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Friday, 22 November, 2024
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हम भारतीयों को स्मरण रहे, नेहरू ने सरदार पटेल की दो प्रतिमाओं का निर्माण कराया था

दोनों नेताओं के बीच स्वतंत्रता आंदोलन के सहयोगियों और महात्मा गांधी के अनुयायियों के तौर पर परस्पर सम्मान का भाव भी था.

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कल्पना करें कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सरदार वल्लभभाई पटेल की एक आवक्ष प्रतिमा का अनावरण कर रहे हैं और उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय की आधारशिला रख रहे हैं. वो भी तब जबकि सरदार पटेल जीवित थे और तमाम आपसी मतभेदों के बावजूद नेहरू के सक्रिय सहयोगी थे. पर नेहरू और पटेल को लेकर सोशल मीडिया पर ज़हरीले दुष्प्रचार के मौजूदा माहौल में ऐसी घटनाएं मायने नहीं रखतीं. इसलिए इन्हें याद किए जाने या इन्हें प्रचारित किए जाने की संभावना नहीं के बराबर है.

हां, पटेल और नेहरू में मतभेद थे. अहम मसलों पर उनके विचार अलग, और कभी-कभी विपरीत हुआ करते थे. एकाधिक बार उन्होंने अलग राह पकड़ने की भी सोची. भाजपा-आरएसएस से जुड़े समूह इस तथ्य का हद से ज़्यादा इस्तेमाल कर चुके हैं. पर यही पूरी कहानी नहीं थी. दोनों नेताओं के बीच स्वतंत्रता आंदोलन के सहयोगियों और महात्मा गांधी के अनुयायियों के तौर पर परस्पर सम्मान का भाव भी था.

भारत में व्हाट्सएप के उपभोक्ताओं को यह जानकर आश्चर्य हो कि नेहरू ने गोधरा के बीचोंबीच सरदार पटेल की आवक्ष कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया था. अपने भाषण में उन्होंने सरदार की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी, ‘सरदार पटेल एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी हैं… स्वतंत्रता हासिल करने के बाद, वह अब इसे कायम रखने के लिए प्रयासरत हैं. उन्होंने भारत के मानचित्र को बदल कर रख दिया है.’ (‘मेंटेन सेक्युलर नेचर ऑफ स्टेट’, टाइम्स ऑफ इंडिया, 14 फरवरी 1949, पृ.1) उन्होंने ‘कुछ लोगों के इस विचार को भी खारिज कर दिया कि उनके बीच परस्पर तालमेल नहीं है.’ उन्होंने कहा कि ‘शायद ही कोई दिन या रात बीते हों जब उन्होंने (नेहरू) सरदार से सलाह-मशविरा नहीं किया.’

इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए नेहरू ने कहा कि उन्हें भाषण देते हुए असहजता महसूस हो रही है क्योंकि ‘उनका सरदार पटेल के साथ विगत 30 वर्षों का संबंध करीबी और अंतरंग रहा है… दोनों ने, संयुक्त रूप से, बंटवारे और अन्य अहम मुद्दों पर बड़े-बड़े फैसले किए हैं.’ (उसी समाचार रिपोर्ट से.)

प्रतीकात्मक तस्वीर : खांडूभाई परमार

गोधरा वह जगह थी जहां सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी वकालत शुरू की थी. प्रतिमा के अनावरण के बाद नेहरू ने टाउनहॉल की भी नींव रखी. अंतत:, यह ‘जनता से एकत्रित दो लाख रुपये’ से निर्मित हुआ और तत्कालीन रेल मंत्री लालबहादुर शास्त्री ने सरदार पटेल के जन्मदिन 31 अक्तूबर 1954 को इसका उद्घाटन किया. (न्यू टाउनहॉल ओपेन्ड, टाइम्स ऑफ इंडिया, 1 नवंबर 1954, पृ.9)

एक विशेष ट्रेन पर आणंद से गोधरा जाने से पहले, प्रधानमंत्री नेहरू ने उसी दिन सरदार के नाम पर एक विश्वविद्यालय नगर वल्लभ विद्यानगर की आधारशिला रखी. समाचार रिपोर्ट के अनुसार, ‘प्रधानमंत्री वल्लभ विद्यानगर में किए गए बढ़िया काम को देखकर सचमुच में बहुत खुश थे… उन्हें प्रसन्नता थी कि वल्लभ विद्यानगर… भारतीय युवाओं के लिए अवसर प्रदान करेगा ताकि वे ना सिर्फ पढ़ाई करते हुए अपनी आजीविका कमा सकें बल्कि काम के ज़रिए व्यावहारिक कुशलता भी हासिल कर सकें.’ (इम्पॉर्टेंट रोल ऑफ रूरल यूनिवर्सिटीज़ इन इंडिया, टाइम्स ऑफ इंडिया, 15 फरवरी 1949, पृ.9)


