scorecardresearch
Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतचीन मसले पर राजनाथ सिंह की परफॉर्मेंस दर्शाती है कि मोदी और शाह को उनकी जरूरत क्यों है

चीन मसले पर राजनाथ सिंह की परफॉर्मेंस दर्शाती है कि मोदी और शाह को उनकी जरूरत क्यों है

लद्दाख में चीनी आक्रामकता के मुद्दे पर राजनाथ सिंह ने संसद में जो कर दिखाया, वह शायद मोदी सरकार का कोई और मंत्री, यहां तक कि अमित शाह भी नहीं कर पाते.

Text Size:

संसद का हाल में सम्पन्न मानसून सत्र महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्ष को साथ लाने और आम सहमति बनाने के लिहाज से मोदी सरकार के लिए एक बड़ा नाकाम साबित हुआ.

हालांकि, पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन गतिरोध के उलझाऊ मुद्दे पर चर्चा इसका एकमात्र अपवाद रही. और इसका सारा श्रेय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को जाता है, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि विपक्ष सरकार को घेर न पाए.

चीन मुद्दे पर स्थिति संभालने के साथ-साथ राजनाथ सिंह ने यह भी साबित कर दिया कि मोदी-अमित शाह की जोड़ी को उनकी जरूरत क्यों है. गृह मंत्री अमित शाह समेत कोई भी अन्य व्यक्ति इस तरह के एक नाजुक मुद्दे पर सरकार को घिरने से बचाने में सक्षम नहीं हो सकता था.

चीन और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की तरफ से कई बार अतिक्रमण और घुसपैठ करके भारतीय सेना को पारंपरिक गश्त वाले क्षेत्रों तक पहुंचने से रोकने जैसी घटनाएं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए काफी शर्मिंदगी का सबब रही हैं. इसका एक बड़ा कारण यह है कि मोदी ने हमेशा खुद को हर हाल में तेजतर्रार और सशक्त प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया है. वह हमेशा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपनी निकटता प्रदर्शित करते रहे हैं, 2014 में पहली बार सत्ता में आने के बाद 18 बार उनकी मुलाकात हुई है.

बहरहाल, शी के विश्वासघात ने मोदी को हैरत में डाल दिया है. 19 जून को सर्वदलीय बैठक में लद्दाख में घुसपैठ की बात न स्वीकारने के कारण भी विवाद खड़ा हो गया और आखिरकार अपने बयान को लेकर रक्षा और रणनीतिक समुदाय की ओर से जारी आलोचनाओं को थामने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को बाकायदा स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा.


यह भी पढ़ें: राजनाथ सिंह ने संसद में एके एंटनी को दिया जवाब- ‘लद्दाख में कोई ताकत भारत को पेट्रोलिंग से नहीं रोक सकती’


केवल राजनाथ सिंह ही यह कर सकते थे

ऐसी परिस्थितियों में रक्षा मंत्री ने विपक्ष को साधने के अपने कौशल का इस्तेमाल किया जब उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा में अपनी बात रखी.

बेशक, राजनाथ सिंह बेहद कुशलता से भारतीय क्षेत्र में चीन की घुसपैठ वाले हिस्से को छिपा गए. लेकिन विपक्ष को सरकार को कठघरे में लाने वाले सवाल करने से रोकने और उन्हें अभियान की संवेदनशीलता याद दिलाकर बाजी मारने में सफल रहे. उन्होंने यह सब चीन पर कड़े हमले करते हुए और भारतीय सशस्त्र बलों का साहस याद दिलाते हुए किया.

अमित शाह सहित कोई भी अन्य मंत्री शायद यह काम नहीं कर सकता था. बांग्लादेशियों के खिलाफ शाह की ‘दीमक’ वाली टिप्पणी भले ही पार्टी के लिए घरेलू मोर्चे पर रणनीतिक फायदे वाला कदम हो, लेकिन इसने बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को बुरी तरह प्रभावित किया है. यह नहीं कई विशेषज्ञों का तो मानना है कि चीन आज जो कुछ भी कर रहा है उसकी जड़ में कहीं न कहीं अक्साई चिन वापस लेने का शाह का दावा भी एक वजह है.

