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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतराहुल गांधी के हाथों में पार्टी की कमान क्यों कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए माकूल साबित हो सकती है

राहुल गांधी के हाथों में पार्टी की कमान क्यों कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए माकूल साबित हो सकती है

फिलहाल तो भरोसे से यही कहा जा सकता है कि कार्यसमिति की पिछली बैठक के बाद ‘जी-21’ (जितिन प्रसाद और वीरप्पा मोइली की रवानगी के बाद) मुकाबला हार गया है लेकिन जंग जारी रहेगी.

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क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रियंका गांधी को निशाना बनाने से परहेज करते हैं? प्रियंका तो उन पर लगातार हमले कर रही हैं, उन्हें कमजोर और कायर तक कह चुकी हैं. लेकिन मोदी उन्हें सीधे जवाब देने से कतराते रहे हैं, बल्कि वे ‘जीजाजी ‘ और ‘दामादजी ‘ यानी उनके पति रॉबर्ट वाड्रा पर तीर चलाते रहे हैं.

प्रियंका जब लखीमपुर खीरी से उन पर सीधा वार कर रही थीं तब भी मोदी शांत रहे और माकूल जवाब देने का काम भाजपा के कम महत्वपूर्ण नेताओं के जिम्मे छोड़ दिया.

भाजपा के एक सांसद से मैंने पिछले सप्ताह पूछा, ‘वे प्रियंका पर हमला करने से शरमा क्यों रहे हैं? गांधी परिवार की एकमात्र वही सदस्य हैं जिन्हें मोदी बख्शते रहे हैं.’ जवाब मिला, ‘आप क्या चाहते हो? मोदीजी प्रियंका गांधी को नेता बना दें ? वैसे भी वे खुद ही अपना नुकसान कर रही हैं. क्या आपने नहीं देखा कि सीतापुर में वे पुलिस अधिकारियों को किस तरह तू, तुम कहकर बात कर रही थीं? लोगों को इस तरह का लहजा पसंद नहीं है.’

जो भी हो, इस जवाब ने भाजपा की रणनीति का अंदाजा दे दिया कि मोदी प्रियंका पर हमला करके उनका राजनीतिक कद नहीं बढ़ाना चाहते. कांग्रेस के अंदर अपने परिवार का वर्चस्व जताने के मामले में वे अपने भाई राहुल गांधी जैसी ही निर्मम और उतावली हैं. लेकिन वे राहुल से कई मामलों में काफी बेहतर हैं जैसे भाषण देने में, राजनीतिक दिखावा और संवाद के महत्व को समझने के मामले में और लखीमपुर खीरी में किसानों के या सोनभद्र में गोंड आदिवासियों की हत्या जैसे मौके का लाभ लेने के मामले में. इसलिए भाजपा वाले यही चाहते हैं कि राहुल ही मोदी को मुख्य चुनौती देने वाले के रूप में उभरें.


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भाजपा के लिए माकूल राहुल

शनिवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का जो नतीजा रहा उससे भगवा दल के नेता जरूर संतुष्ट हुए होंगे. इस बैठक ने अगले सितंबर में कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राहुल की वापसी का रास्ता साफ कर दिया. सुनने में यह अजूबा भले लगे मगर भाजपा के नेता अपनी निजी बातचीत में राहुल को अपनी पार्टी के लिए ‘सबसे बड़ी थाती’ मानते हैं. आप चाहें या न चाहें, चुनावों के नतीजे और तमाम सर्वे यही संकेत देते हैं कि राहुल जब मुख्य चुनौती के रूप में सामने होते हैं तब मोदी के लिए चुनावी मुकाबले आसान हो जाते हैं.

