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Monday, 23 December, 2024
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सावरकर की महानता सिर्फ बीजेपी ने ही नहीं, कांग्रेस ने भी स्थापित की है

ये ऐतिहासिक तथ्य है और इस पर इतिहासकारों के बीच कोई विवाद नहीं है कि अंडमान की सेल्युलर जेल में रहते हुए सावरकर ने 1911 से 1924 के बीच अंग्रेज अधिकारियों को 5 माफीनामा लिखे.

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अगर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ये विवाद न छेड़ा होता, तो ज्य़ादातर लोगों के लिए विनायक दामोदर सावरकर की विरासत बेदाग और अविवादित बनी रह जाती. सावरकर हिंदुत्व की विचारधारा के सबसे चमकते सितारे हैं. ये बात आज और भी महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि देश पर इस विचारधारा को मानने वाले दल का शासन है. यही नहीं, विपक्षी दल, जो पहले शासक दल हुआ करते थे, भी आम तौर पर सावरकर को लेकर निंदा या आलोचना के स्वर में कम ही बोलते हैं. आखिर इतना तो सच है कि सावरकर ने अंग्रेजों की जेल और वह भी कालापानी में लंबा समय बिताया था. किसी व्यक्ति की महानता को स्थापित करने के लिए इतना कारण कम नहीं है!

ये ऐतिहासिक तथ्य है और इस पर इतिहासकारों के बीच कोई विवाद नहीं है कि अंडमान की सेल्युलर जेल में रहते हुए सावरकर ने 1911 से 1924 के बीच अंग्रेज अधिकारियों को 5 माफीनामा लिखे. लेकिन ये बात आम तौर पर ज्यादा कही नहीं जाती है. इसकी चर्चा अक्सर आरोप और प्रत्यारोप की शक्ल में होती है और सावरकर समर्थक आसानी से कह देते थे कि ये सब अफवाह है.

वे ऐसा इसलिए भी कह पाते थे क्योंकि भारत के लोग आम तौर पर इतिहास स्कूल की किताबों और कॉमिक्स की बुक से या गल्प यानी कहानी यी टीवी सीरियल तथा फिल्मों की शक्ल में सीखते हैं. स्कूल ही नहीं, कॉलेज के टेक्स्ट बुक भी स्वतंत्रता आंदोलन के अध्याय में जब सावरकर का जिक्र करते हैं तो माफीनामे वाली बात उसमें लिखी नहीं होती. मुझे आज तक किसी स्कूल या बीएस स्तर तक की इतिहास की किताबों में सावरकर के माफीनामे का जिक्र नहीं मिला. (अगर इससे अलग कोई तथ्य समाने आए तो मैं इस लेख को सुधार लूंगा.) सावरकर इन किताबों में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने की क्रांतिकारियों की योजनाओं के अगुवा के रूप में सामने आते हैं, जिन्हें ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और जिन्होंने काला पानी के जेल में खूब यातनाएं सहीं.


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महानायक के रूप में सावरकर की स्थापना

इतिहास-बोध का दूसरा स्रोत घर-घर में लोकप्रिय अमर चित्र कथा जैसी कॉमिक्स बुक और टीवी सीरियल-फिल्म आदि होते हैं. अमर चित्र कथा ने सावरकर की जीवनी पर कॉमिक्स बुक छापी है, लेकिन उसकी भूमिका में ही लिखा है कि यह सावरकर की अपनी लिखी हुई किताब पर आधारित है, इसलिए जाहिर है कि इसमें सावरकर की वीरता का ही बखान है और माफीनामे की बात इसमें नहीं है. इस किताब के परिचय में लिखा गया है कि – क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए जितने कष्ट सहे और जितना त्याग किया, उसके बारे में इतिहास की कोई किताब नहीं बताती. सेल्युलर जेल में बंद कई क्रांतिकारी पागल हो गए और कुछ ने आत्महत्या भी कर ली. लेकिन सावरकर न टूटे न झुके. वे मानवीय गरिमा और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे.’

यहां तक कि पोर्ट ब्लेयर की सेल्युलर जेल में पर्यटकों के लिए आयोजित होने वाले लाइट और साउंड प्रोग्राम में सावरकर का जिक्र एक बहादुर क्रांतिकारी के रूप में ही आता है और ये तो बताया जाता है कि वे जेल से छूट गए, लेकिन इसके लिए उन्होंने जो प्रयास किए, वह कार्यक्रम के दौरान नहीं बताया जाता.

अब जिस देश में इतिहास का ऐसा सेलेक्टिव पाठ होगा, वहां जब रक्षा मंत्री किसी भी संदर्भ में कहे कि सावरकर ने माफी मांगी थी, तो ये एक तरह से सावरकर के प्रति किया हुआ अपराध ही कहलाएगा. राजनाथ सिंह के बयान की वजह से इतिहास के मूल स्रोत फिर से खंगाले जा रहे हैं और नए सिरे से ये बात स्थापित हो रही है कि बाकी सब तो ठीक है, पर सावरकर ने माफी तो मांगी ही थी. सैकड़ों क्रांतिकारी फांसी पर झूल गए, लेकिन उन्होंने ये रास्ता नहीं अपनाया. सबसे बुरा ये माना जाएगा कि सोशल मीडिया के जमाने में ये बात और राजनाथ सिंह का बयान करोड़ों घरों तक पहुंच रहा है और चौराहों पर सावरकर के माफीनामे की चर्चा हो रही है.

