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Tuesday, 7 May, 2024
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1966 से 2005 तक भारतीय डाक टिकटों परिवार नियोजन का संदेश, डाक विभाग ने कैसे निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

यह याद दिलाती है कि इमरजेंसी में सरकार प्रायोजित जबरन परिवार नियोजन से प्रजनन दर में नहीं के बराबर फर्क. 2022 में तो जबरन कार्यक्रम चलाने की कोई कोशिश मोटे तौर पर बेवजह, क्योंकि दर लगातार घट रही.

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भारत परिवार नियोजन की नीति लागू करने वाला दुनिया का पहला देश था. लेकिन आज़ादी के बाद के दो दशकों तक सरकार ने इस मुद्दे पर कुछ खास ध्यान नहीं दिया. तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या के चलते देश को खाद्य संकट का सामना करना पड़ा साथ ही आर्थिक विकास और सामरिक स्वायत्तता को भी धक्का लगा. उस दौर में टीवी और रेडियो की पहुंच सीमित थी ऐसे में सरकार ने जनसँख्या नियंत्रण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए भारतीय डाक एवं तार विभाग का सहारा लिया.

डाक-तार विभाग ने स्मारक और नियत डाक-टिकटों, मोहरों एवं लिफ़ाफ़ों और पोस्टकार्डों पर छपे विज्ञापनों के ज़रिये परिवार नियोजन के सन्देश को घर-घर पहुँचाया. इसके अलावा देश में लगभग एक लाख डाकघरों में परिवार नियोजन के साइनबोर्ड लगाए गए.

आइये देखें किस तरह डाक टिकट देश के परिवार नियोजन कार्यक्रम का हिस्सा बने.


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परिवार नियोजन कीजिये

भारतीय डाक-तार विभाग ने 12 दिसंबर 1966 को ‘परिवार नियोजन कीजिये: परिवार नियोजन सप्ताह’ शीर्षक वाले पच्चीस लाख डाक टिकट जारी किए (चित्र 1). टिकट के साथ जारी सूचना पत्र में ‘जनसंख्या विस्फोट’ का हवाला देते हुए परिवार नियोजन जायज़ को ठहराया गया. उस समय भारत में दुनिया के 2.4 प्रतिशत भू-भाग पर दुनिया की 14 प्रतिशत आबादी रहती थी. सूचना पत्र में आगे कहा गया कि सरकार परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए रिसर्च और ट्रेनिंग संस्थाएं बना रही है और ‘इस राष्ट्रीय मकसद में सभी लोगों की सक्रिय भागीदारी और सहयोग’ की कामना करती है.

चित्र 1: परिवार नियोजन सप्ताह (1966) पर स्मारक डाक टिकट का एफडीसी/ विकास कुमार

1966 के डाक टिकट में दो बच्चों वाला खुशहाल परिवार दिखाया गया, जिसमें करीब दस साल का एक लड़का पिता के बगल में खड़ा है और लगभग दो साल की बेटी मां की गोद में है. इस टिकट के प्रथम दिवस आवरण (एफडीसी) पर भी चार लोगों का परिवार दिखाया गया है. मगर उसमें बेटी बड़ी है. डाक टिकट के साथ जारी पोस्टमार्क में हिंदी और अंग्रेजी में दो अलग-अलग संदेश थे. हिंदी में ‘छोटा परिवार सुख का आधार’ और अंग्रेजी में ‘ए स्मॉल फैमिली, हैप्पी फैमिली’ (छोटा परिवार, सुखी परिवार). टिकट का संदेश लोगों को  परिवार नियोजन करने के लिए प्रेरित कर रहा था और पोस्टमार्क छोटे परिवार की अहमियत पर ज़ोर डाल रहा था.  बाद  के कुछ परिवार नियोजन विज्ञापनों में ‘प्लान योर फैमिली’ का अनुवाद ‘कम बच्चे सुखी जीवन’ किया गया.

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शुरूआती डाक टिकट से हमें सरकार के रवैए के बारे में दो मुख्य बातें पता चलती हैं. पहली  पर्याप्त अंतर के साथ एक लड़की और एक लड़के वाले परिवार को आदर्श माना गया.दूसरी, सरकार की पहल जागरूकता फैलाने, लोगों को स्वेच्छा से परिवार सीमित रखने के लिए प्रेरित करने और गर्भनिरोधक उपलब्ध कराने तक सीमित थी.

