1 जुलाई 2024 को भारत ने लॉर्ड थॉमस बैबिंगटन मैकॉले का 1860 का इंडियन पीनल कोड और सर जेम्स फिट्जजेम्स स्टीफन का 1872 का इंडियन एविडेंस एक्ट हटाकर उनकी जगह क्रमशः भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू कर दिए. 1973 में संशोधित होकर न्यायिक और कार्यकारी कामकाज को अलग करने वाली आपराधिक प्रक्रिया संहिता में भी बदलाव किए गए और इसे नया नाम देकर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता कर दिया गया. तीनों को पिछले साल 25 दिसंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी. यह दिन 2014 से ‘गुड गवर्नेंस डे’ के रूप में मनाया जाता है, अटल बिहारी वाजपेयी के योगदान के सम्मान में.
धार्मिक ग्रंथों (भगवद गीता, बाइबल, गुरु ग्रंथ साहिब या कुरान) के विपरीत, कानून वक्त के साथ बदलते हैं क्योंकि उन्हें इंसान बनाते हैं और वे अपने समय की परिस्थितियों पर आधारित होते हैं. इसलिए हर कानून में एक तय समीक्षा तारीख होनी चाहिए, ताकि बदलाव सोच-समझकर किए जाएं, न कि मजबूरी में या सिर्फ राजनीतिक अंक बटोरने के लिए.
संपत्ति अधिकार और उत्तराधिकार से जुड़े मुद्दे
इस बात को ध्यान में रखते हुए इंडियन रजिस्ट्रेशन बिल 2025 का आना एक स्वागत योग्य कदम है. इसका मकसद 1908 के रजिस्ट्रेशन एक्ट को बदलना है. ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस साल मई में इस ड्राफ्ट बिल को पेश किया था.
ज़मीन और संपत्ति से जुड़े विवाद देश में होने वाले दीवानी मुकदमों का दो-तिहाई हिस्सा बनाते हैं.
और ये सिर्फ 1908 के इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट से ही नहीं चलते, बल्कि 1882 के ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1899 के स्टांप एक्ट और 1925 के इंडियन सक्सेशन एक्ट से भी जुड़े हैं. ये सभी एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं, जिसका मतलब है कि 2025 का बिल इन सभी मौजूदा कानूनों को प्रभावित करेगा.
इस बात को ज़मीन अधिकार और भूमि कानूनों के जाने-माने विशेषज्ञ बी.के. अग्रवाल, जो हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव रहे हैं, ने अपनी किताबों Land, Law and Administration, Land Registration: Global Practices and Lessons for India और विधि सेंटर फॉर लीगल रिसर्च के लिए लिखे अपने ब्लॉग्स में बहुत मजबूती से रखा है.
प्रस्तावित कानून पर अपनी रचनात्मक आलोचना में वे कहते हैं कि रजिस्ट्रेशन एक्ट का असली इरादा और मकसद शुरुआत में ही साफ होना चाहिए — कि यह संपत्ति खरीदने वाले को टाइटल की सुरक्षा दे, संपत्ति लेन-देन में धोखाधड़ी को रोके, दस्तावेज़ खो जाने या नष्ट होने की स्थिति में असली प्रतियां उपलब्ध कराए, वसीयत की प्रामाणिकता से जुड़े विवादों को रोके और सभी संपत्ति लेन-देन का ऐसा रिकॉर्ड बनाए जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हो, ताकि कोई भी व्यक्ति किसी संपत्ति से जुड़े फैसले समझदारी से ले सके.
बाकी सभी चीज़ें इन्हीं बड़े लक्ष्यों को आसान और मजबूत बनाने के लिए होनी चाहिए. RERA और IT एक्ट में मौजूद मददगार प्रावधानों को भी साफ-साफ लिखा जाना चाहिए, जैसे जन विश्वास एक्ट 2023 और आसान बिज़नेस के लिए प्रस्तावित जन विश्वास बिल 2.0 में किया गया है.
