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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतवर्तमान राजनैतिक हालात में किस पार्टी के लिए 'दिल्ली' अभी दूर है

वर्तमान राजनैतिक हालात में किस पार्टी के लिए ‘दिल्ली’ अभी दूर है

2015 के दिल्ली चुनाव में आदमी पार्टी ने 67 सीटें जीतकर तहलका मचा दिया था. कांग्रेस, मजबूत नेतृत्व के अभाव में शून्य पर सिमट गयी थी और भाजपा को केवल 3 सीटें मिलीं थीं.

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दिल्ली की जब बात होती है, तो राजनैतिक गलियारों में या आम-बोलचाल में एक कहावत जुबां पर आ जाती है कि ‘दिल्ली अभी दूर है.’ इससे पहले हम वर्तमान दिल्ली राजनीति की बात करें, इस कहावत के पीछे की कहानी जान लेते हैं. 1325 के समय दिल्ली में गयासुद्दीन तुगलक नाम का शासक था, जो सोनारगांव (वर्तमान समय में ढाका के पास) की लड़ाई जीतकर वापिस दिल्ली आ रहा था. यमुना से कुछ किलोमीटर पहले गयासुद्दीन का काफिला जश्न मनाने लगा. ये वो समय था जब एक सूफी संत निज़ामुद्दीन औलिया का दिल्ली में बहुत नाम था. बड़ी संख्या में गरीब लोग उस फ़कीर के पास आया करते थे. निज़ामुद्दीन औलिया राजा नहीं था, लेकिन चर्चे इतने थे की ओहदा राजा जैसा हो गया था. गयासुद्दीन, औलिया के चर्चों से परेशान हो गया था और इसलिए उसने सूफी संत निजामुद्दीन औलिया को संदेशा भिजवाया कि दिल्ली में या तो सुल्तान गयासुद्दीन रहेंगे या फ़कीर. इसका जवाब निज़ामुद्दीन औलिया ने बहुत प्यार और सौम्य लहजे में दिया और कहा कि गयासुद्दीन से जाकर कहो ‘हुनुज, दिल्ली दूर अस्त’ मतलब ‘दिल्ली अभी दूर है.’

गयासुद्दीन के काफिले में जश्न मनाया जा रहा था. एक हाथी उनके लकड़ी से बने खेमे में जा टकराया, जिसके नीचे दबने से सुल्तान की मौत हो गयी और वो वापिस कभी दिल्ली नहीं लौट पाया. उसके बाद से ही यह कहावत प्रचलित हो गयी. ‘दिल्ली अभी दूर है.’ लेकिन, वर्तमान राजनैतिक हालात से दिल्ली किस के लिए दूर लग रही है? आम आदमी पार्टी, भाजपा या कांग्रेस? आइये समझते हैं.

राजनैतिक परिदृश्य क्या है?

देश की राजधानी दिल्ली एक केंद्र शासित क्षेत्र है जिसकी जनसंख्या लगभग 2.3 करोड़ है. दिल्ली में वोटर की संख्या 1 करोड़ 46 लाख 92 हजार 136 है. इसमें पुरुष वोटरों की संख्या 80 लाख 55 हजार 686, महिला वोटरों की संख्या 66 लाख 35 हजार 635 और थर्ड जेंडर वोटरों की संख्या 619 से बढ़कर 815 हैं. फर्स्ट टाइम वोटर्स (18 – 19 साल) की संख्या 2 लाख 8 हजार और 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग वोटरों की संख्या 2 लाख 5 हजार है. धर्म के आधार पर दिल्ली में 81.68 प्रतिशत हिन्दू हैं, 12.86 प्रतिशत मुसलमान, 3.40 प्रतिशत सिख, 0.99 प्रतिशत जैन, 0.87 प्रतिशत ईसाई और 0.11 प्रतिशत बुद्ध रहते हैं. इसी तरह समाजिक आधार पर 35 प्रतिशत पंजाबी, 24 प्रतिशत पूर्वांचली, 8 प्रतिशत जाट, 8 प्रतिशत गुर्जर और 8 प्रतिशत वैश्य.


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दिल्ली में 70 विधानसभा सीटें हैं और 7 लोकसभा सीटें हैं. 2015 के दिल्ली चुनाव में 67 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. आदमी पार्टी ने 67 सीटें लाकर तहलका मचा दिया था. काग्रेस, मजबूत नेतृत्व के अभाव में शून्य पर सिमट गयी थी और भाजपा को केवल 3 सीटें मिलीं थीं. आम आदमी पार्टी को 54.3 प्रतिशत वोट मिले थे. भाजपा को 32.3 प्रतिशत और कांग्रेस को 9.7 प्रतिशत. ये वो दौर था जब कुमार विश्वास, आशुतोष, प्रशांत भूषण, कपिल मिश्रा, जैसे नेता पार्टी में एक साथ थे.

