इस कहानी का आजादी के अमृत महोत्सव से कोई लेना देना नहीं है. यह सन् 2013 की गर्मियां थी. प्रोफेसर जीडी अग्रवाल यानी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी की कार्यशैली से निराश थे. उन्होंने इसके अधिकारियों की बर्खास्तगी और निर्माणाधीन बांधों को निरस्त करने की मांग को लेकर अनशन शुरु कर दिया. अब तक उन्होंने जितने भी अनशन किए थे, सभी में उन्हें पूरी या आंशिक सफलता प्राप्त हुई थी. पिछले साल 2012 में ही यूपीए सरकार को दबाव में लाकर उन्होंने 600 मेगावाट की लोहारी नागपाला परियोजना को बंद करा दिया था.
2013 के अनशन को सौ दिन से ज्यादा हो गए, ऐसे में सरकार की ओर से एक दल सानंद से मिला और उनसे कहा कि वे अपना अनशन त्याग दें क्योंकि आम चुनावों की घोषणा होने वाली है और सरकार चाह कर भी उनकी मांगों को नहीं मान सकती. सानंद इन तर्कों से सहमत नहीं हुए और सरकारी रवैये से निराश हो गए. नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से वे भी प्रभावित थे और चाहते थे देश में बदलाव हो ताकि निर्णय लिए जा सकें. आखिर गुजरात के मुख्यमंत्री ने उनके समर्थन और स्वास्थ्य की चिंता में केंद्र पर काफी दबाव बनाया था.
मोदी सरकार से थीं उम्मीदें
11 अक्टूबर 2013, यह तारीख बेहद महत्वपूर्ण है. इसी दिन मुझसे सानंद ने कहा था – ‘अभय, मुझे निराशा होती है, मेरे चारों और कॉम्पिटेंट (सक्षम) लोग है लेकिन उनमें कमिटमेंट (प्रतिबद्धता) नहीं है. इस सरकार से कोई उम्मीद नहीं है, मैं नई सरकार का इंतजार करूंगा, अब वही गंगा के अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करेगी.’
इसके बाद उन्होने अनशन समाप्त कर दिया.
2014 में आम चुनाव हुए और भारतीय जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई. प्रधानमंत्री वाराणसी से सांसद बने रहना स्वीकार किया और बड़ोदरा सीट से इस्तीफा दे दिया. पहली बार वाराणसी गंगा किनारे पहुंचे मोदी ने अपना ऐतिहासिक बयान दिया – ‘मैं आया नहीं, मुझे गंगा ने बुलाया है.’ इसके बाद नई सरकार ने गंगा पर एक नए मंत्रालय की स्थापना कर दी. गंगा संरक्षण मंत्रालय की पहली मंत्री बनाई गई साध्वी उमा भारती. स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद सरकार की इस पहल पर प्रसन्न हुए.
सारा देश गंगा के अविरल और निर्मल प्रवाह के प्रति आश्वस्त था.
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सरकार को लिखे पत्र में थीं चार मांगें
सानंद ने अनशन का विचार त्याग दिया और सरकार को पत्र लिखा. चार मुद्दे थे जिन पर सानंद निर्णय चाहते थे.
गंगा पर जारी निर्माणाधीन बांध परियोजनाएं रोकी जाए ताकि गंगा अविरल बहे. गंगा संरक्षण बिल संसद में पेश हो. गंगा परिषद का गठन होना चाहिए जिसमें नागरिक समाज और सरकारी अधिकारी शामिल हो, यह परिषद उच्चाधिकार प्राप्त होगा. गंगा पर खनन नीति बनाई जाए और हरिद्वार में अवैध खनन पर तुरंत रोक लगे.
उमा भारती ने सानंद को कहा कि इन कामों को करने में कोई अड़चन नहीं है, हम जल्दी ही करेंगे. इंतजार लंबा हो गया, उमा भारती हर तीन महीने में नई तारीख देने लगी. ‘गंगा हमारी मां है, हमारा वादा है फलां साल के फलां महीने तक गंगा अविरल और निर्मल हो जाएगी.’
2014 बीत गया, 15, 16, 17 भी बीत गया. गंगा पर सिर्फ बयान बाजी हो रही थी. सरकार ने सानंद के पत्रों को जवाब देना बंद कर दिया, फिर उन्हे पत्रों की पावती देना भी थम गया. सानंद का सब्र चुक गया.