परिवार नियोजन को बढ़ावा देने में डाक विभाग के इस्तेमाल में 1970 में कई नई बातें देखी गईं. नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय डाक प्रदर्शनी में परिवार नियोजन एक मुख्य विषय था. इसके अलावा, पहली बार संस्थाओं/संगठनों पर जारी डाक टिकट के सूचना पत्रों में  भी परिवार नियोजन का ज़िक्र होने लगा. इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी के स्वर्ण जयंती (1970) के अवसर पर जारी डाक टिकट के सूचना पत्र में कहा गया कि यह संस्था देश में 300 से ज्यादा परिवार नियोजन केंद्र  चला रही है. बाद में यंग वूमन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन की शताब्दी (1975), फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री की स्वर्ण जयंती (1977) और पीएचडी चैंबर ऑफ इंडस्ट्री की शताब्दी (2005) पर जारी डाक  टिकटों के सूचना पत्रों में भी परिवार नियोजन में उनके योगदान का ज़िक्र है.

फिर, 1975 में एक और नई बात देखने को मिलती है. टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (चित्र 2) के टिकट पर कृषि, स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रतीकों  साथ-साथ परिवार नियोजन का त्रिकोण भी दर्शाया गया. 1990 के दशक में लोगों और कंपनियों पर जारी टिकटों के सूचना पत्रों में परिवार नियोजन में उनके योगदान को सराहा गया. जेआरडी टाटा के सम्मान में जारी टिकट के  सूचना पत्र में कहा गया कि उन्होंने परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण.’ जैसे मुद्दों पर राष्ट्र हित में मुहिम चलायी.  1997 में राम मनोहर लोहिया पर जारी टिकट के सूचना पत्र के अनुसार उन्होंने ‘जन्म नियंत्रण के अधिक कारगर उपायों की वकालत की थी.’ इसी तरह, गोदरेज समूह की शताब्दी (1998) के सूचना पत्र में भी परिवार नियोजन के क्षेत्र में उसके योगदान को सराहा गया.

चित्र 2: सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट पर स्मारक टिकट/ विकास कुमार

सिंदूरी त्रिकोण

डाक-तार विभाग ने 1967 में चौथी नियत श्रृंखला  के तहत परिवार नियोजन पर पहला  नियत टिकट जारी किया. स्मारक टिकट सीमित मात्रा में छापे जाते हैं और स्टॉक खत्म होने के बाद दोबारा नहीं छापे जाते, जबकि  नियत श्रृंखला के टिकट काफ़ी ज्यादा मात्रा में छापे जाते हैं और नयी श्रृंखला के आने तक चलन में बने रहते हैं. नियत टिकट पर परिवार नियोजन के सांकेतिक त्रिकोण पर दो बच्चों वाले परिवार, जिसमें एक लड़का और एक लड़की शामिल हैं, को दिखाया गया (चित्र 3). परिवार नियोजन पर जारी किये गए टिकटों में इस टिकट का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल हुआ इसे कम से कम चार बार फिर से जारी किया गया और यह पांचवी नियत श्रृंखला का भी हिस्सा भी था. इस टिकट में दो नयी बातें देखने को मिलती हैं जो आगे चलकर परिवार नियोजन के प्रचार का अभिन्न अंग बन गईं. पहली, लड़की को पहले बच्चे के तरह  दिखाया गया. दूसरीठोस सिंदूरी रंग में बराबर भुजाओं वाले त्रिकोण को परिवार नियोजन के संकेत की तरह इस्तेमाल किया गया.

चित्र 3: परिवार नियोजन पर पहला निश्चित टिकट (1967)/ विकास कुमार

छठी नियत श्रृंखला के परिवार नियोजन वाले डाक टिकट में चार लोगों के परिवार, एक उलटे त्रिकोण, और दो फूल और दो कलियों को दर्शाया गया और इसकी पृष्ठभूमि में एक घर को दिखाया गया, जो शायद संसाधनों की कमी की ओर इशारा कर रहा था (चित्र 4).

