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Thursday, 18 April, 2024
होममत-विमतखुद अपनी हंसी उड़ाकर ‘इस्लामोफोबिया’ का कैसे मखौल उड़ा रहे हैं मुस्लिम कमेडियन

खुद अपनी हंसी उड़ाकर ‘इस्लामोफोबिया’ का कैसे मखौल उड़ा रहे हैं मुस्लिम कमेडियन

प्रमुख मुस्लिम हस्तियां जबकि खामोश हैं, तब ये हास्य कलाकार ही हैं जो खुद अपना ही मज़ाक उड़ाकर इस्लाम के प्रति पूर्वाग्रहों का जवाब दे रहे हैं.

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अपने मन की बात कह डालने को क्या भारत में कोई अहमियत दी जाती है? इस सवाल पर जरा गहराई से सोचिए. आप अपना नजरिया खुल कर ऐसे कैसे जाहिर करें कि आपके खिलाफ एफआइआर न दर्ज हो या आप गिरफ्तार न कर लिये जाएं या सरकारी अमला आपके घर पर बुलडोजर न चला दे?

मुस्लिम स्टैंड-अप हास्य कलाकारों ने इन सबसे बचने का अलग उपाय ढूंढ लिया है— खुद अपने ऊपर तंज़ कसना. बढ़ते पूर्वाग्रहों का जवाब देने और घिसी-पिटी धारणाओं को तोड़ने के लिए वे खुद को ही किस्सों-गल्पों के सहारे नीचा दिखा रहे हैं. वे खुद अपनी त्रासदी का जिस तरह मज़ाकिया ढंग से विवरण प्रस्तुत करते हैं वह श्रोताओं में उनके प्रति हमदर्दी पैदा करता है.

फॉर्मूला क्या है

इस मामले में सबसे अच्छे उदाहरण हैं मुनव्वर फारूकी. उन्हें इंदौर में उस चुटकुले के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, जो वे अपने शो में पेश करने ही जा रहे थे. अपने ऊपर, खासकर मुसलमान होने के लिए कटाक्ष करने वाले उनके जोक्स के वीडियो इतने लोकप्रिय हो गए कि उन्हें उस रियलिटि शो करने की ज़िम्मेदारी मिल गई, जो बेहद सियासी रुझान वाला था.

‘लॉकअप’ नामक उनके इस शो में वामपंथी और दक्षिणपंथी प्रतियोगी उस जेलर की जेल में कैदी हैं जिसकी जेलर दक्षिणपंथी जमात की चहेती कंगना रनौत हैं. वास्तव में, रनौत पूरे शो में मुनव्वर की इसलिए तारीफ करती नज़र आती हैं क्योंकि वे प्रामाणिक और प्रतिस्पर्द्धी हैं. असली बात यह है कि मुनव्वर अपना मखौल उड़ाकर श्रोताओं की उस विशाल जमात का दिल जीत लेते हैं, जो वैसे तो शायद उनसे नाराज हो जाती.

अधिकतर मुस्लिम कमेडियन इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल कर रहे हैं: अपना मज़ाक उड़ाकर अपने समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रहों को सामने लाओ. उरूज़ अशफाक़, रहमान ख़ान, मोहम्मद अनस, हसीब ख़ान, अब्बास मोमिन, मोहम्मद हुसेन, और उन जैसे कई कलाकार सीधे नफरत और झूठ से टक्कर लेते हुए उस ‘इस्लामोफोबिया’ का जवाब देते हैं जिसका सामना मुसलमानों को प्रायः करना पड़ता है. लेकिन यह वे अपने जीवन के एक प्रसंग के जरिए अपनी हंसी उड़ाकर करते हैं. यह किस्सागोई की शैली में होता है लेकिन यह धर्मांधता की बेहद करीबी स्थितियों के बारे में होता है जिसका वे सामना कर चुके होते हैं.

