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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतहे दर्शक, मीडिया के कॉकटेल से बचो, वरना सुशांत की आत्मा को चैन आ भी जाये तो तुम्हें नहीं आने वाला

हे दर्शक, मीडिया के कॉकटेल से बचो, वरना सुशांत की आत्मा को चैन आ भी जाये तो तुम्हें नहीं आने वाला

अपराध और ग्लैमर का कॉकटेल बनाने का बढ़िया मौका देखकर मीडिया का यह हिस्सा तभी सक्रिय हो गया था, जब पुलिस ने सुशांत की कथित महिला मित्र रिया चक्रवर्ती से पूछताछ शुरू की.

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बाॅलीवुड के बहुचर्चित अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की ‘आत्महत्या’ को लेकर कोई दो महीने तक चली उठापटक (जिसे महाराष्ट्र बनाम बिहार का रूप देने की कोशिश भी की गई) के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि उसकी जांच सीबीआई ही करेगी, मुम्बई पुलिस नहीं. न्यायालय ने उम्मीद जताई है कि सीबीआई जांच से सच सामने आयेगा और सुशांत की दिवंगत आत्मा चैन से सो पायेगी.

आरुषि व हेमराज की हत्या का रहस्य है बरकार

फिलहाल, आत्माओं के अस्तित्व को लेकर जानकारों में एक राय नहीं है. न्यायालय द्वारा भी अपने आदेश में साफ नहीं किया गया है कि उनके सोने-जागने को लेकर उसकी अवधारणा क्या है और वे सभी एक जैसी होती हैं या अलग-अलग? लेकिन सुशांत की दिवंगत आत्मा आरुषि व हेमराज की दिवंगत आत्माओं जैसी ही निकली तो सीबीआई भी उसे चैन की नींद मयस्सर नहीं ही करा पायेगी. याद कीजिए, 2008 में उत्तर प्रदेश के नोएडा में हुई आरुषि व हेमराज की हत्याओं पर पड़े रहस्य का परदे सीबीआई जांच के दौरान तमाम सनसनीखेज दावों के बावजूद नहीं ही हटे हैं.

हां, न्यायालय के इस आदेश के बाद देश, समाज और सुशांत मामले से सम्बन्धित जन, जब तक सीबीआई की ओर से ‘रहस्योद्घाटन’ नहीं शुरू किये जाते, इसको लेकर जारी आपराधिक मीडिया ट्रायल और अनापेक्षित राजनीति के थमे रहने को लेकर आश्वस्त रह सकते हैं. इस कारण और भी कि मीडिया व राजनीति दोनों इस सिलसिले में अपने-अपने खेलों को भरपूर खेलकर अपने अभीष्ट की सिद्धि कर चुके हैं और अब उनके पास बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरह यह जताने का मौका है कि आगे न्याय होगा.

यों, खुद नीतीश भी इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हैं कि अरसे से राजनीतिक दुरुपयोग के दंश झेलती आ रही सीबीआई अब किसी भी मामले में न्याय की उम्मीद कम ही जगा पाती है. लेकिन नीतीश को इतना अनुभवहीन तो उनके विरोधी भी नहीं मानते कि अभी वे ऐसा कुछ कहकर किसी संबित पात्रा को यह कहने का मौका देंगे कि महाराष्ट्र, माफ कीजिएगा, बिहार सरकार ‘जा रिया’ है. अकारण नहीं कि बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे ने भी मौसम का रुख देखकर यह कहने के लिए खेद जता दिया है कि रिया चक्रवर्ती की इतनी औकात नहीं है कि वह बिहार के मुख्यमंत्री पर कमेंट करें.


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अपराध और ग्लैमर का कॉकटेल

जहां तक मीडिया की बात है, उसकी मुख्य धारा का बड़ा हिस्सा सीबीआई के जांच शुरू करने से पहले ही अपनी जांच पूरी करके ‘अदालत’ में पेश कर चुका है. मन को मसोसते हुए कि काश, वह सजा भी सुना सकता. अपराध और ग्लैमर का कॉकटेल बनाने का बढ़िया मौका देखकर मीडिया का यह हिस्सा तभी सक्रिय हो गया था, जब पुलिस ने सुशांत की कथित महिला मित्र रिया चक्रवर्ती से पूछताछ शुरू की. उसके बाद तो ‘रिया का रहस्य’, ‘लव, लिव-इन और धोखा’, ‘तंत्र-मंत्र षडयंत्र’ और ‘बाॅलीवुड की विषकन्या’ जैसे सनसनीखेज शीर्षकों, आशालीन शब्दों, रोमांच बढ़ाने वाले ग्राफिको और पाश्र्व संगीत के साथ रोजाना किया जा रहा मीडिया ट्रायल आरुषि व हेमराज हत्याकांड और राम रहीम की गिरफ्तारी जैसे मामलों के मीडिया ट्रायल को भी मात देने लगा था. पुरानी सी-ग्रेड की फिल्मों की तरह यह भूलकर कि कोई अपराध हुआ है तो उसकी जांच होनी और दोषियों को उनके किये की सजा मिलनी ही चाहिए, लेकिन जांच का काम जांच एजेंसी का और उसके निष्कर्षों के आधार पर सजा सुनाने का काम अदालत का है, मीडिया का नहीं.

