रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 7 जून 2021 को सेना के आला अधिकारियों और रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों की उपस्थिति में ‘ट्वेंटी रेफॉर्म्स इन 2020’ (2020 में हुए 20 सुधार) नामक एक ई-पुस्तिका जारी की. इस मौके पर अपने भाषण में उन्होंने इस पुस्तिका को रक्षा महकमे को ज्यादा शक्तिशाली और ज्यादा कार्यकुशल बनाने के सरकार के संकल्प का प्रतीक बताया. रक्षा मंत्री ने आशा व्यक्त की कि जो सुधार किए जा रहे हैं वे आगामी वर्षों में भारत को रक्षा क्षेत्र में एक विश्व शक्ति बना देंगे.
सुधारों का अस्पष्ट लक्ष्य इन शब्दों में बताया गया है- ‘नीतिगत बदलावों, नये प्रयोगों और डिजिटल परिवर्तनों के जरिए सेनाओं में अधिक आपसी तालमेल और उनका आधुनिकीकरण.’
पुस्तिका में इन उल्लेखनीय सुधारों का जिक्र किया गया है- चीफ ऑफ द डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति और तीनों सेनाओं में एकता तथा रक्षा मंत्रालय के साथ उनका तालमेल, रक्षा मामलों में स्वावलंबन और रक्षा उद्योग के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ की नीति को ठोस रूप देना, अनुसंधान एवं विकास में परिवर्तन, स्वेदशीकरण पर ज़ोर देते हुए साजोसामान अधिग्रहण को दुरुस्त करने के लिए ‘रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020’ लागू करना, रक्षा बजट में वृद्धि, रक्षा संबंधी निर्यात को बढ़ावा देने की नीति बनाना, सीमाओं पर इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना, रक्षा संबंधी कूटनीति को आगे बढ़ाना, सेना में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने, विभिन्न विभागों के डिजिटलीकरण, एनसीसी के विस्तार और सुधार, कोविड से लड़ने में देश की मदद करने जैसे कई नीतिगत फैसले करना और उन पर अमल करना.
रक्षा संबंधी सुधारों के मामले में नीतिगत फैसले करने के लिहाज से वर्ष 2020 बेहद अहम रहा है. अब असली चुनौती उन्हें लागू करने की है. सुधार ऐसे हैं जो मौजूदा व्यवस्था को निरंतर बेहतर काम करने की दिशा में आगे बढ़ाएंगे. लेकिन एक ऐसी समग्र एवं संश्लिष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति द्वारा सेना और रक्षा उद्योग कॉम्प्लेक्स लाए गए परिवर्तन की कमी है जिसके बूते 21वीं सदी वाले युद्ध लड़े जा सकें.
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राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति
रक्षा मंत्रालय की पुस्तिका रणनीतिक समीक्षा और इससे निकली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के बारे में चुप है. अगले 15-20 वर्षों में हमारी सुरक्षा को किस तरह के खतरों का सामना करना पड़ सकता है? उनका सामना करने के लिए किस तरह की सेनाओं की जरूरत पड़ेगी? हमारी अर्थव्यवस्था की क्या हालत है और हम रक्षा पर कितना खर्च कर सकते हैं? जब तक हम इन सवालों के जवाब नहीं सोच लेते तब तक पिछली सदी के युद्धों के लिए ही सेना में सुधार करते रहेंगे.
रक्षा योजना कमिटी के अध्यक्ष के रूप में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को (जो रक्षा मंत्री को रिपोर्ट करते हैं) 2018 में एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई. इस बात का उल्लेख उक्त पुस्तिका में नहीं किया गया है, जिसका संकेत यह है कि हम अभी भी दीर्घकालिक नज़रिए के बिना कार्यशील रणनीति अपना रहे हैं. इसका नतीजा यह होगा कि हम निरुद्देश्य रूप से सुधार और सैन्य तैयारी कर रहे हैं , जिस पर स्टीफन पी. कोहेन और सुनील दासगुप्ता ने अपनी किताब ‘आर्मिंग विदाउट एमिंग: इंडियाज़ मिलिटरी मॉडर्नाइजेशन ’ में कटाक्ष किया है.