बिल के मुख्य प्रावधान
अब हम प्रस्तावित बिल के मुख्य प्रावधानों पर आते हैं. चूंकि, रजिस्ट्रेशन से जुड़ा कानून समवर्ती सूची में आता है, इसलिए इसका एक बड़ा उद्देश्य पूरे भारत के लिए एक ऐसी व्यवस्था बनाना है जो संपत्ति रजिस्ट्रेशन की मौजूदा प्रक्रिया को डिजिटल, सरल और आधुनिक बनाए और इसके दायरे में आने वाले लेन-देन का पैमाना और सीमा बढ़ाए. बिल राज्यों में इंस्पेक्टर जनरल ऑफ रजिस्ट्रेशन (IGR) के तहत एक समान प्रशासनिक ढांचा देता है, जिसमें रजिस्ट्रेशन कार्यालयों में तकनीक को अपग्रेड करना शामिल है, ताकि आईटी एक्ट 2000 के तहत इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर का विकल्प उपलब्ध हो सके और दस्तावेज़ की ऑनलाइन सबमिशन और शर्तों के साथ ऑनलाइन अपीयरेंस की सुविधा दी जा सके.
कंप्यूटर, स्कैनर और क्लाउड स्टोरेज जैसी ज़रूरी सुविधाएं बनाना, जिनमें सभी रजिस्ट्रेशन दस्तावेज़ रिकॉर्ड किए जा सकें, ज़मीन के दस्तावेज़ की ब्लॉकचेन रजिस्ट्री की दिशा में पहला कदम हो सकता है.
बिल दस्तावेज़ की रेंज भी बढ़ाता है और उन दस्तावेज़ के लिए टेम्प्लेट देता है जिन्हें रजिस्ट्रेशन करना ज़रूरी होगा. सभी लेन-देन वाले दस्तावेज़ जो किसी अचल संपत्ति में अधिकार, रुचि या टाइटल बनाने के लिए पक्षों के बीच बनाए जाते हैं उन्हें इसके दायरे में शामिल किया गया है.
एक और बड़ा बदलाव बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ज़िम्मेदारी से जुड़ा है, जब वे टाइटल डीड जमा कर गिरवी (मॉर्गेज) के आधार पर लोन देते हैं. उन्हें यह अनिवार्य किया जाएगा कि टाइटल डीड की एक कॉपी स्थानीय रजिस्ट्रेशन ऑफिसर को जमा करें और उस संपत्ति पर हुए मॉर्गेज की सूचना भी दें. हालांकि, अग्रवाल इससे आगे जाते हैं. वे अंग्रेज़ी और इक्विटेबल मॉर्गेज को खत्म करने का सुझाव देते हैं क्योंकि ये पुराने और बेकार प्रावधान हैं और इनके मूल देश में भी लागू नहीं हैं.
वे यह भी सुझाव देते हैं कि जिन दस्तावेज़ को अभी रजिस्ट्रेशन से छूट दी गई है — जैसे एससी/एसटी भूमिहीन परिवारों को दी गई वेस्टेड लैंड, उन्हें रजिस्ट्रेशन फीस और स्टांप ड्यूटी से छूट दी जा सकती है, लेकिन रजिस्ट्रेशन से छूट नहीं दी जानी चाहिए.
इससे लाभ यह होगा कि ज़मीन पाने वाले व्यक्ति की पहचान की जांच हो जाएगी, उसके द्वारा स्वीकृति दर्ज हो जाएगी और उसके नाम पर कब्ज़ा मिलने की पुष्टि हो जाएगी. इससे वो स्थिति रुकेगी जहां अधिकारियों द्वारा कागज़ पर जमीन दे दी जाती है, पर असल में लाभार्थी को कब्ज़ा नहीं मिलता. दूसरा सबसे अच्छा विकल्प यही है कि संपत्ति अधिकारों को प्रभावित करने वाले सभी दस्तावेज़ रिकॉर्ड पर लाए जाएं. इस दिशा में केरल ने शुरुआत कर दी है.
