यूक्रेन में रूस के स्पेशल मिलिटरी ऑपरेशन के तीन साल इस 24 फरवरी को पूरे हो रहे हैं. इसके जो गहरे राजनीतिक, रणनीतिक और सामरिक प्रभाव पड़े हैं, उन्होंने वैश्विक समीकरण को तो नया रूप दिया ही, 21वीं सदी में युद्ध कैसे लड़े जाएंगे इसे भी परिभाषित कर दिया. रूस-यूक्रेन युद्ध जबकि अपने चौथे वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है, कई महत्वपूर्ण सबक उभरकर सामने आए हैं जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, आधुनिक युद्धशैली और सैन्य सिद्धांत के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि देते हैं.
इस युद्ध का एक सबसे उल्लेखनीय राजनीतिक परिणाम यह है कि ‘नाटो’ संगठन तथा यूरोपीय संघ ज्यादा मज़बूत हुए हैं. इन दोनों ने यूक्रेन का समर्थन करने में उल्लेखनीय एकता का प्रदर्शन किया. यह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संधियां कितना महत्व रखती हैं. ‘नाटो’ ने तालमेल के साथ जो कार्रवाई की उसने इस सिद्धांत को मजबूती दी कि एकजुट अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कूटनीतिक अलगाव पैदा करके और सैन्य समर्थन देकर हिंसा को सीमित करने में किस तरह मदद कर सकता है, लेकिन इसके साथ ही, इसने संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की कमजोरियों को उजागर भी कर दिया.
इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि आर्थिक प्रतिबंध समकालीन भू-राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं. बड़े आर्थिक प्रतिबंधों के ज़रिए रूस के वित्त, ऊर्जा, टेक्नोलॉजी, प्रतिरक्षा आदि क्षेत्रों को निशाना बनाया गया जिससे उसकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई और युद्ध करने की उसकी क्षमता कमज़ोर हुई, लेकिन रूस दूसरे, खासकर एशिया के बाज़ारों को पकड़ने और अपने आर्थिक ढांचे को बदलकर इन प्रतिबंधों के असर को काटने में सफल रहा. प्रतिबंधों ने उसे चोट तो ज़रूर पहुंचाई, मगर ऐसे दंड को बेअसर करने का रास्ता ढूंढने में सक्षम विशाल एवं संसाधनों से समृद्ध देश पर बदलाव थोपने के मामले में ऐसे प्रतिबंधों की सीमा भी उजागर हो गई.
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सूचना युद्ध और मोर्चाबंदी
सूचना युद्ध भौतिक युद्ध जितना ही तीखा रहा है. वैश्विक विमर्श पर अपना नियंत्रण रखने के लिए रूस और यूक्रेन (पश्चिमी देशों की मदद से) ने जबरदस्त युद्ध किया. अपनी पहचान बन चुकी टी-शर्ट पहनने वाले राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की के नेतृत्व में यूक्रेन ने सोशल मीडिया, पारंपरिक मीडिया और समर्थन मांगने तथा अंतर्राष्ट्रीय सहायता हासिल करने के लिए उच्चस्तरीय नैरेटिव्स का काफी असरदार इस्तेमाल किया. ज़ेलेंस्की प्रतिकार के अंतर्राष्ट्रीय प्रतीक बनकर उभरे हैं और उन्होंने हथियार, वित्तीय समर्थन और मानवीय सहायता हासिल करने के लिए कूटनीति तथा संपर्कों का प्रभावी इस्तेमाल किया है.
इसी तरह, रूस ने इस युद्ध के बारे में अपना नज़रिया अपने देश और विदेश में प्रचारित करने के लिए सरकारी मीडिया और सूचना युद्ध के अभियानों का थोड़ी कामयाबी के साथ इस्तेमाल किया है. इस युद्ध ने सूचना युद्ध के बढ़ते महत्व को रेखांकित किया है, जिसमें अपने विमर्श पर नियंत्रण के ज़रिए जनमत को प्रभावित किया जा सकता है और युद्ध के नतीजे को भी स्वरूप प्रदान किया जा सकता है.
एक मजबूत राष्ट्रीय पहचान से प्रेरित यूक्रेनी प्रतिकार ने दिखा दिया है कि बाहरी हमले का सामना होने पर लोकतंत्र अपनी कमजोरियों के बावजूद प्रभावशाली सैन्य कार्रवाई को अंजाम दे सकता है. इस युद्ध ने राजनीतिक एकजुटता, प्रभावी नेतृत्व और संकट के समय में सिविल सोसाइटी को सक्रिय करने के महत्व को भी उजागर किया है. संप्रभुता खतरे में पड़ने पर कोई लोकतांत्रिक देश असाधारण एकता और मजबूती का प्रदर्शन कर सकता है, खासकर तब जब उसके लोकतांत्रिक मूल्य तथा उसकी संस्थाएं मजबूत हों.
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रणनीतिक सबक
यूक्रेन पर रूसी हमले के पीछे सबसे महत्वाकांक्षी योजना कुछ दिनों के अंदर ही कीव पर कब्ज़ा करने की थी, लेकिन आकस्मिक रणनीतिक लक्ष्य हासिल करने में रूस की विफलता के साथ उसकी सेना की धीमी कार्रवाई और साजोसामान संबंधी चुनौतियों ने यूक्रेन को अपेक्षा से अधिक प्रभावी ढंग से रक्षात्मक कार्रवाई करने की छूट दी. अपनी सेना को फटाफट सक्रिय करने, अपनी जनता को आगे बढ़ाने, और ‘नाटो’ के सदस्य देशों से तेज़ी से अंतर्राष्ट्रीय सहायता हासिल करने की यूक्रेन की क्षमता ने शुरू में रूस को बढ़त लेने से रोक दिया. आधुनिक युद्ध में आश्चर्य वाला तत्व निर्णायक होता है, लेकिन सफलता पूरे तालमेल के साथ ऑपरेशन्स चलाने और उनकी रफ्तार बनाए रखने से ही हासिल होती है.
