भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई 2022 को समाप्त हो रहा है और नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा उद्घोषणा कर दी गई है.
उल्लेखनीय है कि भारत में लगभग सभी पदों पर चुनाव के लिए वयस्क मताधिकार पर आधारित प्रत्यक्ष चुनाव को अपनाया गया है वहीं राष्ट्रपति के चुनाव के लिए एक इलेक्टोरल कॉलेज या निर्वाचक-मंडल की स्थापना की गई है. संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार, राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से एक इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा किया जाता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
1. संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य,
2. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी सहित सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य.
राज्यसभा और लोकसभा या राज्यों की विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य निर्वाचक मंडल में शामिल होने के लिए पात्र नहीं हैं. इसी तरह, विधान परिषदों के सदस्य भी राष्ट्रपति के चुनाव में निर्वाचक नहीं हैं.
यहां कुछ तथ्य विचारणीय हैं कि भारत के राष्ट्रपति का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से ना किया जाकर एक इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा क्यों किया जाता है? इस मतदान में भी विधायिका के केवल निर्वाचित प्रतिनिधि ही क्यों भाग लेते हैं? क्या समान विशेषाधिकार विधायिका के मनोनीत सदस्यों को भी प्राप्त है? राज्य विधानसभाओं का उच्च सदन यानि विधानपरिषद राष्ट्रपति चुनाव में क्यों भाग नहीं लेता? इत्यादि.
इन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में जाना पड़ेगा जबकि भारत का संविधान अपने निर्माण की प्रक्रिया में था. इसके लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया था. इसी संविधान सभा द्वारा भारत संघ के राष्ट्रपति के चयन के लिए एक निर्वाचक-मंडल द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव की प्रणाली को अपनाया गया.
यह भी पढ़ें : खुद अपनी हंसी उड़ाकर ‘इस्लामोफोबिया’ का कैसे मखौल उड़ा रहे हैं मुस्लिम कमेडियन
इलेक्टोरल कॉलेज या निर्वाचक मंडल क्या है
इलेक्टोरल कॉलेज निर्वाचकों का एक समूह होता है जो किसी विशेष पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार का चयन करते हैं. विश्व के अनेक देशों में सर्वोच्च पदों के लिए चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज प्रचलन में है जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, म्यांमार, बुरुंडी, एस्टोनिया, कजाखस्तान, मेडागास्कर, त्रिनिदाद और टोबैगो, वनुआतु इत्यादि प्रमुख हैं. इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली के बारे में कहा जाता है कि प्रत्यक्ष चुनाव की तुलना में यह कम लोकतान्त्रिक है. इसके द्वारा चुना गया व्यक्ति देश की जनता की लोकप्रिय पसंद नहीं होता.
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा क्यों
संविधान सभा में भारत के राष्ट्रपति को वयस्क मताधिकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाने के बारे में अनेक तर्क-प्रतितर्क दिए गए लेकिन अंत में यही निर्णय लिया गया कि राष्ट्रपति को एक निर्वाचक मंडल द्वारा चुना जाएगा. चूंकि पूरा संविधान अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के बजाय संसदीय शासन प्रणाली पर आधारित है, जिसमें ‘दो प्रकार की कार्यपालिकाएं’ हैं, एक ‘नाम मात्र की’ और दूसरी ‘वास्तविक’. संसदीय शासन में व्यवस्थापिका द्वारा चुना गया ‘प्रधानमंत्री’ ही ‘वास्तविक कार्यपालिका’ है और उसी के ऊपर प्रशासन की जिम्मेदारी है. वयस्क मताधिकार के आधार पर ‘नाममात्र की कार्यपालिका राष्ट्रपति’ का चुनाव समय की बर्बादी और अनावश्यक भ्रम पैदा करेगा. अतः राष्ट्रपति को एक इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा चुनने पर ही सहमति दी गई.
भारत की संविधान सभा के एक सक्रिय सदस्य प्रोफेसर के टी शाह संघ में राष्ट्रपति के पद को अधिक शक्तिशाली बनाना चाहते थे. उनका कहना था कि राष्ट्रपति के चुनाव में जनता की इच्छा को सर्वोपरि होना चाहिए. राष्ट्रपति प्रधानमंत्री का एक प्रकार का ग्रामोफोन नहीं हैं. वह लोगों का वास्तविक प्रतिनिधि है, और एक राज्य के प्रमुख के रूप में कार्य करने के लिए चुना गया है. प्रोफेसर शाह का तर्क था कि चुनी हुई संसद को समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है. जबकि राष्ट्रपति का चुनाव एक निश्चित अवधि के लिए होता है, वह राजनीतिक उतार चढ़ाव की स्थिति में संतुलन बनाए रखता है और सरकार को स्थिरता देता है. ऐसे में राष्ट्रपति को वयस्क वोट द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुना जाना अत्यंत उपयुक्त होगा, ना कि निर्वाचक मंडल द्वारा.
