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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमत‘गलत पार्टी में सही आदमी’ नहीं, स्वयं एक पार्टी थे अटल बिहारी वाजपेयी

‘गलत पार्टी में सही आदमी’ नहीं, स्वयं एक पार्टी थे अटल बिहारी वाजपेयी

वाजपेयी की तरह कोई और नेता वक्तृत्व एवं खामोशी के मिश्रण का वैसा उपयोग नहीं कर पाया. वे इस खूबी की बदौलत कठिन सवालों से बचकर निकल जाते थे.

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भाजपा के सत्ता में आने का इतिहास अटल बिहारी वाजपेयी के बिना अधूरा ही रहेगा. उन्हें अक्सर ‘गलत पार्टी में सही आदमी’ कहकर संबोधित किया जाता था. लेकिन वाजपेयी अपने आप में एक संस्थान थे, पार्टी का अस्तित्व उनसे था.

वाजपेयी ने भाजपा की नींव गांधीवादी समाजवाद की विचारधारा पर रखी थी. इस वजह से उनकी अपनी ही पार्टी ही नहीं बल्कि भाजपा के जनक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी उनका विरोध किया था. महाराष्ट्र के पुणे में हुई आरएसएस की एक सभा में वाजपेयी ने दो घंटे से अधिक समय तक प्रश्नों का सामना किया. आख़िर जीत उनके ही नाम रही और उन्होंने कहा, ‘आपके गले के नीचे क्या नहीं उतरता है, गांधी या समाजवाद?’

अयोध्या में 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस और लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा की बदौलत भाजपा को सत्ता प्राप्त हुई. प्रधानमंत्री के पद के योग्य कोई था तो वाजपेयी. केवल वही एक गठबंधन को सफल बना सकते थे. उस गठबंधन के सहभागी रहे सभी 24 दलों के लिए भाजपा अचानक ही गलत से सही पार्टी बन गयी.


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लेकिन वाजपेयी ने इसका सारा श्रेय पार्टी एवं पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को दिया. 2000 में वाजपेयी ने कहा, ‘भाजपा की वर्तमान ताकत हमारी सामूहिक कोशिशों की बदौलत है. हमने ऐसी कई जीतें देखी हैं जिन्हें प्राप्त करने में हमारे कार्यकर्ताओं ने आंसू, पसीना और कभी-कभी तो खून भी बहाया है. हम अपनी यात्रा के एक महत्वपूर्ण चरण में आ चुके हैं. हमारी स्वीकार्यता बढ़ी है और यह बढ़ती ही जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि हम अलग हैं और हमारी भाषा जनता की भाषा है. एक पार्टी के तौर पर हमें इस विशिष्टता को बनाये रखना होगा. हमारा राजनैतिक आचार/व्यवहार यह तय करेगा.’

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भाजपा अभी केंद्र के अलावा 20 राज्यों में सरकार में है लेकिन इस महान नेता, इस ‘सही’ आदमी की कमी तो खलेगी ही.

संसद के अंदर हो या बाहर, कविता हो या कहानी, घरेलू मामले हों या विदेशी, वाजपेयी की छोड़ी छाप ही भाजपा के लिए पथप्रदर्शक का काम करेगी.

भारत की विदेश नीति पर अपने पहले ही भाषण से वह देश के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू को प्रभावित करने में सफल रहे थे. लेकिन नेहरू की बेटी इतनी उदार न थीं. इंदिरा गांधी ने जनसंघ को तब ‘बनिये की पार्टी’ घोषित कर दिया जब बैंकों के राष्ट्रीयकरण एवं प्रिवी पर्स की प्रथा खत्म करने की उनकी लोकलुभावन नीतियों का विरोध हुआ.

वाजपेयी ने अपने ट्रेडमार्क लहजे में उत्तर दिया था, ‘हम भी कहते हैं जनसंघ के सदस्य ‘बनिये’, इंदिरा भी हमारी ही बात दुहरा रही हैं.’


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वाजपेयी ने राष्ट्रहित के रास्ते में पार्टी को कभी आने नहीं दिया और उन्होंने कई मौकों पर अपने प्रतिद्वंदियों की तारीफ भी की. पोखरण में हुए पहले परमाणु परीक्षण के समय भारतीय जनसंघ इंदिरा गांधी की आर्थिक नीतियों का कट्टर विरोधी था. ‘गलत पार्टी में सही आदमी’ वाजपेयी ने सरकार को इस साहसिक फैसले के लिए बधाई भी दी. उनका यह भी मानना था कि नेहरू एक दूरदर्शी थे जिन्होंने होमी भाभा की देखरेख के अंदर भारत में एक विश्वस्तरीय आणविक संयंत्र बनाया. हालांकि वाजपेयी सरकार द्वारा पोखरण में 1998 में किये गए परमाणु परीक्षणों के दूसरे दौर को कांग्रेस की शाबाशी नहीं मिली.


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कोई और नेता वक्तृत्व एवं खामोशी के मिश्रण का ऐसा उपयोग नहीं कर पाया है. वाजपेयी अपनी इसी खूबी की बदौलत अपनी बात तो रखते ही थे बल्कि कठिन परिस्थितियों और सवालों से बेदाग बचकर भी निकल जाते थे.

पार्टी के 1992 सत्र के दौरान हुई प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक संवाददाता ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें हाशिये पर डाल दिया गया है. सवाल को काफी देर तक नज़रंदाज़ करने के बाद वाजपेयी ने इसका खंडन तो किया ही, मज़ाकिया लहजे में जवाब भी दिया, ‘नहीं, मुझे हाशिये पर नहीं डाला गया है, दरअसल गलतियां हाशिये पर ही सही की जाती हैं.’

वाजपेयी जैसे नेता घिसी-पिटी परिभाषाओं की पहुंच से बाहर हैं. वे तो नेतृत्व की परिभाषा हैं.

लेखक ऑर्गनाइज़र के पूर्व संपादक के अलावा भाजपा की विदेश नीति सेल के राष्ट्रीय संयोजक भी रहे हैं. उन्होंने वाजपेयी की एक चित्रमय जीवनी, जननायक का संपादन भी किया है. ईमेल :charidr@gmail.com 

(यह लेख दिप्रिंट पर 17 अगस्त, 2018 को छप चुका है. इसे आज पुन: प्रकाशित किया जा रहा है. इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने की लिए यहां क्लिक करें.)

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