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कोई भी विषय अछूता नहीं छोड़ा जाता. ये हास्य कलाकार सोशल मीडिया के प्रोपगंडा के बूते गढ़ी गई जिन घिसी-पीटी धारणाओं का जवाब दे रहे हैं उनमें यह भी है कि मदरसों में पढ़ने वाले युवा आतंकवादी संगठनों में शामिल हो रहे हैं; कि मुसलमान साफ-सफाई नहीं रखते; कि वे अपनी बहन तक से शादी कर लेते हैं; कि वे राष्ट्रवादी या देशभक्त नहीं हैं; कि वे वैक्सीन का विरोध करते हैं, आदि-आदि.


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सटीक चुटकुले

रहमान ख़ान के एक मज़ाक को शायद हर भारतीय समझ जाएगा, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, क्योंकि उसने अपनी जिंदगी में इसे जरूर देखा या सुना होगा. वे गली की किसी दुकान पर दोस्तों के साथ भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच देखने की कहानी सुनाते हैं. ज़हीर ख़ान या यूसुफ पठान की गेंद पर जब-जब कोई पाकिस्तानी बल्लेबाज चौका लगाता है तब-तब हर बार दुकानदार चीखता है— ‘अबे कट…’ (एक गाली जो खतना करा चुके मुसलमान के लिए इस्तेमाल की जाती है). रहमान कहते हैं कि हर बार उन्हें कितना बुरा लगता है. साथ बैठा दर्शक उनसे कहता है, तुम इतने परेशान क्यों हो रहे हो, देखो मैं भी ‘कट…’ हूं.

उरूज़ अशफाक़ ने भी अपने ऐसे ही एक अनुभव का जिक्र किया कि ऊबर की टैक्सी में सफर करते हुए उन्होंने उसके ड्राइवर से पूछा कि उससे पहले ऊबर के तीन ड्राइवरों ने उनकी बुकिंग क्यों रद्द कर दी? उन्हें उनके घर छोड़ने जा रहे उस ड्राइवर ने जवाब दिया कि वे सब जरूर मुसलमान रहे होंगे, सारे मुसलमान चोर होते हैं.

मोहम्मद अनस उस वाकये को मज़ाक के रूप में पेश करते हैं, जब आइएएस की तैयारी कर रहे उनके दोस्त ने उनसे कहा था कि तुम तो आइएसआइएस की तैयारी कर रहे होगे? गुस्से और भावनाओं के उभार के इस दौर में हंसी-मज़ाक चल जाता है.

काफी लोकप्रिय अंशुल सक्सेना ने, जो राजनीतिक घटनाओं पर तीखी नज़र रखते हैं, बताया कि मशहूर स्टैंड-अप कलाकार कुणाल कमरा ने किस तरह अपने पुराने ट्वीटों को डिलीट कर दिया क्योंकि पैगंबर मुहम्मद के बारे में टीवी पर नूपुर शर्मा के आपत्तिजनक बयान के बाद अल्पसंख्यक जमात उनसे नाराज हो सकती है.

प्रमुख मुस्लिम हस्तियां जबकि खामोश हैं, मुस्लिम स्टैंड-अप कलाकारों को ही इस दौर के गुमनाम हीरो में शुमार किया जा सकता है.

किसी और की नहीं बल्कि अपनी ही हंसी उड़ाते ये कलाकार ही हैं जो श्रोताओं के सामने खड़े हो रहे हैं और अपनी परेशानियां बयान कर रहे हैं. ‘सिस्टम’ की पोल खोलने के लिए ये कलाकार खुद को ही मूर्ख के रूप में पेश करते हैं जबकि उनके विचार इतने खतरनाक होते हैं कि दूसरे मौकों पर वे उन्हें अप्रत्याशित परेशानियों में डाल सकते हैं.

इस लिहाज से वे काफी कुछ शेक्सपियर के नाटकों के मूर्ख पात्रों जैसे हैं, हालांकि हास्य-व्यंग्य प्रतिशोध से बचाव का कवच नहीं बन सकता. गौरतलब है, शेक्सपियर के नाटक ‘किंग लियर’ में बादशाह का विरोध करने वाला मूर्ख पात्र कहता है, ‘वे मुझे सच बोलने के लिए कोड़े मारेंगे, आप मुझे झूठ बोलने के लिए कोड़े से पीटे जाने की सज़ा देंगे, और कभी-कभी तो मुझे खामोश रहने के लिए भी कोड़े मारे जाते हैं.’

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका एक राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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