scorecardresearch
Saturday, 16 August, 2025
होमThe FinePrintSIR पर राहुल के आरोप BJP को दे सकते हैं बढ़त, देशभर में मृत और प्रवासी वोटर हटाने का रास्ता साफ

SIR पर राहुल के आरोप BJP को दे सकते हैं बढ़त, देशभर में मृत और प्रवासी वोटर हटाने का रास्ता साफ

राहुल गांधी और कांग्रेस अपने आरोपों पर कभी भी स्थिर नहीं रही है. वे अपनी हार की वजह अपने नेतृत्व की क्षमता और संगठन में ढूंढने के बजाय अलग-अलग प्रक्रियाओं में ढूंढते हैं. राहुल गांधी एक नेता की तरह नहीं, बल्कि गांव के मास्टर की तरह नजर आते हैं.

Text Size:

विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनावी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए. उन्होंने कांग्रेस पार्टी की ओर से वोट चोरी करने के पांच तरीकों को देश के सामने रखा. डुप्लिकेट मतदाता, फर्जी और गलत पते, एक ही पते पर बहुत सारे मतदाता, गलत तस्वीरें, और फॉर्म 6 का गलत इस्तेमाल.

राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो आरोप लगाए, वे दरअसल चुनाव आयोग के बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न अभियान के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं और भाजपा को बढ़त दिला सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि राहुल गांधी ने चुनाव आयोग और सत्ता पक्ष को पूरे देश में स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न जैसी प्रक्रिया लागू करने का मौका दे दिया है.

सत्ता पक्ष जिन बातों का आरोप लगा रहा था, राहुल गांधी ने उन्हीं आरोपों को सही साबित कर दिया है. अब फर्जी वोटर, मृत वोटर और प्रवासी वोटर जैसी समस्याएं खत्म होने की संभावना है. इस प्रक्रिया ने पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न जैसे अभियान का रास्ता खोल दिया है.

दोहरी वोटिंग की समस्या

राहुल गांधी ने जो आरोप लगाएं, वे कोई नए नहीं हैं. चुनाव के समय वोटर लिस्ट में ऐसी गड़बड़ियां पहले से होती रही हैं. शहरों में ये समस्या और ज्यादा है, क्योंकि यहां लोगों का पलायन ज्यादा होता है. कई लोग अपने गांव या पुराने घर से दूसरे शहर या राज्य में चले जाते हैं. अगर कोई व्यक्ति किसी नए राज्य या जिले में छह महीने से ज्यादा रह लेता है, तो वह वहां का मतदाता बन सकता है. इस तरह वह दो जगह का वोटर बन जाता है, क्योंकि देश में ऐसी कोई एक समान प्रणाली नहीं है जो इसे रोक सके. हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया में सुधार की सख्त जरूरत है.

दूसरा आरोप था नकली और गलत पते का. यह भी बहुत आम समस्या है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि चुनाव आयोग के अधिकारी या कर्मचारी पूरा पता ठीक से दर्ज नहीं करते, बल्कि समय बचाने के लिए कॉपी-पेस्ट कर देते हैं.

ऐसे में जरूरत है कि उन्हें सही तरीके से ट्रेनिंग दी जाए और बताया जाए कि यह कितनी गंभीर प्रक्रिया है. इसलिए गलत या अधूरा पता होना, अपने आप में नकली वोटर होने का सबूत नहीं है. वोटर लिस्ट में कई बार किसी का नाम तो सही होता है, लेकिन फोटो किसी और का लगा होता है. अमान्य फोटो होना आम बात है और ऐसे मामले कम ही होते हैं. यह गलती तकनीकी खराबी से भी हो सकती है या कर्मचारियों की वजह से भी. फिर भी, वोटिंग के समय सही फोटो के साथ आधार कार्ड जैसे वैध पहचान पत्र भी चेक किए जाने चाहिए.

