scorecardresearch
Saturday, 4 May, 2024
होममत-विमतसेना में प्रमोशन के लिए योग्यता को तरजीह देनी चाहिए न कि प्रोफेशनल सेगमेंट को, निजी स्वार्थ सबसे बड़ी बाधा

सेना में प्रमोशन के लिए योग्यता को तरजीह देनी चाहिए न कि प्रोफेशनल सेगमेंट को, निजी स्वार्थ सबसे बड़ी बाधा

सेना की पदोन्नति में भेदभाव की प्रकृति नियमों और प्रक्रियाओं में छिपी हुई है, जिससे इसे नोटिस करना कठिन हो जाता है. जब प्रमोशन बोर्ड के नतीजे घोषित होते हैं तो केवल कुछ ही अधिकारी इसके बारे में अनुभव कर पाते हैं.

Text Size:

आगामी लोकसभा चुनाव में जाति एक प्रमुख मुद्दा बनने की संभावना है. लेकिन आइए जानें कि भारतीय सेना के प्रमोशन की प्रक्रिया में यह हायरार्की से संबंधित और भेदभावपूर्ण संरचना कैसे कायम है. ऐसा प्रतीत होता है कि सेना में पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था है.

परिवार या वंश से प्राप्त पहचान पर आधारित भेदभाव, जाति व्यवस्था का मूल है. भारतीय सेना में, लंबे समय से वरिष्ठ नेतृत्व के लिए चयन का आधार लीनिएज या ‘विरासत में मिली पहचान’ है, खासकर जिस प्रोफेशनल सेगमेंट में किसी को शामिल किया जाता है उसके लिए.

हाल ही में, ब्रिगेडियर और उच्च रैंक के लिए वर्दी को एक समान बनाकर सेना में पहचान को मानकीकृत करने का प्रयास किया गया है. इसमें बेरेट, डोरी या लैनयार्ड और अन्य प्रतीक चिह्नों के रंग जैसे रेजिमेंट से संबंधित अंतरों को हटाना शामिल था. लेकिन यह महज़ दिखावटी बदलाव बनकर रह जाएगा क्योंकि इससे सैन्य मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया.

ब्रिगेडियरों और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों के नेतृत्व क्षमता को परखने के लिए ‘हासिल किए गए गुणों’ को मुख्य आधार बनाए जाने पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. वर्तमान में, ‘विरासत में मिली’ पहचान को विशेषाधिकार प्राप्त है और ‘अर्जित’ गुणों को पीछे छोड़ दिया जाता है. भेदभाव की प्रकृति और स्वरूप नियमों और प्रक्रियाओं में छिपा हुआ है, जिससे इसे नोटिस करना कठिन हो जाता है. जब पदोन्नति बोर्ड के परिणाम या प्रमुख पाठ्यक्रमों के लिए नामांकन की घोषणा की जाती है तो केवल अपेक्षाकृत कम ही संख्या में अधिकारियों का ध्यान इस पर जाता है.

प्रतिभा पर लीनिएज भारी

किसी का लीनिएज या प्रोफेशनल सेगमेंट वह होता है जिस शाखा या सेवा में किसी को कमीशन किया जाता है. ऐसा कहा जा सकता है कि यह विरासत कैरियर की प्रगति में एक प्रमुख भूमिका निभाती है. मोटे तौर पर, विरासत को एक क्लास सिस्टम की तरह देखा जाता है जो अधिकारियों को उनके मूल कार्य के अनुसार अलग करती है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उन्हें कॉम्बैट (इन्फैंट्री, आर्म्ड कोर और मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री), कॉम्बैट सपोर्ट (आर्टिलरी, इंजीनियर्स, एयर डिफेंस, सिग्नल और आर्मी एविएशन), और सर्विसेज (आर्मी सर्विस कोर, ऑर्डनेंस, इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियर्स और मेडिकल ब्रांच) में विभाजित किया गया है, जो लॉजिस्टिक सपोर्ट प्रदान करता है.

कॉम्बैट और कॉम्बैट सपोर्ट हथियारों के भीतर, पदोन्नति के नियमों को समय के साथ बदल दिया गया है, और इन्फैंट्री की अधिकतर याचिका पर बिना किसी सार्थक विचार के यूं ही खत्म हो जाने दिया गया. यह काफी बारीकी से किया गया है और संभवतः इस स्तर तक पहुंच गया है जहां इसे स्वीकार करना मुश्किल हो गया है, जिसके लिए त्वरित सुधार की आवश्यकता है. आइए अब मैं इसे आपको समझाता हूं.