2010 में जब मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की केवल चर्चा ही शुरू हुई थी तब से ‘इंडिया टुडे’ के अर्द्धवार्षिक ‘देश का मिजाज’ सर्वेक्षणों पर नज़र डालें. अगस्त 2010 में हुए इस सर्वे में जब लोगों से सवाल पूछा गया था कि सबसे बेहतर प्रधानमंत्री कौन हो सकता है, तब राहुल को 29 प्रतिशत और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को मात्र 9 प्रतिशत लोगों ने अपनी पसंद बताया था. उसके बाद जनवरी और अगस्त 2011 के इन सर्वेक्षणों में भी मोदी क्रमशः 9 और 12 फीसदी मत पाकर राहुल (क्रमशः 20 और 21 फीसदी मत) से पीछे रहे थे. लेकिन जनवरी 2012 के सर्वे में मोदी पहली बार राहुल (17 फीसदी) के मुकाबले 24 फीसदी मत पाकर आगे निकल गए थे. इसके बाद से यह सिलसिला अटूट जारी है.

अगस्त 2021 में आकर आंकड़े बदल गए हैं मगर यह सिलसिला जारी है. कोविड की महामारी और उसके आर्थिक परिणामों ने ‘सबसे बेहतर प्रधानमंत्री’ के तौर पर मोदी की रेटिंग को भारी चोट पहुंचाई है. उक्त सर्वे के मुताबिक अगस्त 2021 में यह 24 फीसदी के आंकड़े पर पहुंच गई जबकि एक साल पहले 66 फीसदी और छह महीने पहले 38 फीसदी के आंकड़े पर थी. लेकिन उनके नुकसान से राहुल को बहुत फायदा नहीं हुआ है. उन्हें अगस्त 2021 में 10 फीसदी मत मिले जबकि इससे पहले के दो सर्वेक्षणों में 7 और 8 फीसदी मत मिले थे. यानी राहुल की हालत ‘पुनर्मूषीको भव’ वाली हो गई. 2012 में उन्हें 24 और मोदी को 17 फीसदी मत मिले थे, तो एक दशक बाद अगस्त 2021 में मोदी को 24 और उन्हें 10 फीसदी मत मिले हैं.

सार यह है कि ‘इंडिया टुडे’ के पिछले एक दशक के सर्वेक्षणों में अगले प्रधानमंत्री के रूप में लोगों की पसंद में राहुल मोदी से पिछड़ते ही रहे हैं.

अब हम यह देखेंगे कि इन सर्वेक्षणों में राहुल कांग्रेस में कितने स्वीकार्य रहे हैं. अगस्त 2021 के सर्वे में भाग लेने वाले 45 फीसदी लोगों ने कहा कि गांधी परिवार से मुक्त कांग्रेस ज्यादा अच्छी स्थिति में रहेगी, जबकि 45 फीसदी ने इससे इनकार किया. गांधी परिवार के लिए सांत्वना की बात यह है कि पिछले सात महीने से उसका ग्राफ ऊपर चढ़ रहा है. जनवरी 2021 के इस सर्वे में शामिल 52 फीसदी लोगों ने कहा कि गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करेगी.

अगस्त 2019 में यह आंकड़ा 49 फीसदी था. गौरतलब है कि जनवरी 2021 में 16 फीसदी ने कहा था कांग्रेस की कमान मनमोहन सिंह के हाथों में दी जाए, जबकि 15 फीसदी चाहते थे कि राहुल कमान संभालें. उस सर्वे में पहली बार गांधी परिवार से बाहर के किसी नेता ने उसे पीछे छोड़ा था. लेकिन सोनिया-राहुल-प्रियंका की गांधी त्रिमूर्ति को 35 फीसदी का समर्थन मिला था. इसका अर्थ है कि संयुक्त गांधी परिवार किसी भी दूसरे कांग्रेसी नेता पर भारी है.


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राहुल कमान संभाल लें तब क्या होगा

उपरोक्त सर्वे संकेत देता है कि राहुल को अगला कांग्रेस अध्यक्ष चुनने के फैसले को भाजपा के साथ उसके मुकाबले के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए. कांग्रेस गांधी वंश के ताज का हीरा है और उसने इसे मजबूती से और निर्विवाद रूप से अपने कब्जे में कर लिया है, जबकि गुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक जैसे असंतुष्टों ने पार्टी कार्यसमिति की बैठक में अपने हथियार डाल दिए.