एक समय था जब वोट चोरी करना, बूथ लूटना और वोट खराब कर देना आम बात थी. इन कारणों से गांवों में एक वोट के लिए हिंसा भी हो जाती थी. लेकिन धीरे-धीरे चुनाव प्रक्रिया में सुधार हुआ और यह सब काफी हद तक रुक गया. आज के समय में गांव में फर्जी वोट डालना आसान नहीं है, क्योंकि बूथ पर अलग-अलग पार्टियों के एजेंट मौजूद रहते हैं और नजर बनाए रखते हैं.

साथ ही, तर्जनी अंगुली पर चांदी के नाइट्रेट वाली अमिट स्याही लगाई जाती है, ताकि कोई दोबारा वोट न डाल सके. ऐसी चीजों की जांच करना मुश्किल नहीं है और यह जांच जरूर होनी चाहिए ताकि चुनावी प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जा सके.

आखिरी आरोप, फॉर्म 6 का गलत इस्तेमाल का लगाया. बड़े शहरों में लोगों का आना-जाना बहुत आम है. यहां ज्यादातर आबादी बाहर से आती है, और अगर कोई छह महीने से ज्यादा यहां रह ले, तो वह यहां का वोटर बन सकता है. इसके लिए फॉर्म 6 का इस्तेमाल किया जाता है. ज्यादा उम्र के लोगों द्वारा इसका इस्तेमाल सही भी हो सकता है, लेकिन यह एक वाजिब शक भी पैदा करता है, जिसे गंभीरता से लेना जरूरी है.

2014 से 2025 तक आरोपों का सफर

अब दूसरा पहलू है राहुल गांधी द्वारा अपनी चुनावी हार का ठेकरा बार-बार ईवीएम और चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाने का है. राहुल गांधी के आरोप हमेसा से एक समान नहीं रहे हैं, उनके आरोप वर्ष 2014 से अस्थिर रहे हैं. वर्ष 2014 में आरोप लगाया कि जनता हिंदूवादी हो गई, वर्ष 2019 में आरोप लगा कि ईवीएम हैक हो रही है और उत्तर भारत की अति पिछड़ी जातियां हिंदुत्व के प्रभाव में आ गई हैं.

वर्ष 2024 में दावा किया गया कि भाजपा लाखों वोटरों का वोट दूसरे राज्यों में शिफ्ट करती है और गड़बड़ी करती है और आखिरकार वर्ष 2025 में मामला वोटर लिस्ट में धांधली तक आ पहुंचा.

इसलिए राहुल गांधी और कांग्रेस अपने आरोपों पर कभी भी स्थिर नहीं रही है.

राहुल गांधी अपनी हार की वजह अपने नेतृत्व की क्षमता और संगठन में ढूंढने के बजाय अलग-अलग प्रक्रियाओं में ढूंढते हैं. वे एक नेता की तरह नहीं, बल्कि गांव के मास्टर की तरह नजर आते हैं, जो हाथ में डंडा लेकर बच्चों को रटवाने का काम करता है. एक असरदार और करिश्माई नेता में लोगों से जुड़ने की कला, दूर की सोच, मुश्किल वक्त में शांत रहकर फैसले लेने की क्षमता, भरोसा बनाने वाला स्वभाव और अलग-अलग सोच के लोगों को साथ लाने का हुनर होता है. नेता होना सिर्फ पार्टी को अपना ही एजेंडा देना नहीं होता है, बल्कि लोगों के दिलों में जगह बनाना और अपने साथ नए लोगों को जोड़ना भी होता है.

लेकिन राहुल गांधी में ऐसे बुनियादी और प्रेरित करने वाले गुण साफ नजर नहीं आते. जो लोग उनसे मिलते हैं, वे अक्सर मायूस और नाखुश लौटते हैं क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा के बाद से वे देश के विभिन्न जाति समुदायों के प्रतिनिधि मंडल से मिल रहे हैं. वे अबतक जिस भी प्रतिनिधि मंडल से मिले उन्हें वे अपने साथ जोड़कर नहीं रख पाए. इस संबंध में दो उदाहरण महत्वपूर्ण हैं जो बिहार है और कुछ ही महीनों में बिहार में चुनाव होना है.

