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Saturday, 20 April, 2024
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आतंकवादी कोरोना को हथियार बना सकते हैं, सशस्त्र सेनाओं को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की ज़रूरत है

महामारी के तीसरे और चौथे चरण में संक्रमित लोगों की बड़ी संख्या संसाधनों पर भारी पड़ती है. ऐसे में सशस्त्र सेनाएं सरकार की बहुत मदद कर सकती है.

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भारत आज जब कोरोनावायरस महामारी के संक्रमण के तीसरे चरण सामुदायिक संक्रमण  के कगार पर खड़ा है, तो ऐसे में हमारी सशस्त्र सेनाओं के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं. अपनी ऑपरेशनल तैयारियों को बनाए रखने के लिए सैनिकों के बीच वायरस के फैलाव को रोकना. जम्मू-कश्मीर में सेना और आम आबादी के खिलाफ कोविड-19 का जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर उग्रवाद बढ़ाने के लिए मौके का इस्तेमाल करने से आतंकवादियों को रोकना और महामारी के तीसरे और चौथे चरण तक पहुंचने की स्थिति में इसके खिलाफ सरकार के अभियानों में मदद करना.

सैनिकों को ख़तरा

सेना को स्वच्छता और साफ-सफाई के ऊंचे मानकों और अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जाना जाता है. लेकिन सैनिकों के रहन-सहन और क्रिया-कलापों संबंधी परिस्थितियां गंभीर जोख़िम भी पैदा करती हैं. सैनिक जिन बैरकों में रहते हैं वहां उनके लिए साझा शौचालयों और गुसलखानों की व्यवस्था होती है. वे सामुदायिक मेसों में खाना खाते हैं. व्यावहारिक रूप से प्रशिक्षण और अभियानों के दौरान उन्हें परस्पर करीब रहते हुए काम करना होता है. इसलिए सेना अपने माहौल में कोविड-19 को पैठ बनाने देने का खतरा मोल नहीं ले सकती है क्योंकि वहां सामाजिक दूरी कायम करना मुश्किल है. इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है. जब संक्रामक रोगों के चलते वास्तविक लड़ाई की तुलना में कहीं अधिक सैनिक हताहत हुए थे.

इस प्रकार, खुद तक सिमट जाने के अलावा सेना के पास और कोई विकल्प नहीं है. छावनियों, सैन्य केंद्रों, वायुसेना और नौसेना के अड्डों को अलग-थलग करने के अलावा बैरकों में भीड़ कम की जानी चाहिए और कुछ सैनिकों को टेन्टों वाले शिविरों या पूर्वनिर्मित आश्रयों में ले जाया जाना चाहिए. असैनिक क्षेत्रों में रहने वाले सैनिकों और उनके परिवारों को सैन्य केंद्रों के अंदर अस्थाई आवासों में ले जाया जाना चाहिए. छुट्टियों पर जाने से सैनिकों को रोका जाना चाहिए और पहले से ही छुट्टी पर गए जवानों की छुट्टियां बढ़ा दी जानी चाहिए या वापसी पर उन्हें क्वारंटाइन में बाकियों से अलग रखा जाना चाहिए.


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सशस्त्र सेनाओं ने पहले से ही भीड़भाड़ कम करने और सैन्य ठिकानों तक पहुंच सीमित करने के लिए कई उपाय किए हैं. समय रहते उठाए गए ऐहतियाती कदम बहुत सफल रहे हैं. अभी तक संक्रमण का सिर्फ एक पुष्ट मामला ही सामने आया है.

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आतंकवादियों के लिए उपयुक्त स्थिति

युद्ध और संघर्ष महामारी के खत्म होने का इंतजार नहीं करते. वास्तव में, शत्रु ऐसी स्थितियों का फायदा उठाते हैं. इसका नवीनतम उदाहरण है एक सप्ताह पहले 21 मार्च को सुकमा में नक्सलियों द्वारा घात लगाकर किया गया हमला, जिसमें 17 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई, जबकि 15 अन्य घायल हो गए.

आतंकवादी हमेशा सामूहिक विनाश के मौकों की तलाश में रहते हैं. कोविड-19 का प्रकोप उनके लिए ऐसा ही एक अवसर है. वास्तव में, इंटरनेट पर फैली अफवाहों में कोविड-19 की उत्पत्ति का केंद्र वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी को बताया जा रहा है, जो कि घातक रोगाणुओं पर अध्ययन की एक सैन्य प्रयोगशाला है. अफवाहों को छोड़ भी दें तो आतंकवादी संक्रमित नागरिकों/आतंकवादियों के माध्यम से वायरस का आम आबादी में प्रसार कर सकते हैं और सुरक्षा बलों पर इसका दोष मढ़ सकते हैं.

सेना को सैन्य ठिकानों तथा नियंत्रण रेखा की भीड़भाड़ वाली चौकियों पर कार्यरत कुलियों/मजदूरों में संक्रमण के माध्यम से भी लक्षित किया जा सकता है. सुरक्षा बलों को, प्रशासन की मदद से, आम आबादी की रक्षा करने के साथ-साथ खुद को भी सुरक्षित रखना होगा.

आतंकवादी कोविड-19 को लेकर स्वत: क्वारंटाइन/अलगाव जैसे सेना के ऐहतियाती उपायों का फायदा उठाते हुए नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ बढ़ाने और भीतरी इलाकों में विध्वंसक कार्रवाइयां करने की कोशिश कर सकते हैं. सेना के पास सावधानी बरतने और आतंकवाद विरोधी अभियानों की गति को बनाए रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. यदि आवश्यक हो, तो सैनिकों को रासायनिक/जैविक सुरक्षा लिबास का उपयोग करना चाहिए.

