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Saturday, 2 November, 2024
होममत-विमतब्लॉगसुशांत सिंह राजपूत और बिहारी परिवारों में 'श्रवण कुमार' जैसा बनने का बोझ

सुशांत सिंह राजपूत और बिहारी परिवारों में ‘श्रवण कुमार’ जैसा बनने का बोझ

सुशांत की मौत के बाद भी परिवार स्वीकार नहीं कर पा रहा है कि वो अवसाद से घिर भी सकता था, ये यही दर्शाता है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर परिवार कितने सचेत हैं.

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नई दिल्ली: बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का मामला अब आखिरकार सीबीआई को सौंप दिया गया है. लेकिन इसे तब तक सीबीआई को नहीं दिया गया जब तक उनकी प्रेमिका रिया चक्रबर्ती से लेकर बॉलीवुड फिल्म निर्माता करण जौहर, आदित्य चोपड़ा, संजय लीला भंसाली, एकता कपूर और महेश भट्ट को आरोपी नहीं ठहराया गया. लेकिन इस सबके बीच से जो बात ध्यान से निकल गई है वो है काऊ बेल्ट की पारिवारिक संरचना जो किस तरह अपने अनमोल बेटों को ट्रीट करती है. खासकर बिहार में.

सुशांत सिंह राजपूत के पिता के.के. सिंह के आरोपों और उनके रिश्तेदारों के सोशल मीडिया पोस्ट्स को भी सोशल और कल्चरल तरीकों से एग्जामिन किया जाना चाहिए.

उत्तर भारत के परिवार बेटों की ऑटोनमी के साथ तालमेल बैठाने के लिए उनके संपर्क की किसी महिला को ‘चुड़ैल’ कहना या फिर ‘सोने की चाहत’ रखने वाली या बेटे की शहर वाली किसी गर्लफ्रेंड को दोषी ठहराते रहते हैं. पुरुषों की ऑटोनमी की स्वीकायर्ता में उसकी करीबी महिला को दोषी ठहराने वाली मानसिकता ही बताती है कि इस कल्चर के साथ कितनी बड़ी समस्या है. इस बात को कहने का उद्देश्य सुशांत के परिवार के दुख को कम आंकना नहीं बल्कि एक बिहारी परिवार में एक बेटे होने के तमाम तरह के ‘पितृसत्तात्मक बोझ’ को समझने की कोशिश है. कैसे परिवार इन बेटों से चाहत रखते हैं कि वो जीवन भर मॉडर्न श्रवण कुमार बने रहे.


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बेटा हमेशा एक बच्चा रहता है- मेरा लाड़ला

उत्तर भारत के पितृसत्तात्मक परिवारों में बड़ा हो चुका बेटा हमेशा ही एक छोटे बच्चे की तरह रहता है. जिसके आसानी से किसी के बहकाने में आने की संभवानाएं बनी रहती हैं. उसकी स्वतंत्र इच्छाओं को पहले शुरुआत में नापसंद ही किया जाता है भले ही बाद में उसको समय के साथ स्वीकार भी कर लें. खासकर अगर यह उसकी मनपसंद लड़की से शादी का मामला हो. यदि वह परिवार के पारंपरिक निर्णय लेने की संस्कृति के खिलाफ जाता है तो उसके दोस्तों के ग्रुप या फिर उसकी प्रेमिका या पत्नी को दोषी ठहराकर संतुष्टि की जाती है.

परिवारों में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में शायद ही कोई बात होती हो. और अगर किसी परिवार में होती भी होगी तो इसका नेचर हमेशा पितृसत्तात्मक ही रहेगा. मसलन बेटे/आदमी से ये अपेक्षा नहीं होती कि वो घर में अपनी भावनात्मक कमज़ोरियों के बारे में ज़िक्र करे. इसे किसी तरह की कमी की तरह समझ लिए जाने का भय रहता है. तो ऐसे में बेटा यानि आदमी परिवार की नज़र में ‘आदर्श बालक’ के तौर पर नज़र आता है.

