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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतगौड़ा की 'पलंग योगा' और नितीश की 'नो योगा' 2019 के बारे में क्या दर्शाती है ?

गौड़ा की ‘पलंग योगा’ और नितीश की ‘नो योगा’ 2019 के बारे में क्या दर्शाती है ?

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पहली ही नज़र में, प्रधानमंत्री मोदी के योगा प्रमोशन प्रोजेक्ट के लिए गौड़ा और कुमार की प्रतिक्रियाओं ने गलत शरीरों में जकड़ी अधीर आत्माओं वाली छाप छोड़ी है। लेकिन क्या वे हैं?

पिछले गुरुवार को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर दो विपरीत दृश्य थे: पूर्व प्रधानमंत्री और जेडी (एस) अध्यक्ष 85 वर्षीय एच.डी. देवेगौड़ा का टीवी कैमरों की चमक के अंतर्गत बेंगलुरु में बिस्तर पर आसन प्रदर्शन करना और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की पटना के पटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में सरकार द्वारा आयोजित योग कार्यक्रम से स्पष्ट रूप से अनुपस्थिति।

गौड़ा के बेटे एच.डी. कुमारस्वामी कर्नाटक में कांग्रेस-जेडी (एस) गठबंधन सरकार का नेतृत्व करते हैं, जबकि नितीश बिहार में सत्तारूढ़ बीजेपी-जेडी (यू) गठबंधन का नेतृत्व करते हैं। यह एक तरह की उलटी भूमिका थी, या ऐसा लगता है कि कोई इन राजनीतिक कलाबाजों के हस्तक्षेप से अपरिचित है।

राजनीतिक क्षेत्रों के कुछ लोग आश्चर्यचकित थे।  फिर से मतदान का मौसम है और महागठबंधन, या भाजपा विरोधी संघीय मोर्चा की बात चल रही है। दलों के विवादित हितों और गठन करने वाले व्यक्तियों के विरोधाभासी हितों द्वारा चिह्नित अपने अंतर्निहित विरोधाभासों को देखते हुए यह एक कल्पित विचार लगता है। लेकिन व्यावहारिक राजनीति के अनुभवी कलाकारों को स्वयं और पार्टी दोनों के लिए, अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए उनको यह एक मौक़ा दिखता है।

इसके सामने, गौड़ा और कुमार के पीएम मोदी के योग प्रमोशन प्रोजेक्ट के जवाबों ने गलत देह में फंसी बेचैन आत्माओं की एक धारणा दी है। लेकिन क्या ऐसा हैं?

आपातकाल के दौरान कैद किए गये गौड़ा को कांग्रेस के साथ जाने के लिए मजबूर कर कर्नाटक में भाजपा को सत्ता से बाहर रखने का श्रेय दिया जाता है। उनके बेटे, मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने स्पष्ट रूप से अपनी पार्टी के सहयोगियों से कहा कि उनकी पहली पसंद भाजपा थी लेकिन उन्हें अपने पिता की बात माननी पड़ी।

दरअसल, कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के दिन, रुझानों ने एक त्रिशंकु परिणाम का संकेत दिया, भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाने की अपनी इच्छा के बारे में कुमारस्वामी को राजनीतिक संदेश भेजा। यह मुख्यमंत्री पद के प्रस्ताव के साथ कांग्रेस के उनके पास पहुँचने से भी पहले था, और साथ ही कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद देने के लिए भगवा पार्टी कुछ अस्पष्ट थी। बाद में उसी दिन, जब भाजपा नेता बी.एस. येदियुरप्पा सरकार बनाने के लिए दावा करने की तैयारी कर रहे थे, एक वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता ने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद के प्रस्ताव दिया।

लेकिन एक गोपनीय सूत्र के अनुसार जेडी (एस) के नेताओं के साथ विचार-विमर्श के लिए तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

भाजपा विरोधी गौड़ा ने हाल ही में मोदी के प्रेरणादायक कार्य कौशल की सराहना भी की। 1969 में कर्नाटक के जनता दल के 46 सांसदों के समूह में से 16 सांसदों के एक समूह के साथ भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले नेता के लिए, महागठबंधन की वार्ता निश्चित रूप से उनको उत्सुक करेगी।

यह वही थे जिन्होंने कुमारविवामी के शपथ ग्रहण समारोह में सोनिया गांधी के साथ मंच साझा करने के लिए अरविंद केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू, ममता बनर्जी और आधा दर्जन अन्य नेताओं को एक संग लाने के लिए टेलीफोन कॉल किए थे।