सीडीएस और डीएमए
1 जनवरी 2021 को सीडीएस की नियुक्ति और डीएमए का गठन लीक से हट कर किया गया सुधार था. तीनों सेनाओं की एकता और थिएटर कमांडो के गठन के लिए लंबा समय चाहिए. वैसे सीडीएस, रक्षा सचिव, सेना अध्यक्षों के चार्टर में विरोधाभासों को दूर करने के लिए डेढ़ साल का समय पर्याप्त है.
भारत सरकार के ‘एलोकेशन ऑफ बिजनेस रूल्स’ के मुताबिक रक्षा विभाग के मुखिया, रक्षा सचिव की जिम्मेदारियां ये हैं- ‘भारत और उसके हरेक हिस्से की सुरक्षा, इसके साथ ही रक्षा नीति निर्धारण और रक्षा की तैयारियां, वे सारे काम जो युद्ध लड़ना आसान बनाएं और युद्ध खत्म होने के बाद सेना को प्रभावी विराम दें.’ तार्किक रूप से अब यह सीडीएस की ज़िम्मेदारी होगी.
रक्षा विभाग ‘सिर्फ सेनाओं के लिए परिसंपत्तियों के अधिग्रहण के लिए जिम्मेदार होगा.’ डीएमए ‘चालू नियमों और प्रक्रियाओं के तहत सेनाओं के लिए परिसंपत्तियों को छोड़कर बाकी चीजों के अधिग्रहण के लिए जिम्मेदार होगा.’
डीएमए और रक्षा विभाग के विलय पर बहुत ज़ोर दिया जा रहा है. रक्षा सचिव को या तो सीडीएस के तहत काम करना चाहिए या रक्षा मंत्री के सचिवालय का हिस्सा बनना चाहिए. जब तक ‘एलोकेशन ऑफ बिजनेस रूल्स’ में पूरी तरह बदलाव नहीं किया जाता तब तक सेना और नौकरशाही के बीच प्रतिद्वंदिता इन सुधारों को बेअसर करती रहेगी.
फिलहाल सीडीएस के पास तीनों सेनाओं के अध्यक्षों समेत किसी तरह की कमांड ज़िम्मेदारी नहीं है, तीनों या दो सेनाओं के थिएटर कमांड के गठन के साथ सरकार को इस मामले पर भी कोई फैसला करना पड़ेगा. नेशनल एअर डिफेंस कमांड और मेरिटाइम थिएटर कमांड का जल्दी ही गठन हो सकता है. अमेरिका में सभी थिएटर कमांड सीधे राष्ट्रपति या रक्षा मंत्री के अधीन काम करते हैं. लेकिन यह मॉडल भारत के लिए शायद ही उपयुक्त होगा.
मेरे विचार से सीडीएस को नियुक्ति के नहीं तो रैंक के हिसाब से तीनों सेना अध्यक्षों से सीनियर बनाने के सिवा और कोई उपाय नहीं है और थिएटर कमांडों को उनके अधीन रखना होगा, जिसके लिए एकीकृत डिफेंस स्टाफ में तीनों सेनाओं के ऑपरेटिंग डायरेक्टरेट के विलय के साथ इसका उपयुक्त पुनर्गठन करना पड़ेगा. सेनाओं के अध्यक्ष अपनी-अपनी सेना का प्रशासन और प्रशिक्षण करेंगे.
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रक्षा में आत्मनिर्भरता
स्वावलंबन के लिए रक्षा महकमे की आत्मनिर्भरता जरूरी है. रक्षा खरीद को ‘डिफेंस एक्वीजीशन प्रोसीजर 2020’ के जरिए दुरुस्त किया गया है. रक्षा और एरोस्पेस में स्वदेशी को बढ़ावा देने की नीति तैयार की गई है. 209 चीजों की ‘पॉज़िटिव इंडिजेनाइजेशन लिस्ट’ तैयार की गई है, जिनका आयात धीरे-धीरे बंद कर दिया जाएगा. रक्षा क्षेत्र में 74 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी दी गई है.
मंत्रिमंडल ने आयुध कारखाना बोर्ड के कॉरपोरेटीकरण की मंजूरी 16 जून को दे दी. स्वदेशी खरीद के लिए 52,000 करोड़ रुपये का अलग बजट रख गया है.
