रक्षा महकमे के कर्मचारियों की पेंशन का मसला रक्षा मंत्रालय के लिए दशकों से एक इम्तहान बना हुआ है. ‘वन रैंक वन पेंशन’ (ओरोप) स्कीम कानूनी और नौकरशाही महकमों के बीच एक विवाद का मुद्दा बन गया है. कुछ सेवानिवृत्त सैनिकों ने कार्यपालिका और न्यायपालिका से लड़ाई ठान ली है लेकिन उन्हे अभी तक न्याय नहीं मिला है. पांच वर्ष पर पेंशन तय करने की व्यवस्था के तहत 2019 में यह प्रक्रिया पूरी नहीं की गई. इसमें हुई देरी इस मसले में दखल दे रहे कई किस्म के पात्रों के खेल के बुरे नतीजे को उजागर कर रही है.
कहा जाता है कि रक्षा मंत्रालय ने तय समय पर पेंशन इसलिए नहीं तय की क्योंकि मामला अदालत में विचाराधीन है. सेवानिवृत्त सैनिकों के एक गैर-प्रातिनिधिक समूह ने सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया था कि रक्षा मंत्रालय समान अवधि तक सेवा दे चुके सैनिकों के लिए ‘एक रैंक एक पेंशन’ की जगह ‘एक रैंक विविध पेंशन’ लागू करके ‘ओरोप’ का सिद्धांत का उल्लंघन कर रही है. कोर्ट ने 16 मार्च 2022 को इस मामले को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि 1 जुलाई 2019 से पेंशन फिर से तय की जाए और ‘एरियर’ का भुगतान तीन महीने के अंदर किया जाए.
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सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक तीन महीने की अवधि 16 जून 2022 को पूरी हो गई लेकिन इसे लागू नहीं किया गया. इसकी वजह जानने के लिए दी गई ‘रिक्वेस्ट फॉर इन्फोर्मेशन’ (आरएफआई) अर्जी का जो जवाब मिला कि रक्षा मंत्रालय के अधीन ‘डिपार्टमेंट ऑफ एक्स-सर्विसमेन्स वेलफेयर’ ने 30 मई 2022 को एक नोट जारी किया था कि कंट्रोलर जनरल ऑफ डिफेंस अकाउंट (सीजीडीए) को विभिन्न तरह की पेंशनों की तालिकाएं बनानी पड़ेंगी जिसमें समय लगेगा इसलिए सुप्रीम कोर्ट से तीन महीने का समय और मांगा जाए. उसके बाद से सुप्रीम कोर्ट से संबंधित किसी प्रक्रिया की जानकारी नहीं मिली है. पेंशनभोगी इंतजार में बैठे हैं.
पेंशन के पुनर्निर्धारण के लिए तीन महीने का समय दिए जाने के बारे में लोकसभा में एक अतारांकित सवाल के जवाब में रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने 29 जुलाई को बताया कि यह ‘किया जा रहा है’. जवाब में यह नहीं बताया गया कि सरकार के कई महकमे सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने की कोशिश में परेशान हैं. मामले से प्रमुख रूप से जुड़े ‘सीजीडीए’ को पेंशन तालिकाएं बनाने के लिए वर्षों का समय मिला जबकि आज के कंप्यूटर युग में यह काम इतना कठिन नहीं होना चाहिए था. फिर भी वे और समय मांग रहे हैं.
क्या ‘स्पर्श’ कारगर होगा?
इस सबके बीच ‘सीजीडीए’ ने अपने ऊपर एक और ज़िम्मेदारी ले ली है, उसने ‘स्पर्श’ (सिस्टम फॉर पेंशन एडमिनिस्ट्रेशन) नामक एक और योजना शुरू कर दी है, जिसका संबंध डिफेंस पेंशन मैनेजमेंट से है. इस पहल की प्रेरणा डिजिटल इंडिया, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर और ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम प्रशासन’ से ली गई है. इसमें पेंशन से जुड़ी पूरी प्रक्रिया—प्रस्ताव, मंजूरी, भुगतान, संशोधन, सेवा, और शिकायत समाधान— डिफेंस अकाउंट विभाग के अधीन होगी.
लेकिन ‘स्पर्श’ का नाम तब बदनाम हुआ जब इस योजना को अपनाने वाले, रक्षा महकमे के करीब 50 हजार पेंशनरों को अप्रैल 2022 के महीने में पेंशन नहीं मिली. जाहिर है, उनका वार्षिक जीवन प्रमाणपत्र नहीं मिला जिसके कारण सिस्टम अपना काम कर दिया. मसले को तुरंत सुलझाया गया और पेंशन जारी की गई. पेंशनरों को अपना जीवन प्रमाणपत्र देने के लिए ज्यादा समय दिया गया. यह प्रकरण डिजिटल इंडिया का सहारा लेने के विचार के साथ जुड़ी बड़ी समस्या को उजागर करता है.