परिवार अपने बेटे के लिए बनाए गए अपने वर्जन के अलावा कोई भी दूसरा वर्जन अंत-अंत तक स्वीकार ही नहीं कर पाते. जो कुछ लोग सुशांत के करीबी बताकर टीवी में इंटरव्यू देने आ रहे हैं, वो भी कह रहे हैं कि वो उससे पिछले कई सालों से मिले तक नहीं हैं. वो ऐसी बात कर रहे हैं- जैसे कि वो जब दस साल का बच्चा था तो बहुत खुश रहता था, हमें तो लगा ही नहीं कि तीस साल का होते-होते वो अवसाद से कभी घिर भी सकता था. और वास्तव में यही बात सुशांत के पिता ने भी एफआईआर में कही है कि 2019 में रिया से मिलने से पहले सुशांत को कोई मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या नहीं महसूस हुई. जब तक रिया उसके जीवन में नहीं आई थी तब तक उसका करियर बेहद फल फूल रहा था और उसके बाद रिया ने उसके खाते की सेविंग को भी हथियाने की साज़िशें रचीं.

परिवारों के पास अपने बेटे को देखने का एक ही नज़रिया होता है- वो ये है कि वो कभी अवसाद से नहीं घिर सकता, कभी कोई गलती नहीं कर सकता, कोई उसे बुली नहीं कर सकता और वो कभी अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ जाकर शादी नहीं कर सकता.


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‘प्रेमिका/पत्नी जो बेटे से परिवार को दूर कर देती हैं’

बिहार में एक बात प्रचलित है कि घर का सीधा सादा लड़का किसी जादूगरनी के चक्कर में आकर बर्बाद हो जाता है. नेटफ्लिक्स पर एक सीरिज़ है- शॉर्ट स्टोरीज़ बाय रबींद्रनाथ टैगोर. ये सीरिज़ इस बात को बखूबी दर्शाती है. महेंद्र नाम के एक युवा की शादी आशा नाम की एक खूबसूरत लड़की से हो जाती है. शादी के बाद महेंद्र उसके प्रेम में पड़ जाता है और अपने सांसारिक दायित्व भूल जाता है. यहां तक कि अपनी बूढ़ी विधवा मां को भी. मां को हमेशा लगता रहा कि ये आशा है जो मुख्य विलेन है जिसने महेंद्र का ये हाल कर दिया है. आशा, मां के नज़रिए से अपने बेटे से दूर करने वाली महिला के तौर पर देखी जाती है.

भोजपुरी में कई गीत हैं जो बंगाल की औरतों को ऐसी जादूगरनी के तौर पर प्रस्तूत करते हैं जैसे वो बिहार के पुरुषों को अपने प्रेम जाल में फंसा लेती हैं. वो आंखों में मोटा काजल लगाती हैं और पुरुषों को अपने वश में कर लेती हैं. यहां तक कि वो घर के बाहर नींबू का कोई टोटका करती हैं और गुजरने वाला बिहार का पुरुष मोहित हो जाता है. सावन में गाए जाने वाला एक कजरी  गीत इस प्रकार है, जिसमें बंगाली महिलाओं पर निशाना साधता है-

पिया मोरे गलिइन कलकत्ता ओ रामा,

बंगालिन बिटिया कई दिहली ओ जदुआ

तोरहा के देबो बंगालिन डाल भरी सोनवा ओ रामा,

छोड़ दी ना हमरो सजनवा ओ रामा


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परिवार जिन्हें ‘गर्लफ्रेंड्स’ सख्त नापसंद हैं

‘परिवार तोड़ने वाली’ का ये एंगल सिर्फ बिहार तक ही सीमित नहीं है. उत्तर भारत के परिवारों में बेटे की प्रेमिका से खास तरह की नापसंदगी देखी जाती है. अगर बेटे ने मां की पसंद के अलावा कोई अलग रंग की टी-शर्ट भी पहननी शुरू कर दी है तो वो इसमें भी ‘गर्लफ्रेंड ने बहकाया होगा’ की थ्योरी गढ़ने लगते हैं.

