बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता है, इसलिए मुझे लगता है कि हम में से कई लोगों को 2017 का उन्नाव रेप केस याद होगा. भारी जन आक्रोश के बाद, अदालतों ने आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक कुलदीप सेंगर पर मुकदमा चलाया और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई.
न्याय हो गया?
हम्म, खैर, कुछ हद तक. इसी हफ्ते की शुरुआत में दिल्ली हाई कोर्ट ने उसकी सज़ा पर रोक लगा दी. अपील पर सुनवाई होने तक सेंगर को जेल में रहने की ज़रूरत भी नहीं है. अगर वह चाहे तो अपील में कोई प्रगति होने तक दिल्ली में आराम और लग्जरी की ज़िंदगी जी सकता है. चूंकि अपीलों में बहुत वक्त लग सकता है, इसका मतलब यह भी हो सकता है कि सेंगर फिर से अपनी सामान्य ज़िंदगी जीने लगे. अदालत के नज़रिये पर निर्भर करता है कि जब कभी उसकी अपील सुनी जाए, तब उसे आखिर में निर्दोष भी माना जा सकता है.
हालांकि, राहत की बात यह है कि सेंगर अभी तुरंत बाहर नहीं आ सकता. एक दूसरा अपराध भी हुआ था. जिस नाबालिग लड़की के रेप के मामले में सेंगर को सज़ा हुई थी, उसके पिता की हिरासत में मौत हो गई थी. उस गरीब आदमी को पुलिस ने उठाया, उस पर हथियारों का झूठा केस लगाया गया और उसकी हिरासत में ही मौत हो गई. इस मामले में भी सेंगर को दोषी ठहराया गया और 10 साल की सज़ा सुनाई गई. जब तक उस मामले की सज़ा पर भी रोक नहीं लगती, सेंगर जेल से बाहर नहीं आ सकता, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि उसकी टीम इस उम्मीद में भी लगी हुई है.
तो अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चलता रहा, तो जल्द ही हमारे बीच खुशी-खुशी रहने वाला एक ताकतवर नेता होगा, जिसे एक नाबालिग के रेप और फिर उसके पिता की गैरइरादतन हत्या का दोषी ठहराया गया है.
इसे ही कहा जा रहा है भारतीय न्याय.
कुछ लोगों के लिए खुली जेल
करीब 50 साल पहले एक वक्त था, जब ताकतवर लोग कुछ भी करके बच निकलते थे. फिर न्यायपालिका के दखल, जनता के दबाव और आक्रामक मीडिया की वजह से हालात बदले. अधिकारी वीआईपी हत्यारों और बलात्कारियों के खिलाफ सख्ती करने लगे. उन्हें अक्सर गिरफ्तार किया गया, दोषी ठहराया गया और जेल भेजा गया.
लेकिन हाल के समय में हालात फिर बदल गए हैं. ताकतवर लोगों या किसी खास विचारधारा की सेवा करने वालों के लिए नया नियम यह है: तो क्या हुआ अगर आपको दोषी पाया गया और जेल भेज दिया गया? हम आपको कुछ ही समय में बाहर निकाल लेंगे और अगर आप बलात्कार के दोषी हैं, तो अरे कोई बात नहीं, यह तो सबसे आसानी से ठीक हो जाने वाली बात है.
आसाराम बापू का मामला ही ले लीजिए. एक तथाकथित ‘संत’, जिसे एक नाबालिग के बलात्कार का दोषी ठहराया गया और जेल भेजा गया. उसे इतनी बार पैरोल मिलती है कि सरकार को लंबी कानूनी कार्रवाई और उसे जेल की सज़ा देने का नाटक करने के बजाय उसे एक प्राइवेट जेट में बैठाकर मालदीव के किसी समुद्र किनारे बने विला में भेज देना चाहिए था, ताकि वह अपनी बाकी ज़िंदगी आराम से बिता सके. क्योंकि हकीकत में, बच्चों के यौन शोषण के दोषी व्यक्ति को वही विशेषाधिकार और लग्जरी दी जा रही है.
