scorecardresearch
Monday, 6 May, 2024
होममत-विमतचायवाले से PM बनने तक की कहानी म्यूज़ियम में होनी चाहिए, लेकिन नई मोदी गैलरी इसे दिखाने में विफल रही

चायवाले से PM बनने तक की कहानी म्यूज़ियम में होनी चाहिए, लेकिन नई मोदी गैलरी इसे दिखाने में विफल रही

पीएम म्यूज़ियम में बनी न्यू मोदी गैलरी वर्टिकल एलईडी कियोस्क का एक संयोजन है. यह एक म्यूज़ियम नहीं बल्कि एक फैंसी हवाई अड्डे के टर्मिनल जैसा है.

Text Size:

नई दिल्ली में प्रधानमंत्री म्यूज़ियम में खुली नई मोदी गैलरी को देखना एक सबक है कि एक शानदार क्यूरेटोरियल (प्रबंधकीय) तख्तापलट कैसा हो सकता है.

आइए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन की सबसे मार्मिक तस्वीर देखें — वह गुजरात के वडनगर में एक रेलवे स्टेशन पर चायवाला के रूप में बड़े हुए थे। उनकी ज़िंदगी की कहानी एक ऐसी प्रभावशाली कथा पेश करती है जिसे दुनिया भर के म्यूज़ियम क्यूरेटर और डिज़ाइनर पसंद करेंगे, लेकिन यहां प्रधानमंत्री संग्रहालय के क्यूरेटर ने उस कहानी और इमेज को गढ़ने में कोई खास मेहनत नहीं की है.

अकेले चाय वाले की कहानी को सबसे शक्तिशाली म्यूज़ियम प्रदर्शनियों में से एक में बदला जा सकता था — या तो पुराने स्कूल के चित्रावली की तरह या फिर रेलवे स्टेशन की चाय की दुकान को यहां पुनः बनाकर एक अनुभवी स्थान दिया जा सकता था.

चायवाला से प्रधानमंत्री बनने का सफर प्रसिद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति एब्राहम लिंकन के जीवन के चरित्रित लॉग-केबिन पौराणिकता के समान है। अगर आप स्प्रिंगफील्ड, इलिनोइस में लिंकन म्यूज़ियम में प्रवेश करते हैं, तो आप अब इतिहास में स्थानीय हुई लॉग केबिन का पुनर्निर्माण देखेंगे जहां युवा अब्राहम बचपन बिताते थे. आप उसमें बैठे छोटे लड़के को देखेंगे, जो गहरी सोच में खोया है. यह इतनी प्रभावशाली तस्वीर है कि पूरे संयुक्त राज्य से आने वाले दर्शक और विद्यार्थी इसके सामने तस्वीरें खींचते हैं. कहानियों को टुकड़ा-टुकड़ा जोड़कर सत्ता तक की यात्राएं प्रेरणा देने वाली कहानियां बन सकती हैं, लिंकन और मोदी कोई चांदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए थे.

लुइसविले, केंटकी में मुहम्मद अली सेंटर में एक अनुभवात्मक प्रदर्शनी क्षेत्र है — जैसे ही आप यहां आएंगे, आपको एक नस्लवादी व्यक्ति की आवाज़ सुनाई देगी जो आपको चेतावनी दे रहा है. यह डिस्प्ले नस्लीय रूप से अलग-थलग अमेरिका को दिखाती है जिसमें अली बड़े हुए थे.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

भारतीय म्यूज़ियम के क्यूरेटर चायवाले की कहानी जैसे सुनहरे मौकों को हाथ से कैसे जाने दें सकते हैं और एक स्थायी इंस्टालेशन बनाने के लिए इसका उपयोग क्यों नहीं करेंगे? यह मोदी के लिए ‘चाचा नेहरू’ प्रभाव पैदा करने का एक मौका था. यह भारत में तुरंत सेल्फी-हिट बन गया होता.

इसके बजाय, आपके पास इसके स्थान पर एक पेड़ के चारों ओर एक प्रकार की हेलिक्स के आकार की स्क्रीन है — स्कूल जाने वाली उम्र की मोदी की एक तस्वीर और एक पंक्ति जो कहती है कि वे चाय बेचते थे.

