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Sunday, 17 November, 2024
होममत-विमत‘अग्नि-5’ का सफल परीक्षण तो बस पहला कदम है, भारत को हवाई कमांड पोस्ट बनाना जरूरी है

‘अग्नि-5’ का सफल परीक्षण तो बस पहला कदम है, भारत को हवाई कमांड पोस्ट बनाना जरूरी है

कमांड की वैकल्पिक चेन बनाने से ही समस्या हल नहीं होने वाली है. परमाणु खतरे के चरम दौर और युद्ध में राजनीतिक कमान की सुरक्षा अनिवार्य है ताकि वह हालात का प्रभावी सामना कर सके.

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भारत ने हाल में ‘अग्नि-5’ मिसाइलों से दागे जाने वाले ‘एमआइआरवी’ (मल्टी इंडिपेंडेंटली टार्गेटेड रि-एंट्री वीकल्स) के जो सफल परीक्षण किए वे चीन तथा पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वियों की बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम का जवाब तैयार करने की कोशिशों की सफलता का प्रमाण देते हैं. मौजूदा परमाणु हथियारों में एमआइआरवी को शामिल करने के क्या मायने हैं इसकी जानकारी ‘दिप्रिंट’ पहले ही दे चुका है. एमआइआरवी की सफलता की चर्चाओं के संदर्भ में इस लेख में उस अहम मसले को रेखांकित करने की कोशिश की गई है जिससे निबटना जरूरी है. इसका ताल्लुक भारत के न्यूक्लियर कमांड ऐंड कंट्रोल सिस्टम (एनसीसीएस) का अस्तित्व बने रहने से है.

एनसीसीएस की शीर्ष संस्था है न्यूक्लियर कमांड ऑथरिटी (एनसीए). एनसीए के सदस्यों में प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री और वित्त मंत्री शामिल हैं. इसका स्वरूप सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी (सीसीएस) और नेशनल सिक्यूरिटी काउंसिल (एनएससी) जैसा ही है.

प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 4 जनवरी से 2003 से एनसीए के साथ एक राजनीतिक काउंसिल (पीसी) जुड़ गई जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री बने, और इसके साथ एक एक्सीक्यूटिव काउंसिल (ईसी) भी जुड़ी जिसके अध्यक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं. केवल पीसी ही परमाणु हथियारों के प्रयोग की मंजूरी दे सकती है. ईसी इस बारे में फैसले तक पहुंचने के लिए जानकारियां उपलब्ध कराती है और पीसी द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करती है. ईसी के संगठन के बारे में कोई आधिकारिक संकेत नहीं दिया गया है. अपेक्षा की जाती है कि इसमें कम-से-कम चीफ ऑफ द डिफेंस स्टाफ, तीनों सेनाध्यक्षों, ‘स्ट्रेटेजिक फोर्सेस कमान के कमांडर-इन-चीफ, और प्रतिरक्षा, परमाणु ऊर्जा विभागों और डीआरडीओ के प्रमुख को तो शामिल किया ही जाएगा.

वैकल्पिक कमांड चेन

2003 की प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि सीसीएस ने सभी स्थितियों में जवाबी परमाणु हमला करने का फैसला करने के लिए वैकल्पिक कमांड चेन की व्यवस्था की समीक्षा की और मंजूरी दी. माना जाता है कि इस तरह की व्यवस्था मौजूद है लेकिन इसके सिवा उसके संगठन के बारे में कुछ भी सार्वजनिक नहीं है. एक चेन का नेतृत्व बेशक प्रधानमंत्री करेंगे और दूसरे का नेतृत्व कौन करेगा यह इस पर निर्भर होगा कि सत्ता किस पार्टी के हाथ में है.

वैकल्पिक कमांड चेन की जरूरत उस महत्वपूर्ण कमजोरी को स्वीकार करने से उभरती है जिसे परमाण्विक रणनीति की मदद से दूर किया जा सकता है. इस कमजोरी का ताल्लुक आपस में जुड़े दो मसलों से है. और ये दोनों सैद्धांतिक वजहों से संबंधित हैं. एक का संबंध इस तथ्य से है कि परमाणु हथियारों के प्रयोग की मंजूरी केवल प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली ‘पीसी’ ही दे सकती है. इसलिए ‘पीसी’ दुश्मन के मुख्य निशाने पर होगी, और परमाणु युद्ध के शुरुआती चरण में अगर उसे निष्क्रिय करने में दुश्मन सफल हो गया तो उसे जवाब देने की भारत की क्षमता पंगु हो जा सकती है. यह कमजोरी इस कारण और बढ़ जाती है कि भारत ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश है जिसने परमाणु हथियार के इस्तेमाल में पहल न करने के यानी ‘नो फर्स्ट यूज़’ के सिद्धांत को अपनाया है. परमाण्विक रणनीति ऐसी होनी चाहिए जो परमाणु हमले को पचाने और तब जवाब देने की क्षमता को मजबूत करती हो.

