अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा में ट्रेनी (आईएएस) अधिकारी पूजा खेडकर का मामला, जिसमें कथित रूप से विकलांगता और ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट के दुरुपयोग के जरिए से सिलेक्शन शामिल है, ने सिर्फ विवादों को जन्म देता है, बल्कि इसने सिविल सेवा परीक्षा में लोगों के भरोसे को भी डगमगा दिया है, जिससे वे यूपीएससी के सिलेक्शन प्रोसेस की पवित्रता पर सवाल उठा रहे हैं. इसने उन युवाओं को निराश किया है जो इस तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं को सकारात्मक बदलाव लाने का साधन मानते हैं. हालांकि, खेडकर का मामला, जिसने सत्ता के दुरुपयोग पर कई महत्वपूर्ण बहसों को आमंत्रित किया है, अपनी तरह का कोई पहला मामला नहीं है. रिश्वतखोरी, शोषण, भाई-भतीजावाद और बहुत कुछ से जुड़े भ्रष्टाचार की कहानियां असामान्य नहीं हैं, खासकर भारत के कुलीन नौकरशाही हलकों में.
समस्या यही है कि इन मुद्दों पर बहुत कुछ लिखा गया, बहसें हुईं चर्चाएं हुईं, लेकिन बहुत कम प्रगति हुई है. कुछ लोग अखिल भारतीय सेवाओं को पूरी तरह से खत्म करने का तर्क देते हैं, जिसे मूल रूप से अंग्रेज़ों ने उपनिवेशित आबादी पर शासन करने के लिए भारतीय सिविल सेवा (ICS) के रूप में स्थापित किया था. यहां तक कि पहले भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी भारतीय नौकरशाही में सुधार करने में अपनी असमर्थता को अफसोस के साथ स्वीकार किया: “मैं प्रशासन को नहीं बदल सका; यह एक औपनिवेशिक प्रशासन बना हुआ है.”
पूर्व IAS अधिकारी और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव के अनुसार, लगभग 25 प्रतिशत आईएएस अधिकारी या तो भ्रष्ट, अक्षम या अकुशल हैं. हालांकि, यह तर्क कि इस अकुशलता और भ्रष्टाचार को केवल सिस्टम को खत्म करके और एक नया सिस्टम स्थापित करके ही हल किया जा सकता है, मुझे पसंद नहीं आता.
क्या हम वास्तव में भ्रष्टाचार का तिरस्कार करते हैं?
भ्रष्टाचार भारतीय समाज में मौजूद है और पनपता है क्योंकि इसे अक्सर सामाजिक रूप से स्वीकार किया जाता है और कुछ मामलों में इसे आकांक्षा के रूप में भी देखा जाता है. धन, प्रभाव और संबंधों के जरिए से मिले परिणामों का आकर्षण नैतिक विचारों को पीछे छोड़ सकता है. यहां तक कि जो लोग नैतिक रूप से भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं, वे भी अक्सर खुद को इसमें संलिप्त हो जाते हैं, एक ऐसी व्यवस्था के अनुकूल हो जाते हैं जहां कुप्रथाओं को अस्तित्व और आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी माना जाता है. यह हमारे सामाजिक मूल्यों के बारे में एक महत्वपूर्ण सवाल उठाता है: क्या हम वास्तव में भ्रष्टाचार का तिरस्कार करते हैं, या क्या हम गुप्त रूप से इसके परिणामों की प्रशंसा करते हैं — जैसे कि धन संचय और शक्ति — जो कभी-कभी इसकी सुविधा प्रदान करती है?
मैंने देखा है कि कुछ लोग अपने निजी दायरे में इस बात पर चर्चा करते हैं कि जिन सिविल सेवकों ने भावी पीढ़ियों को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त धन संचय नहीं किया है, वे या तो भोले हैं या मूर्ख. सरकार के भीतर मुनाफाखोरी और भ्रष्टाचार की एक हद तक सामाजिक रूप से स्वीकार्य मानी जाती है. निराशा तभी होती है जब यह उस ‘उचित’ सीमा को पार कर जाती है.
