारतीय दंड संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत मामला दर्ज करके उन्हे सख्त सजा देने की मांग उठ रही है.

Text Size:

किशोरवय लड़कों द्वारा इंस्टाग्राम पर बनाये गये ‘ब्यॉज लाकर रूम’ समूह में नाबालिग लड़कियों से लेकर महिलाओं तक के बारे में तमाम तरह की अश्लील बातें और उनसे बलात्कार और सामूहिक बलात्कार करने जैसी घटिया बातें और तस्वीरें साझा करने की घटना ने हमारे सभ्य समाज को शर्मसार कर दिया है.

इंस्टाग्राम पर लड़कियों और महिलाओं की छेड़छाड़ कर तैयार की गयी अश्लील और आपत्तिजनक तस्वीरें सोशल मीडिया पर आने के बाद यह मामला सुर्खियों में आया और दिल्ली महिला आयोग की पहल पर पुलिस भी सक्रिय है.

‘ब्यॉज लाकर रूम’ इंस्टाग्राम समूह से जुड़े लड़कों की आयु 16 से 18 वर्ष बतायी जा रही है, जिसका मतलब सारे लड़के नाबालिग हैं. ऐसी स्थिति में इस मामले में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून, 2015 के तहत किशोर न्याय बोर्ड की भूमिका अहम हो जाती है क्योंकि अब वही निर्णय करेगा कि इस अपराध के मद्देनजर क्या ये किशोर इस अपराध के दुष्परिणामों की जानकारी रखने में मानिसक रूप से परिपक्व थे और क्या उन पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाना चाहिए या नहीं?


यह भी पढ़ेंः सीएए विरोधी प्रदर्शन, दिल्ली हिंसा, कोविड-19 के दौरान तबलीगी जमात के आयोजन की खबर देने में खुफिया एजेंसी नाकाम क्यों रहीं


दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल की पहल पर पुलिस ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करके 15 साल के एक किशोर को पूछताछ के लिये पकड़ा है. पुलिस ने महिला आयोग के तेवरों को देखते हुये भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 469, 471, 509 और सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 67 तथा 67ए के तहत मामला दर्ज किया है.

पुलिस ने इस मामले में जिन धाराओ के तहत प्राथमिकी दर्ज की है वे गंभीर अपराध से संबंधित हैं. धारा 467 के तहत जालसाजी के अपराध के लिये अधिकतम दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है जबकि धारा 469 किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिये जाली दस्तावेज का इस्तेमाल करने से संबंधित हैं जिसके लिये तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनो की सजा हो सकती है. इसी तरह, धारा 471 के तहत जाली दस्तावेज या इलेक्ट्रानिक रिकार्ड होने के बावजूद इसे असली दस्तावेज के रूप में इस्तेमाल करने के अपराध में जालसाजी के अपराध की तरह ही सजा का प्रावधान है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पुलिस की प्राथमिकी में दर्ज धारा 509 के तहत शब्दों, भावभंगिमा या फिर कृत्य से किसी महिला की अस्मिता का अपमान करने के अपराध में दोषी को एक साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.

सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 67 जिसका संबंध किसी भी सामग्री का इलेक्ट्रानिक स्वरूप में प्रकाशन या संप्रेषण से है. इस धारा के तहत अपराध के लिये पहली बार दोषी पाये जाने पर तीन साल तक की कैद और पांच लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा हो सकती है. इसी तरह, धारा 67ए इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में यौनाचार दर्शाने वाली किसी सामग्री के प्रकाशन और संप्रेषण के अपराध के बारे में है. इस अपराध के लिये पहली बार दोषी पाये जाने की स्थिति में पांच साल तक की कैद और 10 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा हो सकती है.

निश्चित रूप से इन लड़कों की हरकतें उनको मिल रही शिक्षा, संस्कारों और नैतिकता के पतन को दर्शाती हैं. ये किशोरवय लड़के भले ही 16 से 18 साल की आयु वर्ग के हैं और इन पर वयस्क आरोपियों की तरह मुकदमा चलाये जाने की संभावना नहीं है.

अंतत: इन लड़कों के मामले में किशोर न्याय कानून के तहत किशोर न्याय बोर्ड ही निर्णय लेगा और ऐसी स्थिति में ज्यादा से ज्यादा इस अपराध की गंभीरता से अवगत कराते हुये चाल चलन में सुधार के लिये उनकी गहन काउंसिलिंग करायी जा सकती है या फिर एक निश्चित समय के लिये सुधार गृह भेजा जा सकता है.

किशोर न्याय कानून के तहत अगर इन लड़कों के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही की जाती है तो भी इनकी पहचान हमेशा गोपनीय रहेगी और वयस्क होने के बाद भी इस तरह के अपराध की वजह से इनका जीवन प्रभावित नहीं होगा बशर्ते बालिग होने के बाद ये कोई नया अपराध नहीं कर बैठें.

