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Tuesday, 23 April, 2024
होममत-विमत'बेचारा यूक्रेन'- रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध खुद उसे चोट पहुंचा रहे हैं लेकिन वे हार नहीं मानने वाले

‘बेचारा यूक्रेन’- रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध खुद उसे चोट पहुंचा रहे हैं लेकिन वे हार नहीं मानने वाले

भविष्य पर नज़र डालने पर सवाल उठता है कि क्या पश्चिमी ताकतें उस देश को बचाना चाहती हैं जिसे अभी भी यूक्रेन कहा जाता है और क्या पश्चिम रूसी खतरे को हमेशा के लिए खत्म करना चाहता है.

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दुनिया के नक्शे पर यूक्रेन बड़ी जगह घेरे हुए दिखता है. रूस को छोड़ दें तो यह यूरोप में सबसे बड़े भौगोलिक आकार का देश है. लेकिन आकार अक्सर धोखा देता है. यूक्रेन की जीडीपी भारत की जीडीपी के 20वें हिस्से के बराबर है. और उसकी आबादी श्रीलंका की आबादी की दोगुनी ही है. वह ऐसा देश नहीं है जो रूस जैसी पूर्व महाशक्ति से, जो चाहे कितनी भी छोटी क्यों न हो गई हो, लोहा नहीं ले सकता. पांच महीने से वह उसके साथ भीषण युद्ध में डटा हुआ है, वह अपनी कुछ जमीन हार गया है लेकिन रूस को करारा जवाब दे रहा है. यह यूक्रेनियाइयों के जुझारूपन और युद्धकौशल का तो प्रमाण है ही, पश्चिम से मिल रही सैन्य सहायता का भी सबूत है.

लेकिन यह सब कीमत भी वसूल रहा है. विश्व बैंक का अनुमान है कि इस साल यूक्रेन की जीडीपी में 45 फीसदी की कमी आ जाएगी. ताजा अनुमान के मुताबिक अभी नुकसान एक तिहाई के करीब है. जान-माल की हानि का तो हिसाब ही नहीं लगाया जा सकता. इस बीच, इसके युद्धरत राष्ट्रपति ने कहा है कि नागरिक सुविधाओं को फिर से खड़ा करने के लिए 750 अरब डॉलर की जरूरत पड़ेगी. यह युद्ध से पहले उसकी जीडीपी के पांच गुना के बराबर है. युद्ध जारी रहा तो यह खर्च और बढ़ सकता है. खुद आर्थिक परेशानी में फंसा कोई पश्चिमी देश इतनी नकदी नहीं जुटा सकता. अब हमारे सामने वही हो सकता है जो युद्ध में होता है— लगभग वैसा ही विनाश जैसा इराक और सीरिया का हुआ.

रूस ने भी कीमत चुकाई है. उसकी अर्थव्यवस्था इस साल 10 फीसदी सिकुड़ जाएगी. उसकी मुद्रा की कीमत में भारी उथलपुथल हुई है. मुद्रास्फीति 15 फीसदी के करीब पहुंच चुकी है, और पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों के कारण उत्पादन व्यवस्थाएं बिगड़ गई हैं. चूंकि व्लादिमीर पुतिन ने पिछले दो दशकों में अर्थव्यवस्था को ठीक से चलाया इसलिए उसके ऊपर कर्ज उसकी जीडीपी के पांचवें हिस्से के बराबर ही है (भारत पर कर्ज 85 फीसदी के बराबर है), और तेल तथा गैस की ऊंची कीमतों ने कमाई जारी रखी है. लेकिन इतना तो तय है कि प्रतिबंधों का असर और सेना की जरूरतें पूरी करने की चुनौती से निबटना भारी पड़ेगा. लेकिन राष्ट्रपति पुतिन बेफिक्र दिखते हैं. वे तो 24 फरवरी को शुरू की गईं “विशेष फौजी कार्रवाइयों” के लक्ष्यों का विस्तार ही कर रहे हैं.


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जब हम किसी भी युद्ध के मूल कारणों की खोज करते हैं तब हमेशा दोष की भागीदारी करनी पड़ती है, लेकिन अक्सर यूनानी त्रासदी को भुगतना ही पड़ता है. यानी कहानी यूक्रेन और उसकी आंतरिक दरारों से भी आगे जाकर सोवियत संघ के विघटन और उसके बाद तक जाती है. मध्य एवं पूर्वी यूरोप के देशों के लोगों के लिए लोकतांत्रिक पश्चिम और अमीर यूरोपीय संघ अधिनायकवादी और साम्राज्यवादी विस्तार के इतिहास वाले रूस के मुक़ाबले ज्यादा आकर्षक रहा है. लेकिन यूरोपीय संघ ने जब पूरब की ओर फैलाया और उसके बाद ‘नाटो’ बना, तब रूस खुद को घिरा हुआ महसूस करने लगा. एक टीकाकार ने ठीक ही कहा— पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया, जिसके बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया.

अब भविष्य पर नज़र डालने पर यह सवाल उठता है कि क्या पश्चिमी ताक़तें उस देश को बचाना चाहती हैं जिसे अभी भी यूक्रेन के नाम से जाना जाता है, भले ही वह भौगोलिक रूप से सिकुड़ गया हो, और क्या पुतिन का हमला केवल पश्चिम के उकसावों का जवाब है? अगर ऐसा है तो मुद्दा, हासिल होने वाली जमीन के आकार और स्वरूप है, जो रूस को वार्ता की मेज पर ला सकता है और युद्ध खत्म हो सकता है. लेकिन पुतिन अगर बदला लेने के लिए बढ़चढ़कर कार्रवाई कर रह हैं, और पश्चिम अगर रूसी खतरे को हमेशा के लिए खत्म करना चाहता है (यह मान कर कि यह यथार्थपरक लक्ष्य है, जो कि पूरा नहीं हो सकता है), तो युद्ध जारी रहेगा और फिर विजेता कोई नहीं साबित होगा.

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आखिर, रूस पर अभूतपूर्व प्रतिबंध दोतरफा मार कर रहे हैं. अमेरिका और यूरोप इसकी आर्थिक कीमत चुका रहे हैं, अमेरिका से ज्यादा रूस चुका रहा है. गैस की राशनिंग की आशंका मजबूत हो रही है, अर्थव्यवस्थाएं मंदी की शिकार हो रही हैं, और मुद्रास्फीति कई दशकों के अपने रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच रही है, तब लोकतांत्रिक देशों के नेताओं को अपने मतदाताओं का सामना करना पड़ेगा. खासकर यूरोप के नेताओं के आगे पहाड़ है तो पीछे खाई. उन्हें ऊर्जा आपूर्ति के एक भरोसेमंद स्रोत से हाथ धोना पड़ेगा. यूक्रेन की सैन्य तथा आर्थिक सहायता करने के साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था का सैन्यीकरण करना होगा. तो उनका गठबंधन किस समय टूटेगा? अगर यह नहीं टूटता है, क्योंकि असली लक्ष्य तो रूसी खतरे को हमेशा के लिए खत्म करना है, तब यही कहा जा सकता है— बेचारा यूक्रेन!

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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