नागरिक प्रशासन को मदद

यदि पहले नहीं तो कम-से-कम 31 जनवरी 2020 को भारत में कोविड-19 का पहला मामला सामने आने के बाद से सशस्त्र सेनाओं ने खुद को सुरक्षित रखने और सरकार की सहायता करने के लिए विस्तृत योजना बना रखी होगी. सशस्त्र सेनाएं सबसे बुरी स्थिति को ध्यान में रखकर अपनी योजनाएं बनाती हैं और इसलिए माना जा सकता है कि संक्रमण के सामुदायिक प्रसार और महामारी वाले चरणों के लिए उनकी क्रियात्मक योजना तैयार होगी. ये कोई अचरज की बात नहीं थी कि मानेसर में क्वारंटाइन केंद्र 48 घंटों में तैयार कर लिया गया था. उसके बाद से ऐसे 14 और केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं. भारतीय वायुसेना ने दुनिया भर में फंसे 1,059 भारतीय नागरिकों को स्वदेश लाने का काम किया है.

भारतीय सशस्त्र सेनाओं के पास देश में तैनात 15 लाख प्रशिक्षित सैनिकों की ताकत है. कुछेक चुनिंदा सरकारी/निजी संस्थानों के इतर सेना के पास ही सबसे अच्छा चिकित्सा ढांचा है. इसमें लगभग 13,000 चिकित्सा अधिकारी (डॉक्टर/विशेषज्ञ/नर्सिंग अधिकारी) और एक लाख स्वास्थ्य सहायक शामिल हैं. इनमें से एक तिहाई स्वास्थ्यकर्मी सेनाओं की अपनी आवश्यक सेवाओं को संभाल सकते हैं, जबकि शेष दो तिहाई को राष्ट्रीय प्रयासों में लगाया जा सकता है. सेवानिवृत्त चिकित्सा अधिकारी और अन्य स्वास्थ्यकर्मी मौजूदा संसाधनों का लगभग दोगुना विस्तार कर सकते हैं.


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सशस्त्र सेनाओं के अपने 130 अस्पताल हैं. इसके अलावा, 100 फील्ड अस्पताल भी बनाए जा सकते हैं. निजी चिकित्सकों और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों की मदद से कुछ ही समय के भीतर और भी कई अस्थाई चिकित्सा केंद्र स्थापित और संचालित किए जा सकते हैं. इन संसाधनों को जोड़कर सरकारी चिकित्सा ढांचे को बेहतर किया जा सकता है.

सेना के इंजीनियर कम समय में अधिग्रहित इमारतों/शेडों/कारखानों को अस्पतालों में बदल सकते हैं और पूर्वनिर्मित निर्माण सामग्रियों के सहारे नए भवनों का निर्माण भी कर सकते हैं. इसके लिए सशस्त्र सेनाओं को अतिरिक्त धन, आईसीयू उपकरणों, वेंटिलेटरों, दवाओं और अन्य आवश्यक उपकरणों की ज़रूरत पड़ेगी.

महामारी के तीसरे और चौथे चरण में, संक्रमित लोगों की बड़ी संख्या संसाधनों पर भारी पड़ती है. ऐसे में सशस्त्र सेनाएं संक्रमित लोगों के अलगाव के उपायों को लागू करने में मदद कर सकती हैं. ऐसे समय आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला पर भी असर पड़ता है. सबसे बुरा असर आर्थिक रूप से वंचित तबके पर पड़ता है. इससे कानून-व्यवस्था की गंभीर समस्या उत्पन्न होगी और सशस्त्र सेनाओं को नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए आगे आना पड़ेगा. आपूर्ति व्यवस्था सुनिश्चित करने और अराजकता को नियंत्रित करने, दोनों ही कार्यों के लिए.

मेरा आकलन है कि हम एक महीने के अंदर महामारी के तीसरे चरण में होंगे. 21 दिवसीय लॉकडाउन ने हमें परीक्षण सुविधाओं, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों, अलगाव बेड, आईसीयू बेड, वेंटिलेटरों और अन्य आवश्यक उपकरणों की उपलब्धता बढ़ाने का समय दिया है.

सशस्त्र सेनाओं से परामर्श करते हुए सरकार को मौजूदा असैनिक बुनियादी ढांचे से सैन्य संसाधनों को अबाध जोड़ने की योजना बनानी चाहिए. सैन्य संसाधनों के टुकड़े-टुकड़े में उपयोग से अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे.

सौ साल पहले 1918-19 में प्रथम विश्व युद्ध से लौट रहे औपनिवेशिक भारतीय सेना के सैनिक स्पेनिश फ़्लू को भारत लेकर आए थे, जिससे कुल 1.8 करोड़ लोग मारे गए थे. मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि 100 साल बाद, भारत की सशस्त्र सेनाएं कोविड-19 महामारी को रोकने के प्रयासों में सरकार की मददगार बनेगी ताकि नुकसान न्यूनतम रहे.

(ले. जनरल एच.एस. पनाग पीवीएसएम, एवीएसएम (रिट.) ने भारतीय सेना की 40 साल तक सेवा की. वे उत्तरी कमान और सेंट्रल कमान के जीओसी-इन-सी रहे. सेवानिवृत्ति के बाद वे आर्म्ड फोर्सेज ट्रिबुनल के सदस्य रहे. ये उनके निजी विचार हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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