इस घटना के संबध में दिसंबर 2012 में राजधानी मे हुये निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड के छह आरोपियों में शामिल एक नाबालिग के मामले का जिक्र करना अनुचित नहीं होगा. इस नाबालिग के अपराध की गंभीरता के बावजूद किशोर न्याय बोर्ड की अदालत ने उसे तीन साल की सजा सुनायी थी क्योंकि अपराध के समय उसकी उम्र 18 साल से कम थी. इस नाबालिग के वयस्क होते ही उसे सुधार गृह से रिहा कर दिया गया था.

निर्भया कांड के बाद देश में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून, 2015 बना जिसमें स्पष्ट किया गया कि ऐसा व्यक्ति किशोर माना जायेगा जिसकी आयु 18 साल की नहीं हुयी है. इस कानून में पहली बार 18 साल से कम आयु के व्यक्ति द्वारा किये गये अपराधों को तीन श्रेणियों में रखा गया. पहली श्रेणी- छोटे-मोटे अपराध, दूसरी श्रेणी- गंभीर अपराध और तीसरी श्रेणी- जघन्य अपराध के बारे में है. यही नहीं, इन श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले अपराध से संबंधित मामले की जांच के लिये इस कानून की धारा 14 में किशोर न्याय बोर्ड द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया को भी रेखांकित किया गया है.

इस कानून के तहत गठित किशोर न्याय अदालत को ही यह निश्चित करना है कि क्या आरोपी किशोर पर दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की आवश्यकता है या नहीं और उसे ही उचित आदेश पारित करना होगा.

किशोर न्याय अदालत अगर इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि अपराध की संगीनता को देखते हुये किशोर पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलना चाहिए तो भी उसे अपने अंतिम आदेश में ऐसे किशोर के पुनर्वास की योजना को शामिल करना होगा और उसे सुरक्षित स्थान पर रखना होगा. ऐसे किशोर को 21 साल का होने तक जेल नहीं भेजा जा सकता.

यह सही है कि इस समूह में शामिल लड़कों ने अनैतिक काम किया है जिसकी घोर निंदा होनी चाहिए. यही नहीं, इन सभी छात्रों या लड़कों की गहन काउंसिलिंग की आवश्यकता है लेकिन ऐसा करने की बजाय दिल्ली महिला आयोग ने पुलिस को नोटिस जारी किया. अगर कानूनी धरातल पर देखें तो पहली नजर में ऐसा लगता है कि इन लड़कों ने निजी समूह में बेहूदी बातें करके और अश्लील तस्वीरें साझा करके महिलाओं के प्रति अपनी विकृत मानसिकता को ही उजागर किया है.


यह भी पढ़ेंः लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले वीवीआईपी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करके क्यों नहीं पेश की जा रही नज़ीर


बेहतर होता कि दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष ने वस्तुस्थिति की जानकारी प्राप्त करके इस समूह के लड़कों की काउंसिलिंग करने की दिशा में ठोस कदम उठाया होता और इसमें शामिल लड़कों के स्कूल के प्रधानाध्यपकों तथा उनके माता-पिता से बातचीत करने का प्रयास किया होता. यही नहीं, इस तरह की बेहूदा बातों में समय बर्बाद कर रहे छात्रों की काउंसिलिंग करने में दक्षता प्राप्त लोगों की मदद ली होती लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी दिलचस्पी मामले को उछालकर सुर्खियां बटोरने की थी.

इन लड़कों ने इंस्टाग्राम पर आपस में समूह बनाकर अश्लील और छेड़छाड़ करके महिलाओं तथा किशोरवय लड़कियों की अर्द्धनग्न या नग्न तस्वीरें साझा करके बेहद निम्नता ओर अनैतिकता का परिचय दिया है और इससे इंकार नहीं किया जा सकता.

अब इन लड़कों के खिलाफ बच्चों का यौन अपराधों से संरक्षण कानून, भारतीय दंड संहिता और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत मामला दर्ज करके उन्हे सख्त सजा देने की मांग उठ रही है. इस संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दो वकीलों ने पत्र भी लिखा है लेकिन किशोर न्याय कानून के प्रावधानों के मद्देनजर इन लड़कों को वयस्क अपराधी के रूप में सजा नहीं दिलायी जा सकेगी.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं.)

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. ये सब बच्चे सब कुच्छ जानते हैं। ये युग आई .टी. का है माँ बाप सोचे बेटा पढ़ रहा है लेकिन कोई क्या कर रहा है किसी को नहीं पता।

Comments are closed.