दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में हुए उत्पात पर शिवसेना ने जिस तरह का रुख अपनाया है, उसके आगे देश के ज्यादातर सेकुलर दलों का सेकुलरिज्म भी फीका पड़ गया है.
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के युवाओं को आश्वस्त किया कि वे महाराष्ट्र में ऐसा कुछ नहीं होने देंगे और वे यहां खुद को पूरी तरह सुरक्षित महसूस करें. उन्होंने चेतावनी दी कि जेएनयू में जो हुआ, वैसा हंगामा अगर किसी ने महाराष्ट्र में करने की कोशिश की तो इसके खतरनाक नतीजे होंगे.
I want to assure the youth of Maharashtra that I won’t let anything happen to them & they are completely safe. There will be serious repercussions if anyone tries to repeat what happened last night in the JNU campus in Maharashtra.
-CM Uddhav Balasaheb Thackeray pic.twitter.com/HWRisYgocZ— Office of Uddhav Thackeray (@OfficeofUT) January 6, 2020
उद्धव ठाकरे ने ये भी कहा कि नकाबपोश लोगों के चेहरों से नकाब उठाया जाना चाहिए और देश के युवाओं में जो भय का वातावरण है, उसे खत्म करना चाहिए. महाराष्ट्र के पर्यावरण और पर्यटन मंत्री और उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे ने इससे भी आगे बढ़कर कहा – ‘ऐसे हमलों की वजह से हमारे देश की इमेज पूरी दुनिया में खराब हो रही है. इस पर तय समय के भीतर कार्रवाई होनी चाहिए, वरना विदेश के छात्र यहां पढ़ने नहीं आएंगे.’उन्होंने ट्वीट करके हमलावर गिरोह की निंदा की.
The violence and brutality faced by students, while protesting, is worrisome. Be it Jamia, be it JNU. Students mustn’t face brutal force!
Let them be!
These goons must face action. They must be brought to time bound and swift justice.— Aaditya Thackeray (@AUThackeray) January 5, 2020
सवाल उठता है कि जिस शिव सेना को अरसे से सांप्रदायिक राजनीति के मामले में बीजेपी से भी ज्यादा आक्रामक माना जाता रहा है, वह अपने इस नए अवतार में कैसे फिट हो रही है? क्या ये महज राजनीतिक मैनेजमेंट है, क्योंकि शिव सेना इस समय कांग्रेस और एनसीपी के साथ साझा सरकार में है, या फिर शिव सेना सचमुच बदल रही है.
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शिवसेना में इस बदलाव को समझने के लिए राजनीतिक परिस्थिति के साथ, पार्टी के शिखर में हुए बदलाव को जानना जरूरी है. इस बदलाव के केंद्र में हैं आदित्य ठाकरे.
बदल रही है छवि
आदित्य ठाकरे के मुंबई के वर्ली इलाके से विधानसभा चुनाव लड़ने के साथ ही विधानसभा में ठाकरे परिवार का सीधा प्रवेश हुआ. अब आदित्य महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और उनके पिता राज्य के मुख्यमंत्री. बाल ठाकरे की तीसरी पीढ़ी के राजनीति में आने के साथ शिवसेना अपना चेहरा करीब उस रूप में सामने ला रही है, जिस रूप में बाल ठाकरे ने कभी कल्पना की थी. इस बदलाव में आदित्य ठाकरे की अहम भूमिका रही है. आदित्य को शिव सैनिक राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर भी देखने लगे थे, जो युवा सेना के प्रमुख भी हैं.
अगर हम हाल के वर्षों में शिवसेना के सियासी कदमों को देखें तो वह अपनी छवि लगातार बदल रही है. शिवसेना ने लगातार किसानों के मसले उठाए हैं. मजदूरों के मसले उठाए. वेलेंटाइन डे को निशाना न बनाकर उस पर तटस्थ रुख अपनाया और महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद वह मुख्यमंत्री पद के लिए अड़ गई. पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से अपने 35 साल पुराने रिश्ते खत्म कर लिए.
शिवसेना के संस्थापक बाला साहब 1971 में चुनावी राजनीति में उतरे, लेकिन सफलता नहीं मिली. शिवसेना ने 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल का समर्थन किया. 1977 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस का समर्थन किया. यहां तक कि 1979 में शिवसेना ने मुस्लिम लीग के साथ गठजोड़ भी किया. 1980 के चुनाव में शिवसेना चुनावी मैदान में नहीं उतरी, लेकिन महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले के साथ बेहतर संबंध होने के कारण बाला साहब ठाकरे ने कांग्रेस का समर्थन किया.
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1984 में जब शरद पवार ने कांग्रेस विरोधी महागठबंधन बनाया तो तमाम छोटे दलों को जोड़ा गया. उसमें भाजपा भी शामिल हुई. शरद पवार के गठबंधन में शिव सेना शामिल नहीं की गई, क्योंकि वह भी मराठा राजनीति कर रही थी. भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ समझौता कर 1984 के चुनाव में शिवसेना ने भाजपा के चुनाव चिह्न पर मनोहर जोशी सहित अपने 2 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. भाजपा और शिवसेना के बीच औपचारिक गठबंधन प्रमोद महाजन की कवायदों के बाद 1989 में हुआ.