और गुरमीत राम रहीम का क्या, जिसे महिलाओं के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराया गया और 20 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई?
मुझे शक है कि इस तथाकथित बाबा ने कभी जेल की कोठरी के अंदर का असली अनुभव लिया भी हो. न सिर्फ उसे नियमित रूप से पैरोल दी जाती है, बल्कि फर्लो भी लंबे समय के लिए मिलती है: वह एक बार में 40 दिन तक बाहर रह सकता है. हर बार जब कोई चुनाव आता है और उसकी ज़रूरत पड़ सकती है, उसे अपना भेष पहनने और बाहर जाकर मतदाताओं को प्रभावित करने की इज़ाज़त मिल जाती है.
मुझे नहीं लगता कि कोई भी इस संदेश को समझने से चूक सकता है, जो अधिकारी दे रहे हैं: अगर आप महिलाओं या बच्चों का बलात्कार करना चाहते हैं, तो याद रखिए कि भले ही अदालत आपको दोषी ठहरा दे, आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. हम जेल में आपके लिए एक आरामदायक ठिकाना बना देंगे, आप जब चाहें छुट्टी पर जा सकते हैं और अरे हां, आपकी सज़ा पर रोक भी लग सकती है. तो मजे कीजिए!
क्या यही है बेटी बचाओ?
या फिर यह है — बेटी हमारे से बचाओ?
आम भारतीयों के लिए कितनी उम्मीद है?
ताकतवर बलात्कारियों और बच्चों का यौन शोषण करने वालों को संरक्षण देने और उन्हें खास सुविधाएं देने का चलन अब और आगे बढ़ गया है.
2015 में, पूरे भारत को यह जानकर गहरा झटका लगा था कि मोहम्मद अखलाक, एक मुस्लिम व्यक्ति, को इस शक में पीट-पीटकर मार दिया गया कि उसके घर में गोमांस था. यह मामला पूरी दुनिया की सुर्खियों में रहा, क्योंकि इससे यह संकेत मिला कि भारत किस दिशा में जा रहा है. सरकार ने कहा कि वह इस घटना से स्तब्ध है, जिन लोगों को उसने हत्यारा बताया, उन्हें पकड़कर उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया. यह मुकदमा धीरे-धीरे चलता रहा, लेकिन दो महीने पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने सबको चौंका दिया. उसने अदालत को बताया कि वह इस मामले में मुकदमा वापस लेना चाहती है. जज ने इस मांग को खारिज कर दिया और इसके बजाय मुकदमे की सुनवाई तेज़ कर दी.
लेकिन आप खुद से एक सीधा सवाल पूछ सकते हैं — क्या कोई ऐसा अभियोजन, जो सारे आरोप वापस लेना चाहता है, सच में मजबूत केस पेश कर सकता है? मुझे लगता है, हम सब जानते हैं कि यह मामला किस दिशा में जाएगा.
यहां कई बड़े मुद्दे जुड़े हुए हैं — कानून के सामने बराबरी, आज के भारत में न्याय की स्थिति, सांप्रदायिक एजेंडा, और नाबालिगों को यौन हिंसा से बचाने का सवाल.
मुझे इन सब पर विस्तार से जाने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन मैं दो सवाल ज़रूर पूछूंगा. अगर कानून का इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक रूप से ताकतवर लोगों के फायदे के लिए किया जाएगा, तो आम भारतीय के लिए कितनी उम्मीद बचती है? क्या हम सच में न्याय की उम्मीद कर सकते हैं, अगर हमारे राजनीतिक संबंध मजबूत न हों?
और भारत के बेबस बच्चों का क्या? क्या वे सिर्फ विकृत राजनीतिक शिकारीयों का आसान शिकार बनकर रह जाएंगे?
मुझे लगता है, इन दोनों सवालों के जवाब आप पहले से ही जानते हैं.
(वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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