सातवीं  नियत श्रृंखला के तहत परिवार नियोजन पर तीन टिकट जारी किए गए, जिसमें एक में 1980 के टिकट का मूूल्य 35 पैसे से बदलकर 75 पैसे किया गया था (चित्र 5). दूसरे टिकट में परिवार नियोजन त्रिकोण के भीतर चार लोगों के परिवार का कट-आउट लगा था (चित्र 6), और तीसरे में त्रिकोण के बगल में ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ के संदेश के साथ चार लोगों का परिवार था (चित्र 7).

सातवीं निर्णायक शृंखला के तहत परिवार नियोजन पर तीन टिकट जारी किए गए, जिसमें 1980 के टिकट का मूूल्य 35 पैसे से बदलकर 75 पैसे कर दिया गया था (चित्र 5). दूसरे दो में एक टिकट में परिवार नियोजन त्रिकोण के भीतर चार लोगों के परिवार का कट-आउट लगा था (चित्र 6), और दूसरे टिकट में त्रिकोण के बगल में चार लोगों का परिवार था और संदेश लिखा था, ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ (चित्र 7).

चित्र 4-6: परिवार नियोजन पर नियत डाक टिकट – चित्र 4 (1980), चित्र 5 (1990), चित्र 6 (1987)/ विकास कुमार
चित्र 7: परिवार नियोजन पर नियत डाक टिकट – चित्र 7 (1987)/ विकास कुमार

इमरजेंसी का दौर 

1966 के सूचना पत्र के अनुसार सरकार की योजना अगले दस सालों में देश में वार्षिक जन्म दर प्रति हजार 40 से घटाकर में 25 पर लाने की थी. विश्व जनसंख्या वर्ष (1974) के टिकट के सूचना पत्र में संशोधित लक्ष्य साझा किया गया. 1976 तक प्रति हजार 25 की जन्म दर हासिल करने के बजाय अब 1979 यानी पांचवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक प्रति हजार 30 की जन्म दर का लक्ष्य रखा गया (1976 में जन्म दर प्रति हजार 34.4 और 1979 में 33.1 थी, जो गिरकर 1990 में 30 और 2005 में 25 हो गई). जन्म दर में कमी की धीमी रफ्तार ने सरकार को अपनी परिवार नियोजन नीति  बदलने के लिए मजबूर किया जिसका असर परिसीमन एवं वितीय पुनर्वितरण जैसी अन्य केंद्रीय नीतियों पर भी पड़ा.

चित्र 8: परिवार नियोजन पर स्मारक डाक टिकट का एफडीसी (1976)/ विकास कुमार

सरकार की परिवार नियोजन नीति का सबसे व्यापक वर्णन 1976 के परिवार नियोजन टिकट (चित्र 8) के सूचना पत्र में मिलता है, जो बीस सूत्री कार्यक्रम और 1976 के संविधान (बयालिसवां) संशोधन कानून के बाद में जारी किया गया था. संशोधन के माध्यम से में ‘जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन’ को सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में शामिल किया गया.

1976 के टिकट ने ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार’ के संदेश को आगे बढ़ाया. इसमें दो बच्चों-एक लड़का और एक लड़की-के साथ दंपती और उलटे त्रिकोण को परिवार नियोजन के प्रतीक की तरह दिखाया गया. एफडीसी पर छोटे परिवार के प्रतीक दो फूल और दो कलियों और एक उलटा त्रिकोण दिखाया गय . इस टिकट के सूचना पत्र में भारत में परिवार नियोजन के इतिहास को चार चरणों में बांटा गया. क्लीनिक आधारित पद्धति (पहली और दूसरी पंचवर्षीय योजना), समुदाय आधारित पद्धति (तीसरी योजना), ‘गैर-सरकारी संगठनों’ की शिरकत (चौथी योजना), और न्यूनतम जरूरत पद्धति (पांचवी योजना). सूचना पत्र में केंद्रीय परिवार नियोजन काउंसिल सहित उस व्यापक प्रशासनिक तंत्र  पर भी चर्चा है जिसके माध्यम से राष्ट्रीय जनसंख्या नीति पर अमल होना था. राष्ट्रीय जनसंख्या नीति सामाजिक एवं आर्थिक विकास की रणनीति का अहम हिस्सा थी. गौरतलब है कि इमरजेंसी के ख़त्म होने के बाद परिवार नियोजन के नियत टिकटों को परिवार कल्याण के नये नाम के साथ प्रस्तुत किया गया.