लेकिन कमांड की वैकल्पिक चेन बनाने से समस्या हल नहीं होने वाली है. परमाण्विक खतरे के चरम दौर और युद्ध में उनकी सुरक्षा अनिवार्य है. यह सुरक्षा वैकल्पिक ‘पीसी’ को जमीन, समुद्र के अंदर या आकाश में गुप्त अड्डों में ले जाकर दी जा सकती है. इन अड्डों पर संचार की पूरी सुविधा जरूरी होगी ताकि कमांड और कंट्रोल किया जा सके और ‘पीसी’ को अड्डे पर टिके रहने के सारे इंतजाम किए गए हों.

पीसी की सुरक्षा की व्यवस्था जाहिर वजहों से गुप्त रखी गई है सिवाय इसके कि कुछ अध्ययनों और पत्रकारों की रिपोर्टों में इसका जिक्र किया गया है. यह मान लिया जा सकता है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में भूमिगत अड्डे इस सुरक्षा की व्यवस्था करते हैं. पानी के अंदर ऐसी सुरक्षा व्यवस्था की गई होगी, इसकी संभावना नहीं है. अहम बात यह है कि आकाश में कमांड पोस्ट बनाने या इसकी मंजूरी देने के कोई संकेत नहीं हैं. मुमकिन है कि ऐसी हवाई कमांड पोस्ट बनाने के प्रयास हो रहे होंगे लेकिन इसे प्राथमिकता देकर पूरा करने की जरूरत है.


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हवाई कमांड पोस्ट बेहतर है

‘वीवीआइपी’ के इस्तेमाल के लिए विशेष तौर से निर्मित दो बोइंग-777 विमान 2020 के बाद से उपलब्ध हैं. वे कुछ प्रकार के मिसाइल हमलों का सामना कर सकते हैं और वे ‘लार्ज एअरक्राफ्ट इन्फ्रारेड काउंटरमेजर्स’ (एलएआइआरसीएम) और ‘सेल्फ प्रोटेक्शन सुइट्स’ (एसपीएस) से लैस हैं. इसे युद्ध के दौरान बनाए गए कमांड पोस्ट के बराबर नहीं माना जा सकता, जिनसे कई बड़ी अपेक्षाएं रखी जाती हैं और उनमें अत्याधुनिक संचार व्यवस्था, कमांड तथा कंट्रोल सुविधाएं मौजूद होती हैं जो मैदान पर नेतृत्व करने वालों से जुड़ी होती हैं और सेना की व्यापक संचार व्यवस्था से भी जुड़ी होती हैं. हवाई कमांड पोस्ट को ‘इलेक्ट्रोमैगनेटिक पल्स’ (ईएमपी) से बेअसर बनाने की जरूरत है और उसे फौरी कार्रवाई के लिए 24 घंटे तैयार रहने की जरूरत है.

हवाई कांड पोस्ट की मांग में काफी दम है. पहली बात यह है कि भौगोलिक निगरानी की उपग्रह आधारित व्यवस्था के विकास के कारण भूमिगत अड्डों को गुप्त रख पाना मुश्किल हो गया है. इसके अलावा, संचार तंत्र का पता लगते ही उसे निष्क्रिय किया जा सकता है. दूसरे, हवाई कमांड पोस्ट पीसी को ज्यादा समय तक सुरक्षा दे सकता क्योंकि यह एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता, उसे कार्रवाई करने के लिए बड़ा आकाश उपलब्ध होता है. और छद्म आवरण तथा दूसरे उपायों के बूते चकमा देने की सुविधा उपलब्ध कराता है. लेकिन भूमिगत अड्डों के विपरीत इसकी उपयोगिता ईंधन ढोने की उसकी क्षमता पर निर्भर होती है. इसकी भरपाई सुरक्षा के मामले में हासिल लाभों से हो जाती है. बेहतर यह होगा कि एक कमांड चेन भूमिगत अड्डे से ऑपरेट करे और दूसरी हवाई हो.

परमाणु कमांड ऑथरिटी का टिकाऊ होना सबसे महत्वपूर्ण है, और हवाई कमांड पोस्ट अतिरिक्त ताकत देती है जिससे टिकाऊपन और प्रतिरोध क्षमता मजबूत होती है. इसके अलावा, भारत जबकि अपनी जवाबी परमाणु क्षमता को ‘एमआइआरवी’ और जमीन तथा समुद्र आधारित डेलीवरी प्लेटफॉर्म के जरिए आधुनिक तथा उच्चस्तरीय बना रहा है, तब कमांड तथा कंट्रोल के अहम तत्वों को मजबूत बनाने के पूरक प्रयास भी जरूरी हैं. इसके बिना हथियारों का प्रयोग करने वाले हुक्म का इंतजार करते रहेंगे और वह उन तक कभी नहीं पहुंचेगा.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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