भ्रष्ट प्रथाओं के इस सामान्यीकरण से एक गहरी समस्या का पता चलता है: अधिकार के पदों पर बैठे लोगों को केवल लोक सेवक नहीं देखा जाता है; उन्हें कुछ विशेषाधिकारों के हकदार व्यक्ति समझा जाता है. इस समस्या को ठीक करने के लिए, विशेष रूप से अखिल भारतीय सेवाओं के भीतर, केवल कानूनी और संस्थागत सुधारों से कहीं अधिक की दरकार है. इसके लिए हमारी सामूहिक चेतना में एक बुनियादी बदलाव की ज़रूरत है.
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भ्रष्टाचार के लिए बहुआयामी समाधान की दरकार
राजनेताओं के विपरीत, जिन्हें गलत कामों के लिए चुनावी नतीजों का सामना करना पड़ता है, आईएएस अधिकारी, जिन्हें महत्वपूर्ण प्रशासनिक भूमिकाएं सौंपी जाती हैं, वे कम प्रत्यक्ष जवाबदेही के साथ काम करते हैं. इसलिए, सिस्टम के भीतर पारदर्शिता और अखंडता सुनिश्चित करने वाले सुधारों को लागू करना भी महत्वपूर्ण है.
इसके अलावा, उन अधिकारियों को स्वीकार करना और उनकी सराहना करना भी महत्वपूर्ण है, जिन्होंने लगातार अपनी ईमानदारी और समर्पण को बनाए रखा है. अशोक खेमका एक उदाहरण हैं, जो दिखाते हैं कि जब एक आईएएस अधिकारी वास्तव में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए प्रतिबद्ध होता है, तो क्या हासिल किया जा सकता है. 1991 से हरियाणा कैडर में सेवारत, खेमका अपने भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों के लिए जाने जाते हैं, जैसे कि एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्ति के रिश्तेदार से जुड़े एक अवैध भूमि सौदे को रद्द करना.
दुर्भाग्य से, उनके सराहनीय काम के लिए उन्हें 30 साल में (2023 तक) 55 से अधिक तबादलों का सामना करना पड़ा है. ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने अपने कर्तव्यों को पूरी लगन से निभाने की कीमत चुकाई है. आईएएस अधिकारी नरेंद्र कुमार को कथित तौर पर मध्य प्रदेश के मुरैना में रेत माफिया ने मार डाला था, क्योंकि उन्होंने इलाके में अवैध खनन को रोकने के लिए साहसिक प्रयास किए थे.
सिस्टम में भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की दरकार होती है: पारदर्शिता बढ़ाना, जवाबदेही लागू करना, व्हिसलब्लोअर की सुरक्षा करना, डिजिटल सिस्टम लागू करना, कानूनी और न्यायिक ढांचे में सुधार करना और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना. हालांकि, बदलाव लाने और करने की हमारी अपनी प्रेरणा भी उतनी ही ज़रूरी है.
यह हम पर निर्भर करता है कि हम किसकी ओर देखना चुनते हैं — खेडकर जैसी अधिकारी, जिन्होंने कथित तौर पर निजी लाभ के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया, या खेमका और कुमार जैसे लोग, जिन्होंने बाधाओं के बावजूद ईमानदारी और साहस के साथ काम किया. बेशक, हम दागी रिकॉर्ड वाले नौकरशाहों की खुले तौर पर प्रशंसा या समर्थन नहीं कर सकते हैं, लेकिन हममें से कई लोग सत्ता का दुरुपयोग करने से मिलने वाले लाभों और सुविधाओं से आकर्षित होते हैं. हमारी सामूहिक आकांक्षा ही हमारा भाग्य निर्धारित करेगी.
(आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वह ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक साप्ताहिक यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका एक्स हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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