Biographical details of Modi’s life are displayed on the LED helix screen | Rama Laksmhi | ThePrint
मोदी की ज़िंदगी की जीवनी संबंधी डिटेल्स एलईडी हेलिक्स स्क्रीन पर प्रदर्शित की गई हैं | फोटो: रमा लक्ष्मी/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: रिलोकेशन नहीं, नेशनल आर्काइव्ज के लिए वास्तविक लड़ाई इस बारे में होनी चाहिए कि इसमें क्या शामिल नहीं है


म्यूज़िम नहीं, हवाई अड्डा टर्मिनल

जब तीन मूर्ति भवन में नेहरू स्मारक स्थल का जीर्णोद्धार किया गया, तो इस बात पर हंगामा था कि मोदी सरकार इसे एक आत्म-प्रशंसक स्मारक में कैसे बदलेगी. दो साल पहले, जब म्यूज़ियम खुला, तो इसमें मोदी को छोड़कर सभी पिछले प्रधानमंत्रियों की गैलरी थीं. इसमें कंटेंट के बजाय तकनीक, कलाकृतियों के बजाय गिज़्म और कहानियों के बजाय विकी डिटेल्स थीं. मैंने उस समय मान लिया था कि शायद वे मोदी गैलरी को सबसे बेहतरीन बनाने के लिए बचा रहे होंगे, ताकि वह सबसे अच्छी दिख सके. मैंने सोचा था कि बाकियों की निसबत उसे बड़ा और शानदार बनाया जाएगा. मेरा अंदाज़ा शायद गलत था.

क्रिएटिविटी की वही कमी अब इसमें भी है. नई मोदी गैलरी मूविंग इमेज के साथ वर्टिकल एलईडी कियोस्क का एक संयोजन है. यह एक म्यूज़ियम नहीं बल्कि एक फैंसी हवाई अड्डे के टर्मिनल जैसी है.

अलग-अलग बूथों पर उनके आधिकारिक भाषणों की रिकॉर्डिंग हैं — मन की बात के सैकड़ों एपिसोड से लेकर परीक्षा पे चर्चा तक. बतौर विज़िटर आपको वह भाषण चुनना होगा जिसे आप सुनना चाहते हैं. हर एक प्रधानमंत्री के पास कुछ चुनिंदा प्रतिष्ठित, युग-परिभाषित भाषण होते हैं, लेकिन केवल एक टीम जो सर्वश्रेष्ठ की पहचान करना नहीं जानती (या करने की हिम्मत नहीं करती) सभी भाषणों को म्यूज़ियम विज़िटर पर मढ़ देती है.

Visitors can listen to all of Modi’s speeches at the gallery | Rama Laksmhi | ThePrint
विज़िटर्स गैलरी में मोदी के सभी भाषण सुन सकते हैं | फोटो: रमा लक्ष्मी/दिप्रिंट

एक अन्य डिस्प्ले में मोदी द्वारा उद्घाटन किए गए प्रोजेक्ट्स को दिखाने वाली तस्वीरें हैं. उनके आगे पूरी हो चुकी परियोजनाओं की तस्वीरें हैं. मुद्दा यह है कि मोदी सिर्फ रिबन काटने वाले नेता नहीं हैं, बल्कि वे रिकॉर्ड गति से काम करते हैं, लेकिन उद्घाटन की तस्वीरों और तारीख की डिटेल्स के साथ दीवार इतनी सूखी है कि यह किसी पीएसयू मुख्यालय का स्वागत क्षेत्र हो सकता है. फिर, वही चीज़ नहीं जिससे महान कहानी कहने वाले म्यूज़ियम बने हैं.

एक हिस्से में सभी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलनों और नीति घोषणाओं की तस्वीरें हैं. इसके अलावा विज़िटर को कोविड-19 महामारी और वैक्सीन से जुड़ी कहानियां देखने के लिए माइक्रोस्कोप में देखना पड़ेगा. चंद्रयान का भी कुछ यही हाल है.

कल्पना के किसी भी स्तर से यह कोई म्यूज़ियम नहीं है. इसके बजाय, यह उपलब्धियों का एक सरकारी ब्रोचर है. यह प्रदर्शनी सौंदर्यशास्त्र और नैरेटिव से उतनी ही दूर है जितनी प्रगति मैदान में व्यापार मेले की प्रदर्शनी हुआ करती थी.

इससे पता चलता है कि क्यूरेटोरियल कंटेंट कमेटी के हिस्से के रूप में प्रसून जोशी, एमजे अकबर और विनय सहस्रबुद्धे जैसे प्रभावशाली नामों के साथ, मोदी की गैलरी मशीन के केंद्र में रचनात्मक कल्पना की कमी का एक आश्चर्यजनक प्रदर्शन बन गई है.

मैं समझ सकती हूं कि आपको किसी गैलरी में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कहानी बताने में कठिनाई हो सकती है — पाकिस्तान में स्कूल जाने की उनकी कहानी और साहसी आर्थिक सुधारों के अलावा, ऐसा कुछ भी नहीं है जो म्यूज़ियम आने वालों को प्रभावित कर सके, लेकिन मोदी के साथ ऐसा नहीं है. वे म्यूज़ियम की एक समृद्ध विरासत सामग्री हैं.