अब आगे क्या होगा? मई में कार्यसमिति की बैठक के बाद सोनिया गांधी ने पश्चिम बंगाल, असम, केरल, पुडुचेरी विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार के कारणों की समीक्षा के लिए पांच सदस्यीय पैनल का गठन किया था. पिछले शनिवार को कार्यसमिति की बैठक में हर कोई उस समीक्षा रिपोर्ट का इंतजार कर रहा था, खासकर राहुल के नेतृत्व में केरल में लड़े गए चुनाव रिपोर्ट का. लेकिन वह रिपोर्ट तो आनी नहीं थी.

इसकी जगह, जिन पांच राज्यों में अब चुनाव होने वाले हैं उनके पार्टी प्रभारियों ने पार्टी की फीकी संभावनाओं का संकेत दिया. उनका आकलन था कि तृणमूल कांग्रेस मणिपुर और गोवा में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है. ममता बनर्जी फूली नहीं समा रही होंगी, इन राज्यों में तृणमूल ने पिछले कुछ सप्ताहों में जो कदम बढ़ाए हैं उसके चलते इस विशाल पार्टी को डर समा गया है.

उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी प्रियंका ने यथार्थपरक चित्र पेश करते हुए कबूल किया कि वहां पार्टी की संभावनाएं बहुत अच्छी नहीं हैं लेकिन वे कोशिश में जुटी हैं और उन्हें बेहतर नतीजे मिलने की उम्मीद है. 2007 से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान लगभग राहुल गांधी के हाथ में ही रही और 2019 में जब उन्होंने यह कमान प्रियंका को सौंपी थी तब पार्टी बिखरी हुई हालत में थी. वे ही बता सकती थीं कि पहले ही जो नुकसान हो चुका है उसे दुरुस्त करना कितना कठिन है.

पंजाब और उत्तराखंड में पार्टी के चुनाव प्रभारी पार्टी की संभावनाओं को लेकर काफी आशावादी हैं. गांधी परिवार को भी इन दो राज्यों से बड़ी उम्मीदें हैं. राहुल ने बड़े गर्व से बताया कि उन्होंने जब चरणजीत सिंह चन्नी से कहा कि वे पंजाब के नये मुख्यमंत्री होंगे तो वे किस तरह रो पड़े थे. एक दलित सिख को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले की आत्म-प्रशंसा भरी जानकारी ने उनकी मां सोनिया गांधी के इस दावे का खंडन कर दिया कि वे ही पार्टी की पूर्णकालिक अध्यक्ष हैं.

कार्यसमिति की शनिवार को हुई बैठक के बाद गांधी परिवार की पकड़ मजबूत तो नज़र आती है मगर कई ऐसी सूक्ष्म बातें हैं जो 10, जनपथ में जश्न के माहौल को फीका कर सकती हैं. एक तो यह कि राहुल ने जब गर्व के साथ चन्नी के सिर पर हाथ रख दिया है तब साफ है कि मुख्यमंत्री बनने के ख्वाब देख रहे नवजोत सिंह सिद्धू के लिए पटाक्षेप हो गया है. लेकिन सिद्धू किसी को छोड़ते नहीं. इसी तरह, जबकि अगले सितंबर में पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होना है, तो इसका अर्थ है कि आलाकमान अगले एक साल तक तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल को नहीं छेड़ेगा. अब इस पर उनके प्रतिद्वंदी सचिन पायलट और टी.एस. सिंहदेव क्या कदम उठाएंगे, यह कयास लगाना मुश्किल है.

फिलहाल तो भरोसे से यही कहा जा सकता है कि कार्यसमिति की पिछली बैठक के बाद ‘जी-21’ (जितिन प्रसाद और वीरप्पा मोइली की रवानगी के बाद) मुकाबला हार गया है लेकिन जंग जारी रहेगी.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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