उमा भारती के बाद नितिन गडकरी को मिली गंगा मंत्रालय की जिम्मेदारी
केंद्र में एक अलग ही राजनीति चल रही थी. सानंद ने तय किया वे अनशन करेंगे. इस बीच उमा भारती को गंगा मंत्रालय से हटा दिया गया और यह जिम्मेदारी नए उभरते विकास पुरूष नितिन गडकरी को सौंप दी गई.
साल 2018 शुरु हो गया था और सानंद ने सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और इससे प्रधानमंत्री के अहम को चोट लगी. पत्र लिखने से नहीं, पत्र के मजमून से. पत्र के शुरुआत में सानंद ने प्रधानमंत्री को छोटा भाई लिखा और गंगा के मुद्दे पर खुद को प्रधानमंत्री से ज्यादा जानकार बताया. खुद के लिए ‘तुम’ शब्द का संबोधन और गंगा की संवेदनशीलता समझाने की कोशिश प्रधानमंत्री को रास नहीं आई.
सानंद ने आमरण अनशन करने की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा- यह सरकार पिछली सरकार से भी ज्यादा असंवेदनशील है. 22 जून 2018 गंगा अवतरण दिवस पर सानंद ने अपनी चार मांगों के पूरा होने तक आमरण अनशन शुरु कर दिया.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने मेल-मिलाप की कोशिशें तेज कर दीं, सब जानते थे कि सानंद और मोदी दोनों ही जिद्दी हैं. लेकिन सानंद की जान बचाना जरूरी है. संघ की ओर से कृष्ण गोपाल जी बात कर रहे थे लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल रहा था. सरकार बात नहीं कर रही थी और सानंद गंगा के लिए ठोस निर्णय चाहते थे.
अनशन चल रहा था. ग्रेटा थनबर्ग पर निहाल भारतीय मीडिया को सानंद नजर आने बंद हो गए. कोई भी साहेब को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहता था. इस बीच उमा भारती सानंद से मिलने पहुंचीं और फोन पर उनकी बात गंगा सरंक्षण मंत्री नितिन गडकरी से कराई. दो मिनट की इस बातचीत में नितिन गडकरी ने सानंद से कहा – आपको जो करना है कीजिए. दोनों के बीच इस वार्तालाप का ऑडियो सोशल मीडिया पर लीक हो गया. इस लीकेज के बाद नितिन गडकरी को लगा कि सानंद के इस आमरण अनशन के पीछे उमा भारती का ही हाथ है. फोन पर बातचीत भी उमा भारती के फोन से हुई थी क्योंकि सानंद अपने साथ मोबाइल नहीं रखते थे.
9 अक्टूबर को पीएम को लिखा आखिरी पत्र
सारी बातचीत फेल हो गई. सानंद ने खुद को आखिरी लड़ाई के लिए तैयार किया और 9 अक्टूबर से पानी छोड़ने की घोषणा कर दी. लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई. यहां तक की संघ की कोशिशें बेकार साबित हुई.
9 अक्टूबर की सुबह सानंद ने प्रधानमंत्री को आखिरी पत्र लिखा – जिसका मजमून था कि मैं भगवान राम के दरबार में जाकर आपकी शिकायत करूंगा.
पीएमओ कोई भी जवाब देने को तैयार नहीं था.
10 अक्टूबर की सुबह उनकी हालत बिगड़ गई. उन्हें प्रशासन ने ज़बरदस्ती ऋषिकेश एम्स में भर्ती करा दिया.
अनशन के 112वें दिन 11 अक्टूबर 2018 को सूचना आ गई- जीडी अग्रवाल नहीं रहे. इसे दुर्योग कह लीजिए कि 2013 में आज ही के दिन उन्होंने मोदी सरकार के इंतजार की बात की थी. हड़बड़ी में सरकार ने गंगा पर मिनिमम इनवारयमेंट फ्लो के लिए नोटिफिकेशन जारी कर दिया.
इस नोटिफिकेशन को ऐसे दिखाया गया मानों यह अग्रवाल के रहते जारी किया गया था, यानी सरकार ने मांगें मान ली थीं पर अग्रवाल बेवजह जिद पर अड़े थे. प्रधानमंत्री ने उनके सभी पत्रों का जवाब एक साथ श्रध्दांजलि ट्वीट के रूप में दिया. कुछ दिन ठहर कर नारों, वादों और दावों का बाजार फिर गुलजार हो गया और गंगा बहने लगी. फिर सब ठीक हो गया.
कहानी खत्म.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)