परिवार अपनी नज़र से ‘परफेक्ट बहू’ की कैटेगरी में ना बैठने वाली प्रेमिका को अपने बेटे के लिए कभी अप्रूव नहीं करते हैं. सुशांत सिंह राजपूत के केस में भी एक तरफ मध्यमवर्गीय बिहारी परिवार और दूसरी तरफ एक मॉडर्न बंगाली गर्लफ्रेंड. सु

शांत के परिवार के वकील ने रिया चक्रबर्ती द्वारा जारी किए वीडियो को लेकर कहा कि उसने ज़िंदगी में कभी ऐसे सलवार कमीज़ नहीं पहना होगा. रिया के ऊपर लगे आपराधिक केस से इस तरह के बयान का क्या लेना देना है? सिवाय इस बात को इंगित करने के कि रिया को लेकर नापसंदगी निजी है. इस नापसंदगी की झलक रिया पर दर्ज हुई एफआईआर में भी नज़र आती है.

ये पूरा एपिसोड मेरे अपने कॉलेज के एक किससे की भी याद दिलाता है. मेरा एक दोस्त बिहार से था. वो अपनी मां को अक्सर फोन पर समझाता रहता था. उसकी मां एक दूर दराज़ ज़िले में रहती थीं जिनको लगता था कि नई बहू उनके बड़े बेटे को परिवार से दूर कर रही है. वो अपनी मां का ये शक कभी दूर नहीं कर पाया कि ये बहू की वजह से नहीं बल्कि बड़े बेटे की शादी के बाद बदली प्राथमिकताओं से पैदा हुआ शक है.

और वैसे भी हमारे समाज में युवा लड़कों की परवरिश ऐसे ही तो की जाती है कि वो कई अफेयर्स अपनी मर्ज़ी से तो कर सकते हैं लेकिन शादी तो अपने धर्म/जाति/क्षेत्र/क्लास में ही करनी है. भले ही उसकी युवा अवस्था के अफेयर्स को उसकी निजी उपलब्धियां मानकर चीयर कर दिया जाए लेकिन उसकी शादी जैसा ‘बड़ा फैसला’ अगर उसने खुद कर लिया है तो उसके प्रति अपनी असहजता दिखाने से परिवार कभी पीछे नहीं हटेगा.


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परिवार से कटा हुआ?

रिया पर दर्ज कराई एफआईआर में सुशांत के पिता ने कहा है कि पिछले सालों से उनके बेटे के परिवार से बातचीत कम होती गई है. परिवार इस बात पर बमुश्किल ही यकीन करेगा कि एक पुरुष को दुनियादारी समझाने के लिए एक स्त्री की ज़रूरत नहीं पड़ती. वो खुद ही टॉक्सिक माहौल से दूर रहने के सारे तरीके सीख लेता है. फिर टॉक्सिक माहौल काम का हो, प्यार के रिश्ते का या फिर परिवार का. परिवार की ख्वाहिश रहती है कि कभी बेटे और घर के बीच दूरियां बढ़ भी जाएं तो बहू ऐसी हो कि वो एक ब्रिज का काम करे.

सुशांत के केस में उल्टा मामला भी तो हो सकता है. क्या सुशांत परिवार में अपनी प्रेमिका रिया को लेकर फैली नापसंदगी की बात को लेकर असहज हुए हों और दूरी बनाई हो? अगर सुशांत रिया के साथ ही रहना चाहते हों? तो क्या लोग सुशांत की चॉइस को नीचा दिखाते?

सुशांत के साक्षात्कारों में एक बात सामने उभरकर आती है और वो है उनकी मां का ज़िक्र. जिस उत्साह और आंखों में चमक भरकर वो अपनी मां के बारे कहते नज़र आते हैं वो बातें उन्होंने अपने परिवार को लेकर नहीं कही हैं. अपने पिता का ज़िक्र भी उस तरह नहीं किया है. उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स पर भी मां की ही तस्वीरें और उन्हीं से भारी स्नेह नज़र आता है. ऐसा स्नेह जो उन्होंने चांद-तारों को लेकर व्यक्त किया है. आखिरी के सालों में वो साक्षात्कारों में कहते रहे हैं कि उनके दोस्त नहीं है. वो अपने करियर की ऊंची चोटी पर पहुंचकर भी नासा और बाकी साधारण ख्वाहिशें पूरी करने की बातें करते हैं.


