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Saturday, 4 May, 2024
होममत-विमतनौसेना पनडुब्बियों के द्वार महिलाओं के लिए खोल रही है, पर वह इसकी चुनौतियों से भी निबटे

नौसेना पनडुब्बियों के द्वार महिलाओं के लिए खोल रही है, पर वह इसकी चुनौतियों से भी निबटे

तीनों सेनाओं में युद्ध वाली तमाम ज़िम्मेदारियों में पनडुब्बी पर तैनाती को महिलाओं के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण माना जाता है क्योंकि उसमें जगह बहुत सीमित होने के कारण चालक दल/बंक मैनेजमेंट, आवास, प्राइवेसी को लेकर काफी कठिनाइयां होती हैं.

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फ्रांस, पुर्तगाल, इटली जैसे कुछ देशों के लोग ‘शिप’ (जलपोत) को पुलिंग मानते हैं जबकि जर्मनी वाले उसे उभयलिंग मानते हैं, लेकिन भारत और दुनिया के दूसरे देशों में इसे स्त्रीलिंग माना जाता है. इसकी कुछ मज़ाकिया व्याख्या जो दी जाती है वो कुछ नटखट किस्म की है, कि ‘शिप’ पहली बार जब बंदरगाह पर पहुंचती है तब सबसे पहला काम वह ‘उत्प्लावन’ से निबटने का करती है. शायद इसलिए, आश्चर्य नहीं कि भारतीय सेना के तीनों अंगों में नौसेना ही ‘नारी शक्ति’ को अग्रिम मोर्चे पर तैनात करने में अग्रणी है. नौसेना अध्यक्ष एडमिरल हरि कुमार ने हाल में नौसेना की इस ख़्वाहिश का इज़हार किया कि वह अगले 30-35 साल के भीतर एक महिला को अपने अध्यक्ष के पद पर देखना चाहती है.

इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए नौसेना अपने सभी पदों और विभागों के दरवाजे महिलाओं के लिए खोल रही है. इनमें उसका पनडुब्बी वाला अंग भी शामिल है, जिसे तीनों सेनाओं में युद्ध वाली तमाम जिम्मेदारियों में महिलाओं के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण माना जाता है. इसके अलावा, पनडुब्बी में काम करने, रहने, शारीरिक गतिविधियों और नित्यक्रिया आदि के लिए जगह बहुत सीमित होने के कारण चालक दल/बंक (आवास) के मैनेजमेंट, प्राइवेसी को लेकर काफी कठिनाइयां होती हैं.

इसके अलावा, इन चुनौतियों से लंबे समय तक, दो-तीन महीने तक सामना करना पड़ सकता है. इस वजह से स्वास्थ्य और मेडिकल केयर आदि की ज़रूरत पड़ सकती है या महिलाओं-पुरुषों को मिलाकर बने मिक्स्ड चालक दल की वजह से मनोवैज्ञानिक मसले उभर सकते हैं.

चालक दल/बंक मैनेजमेंट

पनडुब्बियों में चालक दल और बंक मैनेजमेंट आपस में जुड़े हुए मसले हैं. कुल मामला यह है कि अगर केवल महिलाओं को एक साथ रखा जाए तो चालक दल में महिला को राहत देने के लिए अपेक्षित योग्यता, रैंक वाली महिला सैनिक को तैनात करना काफी मुश्किल हो सकता है क्योंकि मिक्स्ड टीम वाले चालक दल के शुरुआती चरण में महिलाओं की संख्या सीमित है. मसला इस वजह से और जटिल हो जाता है कि यह सेवा स्वैच्छिक है और इसके चलते किसी भावी तैनाती के लिए पहले से महिला स्वयंसेवकों की उपलब्धता का आकलन कठिन है.

पनडुब्बी में सीमित जगह होने के कारण बंक खाली मिलने की कोई संभावना नहीं होती. भारतीय नौसेना की सेवा में तैनात कुछ पण्डुब्बियों में प्रायः ‘हॉट बंकिंग’ की व्यवस्था चलती है जिसमें परस्पर विरोधी गश्ती पारी पर तैनात दो सेलर (नाविक) एक ही बंक का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए मिक्स्ड आवास ही विकल्प बनता है, लेकिन इससे प्राइवेसी की समस्या बढ़ती है.

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प्राइवेसी और सेहत

जब प्राइवेसी (निजता) की बात आती है तब बंकिंग और नित्यक्रिया जैसे दो मसले चिंता के मुख्य कारण बन जाते हैं. भविष्य में मिक्स्ड आवास वाली पनडुब्बियां डिजाइन की जा सकती हैं, जिनमें सभी नाविकों को पर्दे लगे अलग-अलग बंक दिए जा सकते हैं. इसके अलावा ऐसी नीति बनाई जा सकती है कि चालक दल के सभी सदस्यों को हर समय, सोने के समय भी न्यूनतम पोशाक (मसलन शॉर्ट्स और टी-शर्ट) पहना अनिवार्य हो.

पनडुब्बी की बेहद संकुचित जगह में, एक-दूसरे की प्राइवेसी का सम्मान और आपसी समझदारी सांस्कृतिक ज़रूरत है, जिसे हर हाल में पूरा किया जाना चाहिए. ज्यादा मेलजोल और निकट अंतर्वेयक्तिक संबंध पर सख्त निषेध लागू किया जाना चाहिए, जैसा सामान्य जलपोतों में किया जाता है.

लेकिन मौजूदा पनडुब्बियों में फेरबदल की शायद ही कोई गुंजाइश है. इनमें पनडुब्बी के स्तर के हिसाब से नित्यक्रिया के लिए 20/25 लोगों के लिए एक टायलेट की व्यवस्था है. महिलाओं के लिए अलग टायलेट की गुंजाइश नहीं है.

