scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतकैदियों को हुनरमंद बनाइए ताकि वे जेल से निकलने के बाद समाज में इज्जत से जुड़ सकें

कैदियों को हुनरमंद बनाइए ताकि वे जेल से निकलने के बाद समाज में इज्जत से जुड़ सकें

विभिन्न अध्ययनों के आंकड़े यही बताते हैं कि जेल में बंद हजारों युवाओं को अगर समाज में सम्मानजनक तथा अपराध मुक्त जीवन जीने के लिए हुनरमंद नहीं बनाया गया तो वे अपराध की दुनिया की ओर मुड़ सकते हैं.

Text Size:

संस्कृति मंत्रालय ने पिछले दिनों देश की 75 चुनिंदा जेलों में ध्यान, प्रार्थना एवं आत्मबोध का कार्यक्रम आयोजित किया. यह पहल तो सराहनीय है लेकिन जेलों के सुधार के लिए मुख्य जोर उसके कैदियों की आजीविका एवं आर्थिक पुनर्वास पर दिया जाना चाहिए. यह न केवल युवा कैदियों को बेहतर भविष्य दे सकता है बल्कि समाज की कुल बेहतरी में भी योगदान दे सकता है.

अधिकतर राज्यों की जेलों में कैदियों को हुनरमंद बनाने और उनकी आजीविका के सुव्यवस्थित, संगठित एवं सरकारी पैसे से चलने वाले कार्यक्रम नहीं चल रहे हैं. लेकिन कई जेलों का शुभाकांक्षी तथा प्रेरणास्पद नेतृत्व सामाजिक संगठनों और थोड़े-से सरकारी फंड की मदद से ऐसे कई कार्यक्रम चलाता है. वैसे, राहत की बात यह है कि कई राज्यों ने अपने सभी सरकारी विभागों को जेल में उत्पादित चीजों की ही खरीद करने की अधिसूचना जारी कर रखी है.


यह भी पढ़ें: गुजरात के साथ वेदांता-फॉक्सकॉन का सौदा, MVA-शिंदे सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू


कैदी दे सकते हैं हथकरघा को जीवनदान

गृह मंत्रालय कपड़ा मंत्रालय के साथ मिलकर हर राज्य की एक जेल में हथकरघा केंद्र स्थापित करने की पहल कर सकता है. अधिकतर राज्यों की जेलों के कारोबारों में बुनकरी भी शामिल है. कुछ निजी सामाजिक संगठन भी जेलों में हथकरघे को बढ़ावा दे रहे हैं. वैसे, बिजली से चलने वाले करघों की वजह से हथकरघा की बुनाई लुप्त होती कलाओं में शामिल होती जा रही है. इस शिल्प को जीवनदान देने की जरूरत है और कपड़ा मंत्रालय इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जेलों को अपना सकता है.

हथकरघा के उम्दा उत्पादों की काफी मांग है. इस लेखक ने 2017 में हिमाचल प्रदेश की जेलों में हथकरघा वर्कशॉप को ‘हर हाथ को काम’ परियोजना के तहत सुधारने का काम किया था. जेल में अधिक हथकरघा खरीदे गए या लकड़ी की वर्कशॉप में बनाए गए. शॉल, चादर, ऊनी कपड़े, कंबल आदि उम्दा हथकरघा उत्पादों को तैयार करने के लिए कैदियों को बेहतर प्रशिक्षण दिलाया गया, अच्छे डिजाइन और कच्चा माल, आदि उपलब्ध कराए गए. कपड़ा मंत्रालय से अनुरोध किया गया कि वह हिमाचल प्रदेश की जेलों में बने सामान पर हथकरघा का ‘लोगो’ लगाने का अधिकार दे.

‘एनसीआरबी’ की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में कुल 39,313 कैदियों को, जो जेलों में बंद कैदियों की संख्या का 10 प्रतिशत भी नहीं है, विभिन्न तरह के व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया गया. ज्यादा प्रशिक्षण हथकरघा चलाने, बुनाई करने, बढ़ईगीरी और खेती करने का दिया गया. डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़े कारोबार कैदियों की पहुंच से अभी भी दूर हैं.