वसीयत का रजिस्ट्रेशन
इसके अलावा, किसी भी संपत्ति से जुड़े सभी लंबित मुकदमों को एक संभावित खरीदार के लिए रिकॉर्ड में डालना चाहिए. यह संपत्ति की खरीद-बिक्री में विवाद का एक बड़ा कारण है.
एक और बड़ी कमी जिसे ठीक करने की ज़रूरत है, वह यह है कि रजिस्टर्ड (पंजीकृत) वसीयत को गैर-रजिस्टर्ड वसीयत पर प्राथमिकता नहीं मिलती. इसी वजह से कई बार किसी व्यक्ति की मौत के बाद अलग-अलग लोगों के पास कई गैर-रजिस्टर्ड वसीयतें निकल आती हैं, जिससे सालों तक मुकदमे चलते रहते हैं.
इस स्थिति को दूर किया जा सकता है अगर कानून के तहत वसीयत का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बना दिया जाए.
मुकदमे कम करने के लिए एक और कदम यह हो सकता है कि संपत्ति का विवरण ‘रिकॉर्ड ऑफ राइट्स’ या किसी अन्य स्थान आधारित रिकॉर्ड के आधार पर अनिवार्य रूप से दर्ज किया जाए. कुछ राज्यों में पहले से ही यह नियम है कि संपत्ति का विवरण रिकॉर्ड ऑफ राइट्स के आधार पर दिया जाए और अगर संपत्ति का कुछ हिस्सा ट्रांसफर हो रहा है तो नया नक्शा भी लगाना ज़रूरी है. यह अभी सिर्फ प्रशासनिक आदेशों के तहत होता है, लेकिन इसे कानूनन दर्ज किया जाना चाहिए.
अग्रवाल ने यह भी बताया कि ज़मीन के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण बेहतर हुआ है, लेकिन अभी भी सुधार की काफी गुंजाइश है. शहरी इलाकों के लिए ‘रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (RoRs)’ का एक अलग फॉर्मेट बनाया जाना चाहिए और इसे प्रॉपर्टी टैक्स रिकॉर्ड से जोड़ देना चाहिए. ग्रामीण और शहरी मंत्रालयों को आईजीआर के दफ्तर के साथ मिलकर इस कानून के उद्देश्यों को हासिल करना चाहिए.
अग्रवाल ने सुझाव दिया कि शहरी निकायों के कर्मचारियों को राजस्व अधिकारियों जैसी शक्तियां दी जानी चाहिए—ज़मीन के माप के लिए और संपत्ति कर के हिसाब से उसकी कीमत तय करने के लिए. अगर रिकॉर्ड ऑफ राइट्स उपलब्ध न हो, तो संबंधित पक्षों से कहा जा सकता है कि वे प्लॉट और आसपास के प्लॉट का ड्रोन द्वारा नया, जियो-रेफरेंस्ड सर्वे करवाएं.
बेनामी लेनदेन रोकने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि जो भी अधिकारी संपत्ति का रजिस्ट्रेशन करते हैं, वे हर अचल संपत्ति को उसके मालिक के पैन कार्ड या आधार कार्ड से लिंक करें.
रजिस्ट्रेशन बिल, 2025 भारत की कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक बड़ा पहला कदम है. यह देश की पुरानी औपनिवेशिक व्यवस्था से बाहर निकलने, ई-गवर्नेंस और पारदर्शी प्रशासन की ओर बढ़ने की राष्ट्रीय सोच से मेल खाता है. बाकी सभी गैर-धार्मिक ग्रंथों की तरह, इसमें भी लगातार सुधार की ज़रूरत और गुंजाइश बनी रहेगी.
(संजीव चोपड़ा एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और वैली ऑफ वर्ड्स साहित्य महोत्सव के निदेशक हैं. हाल तक वे LBSNAA के निदेशक रहे हैं और लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल (एलबीएस म्यूज़ियम) के ट्रस्टी भी हैं. वे सेंटर फॉर कंटेम्पररी स्टडीज़, पीएमएमएल के सीनियर फेलो हैं. उनका एक्स हैंडल @ChopraSanjeev है. यह लेख लेखक के निजी विचार हैं.)
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