मोदी के कई अवतार हैं — चाय बेचने वाले मोदी, योग मोदी, सैनिक मोदी, विश्वगुरु मोदी, पुजारी मोदी, सिख मोदी और तकनीकी स्टार्ट-अप मोदी. कल्पनाशील दिमाग के लिए यहां बहुत कुछ है. इसके लिए आपको सरकारी उपलब्धियां गिनाने से आगे सोचना होगा.


यह भी पढ़ें: मोदी की सेंट्रल विस्टा परियोजना में खो रहे इतिहास के लिए कोई जगह नहीं


थ्री-डाइमेंशन कहानियां

म्यूज़ियम का काम केवल वो जानकारी देना नहीं है जो ऑनलाइन एक क्लिक में मिल सकती है. एक म्यूज़ियम थ्री-डाइमेंशनल कलाकृतियों, आवाज़, तस्वीरों और अनुभवों को दर्शाता है. मोदी गैलरी निज़ी वस्तुओं को नहीं दिखाती — सिवाय इसके कि उन्होंने अपनी तेजस उड़ान के दौरान क्या पहना था. इतना ही. यहां तक कि लाल बहादुर शास्त्री और चरण सिंह की गैलरी में भी व्यक्तिगत कलाकृतियां बहुत अधिक हैं.

यह अफसोस की बात है क्योंकि मोदी के प्रशंसक पूरी गैलरी में हैं. मैंने उन्हें उनकी तस्वीरों के सामने तस्वीरें लेते, नमस्ते की मुद्रा में झुकते हुए या खुले हाथों वाले शाहरुख खान का स्टाइल करते हुए देखा. उस तरह की रेडीमेड सापेक्षता के साथ, म्यूज़ियम क्यूरेटर और डिज़ाइनरों को बेहतर थ्री-डाइमेंशनल कहानियां देनी चाहिए थीं.

The museum is a wasted opportunity to create immersive exhibits. They would’ve been selfie hits | Rama Lakshmi | ThePrint
म्यूज़ियम अद्भुत प्रदर्शनियां बनाने का एक व्यर्थ मौका है. वे सेल्फी हिट हो सकता था | फोटो: रमा लक्ष्मी/दिप्रिंट

दिलचस्प बात यह है कि गैलरी आपसे ऑप्शन की लिस्ट में से एक राष्ट्रीय प्रतिज्ञा लेने का आग्रह करती है: अमृत काल की प्रतिज्ञा, अपनी मातृभाषा में बात करने को प्राथमिकता देकर औपनिवेशिक मानसिकता को दूर करना, अपनी जड़ों पर गर्व करना, विकसित भारत की दिशा में काम करना, कर्तव्य और एकता वगैरह.

यह सवालों की एक लिस्ट है. मोदी को आम जनता को काम देना पसंद है.

अगर आप ज्यादा क्लिक करते हैं, तो स्क्रीन आपसे पीएम म्यूज़ियम लेटरहेड पर आपकी प्रतिज्ञा की एक हस्ताक्षरित प्रति भेजने के लिए आपका ईमेल पता मांगती है. तभी मैंने क्लिक करना बंद कर दिया.

दोबारा सोचना, फिर बुनना

म्यूज़ियम वो जगह हैं जहां स्थायी विरासतें सहेजी जाती हैं, न कि किताबें और फिल्में और मोदी यह जानते हैं. यही कारण है कि वे सरदार पटेल से लेकर भीमराव आंबेडकर तक इतने अथक म्यूज़ियम निर्माता हैं.

पीएम म्यूज़ियम अब कई विदेशी गणमान्य व्यक्तियों और विज़िटर्स के टू-डू-लिस्ट में एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया है. दुर्भाग्य से म्यूज़ियम भारतीय लोकतंत्र और मोदी के बारे में बिग पिक्चर दिखाने में असमर्थ है.

इस गैलरी की फिर से कल्पना करना और इसे फिर से बुनना सबसे अच्छा ऑप्शन है.

(रमा लक्ष्मी, एक म्यूज़ियम विज्ञानी और मौखिक इतिहासकार, दिप्रिंट की ऑपिनियन और ग्राउंड रिपोर्ट एडिटर हैं. स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन और मिसौरी हिस्ट्री म्यूज़ियम के साथ काम करने के बाद, उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी की याद में ‘Remember Bhopal Museum’ की स्थापना की. उन्होंने सेंट लुइस की यूनिवर्सिटी ऑफ मिस्सौरी से म्युज़ियम स्टडीज और अफ्रीकन अमेरिकन सिविल राइट्स मूवमेंट पर ग्रेजुएशन की है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं. लेखिका का एक्स हैंडल @RamaNewDelhi है.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कर्पूरी ठाकुर 1959 में इज़रायल गए और किबुत्ज़ में रहने लगे, नेहरू ने उन्हें प्रोत्साहित किया था


 

share & View comments