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गुरूवार, 24 अप्रैल, 2025
होममत-विमतजगह-जगह मोदी सेल्फी प्वाइंट बनाने का रक्षा मंत्रालय का निर्देश खतरे की घंटी है  

जगह-जगह मोदी सेल्फी प्वाइंट बनाने का रक्षा मंत्रालय का निर्देश खतरे की घंटी है  

‘एसओपी’ ने सिफ़ारिश की है कि इन ‘सेल्फी प्वाइंट’ पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगाई ‘जा सकती है’. ‘सकती है’ जैसे शब्द का इस्तेमाल विवादास्पद निर्देशों की ज़िम्मेदारी उनका पालन करने वालों पर डालने की पुरानी चाल रही है

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रक्षा मंत्रालय ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने की एक नयी किस्म की योजना शुरू की है. तीनों सेनाओं समेत इसके सभी विभागों और संगठनों को 6 अक्तूबर को भेजे गए निर्देशों के मुताबिक देशभर में सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे 822 ‘सेल्फी प्वाइंट’ बनाए जाएंगे जहां “प्रतिरक्षा के क्षेत्र में किए गए अच्छे कामों की प्रदर्शन” लगाई जाएगी. यह इस तरह किया जाएगा कि “लोग खुद को इस अभिक्रम का हिस्सा महसूस करें”. 

वैसे, इस योजना के बारे में रक्षा मंत्रालय (एमओडी) की ओर से कोई औपचारिक बयान नहीं जारी किया गया है. रक्षा मंत्रालय के 6 अक्तूबर के डी (को-ओर्ड) पत्र ID No. 8(34) /2023/ D(Coord), जो सोशल मीडिया पर भी दिखा, का एमओडी ने न तो खंडन किया गया है और न पुष्टि की है. इसके निर्देशों के मुताबिक, यह योजना ‘तुरंत’ लागू की जानी है. दरअसल, ऐसे ‘सेल्फी प्वाइंट’ कुछ जगहों पर बना भी दिए गए हैं. पुणे में कमांड हॉस्पिटल सदर्न कमांड के बाहर बनाए गए ऐसे एक ‘सेल्फी प्वाइंट’ की फोटो सेवानिवृत्त सेनाधिकारियों के व्हाट्सएप ग्रुपों और पूर्व ट्वीटर ‘एक्स’ पर डाली गई. 

दुनियाभर में सेनाएं और सैन्य संगठन अपने इतिहास और अपनी उपलब्धियों को प्रस्तुत करने के लिए युद्ध स्मारकों, संग्रहालयों, परेडों, साजोसामान की प्रदर्शनी, गोला-बारूद की ताकत के प्रदर्शन, एअर शो, युद्धपोतों की प्रदर्शनी, चित्रों और पोस्टरों आदि का प्रयोग करते हैं ताकि सेना के प्रति जनता का विश्वास मजबूत हो. लेकिन भारत में ‘सेल्फी प्वाइंट’ योजना लागू करने का जो समय और विषय चुना गया है उसने इसे विवादास्पद बना दिया है. आरोप लगाए जा रहे हैं कि सरकार चुनावी साल में अपना राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहती है. 

‘सेल्फी प्वाइंट’ संबंधी निर्देश  

एमओडी में एडिशनल डाइरेक्टर जनरल (मीडिया एवं संचार) ने ‘सेल्फी प्वाइंट’ से संबंधित एक प्रेजेंटेशन 14 सितंबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष प्रस्तुत किया था. जाहिर है, उनकी मंजूरी के बाद ही 6अक्तूबर का उपरोक्त निर्देश जारी किया गया. इस योजना को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है और कहा गया है कि सारे ‘सेल्फी प्वाइंट’ “फौरन बनाए जाएं”. एक ‘एक्शन रिपोर्ट’ 11 अक्तूबर को पेश की जाने वाली थी और प्रगति रिपोर्ट 13 अक्तूबर को रक्षा मंत्री को सौंपी जानी थी. 

कुल 822 ‘सेल्फी प्वाइंट’ बनाए जाने की योजना है और इनके लिए हरेक विभाग और संगठन के लिए विशेष लक्ष्य दिया गया है. थल सेना को 100, वायुसेना को 75, नौसेना को 75 और मिलिटरी इंजीनियरिंग सर्विसेज को 50, रक्षा उत्पादन विभाग को 100, डीआरडीओ को 50, सेवानिवृत्त सैनिकों के कल्याण विभाग को 50, यानी सेनाओं को कुल 300 ‘सेल्फी प्वाइंट’ बनाने; बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेसन, एनसीसी, डाइरेक्टर जनरल ऑफ डिफेंस एस्टेट्स, आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल सर्विसेज, इंडियन कोस्ट गार्ड, और सैनिक स्कूलों समेत रक्षा विभाग को कुल 352 ‘सेल्फी प्वाइंट’ बनाने का लक्ष्य दिया गया है. 