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अवसाद को हार की तरह देखा जाता है

परिवार ‘अवसाद’ को एक तरह की हार के रूप में देखते हैं. और एक आदमी, एक मध्यमवर्गीय परिवार से निकलकर बिना किसी गॉड फादर के बॉलीवुड जैसी जगह में सफलता हासिल कर ले तो उसे कभी भी पॉप्युलर नोशन में हारा हुआ या अवसाद से घिरा हुआ स्वीकार करना मुश्किल हो जाता है.

सुशांत की बहन ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर करते हुए बताने की कोशिश की कि वो अवसाद में नहीं थे. उनके जीजा विशाल कीर्ती ने भी एक ब्लॉग लिखकर बताया कि कैसे पिछले एक साल से वो सुशांत से कनेक्शन खो चुके थे लेकिन उनके लिए यकीन करना मुश्किल है कि सुशांत को किसी तरह का अवसाद था.

बेटे की मौत के बाद भी परिवार स्वीकार नहीं कर पा रहा है कि वो अवसाद से घिर भी सकता था, ये यही दर्शाता है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर परिवार कितने सचेत हैं.


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काला जादू?

सुशांत के पिता ने एफआईआर में ये भी बताया कि वो कुर्ग में जाकर ऑर्गेनिक खेती करना चाहता था और रिया ने उसे जाने नहीं दिया. रिया ने उसके घर में भूत-प्रेत होने की बात कहकर उसे दूसरी जगह शिफ्ट होने के लिए मज़बूर किया. ये आरोप सुशांत के व्यक्तित्व के बारे मे आश्यर्चजनक लगता है क्योंकि वो व्यक्ति तो विज्ञान में विश्वास रखता था और दूरबीन से चांद और टूटते तारों को देखा करता था.

और इस तरह पूरे भारत को रिया को एक ‘चुड़ैल’ साबित करने की थ्योरी मिल गई. यहां तक कि बिहार के जनता दल यूनाइटेड के नेता महेश्वरी हज़ारी ने तो रिया को ‘विष कन्या’ तक कह दिया जिसे सुशांत को प्रेम जाल में फंसाने के लिए भेजा गया था.

(व्यक्त विचार निजी हैं)


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16 टिप्पणी

  1. They have the right to investigate what reasons lead to their son’s death..As far as Rhea is concerned if she is not involved in any crime she will get her justice…Besides its very evident that since last year she was morever living in his life and house much as a wife and spending all his money on small things like her parlour expenses too..And i don’t get what was the purpose of sushant paying his brother’s tution fees, hotel bills etc…But still ignore that but as per your article it is not wrong of a girl who is legally not a wife but controlling a man upto extent that he cannot contact anyone and this has been said not only by his family but many friends and known persons…But leave that also but don’t you think that if a person is undergoing such treatment for a mental disorder then his family shoul be involved?..what’s your thoughts on that…And if she was so much in love with him then and was knowing about his mental trauma then who the hell leave such person alone and leave them and block their number…Clear this also…I guess you just wanted to stand out and printed this article to gain some attention without checking all facts??

  2. Aapke vyaktigat vichar jo particular Bihar ke ladkon aur unki family ke baare me hain sire se galat hain . Kyunki na kewal Bihar me balki har maa ko ye feel hota hai ki uska beta shravan kumar hai , aur bahu ya bete ki premika aisi prani hai jo use chhen leti hai. Particular ek state ke baare me ya logon ke baaren me bolna kafi nindaniy hai jo aapki adhuri jankari dikhata hai.

  3. कुछ भी अलंग फलंग लिख दिया जाता है और द प्रिंट जैसे प्रतिष्ठित मीडिया में छप jata है तो मेरा भी एक आर्टिकल छाप दीजिए जनाब।

  4. Yeh kitna ghatiya post h jab yeh baat saaf h ki yeh suicide nhi h murder h toh aise article likhne se is movement ko weak krne ki koshish mat karo have some shame on this article

  5. either i have grown up in a fake bihari family or ma’am who has written this whole absurd article which is based on no real facts is living in her own small world of her own imagination.