लेकिन उपरोक्त नीतियों और कार्यकारी फैसलों का लाभ मिलने में लंबा समय लगेगा. रक्षा उद्योग और डीआरडीओ में अनुसंधान व विकास और तकनीकी आधार फिलहाल उभरती प्रौद्योगिकीयों के लिए तैयार नहीं है. इसलिए, भारतीय रक्षा उद्योग या डीआरडीओ द्वारा डिजाइन तथा विकसित तकनीक में देसी सिस्टम के लिहाज से जो 50 प्रतिशत देसी तत्व की शर्त रखी गई है उसका उलटा नतीजा निकल सकता है. जब तक रक्षा उद्योग और डीआरडीओ में अनुसंधान व विकास और तकनीकी आधार बेहतर नहीं होता तब तक तकनीक के स्थानांतरण और विशेष देसी तत्व के साथ ‘मेक इन इंडिया’ बेहतर दांव होगा.
ओएफबी के कॉरपोरेटीकरण की घोषणा की गई है लेकिन सात नयी कॉर्पोरेट इकाइयों के आधुनिकीकरण के लिए भारी निवेश की जरूरत पड़ेगी. सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिरक्षा के मामले में भी यही सच है. इसके अलावा, नये कॉर्पोरेशन 70,000 कामगारों के संघ के असर में रहेंगे.
सिकुड़ता रक्षा बजट
सिकुड़ता रक्षा बजट रक्षा सुधारों के लिए सबसे बड़ी समस्या बनने जा रही है. रक्षा मंत्रलाय की उपरोक्त पुस्तिका ने वित्त वर्ष 2022 के लिए रक्षा बजट में 10 फीसदी वृद्धि (पिछले दशक में सबसे अधिक) दर्शायी है.
लेकिन पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों का हिसाब नहीं रखा गया है. और बहुत मांग की जा रही है. कुल वृद्धि मात्र 3,266 करोड़ रुपये की की गई है. सेनाओं ने जो अनुमान लगाया था और जो वास्तविक आवंटन हुआ उसमें बड़ी खाई है. पूंजीगत खर्च के लिए 77,182 करोड़ रुपये का और राजस्व व्यय के लिए 48,298 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया था.
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लुप्त हुए सुधार
आश्चर्य की बात है कि सेनाओं के आकार को उपयुक्त बनाने के लिए पुनर्गठन या पुन:संरचना की कोई बात नहीं की गई है. वेतन और पेंशन का हमारा बिल पूंजीगत खर्च के लिए आवंटन से बड़ा है. अर्थव्यवस्था और विकास व्यय की जो हालत है, उसके चलते निकट भविष्य में रक्षा बजट में वास्तविक वृद्धि की उम्मीद नहीं है. आधुनिक लड़ाई/युद्ध के लिए अत्याधुनिक सैन्य तकनीक से लैस छोटी मगर बेहद कुशल सेना चाहिए.
पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना ने करीब छह कम्बाइंड ब्रिगेड तैनात की थी. उनका सामना करने के लिए हमने 12 ब्रिगेड के साथ करीब चार डिवीजनों को तैनात किया. आधुनिक लड़ाई में तकनीक यही फर्क ला देती है.
सार यह कि रक्षा मंत्रालय ने सेना और रक्षा उत्पादन के आधुनिकीकरण के लिए कई बड़े नीतिगत कदम उठाए हैं. लेकिन ये सुधार समग्र और संश्लिष्ट नहीं हैं क्योंकि वे भविष्य के युद्ध के लिए तैयार की गई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में से नहीं निकले हैं.
इसके अलावा, मकसद और रक्षा बजट में तालमेल नहीं है. रक्षा मंत्री के लिए विवेकसम्मत यही होगा कि अलग-थलग सुधारों पर ज़ोर देने वाली ‘फील गुड’ नुमा पुस्तिकाएं जारी करने की जगह सेना और रक्षा उद्योग के कायाकल्प के लिए सर्वसमावेशी संश्लिष्ट रणनीति बनाएं जिसका रक्षा बजट से तालमेल हो और जिसके लिए व्यावहारिक समयसीमा निश्चित हो.
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड रहे हैं. रिटायर होने के बाद वो आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. व्यक्त विचार निजी हैं)
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