एडिशनल डाइरेक्टर जनरल (मीडिया एवं संचार) ने ‘सेल्फी प्वाइंट’ के विकास के लिए मानक ऑपरेटिंग प्रक्रिया सभी संबद्ध हलक़ों को जारी किया है. ‘एसओपी’ ने सरकारी नारों के आधार पर विषय निश्चित किए हैं, मसलन– ‘आत्मनिर्भर भारत’, ‘सशक्तीकरण’, अनुसंधान एवं विकास, नव-आविष्कार, सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास, पूर्व सैनिकों का कल्याण, नारी शक्ति, एनसीसी और सैनिक स्कूलों का विस्तार, डिजिटाइजेशन आदि. 

‘सेल्फी प्वाइंट’ ऐसे प्रमुख स्थलों पर बनाए जाने हैं जहा ज्यादा-से-ज्यादा लोग आते हों और जो बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान खींचे. ऐसे स्थलों में ये सब हैं— युद्ध स्मारक, रक्षा संग्रहालय, रेल/बस स्टेशन, हवाई अड्डे, मॉल/ मार्केट, स्कूल-कॉलेज, पर्यटन स्थल, त्योहारों के स्थल आदि. डिजाइन तय करना अलग-अलग संगठनों के जिम्मे सौंप दिया गया है. वैसे, सुझाव दिया गया है कि त्रिआयामी मॉडल या डिजिटाइज्ड बिलबोर्ड बनाए जा सकते हैं. ‘एसओपी’ ने विशेष सोशल मीडिया हैंडल (एक्स/फेसबुक/इंस्टाग्राम) बनाने का भी सुझाव दिया है जिसके आकर्षक आइडी ‘सेल्फी प्वाइंट’ पर प्रदर्शित किए जाएं ताकि लोग संबद्ध विभाग को अपनी सेल्फी के साथ टैग कर सकें. इसी तरह, विभागों को विशेष ईमेल आइडी और व्हाट्सएप एकाउंट बनाने के लिए कहा गया है ताकि लोग अपनी फोटो इन पर भेजें और ज्यादा प्रचार हो. 

अंत में, ‘एसओपी’ ने सिफ़ारिश की है कि “इन ‘सेल्फी प्वाइंट’ पर माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर लागाई जा सकती है”. सुझाव के रूप में ‘सेल्फी प्वाइंट’ के तीन नमूने दिए गए हैं जिनमें देसी विमानवाही युद्धपोत ‘विक्रांत’, देसी लड़ाकू विमान ‘तेजस’, और नारी शक्ति का प्रदर्शन करतीं महिला फाइटर पाइलटों के मॉडल शामिल हैं. इन तीनों नमूनों के साथ प्रधानमंत्री मोदी की विशाल फोटो या मॉडल शामिल है, जो दूसरी चीजों के मुक़ाबले डेढ़ गुना बड़ी है. 

रक्षा मंत्रालय के नोटिफिकेशन में दिए गया सेल्फी पॉइंट आइडिया | फोटो: विशेष प्रबंधन

छिपी मंशा  

यह ‘सेल्फी प्वाइंट’ योजना ऊपर से तो एमओडी की उपलब्धियों का प्रदर्शन करने की पारंपरिक एवं सामान्य कोशिश नजर आती है, खासकर रक्षा मामले में आत्मनिर्भरता और सेना की शक्ति के मुद्दे के मद्देनजर. लेकिन इस योजना को लागू करने की यह जो समय चुना गया है, और प्रधानमंत्री की तस्वीर जोड़ने की जो सिफ़ारिश की गई है (हालांकि इसे ‘की जा सकती है” कहा गया है), उससे राजनीतिक एजेंडा की बू आती है. खासकर इसलिए कि इससे पहले सेना मुख्यालय की ओर से मई में निर्देश जारी किया गया है कि छुट्टी पर जा रहे सैनिक सरकार के जनकल्याण कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए समाज सेवा का ‘स्वैच्छिक’ कार्य जरूर करें. 

पांच राज्यों के चुनाव इसी नवंबर में होंगे और लोकसभा चुनाव अप्रैल 2024 में शुरू हो सकता है. 

जरा गौर कीजिए कि एमओडी इस योजना को लागू करने के लिए कितना बेताब है. निर्देश 6 अक्तूबर को जारी किए गए, अमल ‘फौरन’ शुरू करना है, और कार्रवाई रिपोर्ट 11 अक्तूबर को सौंपनी है. यह सामान्य योजना है या राष्ट्रीय प्रतिरक्षा, खासकर सेनाओं की पहचान सत्ताधारी दल के साथ जोड़ने की ‘समवेत’ कोशिश है? 

इसमें शक नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा सुधारों, खासकर रक्षा उत्पादन के देसीकरण को काफी बढ़ावा दिया है. लेकिन यह निरंतर जारी, निरंतर प्रगतिशील प्रक्रिया है. सेना के हर चेहरे को एक राजनीतिक शख्सियत के रूप में उनके साथ जोड़ना इस आरोप को ही बढ़ावा दे सकता है कि यह ‘राजनीतिक दोहन’ है.   

