प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन की जो घोषणा की है उससे भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था को सांस लेने का समय मिलेगा और कोविड-19 वाइरस को फैलने से रोकने में भी मदद मिलेगी. हमारे ऊपर जो गंभीर आपदा आने वाली है उसका सामना करने में हमारे अस्पताल कारगर हो सकें इसके लिए लॉकडाउन जरूरी था. इससे हमें तब तक के लिए समय मिल जाएगा जब तक दुनिया इस वाइरस का इलाज और वैक्सीन खोज लेती है. जिन देशों ने पहले लॉकडाउन नहीं किया था वे अब कर रहे हैं, जबकि इस बीच उन्होंने कई जानें गंवा दी और कई लोगों की आजीविका छिन गई. अब उन्हें अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए ज्यादा बड़े राहत पैकेज की घोषणा करनी पड़ रही है.
भारत में लॉकडाउन के फायदे भी होंगे और नुकसान भी.
एक ओर स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर रूप से तैयार होने का समय मिलेगा, तो दूसरी ओर कई लोग बेरोजगार और बदहाल हो जाएंगे. शहरी असंगठित क्षेत्र के कामगारों, जिनमें प्रवासी पुरुषों की संख्या ज्यादा है, पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी. उन तक सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लाभ पहुंचाना सबसे मुश्किल होगा.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने किसानों, संगठित क्षेत्र के कामगारों, मनरेगा मजदूरों के अलावा महिलाओं, विधवाओं, और पेंशन पाने वालों को जन-धन खाते के जरिए राहत पहुंचाने के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है. इससे किसानों और उन लोगों को मदद मिलेगी, जो मंडियों और सप्लाई चेन के बंद होने के कारण जल्दी ही प्रभावित होंगे. यह उन शहरी प्रवासी कामगारों को भी राहत देगा जो अपने गांव लौटेंगे, वह भी तब जब बसों-ट्रेनों आदि पर रोक हटेगी और सड़कों पर कर्फ़्यू खत्म होगा.
अस्पतालों की तैयारी और स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की सुरक्षा
लॉकडाउन के बाद अब सरकार को अगले अहम और निर्णायक कदम उपाय तेजी और कुशलता से लागू करने की जरूरत है. सबसे पहले तो उसे यह व्यवस्था करनी होगी कि अस्पताल पर्याप्त रूप से तैयार हो जाएं. सरकार ने मेडिकल साजोसामान, जांच किट, दवाइयों, व्यक्तिगत बचाव के सामान, आइसोलेशन बेड, आइसीयू आदि के निर्माण-उत्पादन और खरीद के लिए 15,000 करोड़ रुपये के कोरोना वायरस वित्त पैकेज की घोषणा की है. हमारे पास जांच की सीमित सुविधा होने के कारण देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की सही संख्या नहीं मालूम है. न हमें इस बात का अंदाजा है कि आगे और कितने मामले सामने आ सकते हैं.
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वायरस का फैलना रिहाइशों, मौसम, लोगों के स्वास्थ्य के अलावा उनकी उम्र तथा रोग से लड़ने की क्षमता और दूसरे कई अज्ञात कारणों पर निर्भर करता है. लोगों के संक्रमित होने की संख्या और उनके स्थान के बारे में मॉडलों का उपयोग करके ही मोटा अनुमान लगाया जा सकता है. इसका अर्थ यह हुआ कि स्वास्थ्य व्यवस्था की जरूरतें अज्ञात रहेंगी. जाहिर है, यह नियोजन और तैयारी को और चुनौतीपूर्ण बना देता है.
स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की सुरक्षा बेहद अहम है. देश भर के सरकारी और निजी अस्पतालों में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम करना बहुत बड़ी प्रशासनिक चुनौती है. चिंता की बात यह है कि इटली में संक्रमित लोगों में से 9 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवा कर्मचारी हैं.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों को हाड्रोक्सीक्लोरोक्विन नामक दवा लेने की सलाह दी है क्योंकि ऐसे प्रमाण मिले हैं कि यह उनके जीवन की रक्षा कर सकती है. ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि मास्क, सुरक्षा परिधान, सैनिटाइजर, आदि का उत्पादन देश में हो, या उन्हें विदेश से मंगाकर अस्पतालों में मुहैया किया जाए. इसके लिए सरकारी वित्तीय नियमों, न्यूनतम कीमत आदि की शर्तों की सामान्य प्रक्रिया से अलग जाकर आपात खरीद करने की जरूरत पड़ेगी. सप्लाई और डिमांड की विदेशी तथा देशी शर्तें रोज बदल रही हैं. खरीद की प्रक्रिया ऐसी तेज और लचीली बनानी होगी कि देश की जरूरतों को बिना देरी के पूरा किया जा सके.