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नेहरू ने सरदार पटेल की मौत के बाद उनकी एक और प्रतिमा का अनावरण किया. बड़ौदा की यात्रा के दौरान 7 दिसंबर 1952 को उन्होंने ‘इलेक्ट्रिक बटन दबाकर सरदार वल्लभभाई पटेल की एक आवक्ष कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया. यह प्रतिमा कांग्रेस पार्टी के स्थानीय कार्यालय सरदार भवन में स्थापित की गई थी.’ (सरदार्स बस्ट अनविल्ड, 8 दिसंबर 1952, पृ.9)

और, सरदार पटेल भी नेहरू की प्रशंसा करने में, यदि अधिक नहीं तो, समान उदारता दिखाते थे. नेहरू के 59वें जन्मदिन पर पटेल ने संविधान सभा में कहा, ‘महात्मा गांधी ने पंडित नेहरू को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी चुना और यह देखकर बहुत संतोष होता है कि सही व्यक्ति को चुना गया.’ पटेल ने आगे कहा, ‘नेहरू सच्चे अर्थों में गांधीजी के आदर्शों का पालन करते हैं और उन्होंने विश्व के राष्ट्रों के बीच भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई है.’ उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि वे ‘भाइयों की तरह हैं और 30 वर्षों से अधिक समय से सहयोगी हैं.’ नेहरू ने बदले में पटेल की तारीफ करते हुए कहा, ‘सरदार पटेल के स्नेह और सलाह के बिना, वह राजकाज नहीं चला पाते.’ (ट्रु डिसाइपल ऑफ महात्मा, टाइम्स ऑफ इंडिया, 15 नवंबर 1948, पृ.9)

इसके बाद बड़ा ही भावनात्मक दृश्य दिखा. दो नेता ‘पंडित नेहरू को माला पहनाने के लिए उठे. सरदार पटेल ने उनसे माला ले लिया और अपने हाथों से पंडित नेहरू को माला पहनाया और उन्हें गले लगाया.’ (उसी रिपोर्ट से.)

सरदार पटेल की पुत्री मणिबेन पटेल, जो उनकी सचिव की भूमिका भी निभाती थी, ने दोनों के बीच के संबंधों के बारे में लिखा है जब दोनों यॉर्क रोड पर रहते थे. ‘जिन दिनों वे एक-दूसरे के सामने रहा करते थे, शायद ही कोई दिन बीता हो जब उनकी मुलाक़ात नहीं हुई. दोपहर एक बजे लंच के लिए घर आते वक़्त या वापस ऑफिस जाते समय या रात को, जवाहारलालजी घर आते थे. दोनों बातें करते, फिर सरदार बातें करते-करते उन्हें गेट तक छोड़ने जाते और कई बार वह उनके साथ (पंडित नेहरू के) घर तक जाते.’ (मणिबेन का लेख, सरदार: सेंटेनरी मेमोरियल वॉल्युम, सं. जसवंत शेखड़ीवाला, सरदार पटेल विश्वविद्यालय, पृ.94)

मणिबेन पटेल ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि ‘जब जवाहरलाल जी यॉर्क रोड से जाकर तीन मूर्ति में रहने लगे तो कुछ विघ्नसंतोषी चापलूसों ने दोनों के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिशें की.’

हालांकि, पटेल-नेहरू मतभेदों की चर्चा कर भाजपा और आरएसएस ने खूब राजनीतिक हित साधे हैं. लंबे समय तक पटेल से किनारा कर कांग्रेस ने भी कथित मतभेदों की कहानी में योगदान दिया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटित नवनिर्मित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को लेकर उत्साह के इस माहौल में, गोधरा और बड़ौदा में नेहरू निर्मित सरदार की प्रतिमाओं का स्मरण करना ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है.

(उर्विश कोठारी अहमदाबाद स्थित वरिष्ठ स्तंभकार और लेखक हैं)

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