नींद से जागती कांग्रेस 

कांग्रेस ‘मेरा बूथ-सबसे मजबूत’ पर चलते हुए भाजपा का बूथ शक्तिकरण फार्मूला अपनाकर दिल्ली के 13000 बूथों तक पहुंचना चाह रही है. पहले चरण में उन्होंने आप-भाजपा सरकार को पोल खोल अभियान द्वारा बढ़ते प्रदूषण, बेरोजगारी, अनाधिकृत कालोनी और आर्थिक मंदी पर घर घर जाकर घेरने की कोशिश की है. ‘वादे निभाए थे, वादे निभाएंगे’ नाम का अभियान भी शुरू किया है जिसमें कांग्रेस अपने कार्यकाल की पुरानी सफलताएं गिना रही है. लेकिन देखने वाली बात यह है की मेरा बूथ सबसे मजबूत रणनीति के तहत क्या कांग्रेस के पास भाजपा की तरह मजबूत कार्यकर्ता है जो चुनाव तक हर घर पर, 4 बार दस्तक देकर बूथ तक लाने में सफल हो पायेगा, वो भी तब, जब केंद्र नेतृत्व की तरफ से अभी तक ना कोई बड़ी रैली हुई है ना ही प्रेस कॉन्फ्रेंस?

उलझी हुई भाजपा

आचार संहिता लगने से पहले ही भाजपा चुनावी मोड में आगयी थी. पहले दिसंबर के आखिरी हफ्ते में प्रधानमंत्री मोदी की रैली और उसके बाद 5 जनवरी 2020 को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का इंदिरा गांधी स्टेडियम में बूथ सम्मेलन जिसमें उन्होंने राहुल, सोनिया गांधी से लेकर केजरीवाल तक को लपेटा, जहां भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 विषय पर, दिल्ली में हुई हिंसा पर सत्तापक्ष पार्टी और कांग्रेस को घेर रही है वहीं दिल्ली प्रभारी मनोज तिवारी, ‘मेरी दिल्ली, मेरा सुझाव’ पर दिल्ली की जनता के सुझाव इकट्ठे कर रहे हैं. मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा, ये दिल्ली भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती है. चेहरे तो कई हैं. विजय गोयल, मनोज तिवारी, हरदीप सिंह पुरी, गौतम गंभीर, मिनाक्षी लेखी, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा, डॉ हर्षवर्धन.


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एजेंडा तय करती आप

आम आदमी पार्टी एजेंडा सेट करती हुई दिख रही है. पार्टी अपने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी पर किये काम पर वोट मांग रही है. लोकसभा चुनाव 2019 के बाद से केजरीवाल का पूरा ध्यान काम दिखाने में लग गया था. दिसंबर में खबर आती है की पोलिटिकल कंसल्टेंट प्रशांत किशोर की कम्पनी आईपैक केजरीवाल का अभियान करेगी. गजेंद्र शर्मा, पॉलिटिकल रणनीतिकार जिन्होंने हरियाणा में दुष्यंत चौटाला का चुनाव प्रचार संभाला था. उनका कहना है कि अनाधिकृत कॉलोनियां जिसे भाजपा सबसे बड़ा मुद्दा मान रही है, वहां भी दिल्ली सरकार ने बिजली कनेक्शन-पानी जैसी व्यवस्था प्रदान कराई हैं, जिसकी वजह से यह दांव केजरीवाल के हक़ में जाएगा. ज्ञात हो कि दिल्ली में 1731 अनाधिकृत कॉलोनियों में 40 लाख लोग रहते हैं.

मीम युद्ध

आम आदमी पार्टी का चुनावी नारा आ गया है. ‘अच्छे बीते 5 साल, लगे रहो केजरीवाल.’ पार्टी अपने कार्यकर्ताओं के टिकटॉक वीडियो बनवाकर सोशल मीडिया पर बाढ़ ला रही है. केजरीवाल चुनाव तक रैली की जगह संवाद-रुपी 100 टाउनहॉल करेंगें. लेकिन ऐसी उत्सुकता बाकी पार्टियों से नदारद लग रही है. ना ही ब्रांडेड जनसभा और ना ही नारा. हां,  जो सबसे रोचक अभियान जो इस चुनाव में चल रहा है वो है मीम युद्ध. आम आदमी पार्टी, भाजपा दोनों ही रोज़ कुछ नया मीम निकालती है (जिसमें फिलहाल ही कांग्रेस भी शामिल हुई है), एक-दुसरे के ऊपर फिर मीम के जवाब देने का सिलसिला शुरू होता है, फिर लोग आते हैं, ट्रोल आते हैं, कमेंटबाजी और बढ़ती है और फिर टीवी मीडिया कवर करती है. आप क्रोनोलॉजी समझिए.

दिल्ली चुनाव 8 फरवरी को होंगे और 11 फरवरी को परिणाम आएगा. लेकिन केजरीवाल जिस तरह अभियान में लगे हुए हैं उससे लग रहा है कि बाकी दोनों पार्टियों के लिए, दिल्ली अभी दूर है.

(सागर विश्नोई पेशे से पोलिटिकल कंसलटेंट और चुनावी विश्लेषक हैं. चुनाव, राजनीति और डिजिटल गवर्नेंस में ख़ास रुचि रखते हैं. विश्नोई गवर्न नामक गवर्नेंस इनोवेशन लैब को हेड कर रहे हैं.यह लेखक का निजी विचार है.)

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