सोना सोना ही रहता है, संकट के समय साथ देने वाला. जब भी किसी पर चाहे वह इंसान हो या कंपनी हो या फिर देश ही क्यों न हो, सोना उसका सहारा बन जाता है. इसलिए जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो सबसे पहले सोना चढ़ गया और स्टॉक मार्केट गिर गये. सोने की कीमतों में भारी उछाल आया और संभावना है कि वह और आगे जायेगा, तब तक जब तक यह समस्या नहीं सुलझती है. सिर्फ सोना ही नहीं बल्कि चांदी और प्लेटिनम भी चढ़ गया है. सोने की यह प्रवृत्ति रही है कि यह युद्ध काल में हमेशा चमक उठता है चाहे वह गल्फ वॉर हो या अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजी कार्रवाई. ऐसे नाजुक वक्त पर यह जरूर चमकता है. अब फिर यह खूब चमकने लगा है.
कोरोना काल में सोना तेजी से बढ़ा था क्योंकि वह भी किसी युद्ध की तरह बड़े संकट का समय था और सोने की कीमतें आसमान छूने लगीं. भारत में इसकी कीमतें ऐतिहासिक स्तर पर चली गईं. 10 ग्राम सोना 60,000 रुपए के करीब चला गया था. बाज़ार में खरीदार न होने के बावजूद इसकी कीमतों में गजब की तेजी आई क्योंकि इंटरनेशनल मार्केट में यह बहुत बुलंदी पर था, न केवल अंतर्राष्ट्रीय सटोरिये बल्कि मामूली निवेशक भी सोने में डॉलर लगा रहा था. उसका कारण यह था कि वहां बैंक ब्याज दरें शून्य पर चली गईं थी, सरकारी बॉन्डों में रिटर्न नहीं था और मुद्रास्फीति बढ़ रही थी. ऐसे में सभी की नजरों सोने पर थीं.
सोने ने फिर तो नई बुलंदियों को छू दिया. लेकिन एक-डेढ़ साल बाद जब अमेरिका की आर्थिक स्थिति सुधरी और फेडरल बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाने के संकेत दिये तो सोना लुढ़क गया. इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ा और यहां भी कीमतें गिर गईं. भारत में यह 45,000 रुपये के नीचे चला गया. इससे निवेशकों ने फिर से इसमें खरीदारी शुरू की. हमारे यहां शादियों में बेटियों को सोने के जेवर देने की परंपरा रही है. मां-बाप बेटियों को तो सोना देते ही हैं, ससुराल वाले भी देते हैं. इससे यहां बाजार में कीमतें बढ़ जाती हैं लेकिन मुख्य तौर पर कीमतों में भारी बढ़ोतरी अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के दबाव में होती है.
सोने की महता को बाद में चीन भी समझ गया था और उसने भी सोने की बहुत खरीदारी की. हालांकि, चीनी महिलाएं सोने के गहने नहीं पहनतीं लेकिन वहां की सरकार को इसका रणनीतिक महत्व समझ में आ गया और उसने अपने सेंट्रल बैंक के लिए टनों सोना खरीदा. उसके सेंट्रल बैंक के पास लगभग 2,000 टन सोना है जबकि वहां की जनता के पास गहनों के रूप में 2500 टन सोना है. 2014 मे तो चीन ने इतना सोना खरीदा कि वह सोने के इंपोर्ट के मामले में भारत से भी आगे निकल गया जो परंपरागत रूप से सोना इंपोर्ट करता रहा है क्योंकि अब यहां की खदानों में सोना नहीं रहा. भारत सोने के उत्पादन में कभी दुनिया में सबसे आगे रहा था और इसलिए इसे सोने की चिड़िया भी कहते थे. कर्नाटक के कोलार खदानों से किसी समय सबसे ज्यादा सोने का उत्पादन होता था. यह इस बात का सबूत है कि सोने के संकटकालीन महत्व को हर देश के लोग उतनी ही शिद्दत से देखते हैं जितना हम भारतीय देखते रहे हैं और इसमें अपना गाढ़ा पैसा लगाते रहे हैं.
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रूस-यूक्रेन वॉर ने उछाली कीमतें
रूस ने जब हमले की तैयारी शुरू की तो सोने की कीमतों में उछाल आया, लेकिन असली उछाल तो तब आया जब रूसी फौज यूक्रेन में घुस गईं और उसके लड़ाकू विमानों ने बमबारी करने लगे. इस घटना के बाद सोने की कीमतों में भारी उछाल आया और यूएस गोल्ड फ्यूचर्स में भी तेजी आ गई है. लेकिन भारत में तो यह ग्यारह महीनों के सर्वोच्च शिखर पर चला गया.
24 फरवरी को यह खबर फैलते ही कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है, सोने की कीमतें उछल गईं. एक दिन में एक हजार रुपये का इजाफा देखते ही देखते हो गया. 25 फरवरी को भारत में 24 कैरट सोने के दाम 1380 रुपए प्रति दस ग्राम बढ़ गये. स्टैंडर्ड गोल्ड दिल्ली में 50,560 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया. दिलचस्प बात यह रही कि इस खबर से दुनिया भर के शेयर बाजार गिर गये. इसका मतलब भी साफ है कि सोने में उछाल का शेयर बाज़ार से इतना ही लेना-देना होता है कि जब वह गिरता है तो भी सोने की कीमतें चढ़ती हैं.
अब सोने की कीमतें इस युद्ध से जुड़ गई हैं और इसमें उतार-चढ़ाव होता रहेगा. अगर मामला ठंडा हो जाता है तो सोना फिर से एक बार फिर स्थिर हो जायेगा. इसमें आगे तेजी की संभावना इसलिए नहीं है कि शेयर बाज़ारों में निवेशकों ने अच्छी कमाई की है और वे सोने में निवेश करना नहीं चाहेंगे. अमेरिकी फेडरल बैंक ब्याज दरें बढ़ाता है तो विदेशी निवेशक फिर से बांड वगैरह में निवेश करेंगे. इन सबका सोने पर असर यह होगा कि इसके निवेशक दूर हो जायेंगे. वे सही वक्त का इंतजार करेंगे.
अंतर्राष्ट्रीय एक्सपर्ट मानते हैं कि सारी दुनिया इस समय मुद्रास्फीति की चपेट में है. अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोप ही नहीं बल्कि भारत में कीमतें बढ़ी हैं. ऐसी स्थिति में सोने में खरीदारी बढ़ जायेगी. इसका कारण यह होगा कि लोग एक सुरक्षा कवच चाहते हैं जिससे वे अपनी गाढ़ी कमाई को बचा सकें और सही जगह निवेश कर सकें. सरकारें चाहे कुछ भी कर लें, यह मुद्रास्फीति जाने वाली नहीं है. इसमें लोग निवेश करेंगे ही. इसलिए साल 2022 सोने की तेजी का साल माना जा रहा है. कुछ विदेशी एक्सपर्ट तो यह मानते हैं कि सोना एक बार फिर 2,000 डॉलर प्रति औंस की बुलंदियों पर चला जायेगा. यानी भले ही इसकी कीमतें ज्यादा न बढ़ें लेकिन गिरेंगी भी नहीं.
प्रश्न है कि सोना खरीदा जाए कि नहीं? अगर आपके पास सरप्लस फंड हो तो अभी भी सोना खरीद सकते हैं. सोना तो हमेशा काम आने वाला असेट है और यह अपने निवेशकों को कभी निराश नहीं करता है. अभी इस युद्ध के चलने की आशंका है और उसमें ही छुपा है सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव का रहस्य.
(मधुरेंद्र सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार और डिजिटल रणनीतिकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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