राहुल की नाकामी और कांग्रेस की संगठनात्मक चुनौतियां

पहला, बिहार के आई. पी. गुप्ता, जो कांग्रेस में थे, वे अपने जाति मुद्दों को राहुल गांधी से एक घंटे से ज्यादा मुलाकात करने के बाद कुछ ही दिनों में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बना ली. उन्होंने पटना में एक रैली की जो अब तक की सबसे बड़ी और मशहूर रैलियों में गिनी गई. दूसरा, बिहार के मुकुल आनंद विश्वकर्मा, जो लोहार जाति के मुद्दों पर सक्रिय हैं और लंबे समय से उचित प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं. वे भी राहुल गांधी से अपने प्रतिनिधि मंडल के साथ मुलाकात की, लेकिन कुछ ही समय बाद वे भी कांग्रेस में जाने के बजाय उन्होंने भी अपनी नई पार्टी बना ली. ये दोनों नेता बिहार की राजनीति में लगभग 5-7 प्रतिशत वोटों की अहमियत रखते हैं.

सवाल यह है कि राहुल गांधी ऐसे लोगों को अपने साथ क्यों नहीं जोड़ पाए? और उन्हें प्रभावित क्यों नहीं कर पाए? जबकि यह एक नेता की महत्वपूर्ण विशेषता नए लोगों को जोड़कर रखने की होती है.

यह स्थिति उनकी नेतृत्व क्षमता और संगठन निर्माण में आने वाली चुनौतियों को दर्शाती है. पिछले तीन वर्षों में, अपनी करिश्माई छवि के बावजूद, वे ऐसे प्रभावशाली और व्यापक जनाधार वाले व्यक्तियों को साथ नहीं ला सके जो पार्टी के लिए संगठनात्मक रूप से निर्णायक भूमिका निभा सकें. यह नेतृत्व शैली और संगठनात्मक रणनीति, दोनों के लिए एक गंभीर चुनौती है.

यदि कांग्रेस को भाजपा जैसी पार्टियों से प्रभावी मुकाबला करना है, तो उसे नेतृत्व की क्षमता पर ध्यान देना होगा, दिल्ली के कार्यालय से अधिक कार्यकर्ताओं को जमीनी स्तर पर सक्रिय करना होगा, स्थानीय आवाज़ों को दर्ज करने की संस्कृति विकसित करनी होगी, संगठन में नए और संघर्षशील युवाओं को अवसर देना होगा, और प्रदेश, जिला एवं बूथ स्तर पर सुदृढ़ संगठनात्मक ढांचा बनाकर उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना होगा. तभी वह भाजपा जैसी संगठनात्मक रूप से मजबूत पार्टी से मुक़ाबला कर पाएंगे वरना राहुल गांधी और उनकी पार्टी बस मास्टर की तरह ही चीजों को रटवाने में लगी रहेगी.

पंकज कुमार जामिया मिल्लिया इस्लामिया, के सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट में डॉक्टरेट कर रहे हैं. उनके रिसर्च का टॉपिक है – ग्लोबलाइजेशन और बैकवर्ड क्लास: ईस्टर्न उत्तर प्रदेश में बदलाव. उनकी एकेडमिक इंटरेस्ट रिसर्च मेथडोलॉजी, यूपी-बिहार की सोशल-पॉलिटिकल स्ट्रक्चर, चुनावी और पार्टी पॉलिटिक्स, और सोशल जस्टिस में है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.


यह भी पढ़ें: ऑपरेशन सिंदूर प्रधानमंत्री मोदी की जीत थी, लेकिन उनकी पार्टी के नेता ही इसे कमज़ोर बना रहे हैं


 

share & View comments