scorecardresearch
Thursday, 28 March, 2024
होममत-विमतपैरों की धुलाई नहीं चाहिए, सीवर में मरने वालों को मिले शहीद का दर्जा

पैरों की धुलाई नहीं चाहिए, सीवर में मरने वालों को मिले शहीद का दर्जा

सीवर में जान जाने का खतरा बॉर्डर से कम नहीं. देश के लिए सफाई का काम जरूरी भी है, वरना हर साल लाखों लोग बीमारी से मर जाएंगे. मोदी को सफाईकर्मियों के पैर धोने की जगह, उन्हें सम्मानजनक जिंदगी का हक देना चाहिए.

Text Size:

कुंभ में लाखों लोगों का मजमा जुट ही नहीं पाता, अगर नाम मात्र के वेतन पर काम करने वाले सफाईकर्मियों ने अपना काम न किया होता. 8,000 से ज्यादा सफाईकर्मी सपरिवार पिछले 3 महीने से कुंभ को स्वच्छ रखे हुए हैं, जिनको मात्र 250 से 315 रुपए दिहाड़ी दी जा रही है. अच्छा होता यदि इन मजदूरों व इनके बच्चों के रहन-सहन की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाएं, उचित सम्मान व मजदूरी दी जाती! लेकिन इसके बदले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच सफाईकर्मियों के पैर धोने की औपचारिकता निभा दी.

एक बार फिर सोचिए कि अगर ये सफाईकर्मी न होते तो कुंभ का क्या होता. कुंभ में हर दिन हजारों क्विंटल कचरा पैदा हुआ. यदि ये सफाईकर्मी वहां न होते तो पूरी कुंभ नगरी कचरे से बजबजा रही होती और ढेरों लोग बीमार होकर मर गए होते. सफाईकर्मियों के इस काम के लिए देश को उनका आभारी होना चाहिए. लेकिन आभार जताने का एक सलीका होता है. और फिर सिर्फ आभार जताने से क्या होता है? क्या प्रधानमंत्री ने इन सफाईकर्मियों के साथ न्याय किया?


यह भी पढ़ेंः समानता और स्वच्छता के पहले प्रतीक गांधी नहीं, संत गाडगे हैं!


अतिथि या किसी गुरुजन के पैर कई लोग धोते हैं. अगर ये किसी के लिए आस्था की बात है तो इसमें कोई बुराई नहीं है. दिक्कत है तो केवल ये कि माननीय प्रधानमंत्री ने सफाईकर्मियों का स्वागत केवल चरण धोकर किया है, जबकि शास्त्रीय परम्परा में तो अतिथि को सर्वस्व प्रदान करने की बात कही गयी है. और फिर सफाईकर्मियों को तो सर्वस्व चाहिए भी नहीं. उनको तो मानवीय गरिमा और जीवन की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति चाहिए.

एक ओर तो स्वच्छ भारत के नाम पर विज्ञापनों में अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गटर की सफाई के दौरान मरने वालों के परिजनों को न्यूनतम सुविधा और पर्याप्त मुआवजा भी नहीं दिया जाता. सुप्रीम कोर्ट का उनके बारे में दिया गया निर्णय और मैनुअल स्कैवेंजिंग प्रोहिबिशन एक्ट भी लागू नहीं किया गया. किसी तरह की तकनीकी सुविधा उनको गटर में उतराने से पहले नहीं दी जाती. केवल आधी बोतल शराब और सिर पर मसलने के लिए उन्हें तेल दे दिया जाता है. कई बार वे जीवित अंदर जाते हैं और उनकी लाश ही बाहर आती है. अंदर की जहरीली गैस उनकी जान ले लेती है. कई बार गटर में उनका दम घुट जाता है. कई बार उनको लकवा मार जाता है.

