पीएम के रूप में मोदी के पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल के दौरान, जाति और धर्म के आधार पर कभी कोई भेदभाव नहीं हुआ. इस बीच, सरकार ने गरीबों को घरों के लिए सब्सिडी, मुफ्त राशन, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के तहत मुफ्त गैस कनेक्शन, गरीबों के लिए शौचालय, बिजली, पानी की सुविधा या प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) प्रदान किया. सभी को सरकारी सहायता उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर प्रदान की जाती थी, न कि जाति या धर्म के आधार पर.
लेकिन जाति जनगणना का बार-बार जिक्र करने से इस बात की बू आती है कि ये राजनीतिक दल पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं.
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कांग्रेस के वादे
हैदराबाद में एक रैली में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संकेत दिया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है, तो पार्टी जाति सर्वेक्षण के वादे के बाद देश की संपत्ति, नौकरियों और अन्य कल्याणकारी योजनाओं का आर्थिक रूप से पुनर्निधारण करेगी. उन्होंने कथित तौर पर कहा, “हम एक जाति जनगणना करेंगे ताकि पिछड़े, एससी, एसटी, सामान्य जाति के गरीबों और अल्पसंख्यकों को पता चले कि देश में उनकी (संख्या के संदर्भ में) कितनी हिस्सेदारी है. इसके बाद, यह पता लगाने के लिए एक वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण किया जाएगा कि देश की संपत्ति किसके पास है. हम आपको वह देंगे जो आपका अधिकार है.”
हालांकि पुनर्वितरण शब्द का उपयोग नहीं किया गया है, लेकिन निहितार्थ स्पष्ट है: ‘जिसकी जितनी ज्यादा जनसंख्या, उसको उतने ज्यादा अधिकार’. कैसे? पार्टी की मंशा चार बिंदुओं पर स्पष्ट हो जाती है: पहला, विभिन्न जातियों और अल्पसंख्यकों के आकार का अनुमान लगाया जाएगा. दूसरा, वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण से पता चलेगा कि किसके पास कितनी संपत्ति है. तीसरा, वे क्रांतिकारी कार्य करेंगे और सभी को उनका अधिकार दिलाएंगे. चौथा, इस बारे में भी स्पष्टता है कि किसे कितना मिलेगा – ‘जितनी आबादी उतना हक’ – यानी जनसंख्या के अनुपात में अधिकार.
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने 2006 में कुछ ऐसा ही कहा था. हालांकि कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ पूर्व पीएम का बचाव करते हुए तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला अधिकार है, जो उन्होंने कहा हमें उसकी गहराई में जाना चाहिए. उन्होंने कहा था, “मेरा मानना है कि हमारी सामूहिक प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं: कृषि, सिंचाई और जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश, और सामान्य बुनियादी ढांचे की आवश्यक सार्वजनिक निवेश आवश्यकताओं के साथ-साथ एससी/एसटी, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यक और महिलाएं व बच्चों के उत्थान के लिए कार्यक्रम. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए घटक योजनाओं को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता होगी. हमें यह सुनिश्चित करने के लिए नई योजनाएं बनानी होंगी कि अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यकों को विकास के लाभों में समान रूप से साझा करने का अधिकार मिले. संसाधनों पर पहला दावा उनका होना चाहिए,”
हालांकि, सिंह ने एससी और एसटी के उत्थान के लिए बनाई गई नीतियों के बारे में बात की, लेकिन उन्होंने मुसलमानों का अलग से जिक्र किया. उस समय के समाचार पत्रों में इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया गया था. चूंकि यह एक लिखित भाषण था, इसलिए जुबान फिसलने का कोई बहाना नहीं हो सकता.
यह राहुल गांधी या मनमोहन सिंह के बारे में नहीं है बल्कि विभिन्न जातियों और धर्मों के लोगों से लुभावने वादे करके वोट हासिल करने के बारे में है. संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि सरकार देश के हर वर्ग के साथ समान व्यवहार करेगी. लेकिन अल्पसंख्यकों का वोट हासिल करने की होड़ में राजनीतिक दल समाज और संविधान के प्रति अपना कर्तव्य भूल जाते हैं.
मोदी ने क्या कहा?
कांग्रेस ने यह भी कहा है कि जाति जनगणना के बाद वे देश में धन और नौकरियों का आकलन करने के लिए एक वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण करेंगे जिसके बाद वह ‘क्रांतिकारी’ कदम उठाएगी और सभी को उनका अधिकार देगी, जो उनकी आबादी के अनुसार होगा.
पीएम मोदी 2006 के मनमोहन सिंह का हवाला दे रहे थे और कांग्रेस के न्याय पत्र को समझा रहे थे. उनके अनुसार, कांग्रेस मुसलमानों, अधिक बच्चों वाले लोगों, घुसपैठियों को पैसे बांटेगी. भारतीय मुस्लिम आबादी 1951 में 9.9 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 14.2 प्रतिशत हो गई.
यह समझ से परे है कि राजनीतिक टिप्पणीकार, जो अपने बयान के लिए पीएम को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, सत्ता में आने पर कांग्रेस के ‘क्रांतिकारी’ वादे पर चुप क्यों हैं. प्रधानमंत्री पर देश को धर्म के आधार पर बांटने का प्रयास करने का आरोप नहीं लगाया जा सकता; दोषी वे लोग हैं जो राजनीतिक लाभ कमाने के लिए जाति/धर्म को वोट बैंक की राजनीति के चश्मे से देखते हैं.
(अश्वनी महाजन दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कॉलेज में प्रोफेसर हैं. उनका एक्स हैंडल @ashvani_mahajan है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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