बटालियनों/रेजिमेंटों की कमान ज्यादातर लीनिएज के अनुसार आवंटित की जाती है, जो उचित है और सेना की कार्यात्मक मांगों को पूरा करती है. हालांकि, ब्रिगेडियर स्तर और उससे आगे, व्यापक नॉलेज बेस में विशेषज्ञता के साथ-साथ मानव और भौतिक संसाधनों के प्रबंधन में दक्षता वाले कॉम्बैट सपोर्ट आर्म के अधिकारियों को भी जनरल कैडर में शामिल किया जा सकता है, जो ऑपरेशनल संरचनाओं को कमांड करने के लिए महत्वपूर्ण है. कॉम्बैट सपोर्ट आर्म से जनरल कैडर में यह शामिल होना स्वैच्छिक है और बटालियन/रेजिमेंट की कमान के बाद किसी भी समय हो सकता है व ब्रिगेडियर या मेजर जनरल स्तर पर प्रभावी है.

तकनीकी रूप से, कॉम्बैट और कॉम्बैट सपोर्ट हथियारों के बीच अवसरों की समानता है. हालांकि, जनरल कृष्णास्वामी सुंदरराजन के कार्यकाल के दौरान शुरू किए गए सुधारों के बाद, जनरल कैडर पदोन्नति को दो धाराओं में विभाजित किया गया था: कमांड और स्टाफ. इसलिए, केवल कमांड स्ट्रीम में स्वीकृत जनरल कैडर अधिकारी ही उच्च स्तर के ऑपरेशनल कमांड के लिए पात्र हैं. अधिकारियों का यह खंड सेना प्रमुख (सीओएएस) स्तर तक कमांड चेन बनाता है. वर्तमान सीओएएस जनरल मनोज पांडेय को आर्मी कोर ऑफ इंजीनियर्स में नियुक्त किया गया था.

निष्पक्ष होने के लिए, एक बार जब किसी अधिकारी को सामान्य कैडर में स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो कैडर के भीतर पहचान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए और उसके बाद सभी सामान्य कैडर अधिकारियों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए. हालांकि, यह परंपरा नहीं है; इसके बजाय, सिस्टम को सबसे बड़ी कॉम्बैट आर्म, इन्फैंट्री को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है.


यह भी पढ़ेंः अमशीपोरा ‘मुठभेड़’ मामले में कोर्ट मार्शल का फैसला क्यों बदला? इसे टाला जा सकता था


गेमिंग ग्राउंड: नेशनल डिफेंस कॉलेज

नेशनल डिफेंस कॉलेज (एनडीसी) पाठ्यक्रम मेजर जनरल से लेफ्टिनेंट जनरल तक के अधिकारियों के चयन के लिए एक छलनी के रूप में कार्य करता है. पाठ्यक्रम के पूरा करने पर वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) की वैल्यू बढ़ जाती है. इसे सीओएएस जनरल बिपिन रावत के कार्यकाल के दौरान जोड़ा गया था. एसीआर मूल्यांकन में बढ़त की दीर्घकालिक प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए, एक अधिकारी जिसने एनडीसी कोर्स में भाग नहीं लिया है, उसके लेफ्टिनेंट जनरल पद के लिए स्वीकार किए जाने की काफी कम संभावना है.

एनडीसी कोर्स के लिए ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारियों के चयन में दो स्तरों पर अनुचित प्रक्रिया के बारे में दो स्रोतों से स्पष्ट पता चलता है. सबसे पहले, कॉम्बैट सपोर्ट आर्म अधिकारी, जो अब जनरल कैडर का हिस्सा हैं, एनडीसी के लिए नामांकित होने पर भी अपनी मूल शाखा को आवंटित रिक्तियों पर रहते हैं. उदाहरण के लिए, एक इंजीनियर अधिकारी, जो जनरल कैडर में स्थानांतरित हो गया है और एनडीसी नामांकन के दौरान एक इन्फैंट्री ब्रिगेड की कमान संभाल रहा है, इंजीनियरों को आवंटित रिक्तियों को खा जाएगा. यह कॉम्बैट आर्म की रिक्तियों की सुरक्षा करता है.