क्या ये स्वच्छ भारत अभियान में नहीं आता था कि सफाईकर्मियों को आधुनिक तकनीकी यंत्र उपलब्ध करा दिए जाएं, ताकि उन्हें खुद सीवर के अंदर न जाना पड़े? ये मशीनें काफी समय से उपलब्ध हैं. हम आज विश्व की प्रमुख शक्ति बनने जा रहे हैं. तकनीकी ज्ञान में हमने तरक्क़ी कर ली है. लेकिन इन सफ़ाई कर्मचारियों की असमय मौतों को रोकने का बंदोबस्त हम नहीं कर पा रहे हैं. यहां तक कि उनका हमारे पास कोई आंकड़ा तक नहीं है. ये देखने वाला कोई नहीं है कि गटर में मरने वालों के परिवार की क्या हालत होती है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

सबसे बड़ा सवाल यह है कि सीवर में लगातार हो रही मौत को रोकने के लिए बेहतर तकनीक का प्रयोग क्यों नहीं किया जा रहा है? ऐसा बिल्कुल संभव है कि वर्तमान में सफाई के काम में लगे लोगों को सरकार मुफ्त में उपकरण उपलब्ध कराए, ताकि उनका रोजगार मशीनीकरण के कारण खत्म न हो जाए. उन्हें ठेके पर रखना बंद होना चाहिए. स्थायी नौकरी होने पर ही वे अच्छा वेतन पाएंगे और अपने बच्चों को इस धंधे से निकालने के लिए शिक्षा दे पाएंगे.

प्रधानमंत्री जी और सरकार ने अगर उनकी थोड़ी भी सुध ली होती और अपने राजधर्म का पालन इनके प्रति भी किया होता तो इनके चरण धोने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. ऐसे भी ये समुदाय सिर्फ प्यार का नाटक दिखाने और वादे कर देने भर से सरकार के पीछे चल देता है. गांधी ने कुछ रातें एक वाल्मीकि बस्ती में बिता लीं, तो इसके बदले में ये समुदाय बरसों तक कांग्रेस के पीछे चलता रहा.

लेकिन आज स्थिति बदल गयी है. 2019 का दलित और सफाईकर्मी सिर्फ वादों से संतुष्ट होने वाला नहीं है. उसे आज अधिकार चाहिए, सम्मान चाहिए और गरिमापूर्ण जीवन चाहिए. इसलिए मोदी जी, कृपया प्रतीकों से ऊपर उठिए. उन्हें वे सुविधाएं दीजिए जो देश के लिए शहीद होने वालों को दी जाती है. सफाईकर्मियों की मौत सस्ती नहीं है. आवश्यक है कि हर सफाईकर्मी का लेखा-जोखा हो और सीवर में होने वाली हर मौत का हिसाब रखा जाए.


यह भी पढ़ेंः जंतर मंतर से सीवर कर्मियों की पुकार, ‘हमें पूजने से पहले दीजिए जीने का अधिकार’


ऐसा नियम बनाया जाए कि कोई भी विभाग या व्यक्ति या संस्था किसी को भी मेनहोल या सीवर में बिना उपकरणों के नहीं उतारेंगे. उनके साथ कोई हादसा होता है तो ये उस सरकार की ज़िम्मेदारी है. इस बात का सर्वे होना चाहिए कि क्यों और कैसे ये लोग ऐसा काम करने पर मजबूर होते हैं. स्वच्छ भारत अभियान के बजट का एक हिस्सा सफाईकर्मियों की जीवन दशा सुधारने में खर्च किया जाए.

आदरणीय प्रधान मंत्री जी, आप अतिथि सत्कार की सनातन धर्म की परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं. साथ ही साथ राजधर्म का भी निर्वाह करते तो बेहतर रहता. माननीय प्रधानमंत्री से गुजारिश है कि सफाईकर्मियों के बारे में 2013 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को हर राज्य में लागू कराएं.

(डॉक्टर कौशल पवार दिल्ली यूनिवर्सिटी में संस्कृत की शिक्षिका हैं. आमिर खान के शो सत्यमेव जयते में उनकी जिंदगी की कहानी बताई गई थी.)

share & View comments