डिजिटाइजेशन ज्यादा केंद्रीकरण की गुंजाइश बनाता है लेकिन खामियों की संभावना भी बढ़ाता है. रक्षा महकमे में आज करीब 26 लाख पेंशनर हैं और आगे यह संख्या और बढ़ेगी ही. अगर यह ‘स्पर्श’ जैसी एक ही सिस्टम में केंद्रित होगी तो इस पर साइबर हमले के खतरे की अनदेखी नहीं की जा सकती है. दूसरे मसलों के साथ साइबर जोखिम के आकलन को लेकर भी सावधानी बरतनी चाहिए थी. अगर इस पर ध्यान दिया भी गया हो, तो ऐसा लगता है कि पैसे बचाने के तर्क ने नौकरशाही और नेताओं को मोह लिया.
पेंशन भुगतान की मौजूदा व्यवस्था में सरकारी और निजी बैंक भी सहायक हैं और वे इसके लिए एक फीस लेते हैं. कहा जाता है कि ‘स्पर्श’ को किसी सहायक की जरूरत नहीं है. लेकिन उसे ज्यादा कर्मचारियों और इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत पड़ेगी. इनके लिए वित्तीय खर्च की अल्पकालिक और दीर्घकालिक व्यवस्था करनी पड़ेगी, जो बचत के तर्क को कमजोर करेगी. मौजूदा व्यवस्था का आंशिक आउटसोर्सिंग किया जाता है, लेकिन योजना इसे पूर्णतः सरकारी उपक्रम बनाने की है. यानी यह ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम प्रशासन’ के विचार का समर्थन नहीं करती.
रक्षा मंत्रालय समीक्षा करे
मैं भी रक्षा महकमे का एक पेंशनर हूं और मैंने सेना में अपने कई परिचितों से पेंशन भुगतान की पुरानी व्यवस्था की कुशलता के बारे में पूछा. अभी तक मुझे इस पर कोई नकारात्मक जवाब नहीं मिला है. दूसरी ओर, पेंशन संबंधी शिकायतें मुख्यतः एक्स-सर्विसमैन वेलफेयर विभाग, सीजीडीए, नियमों की उनकी व्याख्या, और अदालत के निर्देशों के पालन के उनके तरीके को लेकर हैं. ‘स्पर्श’ इन समस्याओं का समाधान करता नहीं दिख रहा है, कम-से-कम एक निश्चित समयसीमा में तो नहीं ही, क्योंकि मनुष्य से जुड़ी जो कमजोरियां हैं उन्हें ‘स्पर्श’ जैसी केंद्रीकृत डिजिटल सिस्टम शायद दूर नहीं कर सकती.
अब चाहे जो भी नतीजा निकले, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि सीजीडीए अपना साम्राज्य—कर्मचारी, इन्फ्रास्ट्रक्चर, या नियंत्रण—बढ़ा सकता था. नौकरशाही की निष्क्रियता के कारण पेंशनरों की अधिकतर शिकायतें कायम रहेंगी. इससे एकमात्र फायदा डीजीसीए को होगा जिसकी ताकत और इसके साथ मिलने वाले लाभ काफी बढ़ जाएंगे. साथ ही, साइबर जोखिम का खतरा भी बढ़ गया है. इन मसलों को केवल प्रचार के बूते सुलझाया नहीं जा सकता.
‘स्पर्श’ के रथ को बीच में रोका जा सकता है, बशर्ते इसकी वेबसाइट पर उस प्रावधान को खोल दिया जाए जिसके तहत पुरानी व्यवस्था से नयी व्यवस्था में जाने का फैसला व्यक्ति के ऊपर छोड़ दिया जाए. बाकी बचे पेंशनरों का बहुमत—जो अभी भी अहम बहुसंख्यक हैं—अगर इसे अपनाने से मना कर दें तो आश्चर्य नहीं. अगर इसमें यह प्रावधान जोड़ दिया जाए कि परिवर्तन के लिए मंजूरी का विकल्प न चुनने पर उसे सहमति मान लिया जाएगा यह इसका पक्ष लेने वालों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताएगा, जो कि गलत होगा. वास्तव में, अगर अधिकांश पेंशनरों को अपना मत जाहिर करने की छूट दी जाए तो वे इस तथ्य को उजागर कर देंगे कि उनके जीवनसाथी (जिनमें अधिकतर तो साक्षर नहीं होते) अभी भी उसी दुनिया में जी रहे हैं जो डिजिटल इंडिया से दूर हैं, जो ‘स्पर्श’ को अवश्यंभावी मानते हैं और उसे वजन देना चाहते हैं.
संशोधित ‘ओरोप’ पैमाने को लागू करने में सीजीडीए की विफलता, और ‘स्पर्श’ को अपनाने का फैसला, दोनों रक्षा मंत्री को खतरे की घंटी की तरह सुनाई देनी चाहिए. उन्हें समझना होगा कि उन्हें एक ऐसी योजना थमा दी गई है जो तथ्यों पर नहीं बल्कि हवाई बातों पर आधारित है.
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(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज के डायरेक्टर हैं; वे नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट के पूर्व सैन्य सलाहकार भी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी है)
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