भारत में कोविड-19 महामारी अपनी दूसरी लहर के साथ कई ज़िंदगियों, खासकर गरीबों को तबाह कर रही है. 9 मई 2021 तक भारत में 22.6 करोड़ लोग कोविड से संक्रमित हो चुके थे और 2.4 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके थे. कई जानकारों का कहना है कि असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं. लोगों को वैक्सीन लगाने के आंकड़े भी उत्साहजनक नहीं हैं. 9 मई तक देश के 17 करोड़ लोगों यानी केवल 12.5 प्रतिशत आबादी को ही वैक्सीन की कम-से-कम एक खुराक दी जा सकी थी, और केवल 3.5 करोड़ लोगों यानी 2.6 प्रतिशत आबादी को ही वैक्सीन की पूरी खुराक दी जा सकी थी.
इस सबके बीच भारत की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था की कमजोरियां पूरी तरह उजागर हो गई हैं. यह व्यवस्था चरमरा चुकी है और वायरस के संक्रमण पर काबू पाना तथा लोगों की जान बचा पाना असंभव हो गया है.
उधर विशेषज्ञों का कहना है कि आगामी सप्ताहों में यह महामारी और गंभीर रूप ले सकती है. वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स ऐंड इवैलुएशन (आइएचएमई) ने अपने एक अध्ययन ‘कोविड-19 प्रोजेक्संस’ में कहा है कि इस साल 1 मई से 31 अगस्त के बीच 8.5 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा सकते हैं. इसमें आधार आंकड़ा कोविड से भारत में हुई कुल मौतों के घोषित आंकड़े पर नहीं बल्कि इंस्टीट्यूट के अपने अनुमान पर आधारित है. इस भीषण संकट से केवल व्यापक टीकाकरण अभियान चलाकर ही पार पाया जा सकता है. केवल यही कोविड की आशंकित तीसरी लहर को रोकने में मददगार साबित हो सकता है.
दोहरा झटका
देशभर से मिल रहे प्रमाण यही साबित कर रहे हैं कि आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना, जिसमें हजारों निजी अस्पतालों को शामिल किया गया था, बुरी तरह नाकाम रही है. निजी अस्पताल आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना वाले मरीजों को ‘जगह खाली नहीं’ बताकर भर्ती नहीं करते और ज्यादा पैसे देने वाले मरीजों को भर्ती कर लेते हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना वालों को 2 लाख रुपये की जो बीमा सुरक्षा देना का जो प्रावधान किया गया है उसका लाभ उन्हें मिल रहा है या नहीं.
कोविड महामारी ने स्वास्थ्य सुविधाओं पर विनाशकारी असर डाला है जिसके कारण कई लोग मारे जा रहे हैं. इसके अलावा लोगों की आजीविका भी इस तरह छिन रही है जैसे पहले कभी नहीं छिनी थी. ‘पीईडब्लू’ रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में गरीबी रेखा से नीचे की आबादी जनवरी 2020 के बाद एक साल में 6 करोड़ से बढ़कर 13.5 करोड़ पर पहुंच गई है. गौरतलब है कि देश में 2005 से 2015 के बीच करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ गए थे. कोविड की दूसरी लहर के कारण गरीबों की संख्या में भारी वृद्धि हो सकती है.
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केंद्र कर सकता है ये सात उपाय
नरेंद्र मोदी सरकार को, जो लापता जैसी लगती है और जिसकी आवाज़ केवल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में ही सुनाई देती है, व्यवस्था को अपने नियंत्रण में लेकर निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए ताकि कोविड की तीसरी लहर के रूप में आशंकित जो बड़ी त्रासदी देश को दहशत में डाले हुए है उसे रोका जा सके—
1.पहले की तरह, जब भारत सरकार ने सबका मुफ्त टीकाकरण करवाया था, इस बार भी कोविड वायरस के वैक्सीन हासिल करके राज्यों को उपलब्ध कराए. मोटा अनुमान बताता है कि पूरी आबादी का टीकाकरण करने पर केंद्र सरकार को 28,000 से लेकर 35,000 करोड़ रुपये तक खर्च (टीके की कीमत को लेकर सौदेबाजी के हिसाब से) आ सकता है. यह राशि इस साल के केंद्रीय बजट में आवंटित की जा चुकी है.
वैक्सीन पहुंचाने का खर्च राज्य उठाएंगे, इस तरह केंद्र इस अभिशाप से उबरने में सच्ची भागीदारी को बढ़ावा दे सकता है. इससे वैक्सीन की उपयुक्त कीमत भी तय हो सकेगी.
देश के हर जिले में ऑक्सीजन उत्पादन का एक संयंत्र लगाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ मिलकर तुरंत पहल करनी चाहिए. इन संयंत्रों से जिलों के निजी अस्पतालों और आसपास के अस्पतालों की जरूरत भी पूरी हो सकती है. केंद्र द्वारा समयबद्ध उगाही, जरूरी हो तो आयात के जरिए भी कीमतों को काबू में रखा जा सकता है और समय पर कार्रवाई की जा सकेगी.