इस युद्ध का एक सबसे गंभीर सबक यह भी है कि सैन्य कार्रवाइयों को लंबे समय तक चला पाने के लिए साजो-सामान और क्षमता बहुत महत्व रखती है. युद्ध के शुरुआती चरण में रूस ने उसे लंबा खींचने की कोशिश, लेकिन अपने साजो-सामान का वह उपयुक्त इस्तेमाल नहीं कर पाया इसलिए उसे झटके लगे. यूक्रेनी सेना ने पश्चिम से आए हथियारों का बेहतर इस्तेमाल किया और देश के विशाल आकार तथा युद्ध के स्वरूप के कारण बनी प्रशासनिक चुनौतियों के बावजूद सप्लाइ चेन को बनाए रखा.
सैनिकों की संख्या, हथियारों और तोपखाने के मामलों में रूस की बढ़त के बावजूद यूक्रेन रूसी सेना को रोकने और पीछे धकेलने में सफल रहा तो इससे आधुनिक युद्ध में पारंपरिक युद्धशैली की सीमाएं ही उजागर हुईं. विध्वंस, छापामार युद्ध और सप्लाई चेन तथा कमांड अड्डों को निशाना बनाने जैसी अपारंपरिक चालों ने यूक्रेन को रूसी सैन्य ताकत का जोरदार मुकाबला करने में सक्षम बनाया. इस तरह की चालों, अच्छी तरह की गई खुफिया कार्रवाइयों और ड्रोन तथा साइबर क्षमताओं जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल एक विशाल तथा अधिक हथियारों से लैस दुश्मन का बराबरी से सामना करने में सक्षम बनाता है.
तकनीक का लाभ
तकनीकी आविष्कारों ने रूस-यूक्रेन युद्ध के रणनीतिक नतीजों को स्वरूप देने में केंद्रीय भूमिका निभाई है. दोनों पक्षों ने ड्रोन तथा सटीक निशाना लगाने वाले हथियारों से लेकर साइबर हमलों तथा इलेक्ट्रोनिक युद्ध तक तमाम तरह की अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग किया. इन तकनीकों को अपनी सैन्य रणनीति में समाहित करने की यूक्रेन की क्षमता ने उसे अहम बढ़त दी — खासकर खुफिया जानकारी हासिल करने, निशाना साधने और युद्धक्षेत्र में सजगता के मामलों में. रूस इन तकनीकों के इस्तेमाल के मामले में शुरू में कुछ सुस्त रहा, लेकिन यूक्रेन के सैन्य संचार तंत्र तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर को छिन-भिन्न करने के लिए उसने साइबर तथा इलेक्ट्रोनिक युद्ध की क्षमताओं में तालमेल बैठाने में बड़ी पहल की. नई तकनीक का रणनीतिक समावेश आधुनिक युद्ध में शक्ति संतुलन में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है.
सामरिक दृष्टि से देखा जाए तो बदलती परिस्थितियों के साथ खुद को तेज़ी से तैयार करने की यूक्रेन की क्षमता ने इस युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई. उसकी सेना ने उच्च स्तर का सामरिक लचीलापन दिखाया और परिस्थिति के हिसाब से खुद को वह रक्षात्मक भूमिका से आक्रमण की भूमिका में ढालती रही है. इस क्षमता ने उसे तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद खारकीव और खरसान क्षेत्रों में अपनी खोई हुई ज़मीन फिर से जीतने में सफलता दिलाई. सामरिक लचीलापन और उभरते अवसरों का लाभ उठाने की क्षमता युद्ध का रुख पलट सकती है. कमांडरों में युद्धक्षेत्र के माहौल का आकलन करने और उसके मुताबिक, खुद को ढालने की क्षमता होनी चाहिए ताकि वे दुश्मन की कमजोरियों का लाभ उठाने के नये तरीकों का इस्तेमाल कर सकें.
रूस-यूक्रेन युद्ध ने शहरों, खासकर घनी आबादी वाले इलाकों में युद्ध लड़ने की जबरदस्त चुनौतियों को रेखांकित किया है. ‘बिल्ट-अप एरिया’ (बीयूए) रक्षात्मक युद्ध के लिए अनुकूल होते हैं क्योंकि इमारतें कवच का काम करती हैं और हमलावर को ऐसे इलाकों पर कब्ज़ा बनाए रखना मुश्किल होता है. ऐसे इलाकों में रूसी और यूक्रेनी सेनाओं को भारी संख्या में मौतों का सामना करना पड़ा है और प्रमुख शहरों में गलियों में लंबे समय तक भीषण लड़ाइयां लड़नी पड़ी हैं. शहरों में युद्ध सबसे जटिल और महंगा होता है. इसलिए शहरों और रिहाइशी इलाकों पर कब्ज़ा बनाए रखने के लिए भारी मात्रा में गोला-बारूद और बड़ी संख्या में सैनिकों की ज़रूरत पड़ती है.
रूस-यूक्रेन युद्ध ने कई सबक सिखाए हैं. और जबकि यह जारी है, अभी और भी सबक मिल सकते हैं. ये सबक भविष्य के सैन्य सिद्धांत, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और व्यापक भू-राजनीति का स्वरूप तय करेंगे. इस सबसे यही तथ्य उभरकर सामने आता है कि युद्ध का स्वभाव तो नहीं बदलता मगर चरित्र हमेशा बदलता रहता है.
(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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