  6. If ham apke ye facts padh k apki baat maan bhi le fir ap ek cheez btaiye… Jab sushant ankita k sath the 7 saal tab tk unko depression nhi hua wo bhi dusri caste se thi tab to sushant ki family ko koi dikkat nhi hi unse Or wo bhi sushant ki hi pasand thi na ki family ki… To rhea me hi aisa kya tha jo family accept nhi kr paa rahi thi unko.. Family se dur ho gaye sushant.. Ankita k time pe to wo dur nhi hue family se…. Rhea me hi kamiya rahi tabhi wo dur ho gaye 1 saal me family se … To rhea ko ko innocent prove krna band kariye ap log

  7. Lekhak scientist ka bap lag raha hai . Jab tum fansoge tab tumhe dikhai dega . Bewkuf scientist .sala sare north indians ko ek hi dande se ankte ho.

  8. बिल्कुल आपकी सोच सही है की हम सब अपने मां-बाप के श्रवण कुमार होते,
    लेकिन आपको याद दिला दें कि श्रवण कुमार भी शादी-सुदा थे, श्रवण कुमार की जिन्दगी में उनकी पत्नि की चर्चा इसी बात की होती हैं कि जिस मिट्टी के घड़े मे खाना पकाती थी उसमें कुम्हार से कहकर दो पेट बनबा लाई थी, एक पेट में अच्छा भोजन बनाती और खुद खाती दूसरे में अलग भोजन बनाती और बूढ़ी मां को देती,
    एक इक औरत मेरी बूढ़ी दादीमाँ बचपन में ही बताई थी, शायद आपने अपनी दादीमाँ को अनाथालय पहुँचा दिए होंगी इसलिए आपको ज्ञान नहीं मिला,
    *मोरल- अगर स्व• सुशांत के पिताजी ने रिया को *** कहा तो क्या गलत कहा, जिस बाप को कंधे ढोवाने की उम्र की वो बाप अपने बेटे का कंधा ढो रहा,
    खुदा ना करें कि जब आप बूढ़ी हो जाए और समान यही कांड आपके बेटे के साथ हो तो आप क्या करेंगी?

  9. Is this paid post by bollywood ? Or you people got threat from somebody ? Because Shekhar Gupta also well aware about this industry as he said in one of the cut the clutter.
    This type of articles losses the trust of viewers.

  10. लगता है, कुछ ज्यादा पैसा मिला है , दि प्रिंट को एक नए मुद्दे को उछालने में। सुशांत सिंह राजपूत का केस निर्णयक कदम ले ले। फिर आपसे भी बात होगी।

  11. Seriously ye bohot h ghatiya article Hain I mean feminism ka bhi koi tark hota Hain Yaar ye article likhne wala exist h kyu karta Hain do pause ki akal Nahi Hain family ko lga Sushant rhea ki wajah se depression mein tha to poori family ko h galat saabit kr Diya pratusha Banerjee case mein to lga nhi aisa sanjana sanghvi jab Sushant ke upar se metoo allegation hataane timely saamne nhi aayi tab toh aisa lga Nahi ye faltu ki journalism Karna band Karo theprint raddi do kaudi ka complain honi Chahiye tum logo ke against aisa bullshit likhte ho

  12. Seriously feel pitty for the journalist. Without understanding the plight you want to stand out with this crap mentality.
    Have heard who can’t make big in life throw stones on others same I found here.
    His family has accepted the girl he has before and if the other girl is good enough then they would have accepted that as well but things are completely different.
    Anyways as disclaimer it’s mentioned that views are of personal o @jyotiyadav. Then would say journalist need much more things to learn in life and before penning down check your facts and thoughts.

    It seems a huge amount is been paid ?

  13. यह आर्टिकल अच्छे से शोध आधारित, पढ़ – समझ कर लिखा गया है, जो इसको पढ़ने पर पता चलता है, इससे कोई भी इस क्षेत्र का रहने वाला अपने से जोड़ कर देख सकता है । जो अगर पूरा हम पूरी ईनामदारी से इस लेख पढ़ पाए तो । इस लेख में जो भी विचार प्रस्तुत किया गया है , अगर हम लोग उससे अपने आप को जोड़ कर अपने अगल – बगल, अपने घरों में देखे तो यह बात सत्य है, जो भी इस लेख में कहा गया है बर्शते हम देखना चाहे तभी ।

    यह बस बिहार का नहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश , पूरे उत्तर भारत की यही सोच हैं। ऎसा हमने जो देखा और समझा है उसके अनुसार।

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