scorecardresearch
Thursday, 16 May, 2024
होममत-विमतपश्चिमी देश पीछे से खालिस्तान को सपोर्ट करते हुए भारत के साथ संबंध सामान्य रखने की उम्मीद नहीं कर सकता

पश्चिमी देश पीछे से खालिस्तान को सपोर्ट करते हुए भारत के साथ संबंध सामान्य रखने की उम्मीद नहीं कर सकता

यदि भारत विरोधी गतिविधियों के लिए पाकिस्तानी क्षेत्र का उपयोग भारत की कड़ी कार्रवाई को उचित ठहराता है, तो 'लोकतांत्रिक स्वतंत्रता' की आड़ में खालिस्तानियों को अपनी धरती पर काम करने की अनुमति देना अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के लिए भी उतना ही अस्वीकार्य है.

Text Size:

तथाकथित खालिस्तान आंदोलन के प्रति निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों द्वारा सैन फ्रांसिस्को में भारतीय वाणिज्य दूतावास को आग लगाने की हालिया घटना विदेश में होने वाली भारत विरोधी गतिविधि का एक और उदाहरण है. इस वाणिज्य दूतावास को पहले भी निशाना बनाया जा चुका है, जब अमृतपाल सिंह, जो खुद को मारे गए आतंकवादी भिंडरावाले की तरह “खालिस्तान नेता” के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है, के खिलाफ पंजाब पुलिस के तलाशी अभियान के दौरान खालिस्तान समर्थक तत्वों के एक समूह ने कार्यालय पर हमला किया और तोड़फोड़ की. नई दिल्ली ने तुरंत भारत में तत्कालीन अमेरिकी विदेश प्रभारी के सामने अपना विरोध दर्ज करवाया. एक ही स्थान पर बर्बरता की पुनरावृत्ति अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के लापरवाह रवैये को उजागर करती है, जिस पर नई दिल्ली को ध्यान देना चाहिए.

एक अन्य घटना में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा के दौरान संबोधित एक बैठक में खालिस्तान समर्थक तत्वों द्वारा डिजाइन किए गए झंडे लहराए गए. चौंकाने वाली बात यह है कि कांग्रेस नेता ने अपने भाषण में न तो इस कृत्य का विरोध किया और न ही इसकी निंदा की. उन्होंने इस तथ्य को भी नजरअंदाज कर दिया कि वो लोग उनकी दादी की हत्या का “जश्न” मना रहे थे.

कनाडा के ग्रेटर टोरंटो के एक शहर ब्रैम्पटन में एक कार्यक्रम के दौरान, खालिस्तान समर्थक तत्वों ने ऑपरेशन ब्लूस्टार की 39वीं वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए “शहीदी दिवस” ​​(शहीद दिवस) मनाया, जब तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने पवित्र स्वर्ण मंदिर में छिपे हुए आतंकवादी को निकालने का आदेश दिया था. कार्यक्रम की एक झांकी में दो सिख सुरक्षा गार्डों को इंदिरा गांधी के पुतले पर गोलियां चलाते हुए दिखाया गया. कनाडा में विपक्षी नेताओं द्वारा इस घटना की निंदा करने के बावजूद, पील रीजनल पुलिस (पीआरपी) ने कहा कि यह घटना किसी भी प्रकार का अपराध नहीं है. इससे पता चलता है कि स्थानीय सुरक्षा अधिकारियों को कूटनीति और इतिहास में सबक लेने की कितनी ज़रूरत है.

कनाडाई चुनाव कानूनों के तहत, राजनीतिक पद चाहने वाले संभावित उम्मीदवारों को न्यूनतम संख्या में समर्थकों की एक सूची जमा करनी होगी. पिछले दो दशकों में, कनाडा की सिख आबादी का अनुपात दोगुना से अधिक, 0.9 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत हो गया है, और पंजाबी दक्षिण एशियाई निवासियों के बीच दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा (29.4 प्रतिशत) है. जबकि अधिकांश कनाडाई चुनावी राजनीति में उदासीन रहते हैं, सिख समुदाय अपने नेताओं के आसपास एकजुट होता है और आम तौर पर समुदाय के नेताओं के पसंदीदा उम्मीदवारों का समर्थन करता है. दुर्भाग्य से, इनमें से कई समूह खालिस्तान समर्थक तत्वों के प्रभाव में आ गए हैं. नतीजतन, निर्वाचित उम्मीदवार शायद ही कभी ऐसी कार्रवाई करते हैं या ऐसे बयान देते हैं जिससे सिख नेता नाराज हों.