बेशक, गृह मंत्री ने घरेलू राजनीति का मोर्चा शानदार ढंग से संभाल रखा है, लेकिन संवेदनशील मसलों को वोट बैंक की वेदी पर भेंट चढ़ाने के बजाये संजीदगी से संभालने की जरूरत होती है.

सामान्य परिस्थितियों में तो विपक्ष चीन मसले पर संसद में बेहद आक्रामक तरीके से पेश आता लेकिन राजनाथ सिंह ने उनके सारे हमलों की धार कुंद कर दी.


यह भी पढ़ें: भारत चीन गतिरोध पर बोले राजनाथ- भारतीय जवानों ने जहां शौर्य की जरूरत थी वहां शौर्य दिखाया


जेटली की विरासत आगे बढ़ा रहे

2014 में जबसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में आई है मोदी के मंत्रियों में राजनाथ सिंह की तरह प्रबंध कौशल रखने वाले एकमात्र राजनेता अरुण जेटली थे, जिन्हें अपनी व्यवहार कुशलता के कारण सभी राजनीतिक दलों के साथ सहमति कायम करने वाले के तौर पर जाना जाता था.

अब जबकि जेटली नहीं हैं, राजनाथ का कौशल प्रधानमंत्री मोदी के लिए और भी महत्वपूर्ण हो गया है, जिनकी सरकार वैसे तो शर्म महसूस होने की हद तक मजबूत मंत्रिमंडल का अभाव झेल रही है.

सशस्त्र बलों में भी राजनाथ सिंह के प्रति सम्मान और प्रशंसा का भाव दिखता है, जो कुछ उसी तरह है जैसा उनके पूर्ववर्ती मनोहर पर्रिकर के मामले में था.

राजनाथ के शांत और परिपक्व नजरिये ने सेना को चीन की आक्रामकता का अपने तरीके से जवाब देने के लिए समय भी दे दिया, जो 29-30 अगस्त की मध्यरात्रि को स्पष्ट तौर पर नजर आया जब सेना ने पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट पर स्थित चीनी अतिक्रमण वाली प्रमुख चोटियों पर कब्जा जमा लिया.

एक और बात राजनाथ सिंह अपने साथ रक्षा मंत्रालय में राजनीतिक दबदबा भी लाए, जिसका निर्मला सीतारमण (मौजूदा वित्त मंत्री) के कार्यकाल के दौरान अभाव था. जैसा मैंने पहले लिखा था सीतारमण को व्यापक तौर पर एक प्रभावहीन मंत्री माना जाता था जिनके पास प्रशासनिक अनुभव और राजनीतिक कौशल की कमी थी. उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव तक आम तौर पर कामचलाऊ व्यवस्था के तौर पर अधिक देखा गया, जब अधिकांश निर्णय सीधे पीएमओ की तरफ से लिए जाते थे.

राजनाथ सिंह का आगमन मंत्रालय के अंदर कामकाज के संबंध में एक बड़ा बदलाव था क्योंकि उनकी उपस्थिति का मतलब था कि बाहरी हस्तक्षेप न्यूनतम है.

इंडिया टुडे ने जैसा पिछले साल जून में रिपोर्ट किया था: ‘राजनाथ सिंह ने 31 मई को रक्षा मंत्री के रूप में नियुक्ति की सूचना मिलने के कुछ ही घंटे बाद सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत को फोन किया. वह अपना पहला कार्य दिवस 3 जून सियाचिन में बिताना चाहते थे. सेना प्रमुख तुरंत इसके लिए तैयार हो गए. 48 घंटे से भी कम समय के अंदर रक्षा मंत्री को हेलीकॉप्टर से सियाचिन बेस कैंप भेजा गया, जहां उन्होंने समुद्र तल से 12,000 फीट ऊंचाई पर स्थित दुनिया के सबसे ऊंचे सैन्य ठिकाने पर एक दिन सैनिकों के साथ बिताया.

राजनाथ सिंह ने यात्रा के बाद अपने करीबी सहयोगियों से कहा, ‘मैंने शीर्ष से शुरू किया है और मैं वहां पर रहूंगा.’


यह भी पढ़ें: भारतीय सेना चीन का मुकाबला करने के लिए LAC पर ‘इंगेजमेंट के नए नियमों’ का उपयोग कर रही है


(यहां व्यक्त लेखक के विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments