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Thursday, 19 December, 2024
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श्रमिक स्पेशल ट्रेनें सिर्फ गड़बड़झाला हैं, अच्छा हो पीयूष गोयल आरोप-प्रत्यारोप करना बंद करें

इमरजेंसी की तारीफ में कहा जाता था कि इसमें रेलगाड़ियां वक़्त पर चलने-पहुंचने लगी थीं, लेकिन आज लॉकडाउन के दौर में तो रेलगाड़ियां गायब हो रही हैं और यात्री शवों के रूप में अपने ठिकानों पर पहुंच रहे हैं .

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अगर गोरखपुर के लिए चली ट्रेन ओडिशा के राऊरकेला पहुंच जाए और पटना के लिए चली ट्रेन पुरुलिया स्टेशन पर जा लगे, तो यह माना जाएगा कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें सचमुच कुछ ‘स्पेशल’ ही हैं. बेरोजगार हुए मजदूर अगर सैकड़ों मील पैदल न चलकर बल्कि पहियों से अपने घर तक पहुंच रहे हैं और इसे इस 21वीं सदी के भारत में बहुत ‘स्पेशल’ बताया जा रहा है, तो रेल मंत्री पीयूष गोयल को इस महान उपलब्धि के लिए जरूर सम्मानित किया जाना चाहिए.

गोयल ने इन ट्रेनों के ‘भटकाव’ को ‘रूट रेशनलाइजेशन’ के नाम पर सही ठहराने की कोशिश की जिसे उनके अनुसार, चुनिन्दा रूटों पर जाम को टालने के लिए किया गया था क्योंकि इनमें से अधिकतर ट्रेनें उत्तर प्रदेश के लिए थीं. लेकिन सीधी-सी बात यह है कि श्रमिक स्पेशलों के साथ जो कुछ हो रहा है उसे भारी गड़बड़झाला ही कहा जा सकता है. यही नहीं, यह नरेंद्र मोदी सरकार के लिए जनसंपर्क के मामले के लिहाज से एक दुःस्वप्न ही है.

यह कोई पहली बार नहीं है कि रेल विभाग और रेल मंत्री इस राष्ट्रीय परिवहन व्यवस्था के खराब प्रबंधन के लिए आलोचना का सामना कर रहे हैं. लेकिन इस बार घपले के लिए जिम्मेदार लोगों की ओर से दी जा रही सफाई का स्वर बदला हुआ है.

पहले जो रेल मंत्री होते थे वे जवाबदेह माने जाते थे. कुछ ने तो रेल हादसों के लिए अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी मानते हुए इस्तीफा तक दे दिया या पद छोड़ने की पेशकश की. लेकिन हमारे वर्तमान कलहप्रिय रेल मंत्री ट्रेनों में जान गंवाने वालों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करना तो दूर, ट्विटर पर प्रतिवाद में जुट जाते हैं.

1970 वाले दशक में लगाई गई इमरजेंसी की तारीफ में एक बात यह कही जाती थी कि उसमें रेलगाड़ियां वक़्त पर चलने-पहुंचने लगी थीं. लेकिन इस लॉकडाउन में तो ट्रेनें गायब हो रही हैं, उनके यात्री मृतक के रूप में अपने घर पहुंच रहे हैं और उनके शव प्लेटफॉर्मों पर लावारिस पड़े नज़र आ रहे हैं.


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अच्छे प्रस्ताव किए खारिज

इस भारी गड़बड़झाले के लिए गोयल भी जिम्मेदार हैं. उन्होंने उन कुछ नीतिगत उपायों को खारिज कर दिया जिन्हें उनके पूर्ववर्ती रेल मंत्री ने सुरेश प्रभु ने शुरू किया था और जिनसे इस राष्ट्रीय परिवहन व्यवस्था के उस संकट को दूर किया जा सकता था जिसमें आज वह फंस गई है. रेलवे को एकदम नया आइटी इन्फ्रास्ट्रक्चर देने के प्रभु के प्रस्ताव को रद्द करके गोयल ने रेलवे को माल, यात्री, संपत्ति, व्यवस्था आदि के प्रबंधन को दुरुस्त करने के अवसर से वंचित कर दिया है. प्रभु के प्रस्ताव के तहत इन सारी गतिविधियों को एक डिजिटल डैशबोर्ड के अंतर्गत लाया जा सकता था.

प्रभु ने रेलवे के आइटी बजट में 50 प्रतिशत की वृद्धि की थी. लेकिन गोयल की यह मान्यता आज महंगी साबित हो रही है कि रेलवे मौजूदा आइटी इन्फ्रास्ट्रक्चर के बूते ही अच्छी तरह काम कर सकता है. बेरोजगार हुए लाखों कामगारों को उनके घर पहुंचाने की चुनौती को रेलवे ने जिस तरह निबटाया वह घोर अराजकता ही साबित हुई और इसके लिए उसकी जो आलोचना हुई वह जायज ही है.

बड़ी चुनौती, छोटे उपाय

और, इस सबके लिए रेलवे की सफाई क्या है? उसने गड़बड़ियों के लिए असाधारण परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराया है. इसे मान भी लें, तो ट्रेनों में और प्लेटफॉर्मों पर भूख-प्यास से हो रही मौतों के लिए वह क्या जवाब देगी? इन ‘स्पेशल ट्रेनों’ में खाना-पानी का इंतजाम करना गोयल और उनके रेल विभाग के लिए मुश्किल क्यों हो गया? जानलेवा गर्मी में रेलवे स्टेशनों के बाहर घंटों तक खड़े रहकर ट्रेन का इंतज़ार करने वालों के लिए उनके पास क्या जवाब है?

