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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतभगवान राम असमंजस में है, जीडी अग्रवाल की शिकायत पर ध्यान दें या नीचे धरती पर आकार लेता अपना मंदिर देखें

भगवान राम असमंजस में है, जीडी अग्रवाल की शिकायत पर ध्यान दें या नीचे धरती पर आकार लेता अपना मंदिर देखें

2014 में केंद्र में नई ताकतवर सरकार बनी और अग्रवाल इंतजार करने लगे क्योंकि इस सरकार को खुद ‘गंगा ने बुलाया था.’ 2014, 2015, 2016, 2017 सिर्फ तारीख, नए वादे और नए दावों में बीत गए तब अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को अपनी चार मांगे दोहराते हुए पत्र लिखे.

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‘मैं रामजी के दरबार में जाकर आपकी शिकायत करूंगा’ मरने से ठीक पहले प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के यही शब्द थे प्रधानमंत्री मोदी के लिए. वे इस बात से दुखी थे कि गंगा का अलौकिक स्वरूप बनाए रखने के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं किया जा रहा.

दो साल पहले 11 अक्टूबर को प्रोफेसर जीडी अग्रवाल यानी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने गंगा की अविरलता और निर्मलता पक्का करने की जिद में अपने प्राण त्याग दिए थे. उन्होंने प्रधानमंत्री को चार पत्र लिखे, जो गंगा सफाई को लेकर प्रधानमंत्री को उनके वादे की याद दिलाते थे. प्रधानमंत्री ने सभी पत्रों का एक साथ जवाब दिया, जवाब एक ट्वीट के रूप में था, जो उन्होंने अग्रवाल की मौत के बाद श्रद्धांजलि के रूप मे लिखा और उनके जीवन को प्रेरणादायी बताया.

अपनी मौत के दो साल बाद भी अग्रवाल गंगाप्रेमी सरकार की आंखों में चुभते है. उनकी चार मांगों में से किसी पर भी सरकार दो कदम भी नहीं बढ़ा पाई, लेकिन गंगा निर्मलता के दावे कई कदम आगे बढ़ गए हैं. उनकी मांगें ऐसी नहीं थी कि संविधान में बदलाव करना पड़े, बस राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत थी. उनकी चार मांगों पर नजर डालने से पहले यह समझना जरूरी है कि रामजी, गंगा, अग्रवाल और मोदी का आपसी संबंध क्या है.


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2013 की बात है. इस समय तक अग्रवाल गंगा आंदोलन का चेहरा बन चुके थे. अपने पूर्व के अनशनों में उन्होंने
उत्तराखंड राज्य की दो परियोजनाओं और केंद्र की विशाल हाइड्रो पावर परियोजना लोहारी नागपाला पर ताला लगवा दिया था, साथ ही उन्होने गंगा के उद्गम से 135 किलोमीटर तक की धारा को इको सेंसिटिव जोन घोषित करवा दिया था, जिसका मतलब है गंगा के दोनों किनारों पर दो सौ मीटर तक कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता. 2013 में वे फिर अनशन पर बैठे, इस बार मुद्दा था एनजीआरबीए (नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी) का नकारापन, उनका अनशन सौ दिनों से ज्यादा चला.

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लेकिन यूपीए सरकार बातचीत का दिखावा करती रही. अक्टूबर 2013 को अग्रवाल ने अपने अनशन को खत्म करने की घोषणा करते हुए कहा कि इस सरकार से कोई उम्मीद नहीं है वे नई सरकार के बनने का इंतजार करेंगे. उस समय तक देश में मोदी के आगमन का माहौल बन चुका था. इलाहाबाद के कुंभ में गंगा किनारे साधु- संतों ने बकायदा इसकी घोषणा कर दी थी, करोड़ों लोगों की तरह अग्रवाल भी मोदी के प्रधानमंत्री बनने का इंतजार कर रहे थे.

2014 में केंद्र में नई ताकतवर सरकार बनी और अग्रवाल इंतजार करने लगे क्योंकि इस सरकार को खुद ‘गंगा ने बुलाया था.’ 2014, 2015, 2016, 2017 सिर्फ तारीख, नए वादे और नए दावों में बीत गए तब अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को अपनी चार मांगे दोहराते हुए पत्र लिखे :-

उन चार मांगों को देख लिजिए जिन्हें सरकार आज भी पूरा नहीं कर पा रही.

1. संसद गंगा जी के लिये एक एक्ट पास करे. इसका ड्राफ्ट जस्टिस गिरिधर मालवीय की देखरेख में बनाया गया था.

2. अलकनन्दा, धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिण्डर तथा मन्दाकिनी पर सभी निर्माणाधीन/प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना तुरन्त निरस्त करना. (बन चुके बांधों को तोड़ने के लिए उन्होंने नहीं कहा)

3. गंगा तट पर जंगल काटने और रेत खनन पर रोक लगाई जाए, इसके लिए नियम तय किए जाए, विशेष रुप से हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में.

4. एक गंगा-भक्त परिषद बनाई जाए जिसमें समाज और सरकार से जुड़े सदस्य शामिल हों. गंगा से जुड़े सभी विषयों पर इसका मत निर्णायक माना जाए.

इन्हीं चार मांगों को लेकर प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने गंगा अवतरण दिवस से अपना अनशन शुरु किया और पूरे 112 दिन डटे रहे. सरकार ने उनसे आधिकारिक रूप से कोई बात नहीं की. आरएसएस नेता कृष्णगोपाल जरूर मध्यस्थता की कोशिश करते रहे.

11 अक्टूबर 2018 को सूचना आ गई कि अग्रवाल नहीं रहे. उस उम्मीद के ठीक पांच साल बाद, जब उन्होने कहा था कि वे नई सरकार का इंतजार करेंगे.

तब से सरकार एसटीपी लगा रही, घाट बना रही है, क्रिमेशन सेंटर भी बना रही है लेकिन अग्रवाल की मांगों पर चुप्पी साधी हुई है. क्योंकि एक्ट लाने से गंगा को गंदा करना कानूनन अपराध हो जाएगा और खनन में लगे ठेकेदार सभी राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं, उसे बंद नहीं किया जा सकता.

इसके अलावा जल विद्युत परियोजनाएं नए विकास के लिए बेहद जरूरी है. इसका सीटूसी यानी कॉस्ट टू कंट्री क्या होगा इस पर विचार करने की अनुमति चुनावी राजनीति नहीं देती और गंगा भक्त परिषद गठित करने का मतलब है नागरिक समाज को गंगा संबंधित मुद्दों पर फैसले लेने की ताकत देना, जो किसी भी आत्मकेंद्रित सरकार के लिए ठीक नहीं.


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वैसे नई तकनीक की बदौलत सरकार गंगा को निर्मल बनाए रखने का प्रयास कर रही है, बहुत हद पर्यावरणीय बहाव भी पक्का किया है, समझने की बात यह है कि जब गंगा का मतलब तेजी से बदलकर ‘अर्थ गंगा’ हो रहा हो तो व्यावहारिक होने की जरूरत है. अग्रवाल चाहते थे कि गंगा का बहाव गोमुख से लेकर गंगासागर तक एक जैसा हो, अब इतने मंहगे जल को यूं तो बहने नहीं दिया जा सकता.

वैसे भी धरती पर विशाल राम दरबार आकार ले रहा है, प्रभु समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार की रामभक्ति देखें या जिद्दी अग्रवाल की शिकायत पर गौर करें.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)

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