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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतउद्धव ठाकरे ने अपने पिता की विरासत शिवसेना को बर्बाद कर दिया, महाराष्ट्र में असली हार उन्ही की हुई है

उद्धव ठाकरे ने अपने पिता की विरासत शिवसेना को बर्बाद कर दिया, महाराष्ट्र में असली हार उन्ही की हुई है

महाराष्ट्र स्पीकर द्वारा एकनाथ शिंदे खेमे के पक्ष में फैसला सुनाए जाने से यह संभव है कि अब भी उद्धव का समर्थन करने वाले अधिकांश विधायक अब 'असली शिवसेना' में शामिल होने के लिए दौड़ पड़ेंगे.

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स्पीकर की सेना ही असली शिवसेना है. शिवसेना बनाम शिवसेना की कहानी एक नए चरण में प्रवेश कर गई है जब महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष और कभी पेशे से वकील रहे और शिवसेना से राकांपा और फिर भाजपा तक का सफर तय करने वाले एडवोकेट राहुल नार्वेकर ने फैसला सुनाया कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट ही असली शिवसेना है. इस फैसले के बाद अब देर-सवेर राजनीतिक घमासान चुनावी अखाड़े में शिफ्ट हो सकता है.

स्पीकर के फैसले ने शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट द्वारा किए गए विभाजन पर मंजूरी की मोहर लगा दी है, जिसने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह किया था, जिसमें उसे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के साथ 2022 में मिलकर महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार बनाकर पार्टी के हिंदुत्व एजेंडे को कमजोर करने का हवाला दिया गया था.

288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 145 सदस्यों की आवश्यकता है. एनसीपी और कांग्रेस के पास 98 सीटें (क्रमशः 54 और 44) होने के साथ, 56 सीटों वाली शिवसेना 105 सीटों वाली भाजपा के लिए सरकार बनाने के लिए महत्वपूर्ण थी. शिवसेना और एनसीपी में फूट के बाद मौजूदा गठबंधन के पास 162 विधायक हैं, जो बहुमत से 17 अधिक है. अगर शिंदे गुट के 17 सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया गया होता तो भी सरकार बच जाती. लेकिन ऐसा निर्णय उद्धव गुट के लिए फायदेमंद होगा, जिससे शक्ति संतुलन उसके पक्ष में झुक जाएगा.

स्पीकर के पक्ष में फैसला सुनाने और चुनाव आयोग द्वारा पहले शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और लोकप्रिय ‘धनुष और तीर’ प्रतीक देने के साथ, यह संभव है कि उद्धव खेमे के बाकी विधायकों में से अधिकांश “असली शिवसेना” में शामिल होने के लिए दौड़ पड़ेंगे. अब उद्धव ठाकरे, जिनकी पार्टी को अब शिवसेना (यूबीटी) कहा जाता है और उनके पास प्रतीक के रूप में एक जलती हुई मशाल है, स्पीकर के फैसले को चुनौती देंगे, हालांकि उनके गुट के विधायकों को सदन के सदस्यों के रूप में अयोग्य घोषित नहीं किया गया है. यह वास्तव में उनके लिए एक बड़ी समस्या है क्योंकि ये सदस्य शिंदे समूह में शामिल होने और सत्ता के गलियारों में अपना रास्ता बनाने के लिए स्वतंत्र हैं.

जिन्होंने अकेले के दम पर महाराष्ट्र में शिवसेना को सत्ता तक पहुंचाया ऐसे “हिंदू हृदय सम्राट” बाल ठाकरे के बेटे, ठाकरे परिवार के वंशज, उद्धव ही असली हारे हुए व्यक्ति प्रतीत होते हैं. जब भाजपा “गांधीवादी समाजवाद” का पालन कर रही थी (और लोकसभा में दो सीटों पर सिमट गई थी), यह बाल ठाकरे ही थे जिन्होंने अपनी पार्टी को हिंदुत्व के खम्भे से बांधा और औरंगाबाद नगर निगम का नाम शिवाजी महाराज के पुत्र के नाम पर “संभाजी नगर” रखने का वादा करने के बाद जीत हासिल की.”

