जम्मू: जम्मू कश्मीर में आज भी लगभग 25,000 से अधिक परिवार ऐसे भी हैं जो देश के नागरिक तो है पर उनके पास जम्मू कश्मीर की नागरिकता नही होने के कारण उन्हें राज्य का स्थाई नागरिक नहीं माना जाता. इन लोगों को पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी के रूप में जाना जाता है.
अजब विडंबना है कि यह लोग लोकसभा चुनाव में तो भाग ले सकते हैं पर विधानसभा चुनाव में वोट नहीं डाल सकते. 72 वर्षों से जम्मू कश्मीर की स्थाई नागरिकता मिलने की आस में बैठे यह शरणार्थी हर लोकसभा चुनाव में राजनेताओं के झूठे आश्वासन पर वोट डालते हैं पर उनकी आस कभी पूरी नहीं हो पाती. केंद्र और राज्य में कई सरकारें आईं और गईं पर पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों की समस्या का कोई हल नहीं निकल पाया, स्थिति यथावत बनी हुई है.
पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों के पास राज्य की नागरिकता न होने के कारण जम्मू कश्मीर में उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल पाती. यही नहीं सरकारी स्कूलों व कालेजों में दाख़िला लेने में भी दिक्कत आती है. कईं अन्य सुविधाएं भी नहीं मिल पाती.
राज्य के नागरिक न होने के कारण केंद्र की कई नौकरियों में भी परेशानी आती है. केंद्रीय नौकरियों में जब से राज्यवार कोटा तय किया गया है, पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों की मुश्किलें भी बढ़ गईं हैं. यहां तक की सेना व अर्द्धसैनिक बलों में नौकरी मिलने में परेशानी आती है. हर जगह पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों से जम्मू कश्मीर का नागरिक प्रमाण पत्र मांगा जाता है.
कौन हैं पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थी
देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान के पंजाब प्रांत विशेषकर सियालकोट और लाहौर के साथ लगते कुछ क्षेत्रों से कुछ परिवार खराब हालात और कत्लेआम को देखते हुए अपनी जान बचा कर जम्मू आ गए थे. जम्मू की तरफ आने के पीछे मुख्य कारण यह था कि जम्मू सियालकोट से काफी करीब था, साथ में पलायन करके आने वाले लोगों के करीबी रिश्तेदार जम्मू और उसके आसपास के इलाकों में रहते थे. जम्मू को सुरक्षित मान यह लोग पंजाब की ओर जाने की जगह जम्मू की तरफ आ गए. हालात की नज़ाकत और पलायन कर आए लोगों की दशा को देखते हुए जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरी सिंह ने इन लोगों को सीमावर्ती इलाकों में शरण दी.
1947 में पाकिस्तान के सियालकोट और उसके आसपास के इलाकों से आए परिवारों की संख्या आधिकारिक रूप से 5,764 परिवार बताई जाती है पर पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों के वरिष्ठ नेता और वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी एक्शन कमेटी के प्रधान लब्बा राम गांधी इस संख्या को सही नहीं मानते. उनका दावा है कि परिवारों की संख्या कहीं अधिक थी पर सरकार ने सभी परिवारों को पंजीकृत ही नहीं किया.
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शरणार्थी नेता लब्बा राम गांधी के दावे में दम है. नागरिकता न मिलने के कारण बहुत से ऐसे लोग भी है जिन्होंने जम्मू में रुक कर जम्मू कश्मीर की नागरिकता का इंतज़ार करने के बजाए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली आदि में बसना ठीक समझा. देश के कईं हिस्सों में ऐसे लोग मिल जाते हैं, जो 1947 में सियालकोट आदि इलाकों से जम्मू आए थे पर बाद में नागरिकता न मिलने पर उन लोगों ने जम्मू छोड़ दिया. इन लोगों में अधिकतर वो लोग थे जिनके पास अच्छे साधन व संसाधन दोनों थे.
नागरिक प्रमाणपत्र न होना बना श्राप
दरअसल 20 अप्रैल 1927 को महाराजा ने जम्मू कश्मीर के तमाम नागरिको के लिए नागरिक प्रमाणपत्र (स्टेट सब्जेक्ट) आवश्यक कर दिया था. स्टेट सब्जेक्ट के रूप में प्रचलित इस प्रमाणपत्र के न होने के कारण कईं लोगों को विभाजन के समय जम्मू कश्मीर का नागरिक नहीं माना गया. हालांकि ऐसे लोग भी थे जो विभाजन की अफरा-तफरी के आलम में जम्मू-कश्मीर के नागरिक होने के साक्ष्य जुटा नही पाए.
जानकारों का कहना है कि 1947 में जो हालात बने उसके लिए कोई भी मानसिक रूप से कोई तैयार नहीं था और किसी ने भी सोचा नही था उन्हें अचानक अपने घर छोड़ने पड़ेंगे. यह भी माना जाता है कि सियालकोट आदि से पलायन करके आए लोगों में से कुछ वास्तविकता में जम्मू-कश्मीर के ही नागरिक थे और देश विभाजन से पहले सियालकोट-लाहौर आदि शहरों में कामकाज के सिलसिले में ही बस गए थे.
