scorecardresearch
Monday, 9 December, 2024
होममत-विमतयुवाओं की बेरोजगारी के मामले में सबसे अमीर केरल और सबसे गरीब बिहार एक जैसे

युवाओं की बेरोजगारी के मामले में सबसे अमीर केरल और सबसे गरीब बिहार एक जैसे

पिछले एक दशक में युवाओं के बीच बेरोजगारी सभी बड़े राज्यों में बढ़ी, खेतीबाड़ी छोड़ने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई.

Text Size:

आगामी दशक में भारत अपनी आर्थिक संभावनाओं को कितना पूरा करेगा यह इस बात से तय होगा कि आज के युवाओं को कैसी शिक्षा मिलती है, वे क्या हुनर हासिल करते हैं, और आर्थिक अवसरों तक उनकी कितनी पहुंच होती है. पिछले सप्ताह के लेख में हमने यह देखा कि भारत में 20-29 आयुवर्ग की महिलाओं के जीवन की दिशा इतने वर्षों में किस तरह बदली है. अब इस लेख में हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि 2004-05 से 2018-19 के बीच भारत में क्षेत्रीय रोजगार बाज़ार की क्या दशा रही है और 20-29 आयुवर्ग के युवकों की शिक्षा किस दिशा में जा रही है.

नयी राष्ट्रीय रोजगार नीति में, जिसका मसौदा जल्द तैयार होने वाला है, रोजगार निर्माण के लिए क्षेत्रीय और सेक्टर के हिसाब से प्रोत्साहनों के बारे फैसला करने से पहले इन क्षेत्रीय प्रवृत्तियों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.

केरल और बिहार : कितनी समानता 

देश के दो बड़े राज्यों, केरल और बिहार में आर्थिक समृद्धि के लिहाज से काफी बड़ा अंतर है. केरल सबसे समृद्ध राज्यों में शामिल है, तो बिहार प्रति व्यक्ति वास्तविक आय के लिहाज से सबसे गरीब राज्य है. लेकिन दोनों में दो आश्चर्यजनक समानताएं भी हैं. उच्च शिक्षा पा रहे युवकों (20-29 आयुवर्ग) के मामले में ये दोनों राज्य शिखर पर हैं (चित्र 1). इसी तरह ये दोनों ऐसे राज्य हैं जिनमें रोजगार की तलाश कर रहे और बेरोजगार रह गए युवकों का अनुपात सबसे ज्यादा है (चित्र 2). ये आंकड़े सावधिक श्रम सर्वे डेटा से लिये गए हैं और 2018-19 के बारे में हमारे अनुमानों पर आधारित हैं.


यह भी पढ़ें: भविष्य में रोजगार पाने वालों से लेकर कमतर रोजगार वालों तक, यही करेंगे भारत के अगले जनांदोलन का नेतृत्व


रोजगार और उच्च शिक्षा में बढ़ता क्षेत्रीय अंतर

भारत के युवकों में 2004-08 से 2018-19 के बीच बेरोजगारी सभी बड़े राज्यों में बढ़ी. इसके अलावा, युवकों में बेरोजगारी के मामले में क्षेत्रीय अंतर भी तेजी से बढ़ा है. यह उनके आर्थिक प्रदर्शन और कुछ राज्यों में रोजगार में बड़ी गिरावट को दर्शाता है. 2004-05 में, आबादी के हिसाब से बेरोजगार युवकों का अनुपात 1.5 प्रतिशत (कर्नाटक) से लेकर 5.8 प्रतिशत (गुजरात) और सबसे ज्यादा 21 प्रतिशत (बिहार) तक के बीच था. इसी तरह, शिक्षा पा रहे युवकों का अनुपात भी जबकि सभी राज्यों में बढ़ा है लेकिन इसकी साथ इसमें क्षेत्रीय असंतुलन भी बढ़ा है. ऊंची बेरोजगारी और उच्च शिक्षा में दाखिले के संयुक्त रूप से देखें तो पता चलेगा कि 20-29 आयुवर्ग के 18 प्रतिशत युवक आर्थिक रूप से सक्रिय नहीं थे, यानी वे अपनी युवावस्था में अर्थव्यवस्था में योगदान नहीं दे रहे थे.

फिगर-1

ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

फिगर-2

ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

 

भारत की रोजगार नीति में इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए— अगर उच्च शिक्षा पर ज़ोर देते रहना है तो ऊंचे स्तर की मैनुफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र में रोजगार पैदा करने पर ज़ोर देना होगा ताकि युवाओं की आकांक्षाएं पूरी हों.