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अलविदा लाल त्रिकोण

नियत टिकटों में परिवार नियोजन आखिरी बार 1990 के दशक के मध्य में आठवीं श्रृंखला में दिखा. इस श्रृंखला के परिवार नियोजन के दो टिकटों में न केवल जाना-पहचाना उलटा सिंदूरी त्रिकोण नहीं दिखाया गया बल्कि सिर्फ एक बेटी के साथ तीन लोगों के परिवार को दिखाया गया. इन टिकटों पर दो भाषाओं में संदेश था: ‘स्मॉल फैमिली हैप्पी फैमिली/छोटा परिवार सुखी परिवार’ (75 पैसे) और ‘छोटा परिवार, सुख का आधार (100 पैसे).’ इनमें एक टिकट पर मां-बाप हाथ में किताब लिए हुए बेटी को स्कूल भेज रहे हैं और पृष्ठभूमि में एक घर है (चित्र 9). इसके पहले 1987 में पहली बार एक बच्चे वाले परिवार को ‘निराश्रित के लिए आश्रय का अंतरराष्ट्रीय के टिकट में दिखाया गया था.

चित्र 9A: परिवार नियोजन पर निश्चित डाक टिकटों का अंतिम सेट (1994)/विकास कुमार
चित्र 9B: परिवार नियोजन पर निश्चित डाक टिकटों का अंतिम सेट (1994)/विकास कुमार

1994 के बाद टिकट और एफडीसी पर एक बच्ची के साथ तीन लोगों का परिवार दिखाया जाने लगा भारतीय परिवार नियोजन संघ (एफपीएआई) (1999) और बाल दिवस (2013) पर जारी टिकट/एफडीसी इसकी मिसाल हैं. दिलचस्प है कि एफपीएआई के टिकट का सन्देश था ‘स्वेच्छा से छोटा परिवार’ और एफडीसी के पोस्टमार्क में चार लोगों के परिवार को दिखाया गया (चित्र 10).लेकिन अंतरराष्ट्रीय परिवार वर्ष (1994) और डाक जीवन बीमा (2009) जैसे अपवादों में टिकट पर भी दो बच्चों वाला परिवार दिखता है.

चित्र 10: परिवार नियोजन से सीधे संबंधित अंतिम स्मारक टिकट (1999) | विकास कुमार

परिवार नियोजन, एक डाक यात्रा

परिवार नियोजन 1966 और 1999 के बीच तीन दशकों तक भारत के डाक जगत का अभिन्न अंग रहा इस क्षेत्र में सरकार का प्रचार एक लम्बे समय तक लगातार अलग-अलग अंदाज़ों में देखने को मिला (हमने पोस्टमार्क और अन्य डाक सामग्रियों पर छपे विज्ञापनों में बेहद लुभावने नारों की दुनिया का यहां जिक्र नहीं किया है). लेकिन 2002 में प्रति हजार 25 की जन्म दर के लक्ष्य को हासिल करने के बाद परिवार नियोजन अब सरकार की प्राथमिकता नहीं थी.

2005 में भारत में नवजात शिशु स्वास्थ्य पर जारी  टिकट को परिवार नियोजनसे सम्बंधित आखिरी टिकट के रूप में देखा जा सकता है. यह याद रखने योग्य है कि 1970 के दशक के मध्य में सरकार के जबरन परिवार नियोजन कार्यक्रम से  जन्म दर में मामूली गिरावट ही भर हासिल की जा सकी थी. 2022 में इस तरह के कार्यक्रम की सफलता की संभावना न के बराबर है और यह बेवजह भी होगा, क्योंकि जन्म दर वैसे भी लगातार घट रही है.

विकास कुमार अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं और ‘वेटिंग फॉर अ क्रिसमस गिफ्ट ऐंड अदर एसेज’ (आगामी ) के लेखक और ‘नंबर्स इन इंडियाज पेरिफेरी: द पॉलिटिकल इकोनॉमी ऑफ गवर्नमेंट स्टैटिस्टिक्स’ (कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2020) के सह-लेखक हैं. विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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