लेकिन गुरुवार को किया गया उनका योग आसन कांग्रेस को बेचन बनाएगा और भाजपा इसमें आशावादी होने के साथ साथ दिलचस्पी लेगी।

नितीश कोई कम प्राप्तकर्ता नहीं है। एक कुर्मी, जो कि बिहार की आबादी का केवल 4 प्रतिशत हिस्सा है, कुमार पिछले दो दशकों से केंद्र या राज्य में सत्ता में रहे हैं, मुख्य रूप से उनकी कुटिल राजनीतिक निष्ठा के कारण। 2015 बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराने के लिए महागबंधबंधन की अगुआई करने के बाद, उन्होंने मोदी के साथ हाथ मिलाकर कांग्रेस और आरजेडी को पिछले साल छोड़ दिया, यह वही हैं जिनके साथ वह कभी भोजन करने के भी खिलाफ थे।

जेडी (यू) अब एनडीए का हिस्सा है, लेकिन बिहार में बीजेपी की महत्वाकांक्षा अब नितीश को परेशान कर रही है, जो पर्याप्त रूप से समझ रहे हैं की आगे क्या होने वाला है। यदि मोदी 2019 में सत्ता में लौट आए, तो बीजेपी बिहार में उत्पात मचाएगी। अपने सीमित समर्थन आधार के साथ, वह जानते हैं कि वह नगण्य है। इसलिए, नितीश अपने पुराने सहयोगियों को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस महीने की शुरुआत में लालू यादव ने पूर्व जेडी (यू) प्रमुख शरद यादव को नितीश के पूर्व सहयोगी द्वारा सम्पर्क किए जाने की जानकारी दी जबकि जब आरजेडी प्रमुख मुंबई में थे। उनके वार्तालाप के साक्षी रहे एक नेता ने कहा कि लालू ने महागठबंधन को पुनर्जीवित करने के लिए नितीश की इच्छा से शरद को अवगत कराया। दोनों नेता प्रस्ताव पर हँसे, लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने इसे नकारते हुए बाद में घोषित किया कि नितीश कुमार के साथ गठबंधन का कोई सवाल नहीं उठता।

अच्छी तरह से जानते हुए जेडी (यू) के नेताओं का दावा है कि नीतीश खुद महागठबंधन को पुनर्जीवित करने के लिए गंभीर नहीं हैं क्योंकि लालू 2020 विधानसभा चुनावों में उन्हें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। बिहार के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि बीजेपी उनके नेतृत्व में 2019 लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव आयोजित करें। ऐसा करने पर नितीश का मुख्यमंत्री पद पांच साल तक सुरक्षित रहेगा।

हालांकि बिहार के लिए बीजेपी की कुछ अलग योजनाएं हैं। और इससे समझ आता है की बिहार के मुख्यमंत्री ने योग कार्यक्रम से खुद को दूर क्यूँ रखा और पुराने सहयोगियों की तरफ पहल क्यूँ कर रहे हैं।

गौड़ा और नितीश के रुख में संदर्भ भी है। यह एक ऐसे समय पर आया है जब दोनों लोकसभा में अपना विस्तार करने की सोच रहे हैं – अधिक संख्या, उनको 2019 में एक ऐसी सतिथि में ला देगा जहाँ पूर्ण बहुमत ना मिलने पर वह बेहतर सौदा कर पाएँगे। ऐसा होने के लिए, उन्हें और सीटों पर चुनाव लड़ने की जरूरत होगी। लेकिन ज़रूरी नहीं है की उनके गठबंधन सहयोगी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने में  इच्छुक हों। जेडी (एस) ने 2014 के लोकसभा चुनावों में कर्नाटक में 28 सीटों में से सिर्फ दो सीटें और बिहार में जेडी (यू) ने 40 में से दो सीट जीती थीं। यह योग दिवस पर बेंगलुरू और पटना में विरोधाभासी छवियों को भी दर्शाता है।

महागठबंधन असफल बना रह सकता है, लेकिन एक सोच के रूप में निश्चित रूप से इसकी उपयोगिता है। आज विपक्ष में बहुत से गौड़ा और नितीश हैं जो की इस विचारधारा के हैं।

Read in English : What Gowda’s bed yoga and Nitish’s no-yoga may tell us about 2019

 

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