यह भी पढ़ें: अभी ‘मिडिल पावर्स’ का जमाना है, भारत को इस मौके को नहीं छोड़ना चाहिए


पश्चिम को सबक सीखना चाहिए

सोशल मीडिया पर कट्टरपंथी तत्वों द्वारा लंदन में “किल इंडिया” रैली की घोषणा करने वाले पोस्टर प्रसारित करने की खबरें आई हैं. इन पोस्टरों में भारतीय राजनयिकों की तस्वीरें हैं, और उन्हें पिछले महीने वैंकूवर में आतंकवादी हरदीप निज्जर के हत्यारे के रूप में गलत तरीके से लेबल किया गया है. यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि ये कट्टरपंथी तत्व मेहनती सिख समुदाय के केवल एक छोटे से प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं जो आजीविका की तलाश में इन देशों में चले गए हैं. 1980 के दशक के अंत में खालिस्तानी आतंकवाद का घृणित अध्याय निर्णायक रूप से समाप्त हो गया. हालांकि, इसके लिए कुछ कीमत भी चुकानी पड़ी. खालिस्तान की मांग को भारत में कोई समर्थन नहीं है, लेकिन कुछ चरमपंथी नेता तब से अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अन्य देशों में चले गए वहां से समय-समय पर राग अलापते रहते हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

ये कट्टरपंथी तत्व न केवल धार्मिक संस्थानों के माध्यम से स्थानीय सिख समुदाय का शोषण करते हैं, बल्कि उन्हें पाकिस्तानी सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी, आईएसआई से भी पर्याप्त धन भी मिलता है. आतंकवाद पर अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट Country Report on Terrorism 2019 ने स्पष्ट रूप से इस बात पर प्रकाश डाला कि “पाकिस्तान कुछ क्षेत्रीय रूप से केंद्रित आतंकवादी समूहों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह के रूप में काम करता रहा है. इसने अपने क्षेत्र से संचालित करने के लिए अफगानिस्तान को निशाना बनाने वाले समूहों को अनुमति दी, जिनमें अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क शामिल है, साथ ही भारत को निशाना बनाने वाले समूह, जिनमें लश्कर-ए-तैयबा और उसके सहयोगी फ्रंट संगठन तथा जैश-ए-मोहम्मद शामिल है. खालिस्तानी संगठनों का प्रसार इसी आतंकी फंडिंग प्रोजेक्ट का हिस्सा है.

भारत विरोधी गतिविधियों के लिए पाकिस्तानी क्षेत्र का उपयोग गलत माना जाता है और भारत द्वारा मजबूत सक्रिय कार्रवाई को उचित ठहराया जाता है. ठीक इसी तरह, “लोकतांत्रिक स्वतंत्रता” की आड़ में अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अन्य देशों की धरती पर भारत विरोधी गतिविधियां अस्वीकार्य है. इनमें से कोई भी देश जो भारत को निशाना बनाने वाले आतंकवादी समूहों को पनपने की इजाज़त देता है, भारत से सामान्य व्यापार और राजनयिक संबंध बनाए रखने की उम्मीद नहीं कर सकता है.

सिख्स फॉर जस्टिस (एसएफजे) संगठन भारत में प्रतिबंधित है, और जिन देशों में यह संगठन संचालित होता है, उन्हें इस पर और आतंकी फंडिंग पर पलने वाले अन्य संगठनों पर तुरंत प्रतिबंध लगाना चाहिए. जैसा कि हिलेरी क्लिंटन ने एक बार पाकिस्तान के बारे में कहा था, यही बात इन देशों पर भी लागू होती है: “आप अपने घर मे (विशैले) सांप नहीं रख सकते हैं और उनसे यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वे केवल आपके पड़ोसियों को काटेंगे. आपको पता है आख़िरकार वे सांप आप पर भी हमला कर देंगे.”

भारत से अधिक चिंतित उन देशों को होना चाहिए जहां ये तत्व अपना सिर उठा रहे हैं. भारत अपने घरेलू अधिकार क्षेत्र में इन तत्वों से निपटने में पूरी तरह सक्षम है. दुनिया में कहीं भी भारत के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को देश का दुश्मन माना जाना चाहिए और उसके साथ उसी तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए जो हम किसी दुश्मन से करें. इन व्यक्तियों की पहचान करना और उनके पासपोर्ट रद्द करने, भारत में उनकी संपत्तियों को जब्त करने और उनके प्रवासी भारतीय नागरिक (ओआईसी) कार्ड रद्द करने जैसे कदम उठाना मुश्किल नहीं है. यदि उन्हें वह देश छोड़ने के लिए कहा जाए जहां ऐसे लोग आतंकी गतिविधियों में शामिल हैं, तो उनके साथ अवांछित व्यक्ति के रूप में व्यवहार किया जाना चाहिए और उन्हें राज्यविहीन (stateless) कर दिया जाना चाहिए.

असहिष्णु समूहों और उनकी आतंकवादी गतिविधियों के प्रति सहिष्णुता अंततः अराजकता को जन्म देगी, और कोई भी देश ऐसे असहिष्णु संगठनों द्वारा हावी होने के खतरे से अछूता नहीं है. फ्रांस में हाल की घटनाएं एक सबक के रूप में काम करती हैं जिससे पश्चिम को सीखना चाहिए.

(शेषाद्री चारी ‘ऑर्गेनाइजर’ के पूर्व संपादक है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: पुतिन ने ईरान और तुर्की से बात की लेकिन अपने ‘दोस्त’ मोदी या ‘भाई’ शी जिनपिंग से बात क्यों नहीं की


 

share & View comments