2.देश में 18-44 आयुवर्ग वालों की आबादी करीब 50 करोड़ है, जिसके लिए वैक्सीन की 100 करोड़ खुराक की जरूरत होगी. महामारी पर जल्दी काबू पाने और इसकी तीसरी लहर को रोकने के लिए जरूरी है कि पूरा टीकाकरण कार्यक्रम अगले छह महीने में पूरा किया जाए. इसके लिए दोहरी रणनीति अपनानी पड़ेगी. सबसे पहले हमें उन सभी वैक्सीन के आयात की मंजूरी देनी चाहिए, जिन्हें नियमन के उच्च स्तर के तहत अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ में मंजूरी दी गई है; और जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर सुझाव दिया है, उन वैक्सीन के साथ स्थानीयता की कोई शर्त न जोड़ी जाए.
3. दूसरे, केंद्र पेटेंट एक्ट के तहत अनिवार्य लाइसेंस की आपात व्यवस्था का सहारा ले सकता है और सक्षम संयंत्रों को वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने की मंजूरी दे सकता है. अमेरिका ने कोविड-19 के वैक्सीनों को बौद्धिक संपदा अधिकारों (आइपीआर) से मुक्त करने के भारत तथा दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव का समर्थन किया है. जब भारत अनिवार्य लाइसेंसिंग का उपयोग करने की इच्छा करेगा तब डब्लूटीओ खुद आइपीआर की शर्त हटा सकता है. इससे वैक्सीन की खुराक समय पर और पर्याप्त संख्या में उपलब्ध होगी और प्रतिस्पर्द्धा के कारण उनकी कीमत कम भी होगी.
4.मोदी सरकार को चेचक, पोलियो और दूसरे टीकाकरण के जो अभियान पहले चले उनसे सबक लेकर राज्य सरकारों से मिलकर टीकाकरण का प्रोटोकॉल तय करना चाहिए, जैसा कि पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने कहा है, वैक्सीन पंजीकरण का सरकारी पोर्टल और ऐप ‘कोविन’ ‘काम नहीं करता और वह कोई समाधान नहीं है.’
कंप्यूटर, स्मार्टफोन और विश्वसनीय इन्टरनेट सेवा भारत में हर किसी को, खासकर गरीबों को उपलब्ध नहीं है और न ही उनमें पंजीकरण करवाने और अपनी बारी का इंतजार करने की क्षमता है. ‘कोविन’ जैसे काल्पनिक आइडिया को विफल होना ही था. टीकाकरण के लिए मिशन के तहत लोगों तक पहुंचना होगा. लोगों को टीकाकरण केंद्र तक लाने के लिए ‘आशा’ वर्करों और स्थानीय स्तर पर मेडिकल स्टाफ, राजस्व विभाग के कर्मचारियों और शिक्षकों की मदद लेनी होगी. तभी वायरस से सामुदायिक सुरक्षा के लिए छह महीने के अंदर पूर्ण टीकाकरण किया जा सकता है.
5.कोविड की दूसरी लहर से जिस भयावह रूप से लोगों की आजीविका, कामकाज और वेतन छिन रहा है, मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र तबाह हो रहे हैं उनके मद्देनजर गरीबों और बेरोजगारों को सीधे नकदी भुगतान की व्यवस्था दुरुस्त करनी पड़ेगी. अधिकतर विकसित देशों में बेरोजगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम चलाया जाता है. भारत में आज इसकी जरूरत सबसे ज्यादा है. सभी जन धन खातों में हर महीने अगर 5,000-6,000 रुपये जमा किए गए तो इससे गरीबों को तुरंत राहत मिलेगी और उनका कष्ट कुछ कम होगा. घटते मांग और उपभोग को भी इससे सहर मिलेगा, जिससे महामारी के बाद आर्थिक वृद्धि को गति मिलेगी.
6. केंद्र सरकार आयुष्मान भारत योजना की तुरंत पूर्ण जांच करवाए ताकि पता चले कि इससे गरीबों को वास्तव में लाभ मिल रहा है या नहीं. देश में, पेनेल में शामिल सभी बड़े निजी अस्पतालों की सरकारी और सामाजिक ऑडिट होनी चाहिए, जिसकी पक्की व्यवस्था देश में मौजूद है, ताकि पता चले कि इससे वास्तव में लाभ हुआ है या नहीं, और जिसे गरीबों के लिए दुनिया में सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना बताया जा रहा था वह कोविड के इम्तहान में सफल हुई या नहीं.
7.केंद्र सरकार बीमा नियमन एवं विकास प्राधिकरण (आइआरडीए) को यह जांच करने के निर्देश दे कि जन धन योजना के तहत 2 लाख की जो बीमा सुरक्षा देने का वादा किया गया था उसे बीमा कंपनियां लाभभोगियों को दे दे रही हैं या नहीं.
कार्रवाई करने का वक़्त आ गया है.
(डॉ. अरविंद मायाराम पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव और कट्स इंस्टीट्यूट फॉर रेगुलेशन एंड कॉम्पिटिशन के चेयरमैन हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)
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