भाजपा को हिंदुत्व की राजनीति की क्षमता का तुरंत अहसास हो गया और उसने सत्ता के गलियारों तक पहुंचने के लिए शिवसेना के साथ गठबंधन कर लिया. विडंबना यह है कि उद्धव ने अपने पिता की विरासत को बर्बाद कर दिया और राजनीतिक चालाकी का सहारा लिया, जिसमें कम से कम कहा जाए तो वह नौसिखिया थे. बाल ठाकरे को भी आनंद दिघे और छगन भुजबल जैसे उनके करीबी सहयोगियों से चुनौती मिली थी, लेकिन वह कार्यकर्ताओं पर अपनी पकड़ और रणनीतिक कदमों से उनकी चुनौती को टालने और पार्टी को सफलता की ओर ले जाने में सक्षम थे. दुर्भाग्यवश, उद्धव अपने पिता पर किसी दाग सरीखे नहीं हैं, जिन्होंने कांग्रेस से जी-जान से लड़ाई की.


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उद्धव का गलत आकलन

बीजेपी को सबक सिखाने के लिए, उद्धव ने एमवीए के साथ गठबंधन किया, जो वैचारिक रूप से अलग-अलग पार्टियों के बीच एक अजीब गठबंधन है. एनसीपी में विभाजन ने न केवल एमवीए को निरर्थक बनाने की प्रक्रिया को तेज कर दिया, बल्कि शिवसेना को भी अपने साथ ले डूबी. पार्टी का टैग और चुनाव चिह्न ख़त्म हो जाने के बाद, उनके विधायक उन्हें छोड़ने का इंतज़ार कर रहे हैं, और उनके पैरों के नीचे से हिंदुत्व का मुद्दा सरक गया है, उद्धव बिना पार्टी के नेता और बिना फॉलोवर्स की पार्टी की तरह हैं. उनका और उनके बेटे का बयान कि वे लड़ेंगे, उन कुछ नेताओं को बहुत कम या कोई सांत्वना नहीं देता है जो अभी भी इस उम्मीद में बैठे हैं कि किसी दिन भाग्य उनका साथ देगा.

अब उद्धव को हिंदुत्व की ओर लौटने का रास्ता खोजने के लिए उचित समय का इंतजार करना होगा. वह 22 जनवरी को राम मंदिर कार्यक्रम में खुद को आमंत्रित करवा सकते थे और हिंदुत्व के रथ में कूद सकते थे. उनका गलत अहंकार उन्हें निमंत्रण के लिए भीख मांगने की इजाजत नहीं देगा और राजनीतिक रसूखदार उन्हें अपने खेमे में प्रवेश से वंचित करने के लिए कार्यक्रम से बाहर रखना चाहेंगे.

भाजपा अब अधिक आत्मविश्वास से मतदाताओं का सामना करेगी, क्योंकि आधिकारिक “धनुष बाण” उसके पक्ष में है और राम मंदिर की चकाचौंध उसकी जीत का मार्ग प्रशस्त कर रहा है. भाजपा के लिए भी हिंदुत्व की लहर पर अकेले सवार होना आसान नहीं होगा, क्योंकि पार्टी को विभाजित करने के लिए आधिकारिक तौर पर एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना का मुख्य मुद्दा यही था. इसे एक स्वच्छ और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार प्रदान करनी होगी, शहरी मतदाताओं की गंभीर समस्याओं और ग्रामीण किसानों के मुद्दों पर ध्यान देना होगा, खासकर उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहां अभी भी राकांपा और कांग्रेस का विशेष प्रभाव है.

एक दर्जन से अधिक नगर निगम हैं जिनके चुनाव आने वाले महीनों में होंगे, जिनमें बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) भी शामिल है जिसका बजट कुछ राज्य सरकारों से भी बड़ा है. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में भाजपा और “आधिकारिक” शिवसेना के लिए असली परीक्षा बीएमसी चुनाव जीतना होगा, जो 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद होने की संभावना है.

लेकिन महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन सहयोगियों के लिए तत्काल चिंता यह सुनिश्चित करना होगी कि उनकी साझेदारी बरकरार रहे और आगामी आम चुनाव में सभी या अधिकतम लोकसभा सीटें जीतें.

(शेषाद्री चारी ‘ऑर्गेनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. उनका एक्स हैंडल @seshadrihari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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