दरअसल, रूट पर जाम लगने का बहाना समझ से परे है क्योंकि इस समय रेलवे अपनी सारी ट्रेनें नहीं चला रही है. इन मौतों के लिए रेलवे मृतकों के बुढ़ापे या उनमें पहले से मौजूद बीमारियों को जिम्मेदार ठहराकर पल्ला नहीं झाड़ सकती. इस तर्क से तो हरेक प्राकृतिक आपदा के लिए भगवान को, और बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था की नाकामी के लिए जनता द्वारा दुरुपयोग को जिम्मेदार बताकर छुट्टी पाई जा सकती है. सरकार के अस्तित्व का औचित्य तो इसी में है कि भारी संकट में भी वह नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करे.


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रेलवे की भूमिका से बेखबर

दरअसल गोयल की सबसे बड़ी विफलता यह रही कि उन्हें यह एहसास होने में देर लग गया कि प्रवासी मजदूरों के संकट को हल करने में रेलवे की भी भूमिका बनती है. वे प्रवासी मजदूरों को ट्वीट से संदेश भेज रहे थे कि 10 से कम और 65 से ज्यादा उम्र के या गंभीर बीमारी से ग्रस्त लोग यात्रा न करें. वे सलाह दे रहे थे कि लोग तभी यात्रा करें जब ‘बेहद जरूरी हो’.

लेकिन रेल मंत्री जी को पता होना चाहिए था कि लोगों के पास यात्रा करने के सिवा कोई उपाय नहीं था क्योंकि अस्पताल पहले से ही कम डॉक्टरों पर चल रहे थे इसलिए रोगी वहां जा नहीं सकते थे, और मजदूरों के घरों का किराया सरकार दे नहीं सकती थी. पहले से ही दूसरी बीमारी से ग्रस्त लोग सड़क पर तो रह नहीं सकते, न ही बेरोजगार हुए मजदूर सड़कों पर भीख मांग सकते हैं.

अपने आरामदेह निवास या दफ्तर में बैठकर इस तरह की सलाह ट्वीट करने से पहले गोयल को अपनी सरकार से पूछना चाहिए था कि इन लोगों की किस तरह मदद की जा सकती है. दो महीने से ज्यादा के लॉकडाउन में रहे लोगों से यह कैसे कहा जा सकता है कि वे अपने घर से दूर रहें, जबकि जिन शहरों में वे काम करते हैं वहां उन्हें खाना-पानी-मकान जैसी बुनियादी सुविधाएं तक न उपलब्ध हों?

प्रवासी मजदूरों के ट्रेन किराये के भुगतान को लेकर जो विवाद हुआ उसने साफ कर दिया कि इस संकट को लेकर गोयल और मोदी सरकार कितनी गंभीर थी. भाजपा प्रवक्ता संबित पात्र ने कहा कि 85 प्रतिशत ट्रेन भाड़ा केंद्र सरकार और 15 प्रतिशत राज्य सरकारें दे रही हैं. लेकिन अब खुलासा हो चुका है कि राज्य सरकारें ही इन यात्रियों का भाड़ा चुका रही थीं.


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राजनीतिक खेल भी जारी

प्रवासी मजदूरों के संकट को लेकर जो राजनीतिक खेल चला उसने पूरे मामले को घिनौना और अमानवीय रूप दे दिया. गोयल महाराष्ट्र सरकार के साथ ट्वीटर तकरार में उलझ गए; और राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ जैसे भाजपा शासित राज्यों पर केंद्र से असहयोग करने की आरोप लगाया.

फेसबुक लाइव पर संबित पात्र के साथ बातचीत में गोयल ने रेलवे से सहयोग न करने के लिए इन राज्यों की तीखी आलोचना की. रेल मंत्री अपनी ही सरकार का यह ताज़ा निर्देश देखना शायद भूल गए कि रेलवे राज्यों की अनुमति लिये बिना भी श्रमिक स्पेशल चला सकती है.

अशोक गहलोत और हेमंत सोरेन ने गोयल के दावे का तुरंत खंडन किया और कहा कि उन्होंने इन ट्रेनों के लिए सभी ‘एनओसी’ दे दिए थे.

ऐसा लगता है कि चुनावी मौसम अभी भी चल रहा है. ममता बनर्जी को ढुलमुल साबित करना था, क्योंकि वे ट्रेनों को बंगाल में आने नहीं दे रही हैं (भले ही अंफन तूफान के कारण ऐसा हुआ हो). वैसे भी वहां चुनाव होने ही वाले हैं. या उद्धव ठाकरे को सुस्त बताया जा सके, क्योंकि गोयल तो महाराष्ट्र से चलाने के लिए 145 ट्रेनों के साथ तैयार बैठे थे मगर राज्य सरकार केवल 27 ट्रेनें ही भर पाई. लेकिन कोई भी इस बात से बेखबर नहीं है कि भाजपा महाराष्ट्र सरकार को अस्थिर करने में जी-जान से जुटी है.

बहरहाल, वक़्त आ गया है कि मोदी सरकार कुछ गंभीर आत्ममंथन करे. उनके कुछ मंत्री अपना काम ठीक से अंजाम नहीं दे पा रहे हैं और यह काम के बहाने बनाना नहीं है.

(लेखक एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

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2 टिप्पणी

  1. Congress ki chamchi ne fir se bakwass Kari…..Gupta ji apki Kya mazboori hai
    In jaise bebkoof logo ke lekh chapne ki…….apko dusara koi secular musalman dekhana chiye Jo acha content likh sakta ho….in Congress chap…madrsa chap logo se aap ache content ki ummid mat Kari….yah the print ko le dubenge

  2. Bhai ye kehna kya chahati he. Ye hi samajh nahi aaya. Ese log bhi article likhte he.kam se kam article likhna toh seekh le.

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