राजस्थान में जब सन् 2000 और राष्ट्रीय स्तर पर 2005 में सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ तो भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के लिए इस नए कानून का उपयोग करने वाले नागरिकों और कार्यकर्ताओं की कहानियों की बाढ़ आ गयी. जैसे कि सड़कें केवल कागजों पर बनी, फाइलों पर पैसा जारी हुआ, जो कभी जनता तक नहीं पहुंचा, इसी तरह की तमाम कहानियां सामने आईं.
राजस्थान में ऐसी स्थिति फिर से पैदा हुई है. एक नई सरकारी वेबसाइट का शुक्रिया अदा किया जा सकता है जिसकी वजह से इस तरह की तमाम कहानियां राज्य भर में फिर से देखने को मिल रही हैं. इसे जन सूचना पोर्टल कहा जाता है. इस वेबसाइट में सरकारी योजनाओं और उनके लाभार्थियों के बारे में जानकारी का एक बड़ा हिस्सा है. बहुत सारी चीजों के लिए लोगों को अब आरटीआई आवेदन दायर करने की आवश्यकता नहीं है. उन्हें बस https://jansoochna.rajasthan.gov.in पर जाना होगा. इसके लिए एक मोबाइल ऐप भी है.
लोग अब जाकर अपना नाम और अपने सरकारी लाभ की स्थिति देख सकते हैं. यदि कोई बूढ़ा व्यक्ति यह जानना चाहता है कि ‘मुझे पेंशन मिलना क्यों बंद हो गई है?’ तो उसे कई दिनों तक सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटना पड़ेगा या आरटीआई अर्जी दाखिल करनी होगी, जिसे नौकरशाही ने रोक दिया होगा और कई हफ्तों बाद पता चलता है कि वह सिस्टम में मृत घोषित कर दिया गया है. लेकिन, जन सूचना पोर्टल के लिए धन्यवाद. इस मामले में समाज सेविका अरुणा रॉय और निखिल डे के नेतृत्व वाले मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) के एक कार्यकर्ता ने तुरंत कारण खोजा और निर्णय को चुनौती दी. एमकेएसएस की सक्रियता, जो कि आरटीआई आंदोलन के पीछे थे, वही लोग जन सूचना के वास्तविक स्वरुप के पीछे हैं.
आरटीआई की जननी
पर्यटन परियोजना के लिए आपके आवेदन की स्थिति से लेकर कृषि ऋण माफी के अनुरोध तक सब जन सूचना पोर्टल में है. 13 विभागों में 32 योजनाओं के लिए 82 अलग-अलग अनुरोध विकल्प हैं. अधिकांश जानकारी दो तरीकों से दी जाती है. पहला, आप किसी भी दिए गए कोड (जैसे पीडीएस दुकान नंबर) या अपना आधार नंबर दर्ज कर सकते हैं और किसी विशेष व्यक्ति या केंद्र की स्थिति देख सकते हैं. एक और तरीका यह है कि राज्य भर में डेटा का पता लगाया जाए. यदि आप यह जानना चाहते हैं कि आपके गांव में कितने छात्रों को सरकारी छात्रवृत्ति दी गई है, तो आपको यह आसानी से मिल जाएगा.
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राजस्थान से जन सूचना पोर्टल के बारे में रिपोर्ट करते हुए द हिंदू की प्रिसिला जेबराज ने राजसमंद जिले की एक महिला की कहानी की है, जिसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जिसने सरकारी बीमा का दावा किया था. लेकिन जन सूचना वेबसाइट को अपने बीमा के पैसे जारी होने की जानकारी थी, इसलिए अस्पताल को झूठ बोलना बंद करना पड़ा और उसके पैसे वापस करने पड़े.
वन अधिकारों से लेकर विकलांग पेंशन, फसल ऋण से लेकर ऋण माफी तक, सूचना सीमा विस्तृत है. यह आरटीआई की जननी है. वास्तव में इसके दायरे में आरटीआई भी है. आप एक आरटीआई आवेदन की स्थिति का पता लगा सकते हैं और यहां तक कि यह भी देख सकते हैं कि दूसरे लोग क्या जानकारी प्राप्त कर रहे हैं और उनके उत्तर आरटीआई अधिनियम के तहत मिल रहे हैं. शुरुआती परेशानियां हैं, लेकिन यह तीन महीने से भी कम पुरानी है.
स्टेटस अपडेट
यहां अभी भी एक समस्या को हल किया जाना है जो कि डिजिटल डिवाइड है. एक अनपढ़ व्यक्ति स्मार्टफोन और इंटरनेट के बिना व्यक्ति को भी एक क्लिक पर सार्वजनिक सूचना की शक्ति की सबसे अधिक जरूरत है. सरकार के ई-मित्र उतने सहायक नहीं हैं जितना उन्हें होना चाहिए. इस क्रांतिकारी वेबसाइट के बारे में राजस्थान सरकार द्वारा प्रचार का भी अभाव है. जेबराज ने पाया कि पोर्टल से लाभान्वित होने वाले लोग हैं, लेकिन अभी भी ‘जन सूचना’ कला नाम नहीं सुना है. (अगर नरेंद्र मोदी सरकार ने इस तरह की साइट शुरू की थी तो प्रचार की कल्पना करें)
फिर भी यह वह बात है जो मुहजबानी फ़ैल जाएगी. एक मौन क्रांति की शुरूआत हो गई है, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार इसका श्रेय ले पाएगी या नहीं. मौन क्रांति अनिवार्य रूप से पूरे राजस्थान में फैलेगी और हर पीडीएस दुकान जो रियायती खाद्यान्न बेचती है, हर अधिकारी जो लोगों के पैसे चुराने के लिए फाइलों की गोपनीयता को छिपाता है, अब भ्रष्टाचार के लिए कठिन समय का सामना करेगा.
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कई सरकारी वेबसाइट एक्सल शीट या भारी पीडीएफ में टुकड़ों की जानकारी डाल रही हैं. जन सूचना अलग तरीके से करता है कि यह एक एकल, खोज-अनुकूल पोर्टल के तहत सार्वजनिक धन कैसे खर्च किया जाता है, इसकी महत्वपूर्ण जानकारी देता है. कई योजनाओं पर जानकारी ऐसे मिलती है जैसे हम निजी क्षेत्र से जानकारी लेते आये हैं. जैसे-जैसे फाइलें आगे बढ़ती हैं, फाइल की स्थिति को वास्तविक समय पर साइट पर प्रतिबिंबित करता है. आप बस अपना पंजीकरण नंबर दर्ज कर जांच सकते है.
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