यह भी पढ़ें: BJP के सांगठनिक पुनर्गठन में मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ मंत्र को मिला नया आयाम


हुनर विकास के साथ पुनर्वास

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अहमदाबाद के कांकरिया में जेल अधिकारियों के खेलों के आयोजन का उद्घाटन करते हुए कहा था कि ‘जेल प्रशासन की अनदेखी नहीं की जा सकती. जेलों के प्रति समाज का नजरिया बदलने की जरूरत है. जेल की सजा काट रहे सभी कैदी जन्मजात अपराधी नहीं होते बल्कि हालात ने उन्हें आपराधिक काम करने को मजबूर किया होता है… यह जेल प्रशासन की ज़िम्मेदारी है कि जो लोग जन्मजात, आदतन अपराधी नहीं हैं उन्हें समाज में दोबारा जुड़ने के लायक बनाएं.’

शाह ने कैदियों के लिए पुस्तकालय उपलब्ध कराएं, उनके पुनर्वास के लिए उनका प्रशिक्षण और शिक्षण कराया, जेलों में अच्छे अस्पताल बनवाएं और कैदियों के मानसिक विकास की गतिविधियां चलाए.

लेकिन जेलों में कुशल प्रशिक्षक और शिक्षक नहीं होते. कौशल विकास तथा उद्यमशीलता मंत्रालय जेलों और कैदियों के लिए विशेष कार्यक्रम तैयार करें ताकि अशिक्षित कैदी भी जेल से रिहा होने के बाद अपना गुजारा करने लायक काम कर सकें. बताया जाता है कि मंत्रालय ने विशाल आबादी के लिए पांच हजार से ज्यादा हुनर के कार्यक्रम तैयार किए हैं. जेलों को भी उनके दायरे में लिया जाए तो यह कैदियों का जीवन बदल सकता है.

उम्मीद की जाती है कि गृह मंत्री के उक्त बयान के बाद उनका मंत्रालय दूसरे मंत्रालयों के साथ तालमेल करके कैदियों को हुनरमंद बनाने के कार्यक्रम तैयार करने में बड़ी भूमिका निभाएगा. जेलों जैसे बंद माहौल में ऐसे कार्यक्रम प्रायः ऊपर से थोपे जाते हैं, जिसके कारण वे आधे-अधूरे ही सफल हो पाते हैं. प्रशिक्षुओं के रुझान, उद्योग तथा व्यापार जगत के लिए मुफीद हुनर, उपलब्ध इन्फ्रास्ट्रक्चर और कुशल प्रशिक्षकों आदि जरूरतों का ध्यान रखते हुए सहभागिता का रास्ता चुना जाए तो यह इस क्षेत्र में सफलता का फॉर्मूला साबित हो सकता है.


यह भी पढ़ें: ‘दिल्ली सरकार के असफल वादे, शराब घोटाला’ -गुजरात, हिमाचल में कैसे आप को घेरने की रणनीति बना रही भाजपा


कैदियों के काम का बाजार मूल्य

कैदियों को अलग-अलग राज्य में अलग-अलग मेहनताना दिया जाता है. एनसीआरबी की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक जेल में बंद एक कुशल कामगार का औसत रोजाना वेतन 111 रुपया है, अर्द्ध-कुशल कामगार का 95 रुपए और अकुशल कामगार का 88 रुपए है. हिमाचल प्रदेश में अकुशल कामगार को न्यूनतम 300 रुपया रोजाना भुगतान किया जाता है. विभिन्न हुनर वाले कैदियों के लिए पारिश्रमिक में वृद्धि की निश्चित ही गुंजाइश है.

लेकिन केवल प्रशिक्षण और मैन्युफैक्चरिंग से काम नहीं चलेगा. जेलों में बनाई गई चीजों की आम तौर पर काफी मांग होती है. एनसीआरबी का आकलन है कि कैलेंडर वर्ष 2021 में जेलों में 238 करोड़ मूल्य की चीजें बनाई गईं. जेल में बनी चीजों को देखने और खरीदने के लिए केंद्र तथा राज्यों के स्तर पर उन्हें व्यापक बाजार मुहैया कराने की जरूरत है. दिल्ली हाट जैसे मशहूर स्थानों पर हरेक राज्य को बारी-बारी से अपनी जेलों में बनी चीजों को पेश करने का मौका दिया जाना चाहिए.

नेशनल इन्फोर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) सभी राज्यों की जेलों में बनी चीजों की बिक्री के लिए एक पोर्टल और मोबाइल एप बना सकता है ताकि वे पूरे देश की बड़ी आबादी तक पहुंच सकें. निजी खुदरा विक्रेताओं को जेलों में बनी चीजों को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि उनमें उन्हें ज्यादा मुनाफा नहीं मिलता.