डॉक्टर बी. आर. अंबेडकर ने प्रारूप समिति की बहस में इन संशोधनों को अस्वीकारते हुए कहा कि भारत जैसे विशाल देश में राष्ट्रपति के लिए प्रत्यक्ष चुनाव आयोजित करवाने में जनसंख्या को देखते हुए मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक होगी. दूसरी कठिनाई प्रशासनिक मशीनरी की आएगी जो चुनाव को आयोजित करने, मतदान को रिकार्ड करने और अन्य प्रबंधन में लगेगी.
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बाधा भारतीय संविधान में राष्ट्रपति की स्थिति थी. यदि राष्ट्रपति संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के समान शक्तिशाली स्थिति में होता तो प्रत्यक्ष चुनाव के पक्ष में तर्क को समझा जा सकता था. लेकिन भारतीय संघ में राष्ट्रपति केवल एक नाममात्र का अध्यक्ष है. उसके पास वैसी कार्यकारी या प्रशासनिक शक्तियां नहीं है जो संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के पास हैं. ऐसे में उसके प्रत्यक्ष चुनाव का कोई औचित्य नहीं बनता.
डॉक्टर अम्बेडकर का कहना था कि, ‘वह (संघ का राष्ट्रपति) संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के समान स्थिति में नहीं हैं. यदि हमारे भारतीय संविधान के तहत किसी भी कार्यकारी की तुलना संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ की जानी है, तो वह प्रधानमंत्री है, न कि संघ के अध्यक्ष. जहां तक प्रधानमंत्री का संबंध है, संविधान में निस्संदेह यह प्रावधान है कि वह लोगों द्वारा वयस्क मताधिकार पर चुने जाएंगे.’
यह भी पढ़ें : ज्ञानवापी मामले में AIMPLB की अपील असंवैधानिक, गरीब मुसलमानों को ही होगा नुकसान
राष्ट्रपति के चुनाव में केवल निर्वाचित सदस्यों को ही भाग लेने का अधिकार
संविधान सभा में व्यापक विचार विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल में विधायिका के केवल निर्वाचित सदस्यों को ही मतदान का अधिकार मिलना चाहिए, नामित सदस्यों को नहीं क्योंकि वे जनता द्वारा नहीं चुने गए हैं.
राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल में राज्य विधानमंडलों के उच्च सदन को मताधिकार नहीं
संविधान के निर्माण के समय भारत का संघ अपना रूप नहीं ले पाया था. अनेक राज्यों ने ये निर्णय नहीं लिया था कि वे भारत संघ में सम्मिलित होंगे अथवा नहीं. कई राज्यों में लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गई विधायिकाएं भी नहीं थीं तो कहीं राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनावों का बहिष्कार किया था. परिणाम स्वरूप जहां कहीं भी विधायिका थी वहाँ मताधिकार संकीर्ण और सांप्रदायिक रेखाओं पर आधारित था. विधायिकाओं में मनोनीत सदस्यों की संख्या बहुत अधिक थी जो धनाढ्य वर्ग के जमींदार, जागीरदार और विशेष हितों से संबंधित लोग थे. इन्हीं सब कारणों से संविधान सभा के अनेक सदस्य प्रांतीय विधानमंडलों को निर्वाचक मंडल में सम्मिलित नहीं करना चाहते थे.
परंतु सभा ने माना कि राष्ट्रपति की शक्तियां केंद्र के साथ-साथ राज्यों के प्रशासन से भी संबंधित होती हैं. इसीलिए यह आवश्यक है कि उनके चुनाव में न केवल संसद के सदस्यों की भूमिका हो वरन राज्य विधानमंडलों के सदस्यों की भी आवाज होनी चाहिए और यह सदन जनता द्वारा चुना गया निम्न सदन ही हो सकता है.
इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत के संविधान निर्माता चाहते थे कि राष्ट्रपति पद को किसी भी विरोध और दलीय राजनीति से ऊपर होना चाहिए जो प्रत्यक्ष चुनाव की स्थिति में संभव नहीं होता. साथ ही प्रधानमंत्री पद के साथ अनावश्यक संघर्ष और अंतर्विरोध ना हों, इन्हीं उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए सम्यक विचारोपरांत उन्होनें संघ के राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव को अपनाया. भारतीय गणतंत्र में अद्यतन राष्ट्रपति का पद निर्विवाद, गरिमामय और प्रत्येक नागरिक द्वारा सम्मानित है जो संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि का ही परिचायक है.
(लेखिका डॉ सुमन मिश्रा नारी शिक्षा निकेतन पी जी कॉलेज, लखनऊ में राजनीति विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और संसदीय विषयों की जानकार हैं)
यह भी पढ़े: पैगंबर के खिलाफ BJP नेताओं की टिप्पणी पर बांग्लादेश ने इस कदर चुप्पी क्यों साध रखी है