इनमें से कुछ के पास जम्मू कश्मीर का नागरिक प्रमाण पत्र (स्टेट सब्जेक्ट) भी था मगर विपरीत हालात में घर-बार छोड़ने को मजबूर हुए लोग अपने साथ अपने दस्तावेज नहीं ला पाए. जागरुकता की भी कमी थी जिस कारण बहुत से लोग समय पर अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर पाए.
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में सिर्फ उन्हीं शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर का नागरिक माना गया, जो पाक अधिकृत कश्मीर से पलायन कर के आए थे और जिनके पास जम्मू कश्मीर का नागरिक होने का प्रमाणपत्र (स्टेट सब्जेक्ट) था.
कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दल खिलाफ
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी कश्मीर और जम्मू के बीच की अंदरूनी राजनीति का भी शिकार रहे हैं. कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दल हमेशा पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों को राज्य की स्थाई नागरिकता देने के खिलाफ रहे हैं. नेशनल कांफ्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के साथ-साथ अलगाववादी संगठन भी लगातार पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर की नागरिकता दिए जाने का विरोध करते रहे हैं.
25,000 परिवार हैं
शरणार्थी नेता लब्बा राम गांधी के अनुसार इस समय पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों के परिवारों की मौजूदा संख्या 25000 के आसपास है. लगभग सभी पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थी जम्मू, सांबा और कठुआ जिलों में बसे हुए हैं.
इन परिवारों में लगभग 80 प्रतिशत दलित व पिछड़े वर्गों से संबंधित है. लब्बा राम गांधी का आरोप है कि दलित व पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने के कारण भी उनके साथ हर सरकार ने भेदभाव किया गया और नागरिकता नहीं होने के कारण कई योजनाओं से वंचित रखा गया. गांधी का कहना है कि पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों के मानवाधिकारों का लगातार उल्लंघन हो रहा है मगर किसी को इस समस्या को हल करने की फिक्र नहीं है.
लोकसभा चुनाव में आती है याद
हर बार लोकसभा चुनाव आते ही विभिन्न राजनीतिक दलों को पश्चिमी पाकिस्तानी पाकिस्तानी शरणार्थियों की याद आने लगती है. अब फिर चुनावी मौसम में राजनीतिक दल वोट के लिए पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों के पास आने लगे हैं. हर लोकसभा चुनाव में प्रत्येक राजनीतिक दल पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों को उनका हक दिलाने की बात कर उनका वोट तो ले लेता है मगर चुनाव होते ही अगले चुनाव तक फिर से पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों को भुला दिया जाता है.
इस बार शरणार्थी नेता लब्बा राम गांधी किसी भी राजनीतिक दल को समर्थन देने की जगह खुद लोकसभा चुनाव लड़ने वाले थे, उन्होंने अपना नामांकन भी भर दिया था. मगर बाद में तकनीकी कारणों से उनका नामांकन रद्द हो गया. लब्बा राम गांधी का आरोप है कि उन्हें जानबूझकर चुनाव नहीं लड़ने दिया गया.
2014 में भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करने वाले लब्बा राम गांधी राजनीतिक दलों के रुख से मायूस है. यह पूछने पर कि चुनाव में किस राजनीतिक दल का समर्थन कर रहे हैं? लब्बा राम दो टूक जवाब देते हैं कि सभी ने निराश किया है इसलिए इस बार उन्होंने किसी के हक में कोई आह्वान नहीं किया है और अपने लोगों से कहा है जिसको मन करे अपना वोट दें.
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उल्लेखनीय है कि राज्य के जम्मू संभाग में फैले पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों के मतदाताओं की संख्या लगभग एक लाख के करीब है. जम्मू-पुंछ लोकसभा सीट पर पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी मतदाता लगभग 60000 के करीब हैं, जबकि उधमपुर-डोडा लोकसभा सीट पर 32,000 पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी मतदाता हैं.
शरणार्थियों में है अंतर
अक्सर यह भी देखने में आता है बहुत से लोग पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों और पाक अधिकृत कश्मीर से आए शरणार्थियों में भेद नही कर पाते और आमतौर पर दोनों को एक ही तरह के शरणार्थी समझ लेते हैं. दिल्ली में बैठे नेता व बाबू लोग भी कईं बार यह चूक कर जाते हैं.
लेकिन दोनों ही तरह के शरणार्थियों में बहुत अंतर है. यहां पश्चिम पाकिस्तानी शरणार्थियों को आज भी अपने लिए नागरिकता की लड़ाई लड़नी पड़ रही है वहीं पाक अधिकृत कश्मीर के शरणार्थियों के पास राज्य की नागरिकता तो है पर उनकी अपनी अलग समस्याएं हैं. पाक अधिकृत कश्मीर से आए शरणार्थियों के अलावा 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में पलायन करने वाले शरणार्थी भी हैं. मगर इन सभी के पास भी जम्मू कश्मार की स्थाई नागरिकता है.
(लेखक जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हैं)