2016 में प्रतिभाशाली छात्र रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या हुई थी जिसके बाद सामाजिक न्याय के पक्षधर छात्र-छात्राएं सड़कों पर उतर आए थे. अब सवर्ण आरक्षण और 13 पॉइंट रोस्टर के जरिए एक साथ लाखों छात्रों और रिसर्च स्कॉलर्स के करियर की हत्या की साजिश की गई है, और छात्र-छात्राएं फिर सड़क पर हैं.
2016 में जब रोहित वेमुला आंदोलन कर रहे थे और फिर उनकी सांस्थानिक हत्या हुई थी, तब काफी दिनों तक कथित मुख्य धारा के मीडिया ने उस खबर का नोटिस ही नहीं लिया था. जब छात्रों ने दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्रालय को घेर लिया, तब जाकर मामला मीडिया में आया. वही इस बार हो रहा है. देश भर के विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी के छात्र-छात्राएं रोस्टर के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन ये खबर न प्रगतिशील पत्रकारों तक पहुंच रही है, न कम्युनल पत्रकारों तक.
2016 और 2019 में एक समानता यह भी है कि तब जेएनयू के कथित वामपंथी क्रांतिकारियों के कारण पूरा मुद्दा डाइवर्ट हो गया था. रोहित के मामले पर जब पूरा देश उबल रहा था, तब जेएनयू में अचानक से एक दिन अफजल गुरु को लेकर कविता पाठ होने लगा और फिर जो हुआ वो सब जानते हैं. उस आंदोलन से कुछ नेता चमक गए लेकिन रोहित का मामला पीछे चला गया. कहने को ये लोग रोहित वेमुला का मुद्दा भी उठाते रहे हैं, लेकिन जो धार उस समय के आंदोलन में थी, उस धार को बहुत ही चालाकी से खत्म करने की कोशिश की गई.
इस बार भी इस आंदोलन की धार खत्म करने की कोशिश भद्रलोक के उसी गढ़, पश्चिम बंगाल से उठी है जो कभी वामपंथ का गढ़ था. इस बार पश्चिम बंगाल में वाममोर्चे की जगह पर मजबूती से जम चुकी तृणमूल कांग्रेस ने सीबीआई बनाम कोलकाता पुलिस का विवाद खड़ा करके विश्वविद्यालयों के आंदोलन की धार को खत्म करने की कोशिश की है. हो सकता है कि ये जानबूझकर न भी हो रहा हो,लेकिन नतीजे को तौर पर तो यही हो रहा है.
धुर भाजपा विरोधी दलों का रवैया भी भाजपा की तरह
विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी के साथ होने वाले जातीय भेदभाव से न तो वामपंथी दलों को कोई दिक्कत रही है, और न ही तृणमूल कांग्रेस को, जबकि दोनों ही भाजपा के धुर विरोधी होने का दावा करते हैं. रोस्टर उनका प्राथमिक मुद्दा नहीं है.
वाममोर्चा तो दक्षिणपंथ की राजनीति का विरोधी होने के कारण धर्मनिरपेक्ष राजनीति का झंडाबरदार बनता ही है, और ममता बनर्जी भी इस समय नरेंद्र मोदी और भाजपा पर सबसे तेज हमले करने में आगे रही हैं, भले ही पहले वे खुद भाजपा के साथ रह चुकी हैं.
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2019 का 13 पॉइंट रोस्टर विरोधी आंदोलन एक मायने में रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के विरोध के आंदोलन से भी बड़ा है क्योंकि इससे देश के शिक्षा क्षेत्र में खासकर शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण व्यावहारिक तौर पर पूरी तरह खत्म हो जाएगा.
लाखों रोहित वेमुलाओं के खिलाफ साजिश
रोहित वेमुला की हत्या के समय सामाजिक न्याय के पक्षधर छात्र-छात्राएं भले ही अलग-अलग अपने-अपने शहरों में आंदोलन कर रहे थे, लेकिन कहीं न कहीं वे एक सूत्र में बंध गए थे. इस बार जब एक साथ लाखों रोहित वेमुलाओं की हत्या की साजिश की गई तो वह सूत्र फिर से सजीव हो उठा है.
इस आंदोलन को रोहित वेमुला रिटर्न्स भी कहा जा सकता है और यह भी कहा जा सकता है कि जातिवादी ताकतें चाहकर भी रोहित वेमुला को नहीं मार पाईं. आंदोलन के रूप में रोहित वेमुला कई गुना ताकत के साथ उसी सरकार को चुनौती देते खड़ा है जिसने 2016 में उसके शरीर को मारने में सफलता पाई थी.
सभी पात्र पुरानी भूमिका में
एक तरह से पूरा प्रसंग रिपीट होता लगता है. तकरीबन सभी पात्र अपनी पुरानी भूमिका में हैं।
लोकसभा में सत्तारूढ़ भाजपा के बाद सबसे बड़ा दल कांग्रेस तब भी उस आंदोलन से तटस्थ था, और अब भी किनारे खड़ा तमाशा देख रही है. औपचारिकताएं उस समय भी निभाई जा रही थीं और इस बार भी निभाई जा रही है. राहुल गांधी तब एक दिन के लिए हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी गए थे. इस बार उन्होंने 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ ट्वीट किया है.
वामपंथी छात्र संगठन कुछ हद तक सक्रिय दिख रहे हैं, लेकिन यहां भी उनकी कोशिश अपने एक-दो छात्र नेताओं को उभारने की ही लगती है.
संसद में भी आरजेडी, समाजवादी पार्टी, डीएमके जैसे दल ही 13 पॉइंट रोस्टर का विरोध कर रहे हैं, और चूंकि इनकी लोकसभा में ताकत ज्यादा है नहीं, और वहां कांग्रेस ही असरकारक हो सकती है, जिस कारण लोकसभा की कार्यवाही आराम से चल रही है, जबकि राज्यसभा की कार्यवाही लगातार इसी रोस्टर विवाद के कारण नहीं चल पा रही है.
जावड़ेकर के सफेद झूठ पर मौन है कांग्रेस
मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर रोस्टर विवाद पर एक बार फिर झूठ बोल चुके हैं. पहले उन्होंने अध्यादेश लाकर कोर्ट के फैसले को पलटने की बात कही थी, लेकिन अब वो पुनरीक्षण याचिका दायर करने का आश्वासन देकर छूटना चाहते हैं.
दूसरा झूठ वो ये बोल गए कि 13 पॉइंट रोस्टर लागू करने के अदालत के फैसले के बाद से किसी विश्वविद्यालय ने अभी तक कोई वैकेंसी निकाली नहीं है, जबकि कम से कम तीन विश्वविद्यालय असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों के लिए विज्ञापन निकाल चुके हैं.
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कायदे से इस मामले में मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के खिलाफ संसद को गुमराह करने को लेकर विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है, लेकिन कांग्रेस पूरे मामले में चुप्पी साधे है. राहुल गांधी कभी-कभी ट्वीट करके औपचारिकता पूरी कर रहे हैं.
अब इन छात्र-छात्राओं के सामने ये बड़ी चुनौती है कि किस तरह से वे अपने साथ हो रहे अन्याय को देश का सबसे बड़ा केंद्रीय मुद्दा बनाएं जबकि कई बड़े दल उनकी लगातार अनदेखी ही नहीं कर रहे बल्कि उनको दबाने में लगे हैं.
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं.)