मीडिया का कर्तव्य ईमानदारी से खबरें देना है और दुःख की बात है कि इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए किसी तरह की जांच की कतई जरूरत नहीं है कि उसके द्वारा अपने पाठकों व दर्शकों को सुशांत मामले में जरूरत से ज्यादा उलझाने के पीछे इस कर्तव्यपालन में कोताही का वही सोचा-समझा इरादा था, जिससे दर्शक और पाठक पिछले कई सालों से पीड़ित हैं. गौर कीजिए, जब यह मीडिया सुशांत के मामले को लेकर अपराध और ग्लैमर का कॉकटेल बना रहा था, उसके पास अपने दर्शकों और पाठकों को बताने के लिए और क्या-क्या था?

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में हर दूसरे दिन बच्चियों व महिलाओं पर वहशत भरे यौन हमले हो रहे थे और कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर वह देश के टाॅप फाइव राज्यों में शामिल हो रहा था. देश की बात करें तो इस महामारी से मरने वालों की संख्या पाकिस्तान, बंगलादेश व श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से ज्यादा हो गई थी, जबकि सरकार मार्च से ठप पड़ी संसद का सत्र इस डर से नहीं बुला रही थी कि उसे उसमें न सिर्फ कोरोना बल्कि चीन की घुसपैठ की बाबत भी असुविधाजनक सवालों के जवाब देने पड़ेंगे.


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महामारी, बाढ़ और नौकरियां

महामारी के कारण ऐसे करोड़ों बच्चों, जिनके पास ऑनलाइन क्लासेज और एग्जाम्स की सहूलियत नहीं है, का भविष्य अभी भी अधर में लटका हुआ है, लेकिन सुशांत की मौत के मामले में अटके मीडिया को अभी भी उस पर चर्चा की फुरसत नहीं मिली है. और तो और, सुशांत के राज्य बिहार में भारी बारिश और बाढ़ से जनधन की व्यापक बरबादी की भी उसे कोई चिन्ता नहीं. दूसरी ओर, वह चार महीनों में 1.89 करोड़ नौकरियां चली जाने और बेकारी के बेलगाम होने की खबरों को घटती सरकारी नौकरियों के लिए राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी के गठन की खबर से प्रतिस्थापित करने में लगा है.

बिडम्बना यह कि यह सब वह अन्जाने में नहीं, बल्कि जानबूझकर कर रहा है. इस लचर तर्क के साथ कि दर्शक या पाठक जो चाहते हैं, वह वही दिखाता या छापता है. लेकिन यह पूछा जाये कि क्या दर्शकों व पाठकों को लोकतंत्र के लिए परिपक्व करना या जागरूक नागरिक बनाना उसकी जिम्मेदारी नहीं है, तो वह या तो चुप्पी ओढ़ लेता है या नये कुतर्क गढ़ने लगता है. याद कीजिए, इसी कुतर्क के तहत उसने सुशांत मामले के बीच भी आमिर खान को प्राइम टाइम की बहस का हिस्सा बनाया, जबकि उनका मामला इतना भर था कि उन्होंने अपनी विदेशयात्रा के दौरान टर्की की प्रथम महिला से मुलाकात कर ली थी. तब मीडिया की उक्त मुख्यधारा दर्शकों व पाठकों को यह समझाने लग गई थी कि उसका जो राष्ट्रवाद गलवान घाटी में चीन की हिमाकत से भी खतरे में नहीं पड़ा, वह इस एक मुलाकात से खतरे में पड़ गया है. हां, सुशांत मामले में उलझकर इसने गलवान घाटी को भी भुला ही दिया है.

कायदे से इस कठिन समय में उसका सबसे बड़ा दायित्व देश की सरकार के उन कदमों का सच उजागर करना है, जिनके तहत वह कोरोना के बहाने लोकतंत्र की शक्तियों को लगातार सीमित करने और अधिनायकवाद को न्यू नार्मल बनाने पर आमादा है. इतना ही नहीं, लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे लोगों पर वह सत्ता की दमन शक्ति का अमर्यादित प्रयोग भी कर रही है और खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाने और लोकतंत्र को खत्म करने में लगे लोगों को संरक्षण देकर और बली भी बना रही है.

लेकिन अफसोस की बात है कि इस दायित्व निर्वाह की परवाह मीडिया की मुख्यधारा की चिन्ताओं में शामिल ही नहीं है, जबकि उसे किसी और की नहीं तो अपनी चिन्ता तो करनी ही चाहिए थी. यह समझना भी कि उसका स्वतंत्र अस्तित्व तभी तक सलामत रहने वाला है, जब तक देश का लोकतंत्र अपनी खैर मना पा रहा है. जिस वृक्ष की डाल पर उसका बसेरा है, उसी को काटते हुए इस मीडिया को कम से कम इतना तो समझना ही चाहिए कि इससे खुद उसके समक्ष भी बसेरे का संकट खड़ा हो जायेगा.

बहरहाल, जब तक वह यह बात नहीं समझता, दर्शक और पाठक उसके एक के बाद एक काकटेलों से निजात की उम्मीद नहीं कर सकते-सुशांत की आत्मा चैन की नींद सो जाये तो भी नहीं.

(लेखक जनमोर्चा अख़बार के स्थानीय संपादक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

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2 टिप्पणी

  1. K p Singh ji apki yah bate jab Narendra modi Gujrat ke cm the or in pr media or vipakh me isi traha ka propegenda chalaya tab kidar this apki antaratma…..media to abi b Bhai Kar Raha Jo bo pahle karta aya….ab apki kun sulag rahi……

  2. पिछले कई दिनों से आप भी तो सुशांत सिंह राजपूत केस से जूडी खबरें ही शिर्ष पर बता रहे हो ।आप क्या स्पेशल और अलग कर रहे हो। आपने कौनसे समाज हीत के अन्य मुद्दों और समस्याओं को महत्व दिया है? बताइये?

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