इसके अलावा, पनडुब्बी का माहौल सूरज की रोशनी की कमी, भारी शोर और कंपन, निष्क्रियता, और कार्बन डाइ ऑक्साइड के उच्च स्तर की वजह से सेहत के लिए खतरनाक होता है. आम महिला रोगों के इलाज की व्यवस्था नहीं होती और धूप की कमी की वजह से महिलाओं को हड्डी का ऑस्टियोपोरोसिस नामक रोग का खतरा ज्यादा होता है. इनमें स्वेच्छा से सेवा देने वाली महिलाओं को इन खतरों के बारे में बताया जाना चाहिए और उन्हें तैनात किए जाने से उनकी सघन मेडिकल जांच की जानी चाहिए.

ऐसे मसले, स्वेच्छा से इन पर तैनाती के लिए आगे आने वाली महिलाओं की संख्या को तब तक प्रभावित कर सकते हैं जब तक मिक्स्ड आवास वाली नयी तरह की पनडुब्बियों का निर्माण नहीं होता, लेकिन संकल्प, आत्मविश्वास और रोमांच की खातिर आगे आने वाली महिलाओं को इन मसलों के कारण हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए.


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चुनौतियों का सामना संभव है

कई देशों की नौसेना में महिलाएं पनडुब्बियों पर अफसर और सूचीबद्ध रैंकों पर तीन दशक से ज्यादा समय से काम कर रही हैं. नॉर्वे ने सबसे पहले इसकी शुरुआत की थी 1985 में, और 1995 में उसकी पहली महिला पनडुब्बी कैप्टन बनी. इसके बाद इसी दशक में स्वीडन, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन ने इसका अनुसरण किया; कनाडा और जर्मनी ने 2000 वाले दशक में और अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस ने 2010 वाले दशक में, जापान और दक्षिण कोरिया ने क्रमशः 2018 और 2023 में महिलाओं को पनडुब्बी सेवा में शामिल किया. भारत ने ऐसा करने का फैसला 2023 में किया और वह महिलाओं को शामिल करने की योजना तैयार कर रहा है.

दूसरे देशों के अनुभवों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है और भारतीय नौसेना इस क्षेत्र में अपना ज्ञान बढ़ाकर उसे भारतीय सांस्कृतिक संदर्भों के साथ जोड़कर अपना सकती है. 1997 में उसने जलपोतों पर महिलाओं को तैनात करना शुरू किया था इसलिए उसके पास काफी अनुभव हो चुका है, खासकर चालक दल/बंक मैनेजमेंट और प्राइवेसी के मसलों के बारे में. वास्तव में, दिसंबर में कमीशन किए गए आईएनएस इम्फाल में महिला अफसरों और सूचीबद्ध सैनिकों के लिए अलग आवास हैं, लेकिन ऐसी व्यवस्था पनडुब्बियों में नहीं की जा सकती इसलिए भारतीय नौसेना को इनके लिए अलग तरह की प्रबंधन नीतियां बनानी होंगी.

परिवर्तन के इस चरण में मुख्य चुनौती ऑपरेशन की प्रभावशीलता को बचाए रखने की है. इसके लिए सूक्ष्म नियोजन की ज़रूरत पड़ेगी जिसमें प्रतिस्थापन और अधिग्रहण की दीर्घकालिक योजना का सहारा लिया गया हो और यह केवल नौसेना के बस की बात नहीं है, जो प्रायः वित्त, सामग्री और तकनीक संबंधी संसाधन पर निर्भर करती है. पनडुब्बी परिचालन के विभिन्न आयामों का विशिष्ट हुनर हासिल कर चुके पर्याप्त मानव संसाधन की उपलब्धता बेहद ज़रूरी है. इसके साथ चालक दल के लिए मिक्स्ड आवास की व्यवस्था लिंग आधारित संसाधन की अनिश्चित उपलब्धता से उत्पन्न चुनौती को खत्म करने में मदद कर सकती है.

परिवर्तन के क्रम में पहले चरण में महिला अफसरों को और इसके बाद सूचीबद्ध रैंकों को शामिल किया जाता है तो बेहतर स्थिरता कायम रखी जा सकती है. अमेरिक और कुछ दूसरे देशों ने इस मॉडल को अपनाया है, जिन्हें सबक सीखने का समय मिला और अनुभवी महिला अफसर उपलब्ध हुईं, जो सूचीबद्ध रैंकों को प्रशिक्षित कर सकती हैं.

राष्ट्रीय सबक

वुमन्स प्रीमियर लीग (डब्लूपीएल) क्रिकेट मैचों को देखकर भारतीय महिलाओं की प्रतिभा से चकित हुए बिना नहीं रहा जा सकता. ज़रूरत सिर्फ उन्हें अवसरों का मंच प्रदान करने की है. डब्लूपीएल में प्रदर्शित प्रतिभाएं भारतीय महिला क्रिकेटरों के विश्व स्तरीय होने का आश्वासन देती हैं. इंडियन प्रीमियर लीग ने पुरुष क्रिकेटरों के लिए जो कुछ किया वह डब्लूपीएल में दोहराया जा सकता है.

वास्तव में, यह बड़ा राष्ट्रीय सबक है. सरकारें सबसे अच्छा काम यह कर सकती हैं कि वे भारतीय लोगों को अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करने के अवसर उपलब्ध कराएं. यह ऐसा काम है जिसे अब तक की तमाम सरकारों को उस स्तर पर करना बाकी है, जिस स्तर पर एक विकासशील देश और विकसित देश में अंतर हो सके.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका एक्स हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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