इसका एक उदाहरण है कमांड हॉस्पिटल सदर्न कमांड के बाहर बनाए गए ‘सेल्फी प्वाइंट’ पर उनकी तस्वीर को जोड़ना. यह एक अस्पताल की तस्वीर है जिसके साथ लिखा है—“आइ लव सीएचसीएस”. किसी और देश की सेना में, प्रधानमंत्री की तस्वीर का दुरुपयोग करने के लिए अस्पताल प्रशासन की खिंचाई की जाती. 

‘सकता है’ शब्द का इस्तेमाल विवादास्पद निर्देशों की ज़िम्मेदारी उनका पालन करने वालों पर डालने की पुरानी चाल रही है. सेना में, ‘सकता है’, ‘सिफ़ारिश की जाती है’, ‘विचारार्थ’ जैसे जुमलों के साथ दिए गए निर्देशों को वैधानिक माना जाता है. अफसोस कि हमारी सेनाएं अस्पष्ट निर्देशों की आड़ लेने की जगह उन्हें सैन्य आदेश मानने लगी हैं जिनका पालन बिना कोई सवाल उठाए करना ही है और बिना यह समझे कि उनके साथ राजनीतिक मंशा जुड़ी होती है. 

ज़िम्मेदारी सेनाधिकारियों की 

सभी सरकारें प्रायः सेना के साथ अपनी पहचान जोड़कर, और संविधान के तहत जारी आदेश और अपनी राजनीति के बीच के फर्क को गड्डमड्ड करके सेना का दोहन किया करती हैं. सेनाओं में सभी पदों पर बहाली/ कमीशनिंग के समय संविधान के पालन की शपथ ली जाती है और वे अ-राजनीतिक बने रहने को कर्तव्यबद्ध होते हैं. सेना के तमाम सैनिक लॉर्ड टेनिसन की कविता ‘द चार्ज ऑफ द लाइट ब्रिगेड’ की प्रसिद्ध पंक्ति ‘न कोई सवाल करना है कि ऐसा क्यों, उन्हें तो बस करना और मरना है’ की भावना से आदेशों का बिना कोई सवाल किए पालन करते हैं. 

कर्नल और उससे ऊपर के पद के अधिकारी इतने अनुभवी और परिपक्व होते हैं कि संविधान के तहत “वैध आदेश” का अर्थ खूब समझते हैं. सरकार से संपर्क करने में सीडीएस, तीनों सेनाध्यक्ष, और आर्मी कमांडर (तथा समान पद वाले) का यह काम है कि वे संविधान सम्मत सरकारी आदेश और राजनीतिक दोहन के लिए दिए गए निर्देश में फर्क करें. ‘एक्स’ हैंडल पर एक पूर्व सेना अधिकारी ने कमांड हॉस्पिटल सदर्न कमांड के बाहर बनाए गए ‘सेल्फी प्वाइंट’ को इस बात की मिसाल बताया है कि यह तब होता है “जब सेना के अगुआ कार्यपालिका के नियंत्रण और राजनीतिक तमाशेबाजी में फर्क नहीं करते या इससे इनकार करते हैं.” 

पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल वेद मल्लिक से जब इस योजना पर टिप्पणी करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा कि सेना को “राजनीति से अलग रहना चाहिए” और सेना का “राजनीतिकरण करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए”. 

नौसेना के एक पूर्व अध्यक्ष ने ज्यादा ज़ोर देकर कहा कि इस तरह के कार्यक्रम के बारे में “कभी विचार नहीं किया जाना चाहिए था”, इसका सेना पर दूरगामी नकारात्मक असर पड़ेगा. उन्होंने कहा,  “मैं समझ नहीं पाया हूं कि इस ‘सेल्फी प्वाइंट’ कार्यक्रम के पीछे क्या अवधारणा है, लेकिन आम चुनाव जबकि नजदीक है तब सेनाओं को दूर से भी शामिल करने वाला ऐसा कोई उपक्रम, जो राजनीतिक असर डाल सकता है, खतरे की घंटी ही है. एमओडी इस पर विचार ही नहीं करना चाहिए था. उम्मीद की जानी चाहिए कि सेना का नेतृत्व बताएगा कि हमारी पेशेवर सेना के मनोबल और एकता पर राजनीति का कैसा दीर्घकालिक हानिप्रद असर पड़ सकता है.” 

ज़िम्मेदारी सेना के नेतृत्व के कंधों पर है. राजनीतिक सरकारें आती-जाती रहती हैं लेकिन अ-राजनीतिक सेना का संविधानसम्मत आचरण स्थायी रहता है. लोकतंत्र में इस संतुलन को बनाए रखने के लिए उसे करना सिर्फ यह होता है कि अपनी रीढ़ सीधी रखते हुए नरमी के साथ सरकार को मजबूती से सलाह देती रहे.

(लेफ्टिनेंट जनरल एच एस पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (आर) ने 40 वर्षों तक भारतीय सेना में सेवा की. वह सी उत्तरी कमान और मध्य कमान में जीओसी थे. सेवानिवृत्ति के बाद, वह सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के सदस्य थे. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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