सावरकर की सर्व स्वीकार्यता

सावरकर की महानता लोक में सिर्फ इसलिए स्थापित नहीं है कि किताबें उनकी जिंदगी के सिर्फ गौरवशाली पन्नों का बखान कर रही हैं या कि सरकारी कार्यक्रमों में उनके बारे में सिर्फ चुनी हुई बातें बताई जाती हैं. वैसे तो कहा जाता है कि सावरकर हिंदुत्ववादी राजनीति के प्रतीक पुरुष हैं और उनके चाहने वाले बीजेपी-आरएसएस में ज्यादा हैं. लेकिन ये भारतीय राजनीति का पूर्ण सत्य नहीं है.

सावरकर बीजेपी के पहली बार सत्ता में आने से पहले ही सरकारों द्वारा जनमानस में महानायक के तौर पर स्थापित किए जा चुके थे. सावरकर के निधन पर खुद इंदिरा गांधी ने शोक जताया था और 1970 में उनकी याद में भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया था. इंदिरा गांधी ने सावरकर की सार्वजनिक प्रशंसा की थी तो इसकी वजह ये रही होगी कि कांग्रेस आजादी के आंदोलन के हर प्रतीक को अपने अंदर समाहित करके रखना चाहती थी और आरएसस-जनसंघ सावरकर को अपने साथ जोड़ लें, ऐसी गुंजाइश वे रखने नहीं देना चाहती थीं. बेशक वे ऐसा कर पाईं, लेकिन इस क्रम में सावरकर लोक में स्थापित हो गए, जो अन्यथा संभव नहीं था.

ये नहीं भूलना चाहिए कि गांधी की हत्या के षड्यंत्र के केस में सावरकर भी अभियुक्त थे, पर सबूतों के अभाव में वे छूट गए. सावरकर इसके बाद गुमनामी या बदनामी के शिकार बन कर रह जाते, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें फिर से स्थापित कर दिया. ताजा इतिहास को लें तो मनमोहन सिंह ने कहा था कि कांग्रेस सावरकर के खिलाफ नहीं है, लेकिन उनकी हिंदुत्व की विचारधारा का कांग्रेस विरोध करती है. यानी स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर सावरकर की भूमिका कांग्रेस को स्वीकार्य है. राहुल गांधी दरअसल कांग्रेस के पहले बड़े नेता हैं, जिन्होंने सावरकर को आलोचनात्मक नजरिए से देखा है. ये कांग्रेस की अब तक की परंपरा के अनुरूप नहीं है.

जहां तक टेक्स्ट बुक की बात है तो कांग्रेस के दौर में लिखी गई किताबें अगर सावरकर को नाय़क के रूप में प्रस्तुत कर रही थीं, तो ये कांग्रेस की राजनीति के तहत ही था.


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भारत में इतिहास लेखन की समस्या और सावरकर का चित्रण

भारत में आधुनिक इतिहास को जिस तरह से लिखा गया और जिस तरह से पढ़ाया गया, उसमें दो विचार प्रमुख हैं. एक तो ब्रिटिश राज के खिलाफ हुआ संघर्ष और हिंदू-मुस्लिम समस्या तथा भारत का विभाजन. दरअसल भारत का विचार यानी आईडिया ऑफ इंडिया के भी यही दो प्रमुख तंतु हैं. इसमें इतिहास को काफी एकरेखीय यानी लीनियर तरीके से देखा गया है.

भारत की कहानी कुछ इस तरह बताई जाती है- हिमालय के दक्षिण और समुद्र से उत्तर के भूभाग में अनादि काल से भारत नाम का एक राष्ट्र था. इस राष्ट्र का हजारों साल का इतिहास है. इसकी अपनी संस्कृति और धर्म है. यहां तमाम राजा-महाराज आते जाते रहे. इस अखंड इतिहास में पहला व्यतिक्रम या उथल-पुथल तब आई तब पश्चिमोत्तर सीमा से मुसलमान शासक भारत आ गए. लेकिन उन शासकों में अकबर जैसा बादशाह भी हुआ जो सबको साथ लेकर चलता था. फिर अंग्रेज आ गए. उन्होंने भारत को खूब लूटा और भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की. फिर 1857 में आजादी का संग्राम हुआ, जिसमें हम जीत नहीं पाए, फिर एक महामानव गांधी का अवतरण हुआ, जिसने भारत के लोगों को जगा दिया और हिंदू-मुसलमानों में एकता कायम करके आजादी की लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों को खदेड़ दिया. गड़बड़ी सिर्फ ये हो गई कि अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति का फायदा उठाकर मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत में फूट डाल दी और इसकी वजह से देश विभाजित हो गया.

इतिहास को इस तरह से पढ़ने-पढ़ाने को लेकर सेक्युलर-कम्युनल, कांग्रेस-भाजपाई-वामपंथी हर तरह के इतिहासकारों में आम तौर पर सहमति है.

इतिहास की ऐसी इकहरी व्याख्या जब प्रभावी हो तो सावरकर को लेकर एक समग्र दृष्टिकोण, जिसमें उनके जीवन के दोनों या उससे भी ज्यादा पक्ष सामने आते, को अपना पाना आसान नहीं है. इसलिए बीजेपी और आरएसएस के लिए आज बहुत आसान हो गया है सावरकर को नए सिरे से स्थापित किया जाए और इसके लिए गांधी का इस्तेमाल किया जाए. अगर गांधी महान हैं और गांधी के कहने पर सावरकर ने माफी माफी तो फिर ऐसा कैसे कहा जा सकता कि माफी मांगने से सावरकर की महानता खंडित हो गई. ये कहने का अर्थ होगा कि गांधी भी महान नहीं थे, तभी तो क्रांतिकारियों को सलाह देते थे कि अंग्रेजों से माफी मांग लो.

अब जब गांधी को बिना किसी आलोचनात्मक नजरिए के भक्ति भाव से महान मान लिया गया. तो फिर सावरकर की इस बात के लिए आलोचना कैसे हो सकती है कि उन्होंने गांधी के कहने पर माफी मांग ली!

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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