यह भी पढ़ें: उज्बेकिस्तान में मोदी-शी वार्ता के लिए चीन ने अपनी बंदूकों के मुंह झुका तो लिये लेकिन भारत मुगालते में न रहे


उत्पादकता का उपयोग करें

जेलों में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक 46 फीसदी कैदी ऐसे हैं जो अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य हैं. अपने परिवार की मदद न कर पाने की हताशा, चिंता, असहायता, गुस्सा प्रकट करने वाले इन कैदियों की ओर से संकेत बिल्कुल साफ है कि ‘भूखे भजन न होए गोपाला’. केवल ध्यान और भजन से उनके परिजनों की भूख नहीं शांत हो सकती.

हम 2021 के लिए जेलों की जनसांख्यिकी पर नज़र डालें, जिसे राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने जारी किया है. कुल कैदियों में 87 फीसदी 18-50 आयुवर्ग के हैं जिन्हें उत्पादक माना जाता है. इस आयुवर्ग वाले व्यक्ति की उसके परिवार को सबसे ज्यादा जरूरत होती है. उनका कैद हो जाना उनके परिवार को भी भुक्तभोगी बना देता है, उनको समाज का कलंक, उपेक्षा, अपमान और पैसे की तंगी का सामना करना पड़ता है और सबसे बड़ी बात यह कि परिवार के ऊपर साया बनकर रहने वाला कोई नहीं होता.

दूसरे आंकड़े बताते हैं कि अशिक्षा और अपराध के बीच सीधा संबंध है. 25 फीसदी कैदी अनपढ़ हैं, जबकि दूसरे 400 फीसदी कैदियों ने मैट्रिक से नीचे की पढ़ाई की है. इनमें दूसरे 40 फीसदी ऐसे कैदियों को भी जोड़ लें जिन्होंने ग्रेजुएशन से नीचे तक ही पढ़ाई की है. यानी 89 फीसदी कैदी ऐसे हैं जिनकी शैक्षणिक योग्यता ग्रेजुएशन से कम है.

जेलों को अक्सर अपराध की पाठशाला कहकर बदनाम किया जाता है. ऊपर दिए गए आंकड़े यही बताते हैं कि हजारों युवाओं को अगर समाज में सम्मानजनक तथा अपराध मुक्त जीवन जीने के लिए हुनरमंद नहीं बनाया गया तो वे अपराध के सिंडिकेट, ड्रग्स और अवैध शराब बिक्री के गिरोहों, भाड़े के गुर्गों के गिरोह और दूसरे असामाजिक तथा राष्ट्र विरोधी गिरोहों में भर्ती होने को आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं.

नेल्सन मंडेला की एक मशहूर उक्ति है: ‘कहा गया है कि किसी राष्ट्र को आप तब तक सच्ची तरह नहीं जान सकते जब तक आप उसकी जेलों में नहीं गए हों. किसी राष्ट्र का मूल्यांकन इस आधार पर नहीं होना चाहिए कि वह अपने शीर्ष नागरिकों के साथ कैसा बर्ताव करता है बल्कि इस आधार पर होना चाहिए कि वह अपने सबसे नीचे के स्तर के नागरिकों के साथ कैसा बर्ताव करता है.’

हमारे नीति निर्माताओं का ध्यान उन 46 फीसदी कैदियों पर होना चाहिए जिनके परिवार को भोजन तभी मिलता है जब वे कमाते हैं.

(सोमेश गोयल हिमाचल प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं. उन्होंने नेशनल डिफेंस कॉलेज में पढ़ाई की. वे अपनी परियोजना ‘हर हाथ को काम’ से काफी मशहूर हुए, जिसका लक्ष्य जेलों के अंदर और बाहर के कैदियों को आजीविका के अवसर उपलब्ध कराना है ताकि वे समाज में बेहतर तरीके से घुल-मिल सकें. सोमेश गोयल जेलों, पुलिस और आंतरिक सुरक्षा जैसे विषयों पर प्रायः लिखते रहते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘हौसला अभी टूटा नहीं’- ‘रेप’ मामले में लिंगायत स्वामी के खिलाफ खड़े NGO के लिए विवाद कोई नई बात नहीं


 

share & View comments