शिक्षा का स्तर भले रोजगार दिए जाने के योग्य न बनाता हो लेकिन डिग्री पा चुका युवा खास तरह का रोजगार पाने की उम्मीद रखने लगता है. इसका नतीजा यह होता है कि उपलब्ध रोजगार और युवा पीढ़ी जिस तरह का रोजगार पाने की अपेक्षा रखती है उसमें तालमेल नहीं रह जाता.


यह भी पढ़ें: ‘नोटबंदी, 370, लॉकडाउन,’ नरेंद्र मोदी की विशेषता है कि वो विषम परिस्थितियों को अपने लिए अवसर में बदल लेते हैं


महाराष्ट्र, केरल और यूपी में कृषि से इतर रोजगार घटे

गुजरात और कर्नाटक जैसे समृद्ध; ओड़ीशा, पश्चिम बंगाल जैसे मध्य आय वाले; और बिहार तथा छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों में 2004-05 से 2018-19 के बीच उद्योग एवं सेवा सेक्टर में रोजगार बढ़े (चित्र 3 व 4). इसके विपरीत महाराष्ट्र और केरल जैसे समृद्ध राज्यों में उद्योग और सेवा, दोनों सेक्टरों में रोजगार घटे जबकि उच्च शिक्षा और बेरोजगारी बढ़ी.
गौरतलब है कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल में उद्योग सेक्टर में युवाओं के रोजगार बढ़े, जिसमें कंस्ट्रक्सन सेक्टर शामिल है. भारत के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सेवा और उद्योग सेक्टर में युवाओं के रोजगार में गिरावट देखी गई. भारत में युवाओं की 16 फीसदी या 1.45 करोड़ आबादी उत्तर प्रदेश में ही है, इसलिए नयी रोजगार नीति इस राज्य में उद्योग और सेवा सेक्टर में रोजगार बढ़ाने के उपाय करे तो लोगों का विस्थापन थम सकता है.

फिगर-3

ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

फिगर-4

ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

कृषि में लगे श्रमिकों की औसत उम्र बढ़ी

स्थानीय अर्थव्यवस्था जब सुधरती है तब युवा वर्ग कृषि में रोजगार छोड़कर उच्च शिक्षा और कृषि से इतर रोजगार की ओर बढ़ने लगता है. यह प्रवृत्ति केरल और तमिलनाडु, जहां 10 फीसदी से भी कम युवा कृषि में रोजगार कर रहे हैं, जैसे कई समृद्ध राज्यों में देखी गई है (चित्र 5). कृषि प्रधान माने गए पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में भी केवल 11-13 प्रतिशत युवा ही खेतीबाड़ी में लगे हैं. भारत के दो सबसे गरीब राज्य, बिहार और उत्तर प्रदेश में भी 30 फीसदी से भी कम युवा ही कृषि क्षेत्र में रोजगार कर रहे हैं. कुल मिलाकर, कृषि में युवाओं के रोजगार के मामले में क्षेत्रीय अंतर अपवादों को छोड़कर, घटा है. जाहिर है, कृषि में लगे श्रमिकों की उम्र बढ़ रही है. इसका अर्थ यह है कि मशीन से खेती करने के लिए जमीन की चकबंदी के साथ-साथ कृषि में महिलाओं को भी फिर से रोजगार देना होगा.

फिगर-5

ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

शिक्षा और रोजगार के बीच खाई कैसे कम हो

भारत में युवाओं की शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है और इसके साथ शिक्षितों में बेरोजगारी भी बढ़ रही है. इन दोनों संकेतकों में क्षेत्रवार अंतर भी बढ़ा है, जो स्थानीय आर्थिक वृद्धि को उजागर करता है. इसलिए नयी राष्ट्रीय रोजगार नीति में इस खाई को पाटने पर ध्यान देना होगा, जबकि दूसरों के लिए औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने की व्यवस्था करनी होगी. युवाओं की शिक्षा और रोजगार में क्षेत्रवार अंतर पर ध्यान देकर ही इस लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है.

(विद्या महांबरे ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर हैं. सौम्या धनराज मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. संकल्प शर्मा डेवलपमेंट डेटा लैब में रिसर्च एसोसिएट हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए हमें क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: रोजगार में भारतीय युवा महिलाओं की भागीदारी कितनी है, और इसमें उनकी दिक्कतें क्या-क्या हैं


 

share & View comments