कमाई के साधन गंवाने वालों के लिए सुरक्षा
सरकार के लिए दूसरी प्रमुख चुनौती लॉकडाउन के कारण आय के साधन से वंचित हुए लोगों को सुरक्षा देना है. हालांकि लॉकडाउन के दौरान कई देशों को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है लेकिन भारत के लिए चुनौतियां अपने विशाल असंगठित क्षेत्र के कारण बेशुमार हैं. अचानक अपनी आजीविका से वंचित हुए लोगों की संख्या विशाल है. अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि यह ‘जाम’ यानी (जन धन-आधार-मोबाइल तिकड़ी) का उपयोग करके उन लोगों को तुरंत सीधे पैसे पहुंचाने (डायरेक्ट ट्रांसफर) का समय है, जो बड़ी मुश्किल से गुजारा कर पा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश, पंजाब, केरल की सरकारों ने डाइरेक्ट ट्रांसफर की घोषणा कर दी है. केंद्र सरकार ने रियायती दर पर गेंहू-चावल मुहैया कराने की घोषणा करके दूसरा कदम उठाया है. सभी सरकारों को तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि दिहाड़ी मजदूरों, खासकर शहरों के मजदूरों की मुश्किलें कम हों क्योंकि सबसे ज्यादा मार उन पर ही पड़ी है. लॉकडाउन का सबसे पहले उन पर ही असर पड़ता है इसलिए सबसे पहले उनकी मदद की जानी चाहिए. घोषित पैकेज से साफ है कि इन लोगों तक सीधे मदद पहुंचाना सबसे चुनौतीपूर्ण है.
सरकार ने नियोक्ताओं से कहा है कि वे कामगारों को वेतन बंद न करें. लेकिन लॉकडाउन से कई कारोबारों को धक्का पहुंचेगा. मैनुफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र में बंदी हो रही है. रेस्तरां, सैलून, टेलर, बढ़ई, आदि तमाम तरह के छोटे कारोबार रोज की बिक्री पर चल पाते हैं. तीन सप्ताह तक बिना बिक्री के कामगारों को वेतन दे पाना उनके लिए असंभव होगा. जब तक यह स्पष्ट नहीं होगा कि सरकार इन तीन सप्ताहों या ज्यादा समय की बंदी में उनके वेतन के भुगतान की व्यवस्था करेगी तब तक ये कारोबारी कैसे भुगतान कर पाएंगे? क्या इसके लिए वे बैंक से कर्ज लेंगे? अगर सरकार सभी कामगारों के वेतन का भुगतान करती है तो इसकी कुल लागत क्या होगी?
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मध्यवर्गीय ग्राहकों के लिए ईएमआई या सर्विस लोन का भुगतान कर पाना मुश्किल होगा. जाहिर है, इससे बैंकों पर अलाभकारी कर्ज और घाटे का बोझ बढ़ेगा, जिसे पहले से ही दबी हुई वित्त व्यवस्था बर्दाश्त नहीं कर पाएगी. कर्ज और डिफ़ाल्ट में वृद्धि का सामना बैंकिंग सेक्टर के लिए उपयुक्त नीतिगत ढांचा बनाकर ही किया जा सकता है. सरकार जितनी जल्दी यह करे, उतना बेहतर.
सप्लाई चेन को टूटने न दें
इस बीच, सरकार को यह व्यवस्था करनी होगी कि जरूरी चीजों की आपूर्ति का सिलसिला जारी रहे, खाने-पीने की चीजें और दवाएं लोगों को मिलती रहें. ग्राहकों को जब बाहर नहीं निकलने दिया जाएगा तब असली सवाल यह पैदा होता है कि सरकार भोजन और जरूरी चीजों के बाज़ार को कैसे चालू रखेगी? हर दिन नई समस्या उभर रही है और हर दिन उसके समाधान के उपाय किए जा रहे हैं. आगामी दिनों में यही सबसे अहम चुनौती साबित होगी.
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(लेखिका एक अर्थशास्त्री हैं और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनान्स में प्रोफेसर हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)