दूसरा, सामान्य संवर्ग के भीतर एनडीसी के लिए रिक्तियां आरक्षित करने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, जैसा कि वर्तमान में किया जा रहा है. इस परंपरा के बारे में जो खराब बात है वह इन्फैंट्री के लिए आरक्षित रिक्तियों की सुरक्षा है, जो कि सबसे बड़ा कैडर है. वास्तव में, योग्यता को कम महत्त्व दिया जाता है जबकि जबकि लीनिएज को ज़्यादा महत्त्व दिया जाता है. यह बहुसंख्यकों के लिए आरक्षण की व्यवस्था के समान है. और इसके अलावा भी तमाम बातें हैं.

मेजर जनरल के पद पर पदोन्नति के लिए, यदि कॉम्बैट सपोर्ट आर्म का कोई अधिकारी इसके लिए उपयुक्त पाया जाता है, तो कॉम्बैट आर्म को एक अतिरिक्त रिक्ति आवंटित की जाती है ताकि उनकी संख्या प्रभावित न हो. ऐसा नियम संस्थागत आवश्यकताओं पर लड़ाकू शाखा के संकीर्ण हितों का समर्थन करता है. जनरल कैडर को कमांड और स्टाफ में विभाजित करने का मूल विचार कमांड के लिए स्वीकृत अधिकारियों की संख्या को कम करना था, जिससे कमांड कार्यकाल की उचित समय सीमा सुनिश्चित की जा सके.

बख्तरबंद कोर और मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री अधिकारी भी मौजूदा प्रणाली से वंचित हैं क्योंकि उनके कैडर का आकार इन्फैंट्री की तुलना में छोटा है. एक ही जनरल कैडर का हिस्सा होने के बावजूद, यह उनके लिए समान अवसर नहीं है.

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि प्रि-कमीशन प्रशिक्षण अकादमियों में जेंटलमैन कैडेटों के बीच मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री के लिए पहली प्राथमिकता में गिरावट देखी जा रही है. अपेक्षाकृत छोटी लड़ाकू शाखा का हिस्सा होने के कारण, एनडीसी में मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री और आर्म्ड कोर में रिक्तियां वर्तमान में बहुत कम हैं.

बड़ी बात यह है कि उच्च कमान क्षेत्रों के लिए चयन को विरासत से अलग किया जाना चाहिए और अर्जित क्षमताएं ही एकमात्र मानदंड होनी चाहिए.

थिएटर कमांड कार्यान्वयन

कोटा प्रणाली के माध्यम से महत्वपूर्ण उच्च नेतृत्व पदों से व्यक्तियों को बाहर करने और लीनिएज-आधारित बहुमत को विशेषाधिकार देने से प्रतिभाशाली और सर्वश्रेष्ठ का चयन नहीं किया जा सकता है. इसके लिए आदर्श रूप से अर्जित क्षमताओं वाले सभी व्यक्तियों को शामिल किया जाना चाहिए, और मूल्यांकन और विकल्प बनाने के लिए सेलेक्शन सिस्टम का पालन करना चाहिए.

एसीआर-आधारित चयन प्रणाली शायद ही कभी उत्कृष्ट/अच्छे और बुरे/सबसे खराब के बीच भेद करने में सक्षम होती है. जब इसे एनडीसी जैसी भेदभावपूर्ण आरक्षण प्रथाओं के साथ जोड़ा जाता है, तो इसका सेवाओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है.

जो लोग सोच रहे हैं कि तीनों सेनाएं अपने मतभेदों को क्यों नहीं सुलझा सकती हैं, जो राजनीतिक रूप से अनिवार्य और प्रशंसनीय थिएटर कमांड सिस्टम के कार्यान्वयन में देरी कर रहे हैं, उनके लिए मैदान की सुरक्षा मुख्य समस्या है. यह मूल रूप से एक सामाजिक समस्या है जहां प्रत्येक सेवा की मजबूत आदिवासी पहचान अपने विशिष्ट हितों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है.

इस पर काबू पाने के लिए संकीर्ण सोच को छोड़कर पुनर्गठन अभ्यास के उच्च उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है. शीर्ष नेतृत्व अब तक असफल रहा है, लेकिन हमें आशा करनी चाहिए कि वे जल्द ही सफल होंगे, और निश्चित रूप से 15 जनवरी 2025 को अगले सेना दिवस से काफी पहले.

{लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (सेवानिवृत्त) तक्षशिला संस्थान में रणनीतिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका एक्स हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.}

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः सीमा पर चीन का दबदबा मोदी की मजबूत नेता वाली छवि के लिए चुनौती


 

share & View comments