भाजपा लगाती थी बाल ठाकरे के दरबार में हाजिरी
ठाकरे के दौर से ही महाराष्ट्र में शिव सेना का अपर हैंड रहा है और भाजपा दूसरे स्थान पर रहती थी. भाजपा के बड़े नेता बाल ठाकरे के दरबार में हाजिरी लगाते थे. अगर पार्टी को कोई समझौता करना होता था तो बातचीत के लिए मुंबई के ठाकरे के आवास मातोश्री जाना पड़ता था. लगातार 15 साल तक विपक्ष में रहने के बाद भाजपा पूरे महाराष्ट्र में चुनाव लड़ने के सपने देखने लगी. उस समय बाल ठाकरे भाजपा की महत्त्वाकांक्षा का मजाक बनाते हुए उसे कमलाबाई (भाजपा के चुनाव चिह्न कमल से लेकर) कहते थे और उनका कहना था कि कमलाबाई महाराष्ट्र में शिवसेना की वजह से ही फल फूल रही है.
शिवसेना अपने शुरुआती दिनों में महाराष्ट्र में मराठीभाषी लोगों के हक की बात करते थी और कभी गुजरातियों तो कभी दक्षिण भारतीय तो कभी उत्तर भारतीय लोगों को विरोधी के रूप में पेश करती थी.
शिवसेना की राजनीति में हिंदुत्व मूल रूप से भाजपा के साथ समझौते के बाद से आया. 2014 के लोकसभा चुनाव और भारत की केंद्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के उभार के बाद वह भारतीय जनता पार्टी से पिछड़ने लगी. 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार जरूर बनाई, लेकिन उसने सत्ता में रहते हुए अलग राह पकड़ लिया. शिव सेना ने 2014 से 19 के दौरान भाजपा के जूनियर पार्टनर रहते हुए लगातार सरकार का विरोध किया.
2016 आते-आते शिवसेना को समझ में आ गया कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मसले पर वह नरेंद्र मोदी के काल की भाजपा से बहुत पीछे छूट गई है. पार्टी ने 2016 से हिंदुत्व व राष्ट्रवाद के मसलों को पीछे छोड़ दिया. पार्टी के एजेंडे में किसान शामिल हो गए. यही वह साल है, जब बाला साहेब ठाकरे की तीसरी पीढ़ी के युवा आदित्य ठाकरे ने महाराष्ट्र की राजनीति में सीधे तौर पर दस्तक दी. 2016 में महाराष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था को लेकर नाखुशी जताते हुए शिव सेना ने आदित्य ठाकरे के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया. यह शिव सेना का बदला हुआ रुख था. 2016 में ही शिवसेना ने वामपंथी नेता पिनरई विजयन के सत्याग्रह का समर्थन किया और मुंबई में रिजर्व बैंक के सामने विरोध प्रदर्शन किया. इस बीच शिवसेना का पाकिस्तान का विरोध भी जारी रहा, लेकिन उसके एजेंडे में बदलाव आने लगे.
2017 में जब किसान हड़ताल पर थे तो शिवसेना किसानों के साथ आ गई. उसने किसानों की समस्या हल न किए जाने को लेकर सरकार से नाराजगी जताई और कैबिनेट की बैठक का बहिष्कार किया. उसके बाद पार्टी ने बढ़ती महंगाई दर और ईंधन के दाम में बढ़ोतरी को लेकर विरोध प्रदर्शन किया. किसानों के विरोध प्रदर्शन में भाजपा के उपेक्षित नेता यशवंत सिन्हा के साथ आने का समर्थन किया, और राज्य सरकार को चेतावनी दी. जैन साधु के शाकाहार के अभियान के खिलाफ प्रदर्शन किया.
शिवसेना में बदलाव
2018 आते आते शिवसेना विरोध के अपने सबसे प्रिय विषय वेलेंटाइन डे से दूर हो गई. पार्टी ने घोषणा की कि वह वेलेंटाइन डे मनाने को लेकर निरपेक्ष रुख अपनाएगी. यानी पार्टी न तो वेलेंटाइन डे का समर्थन करेगी, न विरोध करेगी. 2018 में भी किसानों का व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ. आदित्य ठाकरे ने विरोध प्रदर्शन करने वालों से मुलाकात की और किसानों को पार्टी का समर्थन दिया.
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2019 में शिवसेना पूरी तरह से सरकार के खिलाफ हो गई. यह बाल ठाकरे या उद्धव ठाकरे की शिवसेना नहीं थी. इसकी कमान आदित्य ठाकरे ने संभाल ली थी. मुंबई में आरे कॉलोनी में पेड़ों के कटने को लेकर आदित्य ने मोर्चा खोल दिया. किसानों को बीमा के पैसे का भुगतान न किए जाने को लेकर शिवसेना ने विरोध प्रदर्शन किया.
इन बदलावों से साफ नजर आता है कि शिव सेना में पीढ़ीगत बदलाव आ रहा है. पार्टी जहां हिंदुत्व का ब्रांड बना चुकी है और उस पर बहुत हल्का रुख अपना रही है, वहीं वह किसानों, युवाओं, पर्यावरण और शिक्षा जैसे मसलों पर मुखर हो रही है. इस पीढ़ीगत बदलाव में युवा नेता आदित्य ठाकरे की केंद्रीय भूमिका है, जिन्होंने 2015 में 25 साल की उम्र पूरी करने के पहले ही साफ कर दिया था कि पार्टी अब राष्ट्रीय दल बनने की ओर बढ़ रही है और वह तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्तार करेगी और उसके बाद अन्य राज्यों में जाएगी.
(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं.यह लेख उनका निजी विचार है.)