शुक्रवार को संपन्न हुआ संसद का एक्शन से भरपूर मानसून सत्र सिर्फ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव या दोनों सदनों में बार-बार होने वाले व्यवधान के लिए याद नहीं किया जाएगा. विपक्ष इस बात पर खुश हो सकता है कि वे अंततः अन्य मुद्दों के अलावा मणिपुर पर सदन को संबोधित करने के लिए प्रधानमंत्री को बुला ही लिए.
गतिरोध, विरोध प्रदर्शन, वेल में नारेबाजी, सदस्यों के निलंबन और बार-बार स्थगन के बीच, इस मानसून सत्र का एक और आकर्षण था. इसने हमारे राजनेताओं को सदन में बहस सुनने का अवसर दिया. बहस संसदीय लोकतंत्र की एक सर्वोत्कृष्ट विशेषता है जो आजकल कभी कभार ही देखने को मिलती है. यह अब काफी तेजी से दुर्लभ होता जा रहा है. दिल्ली सेवा अध्यादेश की जगह लेने वाले विधेयक पर राज्यसभा में आठ घंटे तक चर्चा हुई. लोकसभा में 26 सांसदों ने बहस में हिस्सा लिया. संसद में आख़िरकार बात हो रही है. और यही कारण है कि यह दिप्रिंट के इस सप्ताह का न्यूज मेकर ऑफ द वीक है.
अविश्वास प्रस्ताव पर बहस से देश के सामने मौजूद गंभीर मुद्दों पर विभिन्न विपक्षी दलों के विचारों और सत्ता में मौजूदा व्यवस्था के बारे में उनके आकलन की झलक भी मिली. लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है और मतदाताओं को “लोकतंत्र के मंदिर” में नेताओं द्वारा किसी भी मुद्दे को उठाने और उसपर बात करने से ही लाभ होगा. केवल एक जागरूक नागरिक वर्ग से ही बुद्धिमानीपूर्ण चुनावी विकल्प चुनने की उम्मीद की जा सकती है.
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वाद-विवाद संस्कृति में गिरावट
पुराने दिनों में, इंद्रजीत गुप्ता और भूपेश गुप्ता जैसे दिग्गज सांसद इस बात का गवाह रहे हैं, जिन्होंने सदन में अपनी शक्तिशाली बहस के माध्यम से सरकार को अपनी मांगों के सामने झुका दिया था.
लेकिन हाल के दिनों में, सत्ता पक्ष और विपक्षी दलों के बीच दुश्मनी बढ़ने के कारण बहस और चर्चाएं काफी कम हो गई. पिछली बार सदन में जोशीली चर्चा तब देखी गई थी जब तीन विवादास्पद कृषि कानूनों- जिन्हें अब वापस ले लिया गया है- को 2021 में राज्यसभा में रखा गया था. हालांकि, यह एक अलग कहानी है कि सदन में अनियंत्रित दृश्य देखे गए, जिससे सभापति को कई सदस्यों को निलंबित करना पड़ा.
हाल ही में समाप्त हुए मानसून सत्र की आशा की किरण यह थी कि सांसद पार्टी लाइनों से ऊपर उठकर चर्चा में भाग ले रहे थे. लेकिन ‘बहस’ के संसद में लौटने से पहले, हमारे राजनेताओं के लिए यह सामान्य कामकाज था, यहां तक कि इस सत्र में भी कोई कामकाज नहीं था.
दिल्ली सेवा विधेयक और अविश्वास प्रस्ताव पर बहस को छोड़कर, सत्र के अधिकांश भाग में, दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – में विपक्ष ने कार्यवाही में बाधा डालना और बहिष्कार करना जारी रखा, और मांग की कि पीएम मोदी संसद में मणिपुर मुद्दे पर बयान दें. मणिपुर आज सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन इस बीच अपनी राजनीति के हित में, भारत के राजनेताओं ने एक सत्र में महत्वपूर्ण व्यावसायिक घंटों को बर्बाद कर दिया, जिसमें लगभग एक दर्जन विधेयक बिना किसी बहस के पारित हो गए. अब यह सरकार के लिए ठीक काम करता है.
लेकिन विपक्ष ने बात सुनने का एक मौका गंवा दिया.
उदाहरण के लिए, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक के पारित होने को लें. इसे बनने में छह साल लगे लेकिन 7 अगस्त को लोकसभा में इसे सिर्फ 50 मिनट में पारित कर दिया गया. बहस में बीजेपी के दो समेत सिर्फ 8 सांसदों ने हिस्सा लिया. विपक्ष का बहुमत, जो इस बात पर कर्कश आवाज में चिल्ला रहा था कि सरकार उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दे रही है, जब विधेयक चर्चा के लिए आया तो वो सदन से बाहर निकलने का फैसला किया. गुरुवार को राज्यसभा ने फार्मेसी (संशोधन) विधेयक को पेश होने के तीन मिनट के भीतर ही पारित कर दिया.
लोकसभा ने अपनी 17 बैठकों में 22 विधेयक पारित किए, जिनमें से अधिकांश बिना चर्चा के पारित हुए. कुल मिलाकर, यह मानसून सत्र 17वीं लोकसभा के तीसरे सबसे खराब सत्रों में से एक था, जिसमें निचले सदन में रुकावटों और जबरन स्थगन के कारण 59 घंटे से अधिक का समय बर्बाद हुआ.
पुराने लोग व्यवधानों की आवृत्ति और प्रकृति के बारे में चिंतित हैं. अतीत के विपरीत जब सदस्यों के बीच सामान्य सौहार्द्र होता था, अब संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच शायद ही कोई बातचीत होती है. अब दोनों के बीच वैमनस्य काफी बढ़ गया है.
2022 का मानसून सत्र इसका उदाहरण है. इससे विधायी कामकाज ठप पड़ गया. सांसदों ने पूरे सत्र के दौरान न केवल सदन के अंदर बल्कि बाहर और पूरी रात विरोध प्रदर्शन किया. दोनों सदनों से 27 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया.
2021 के मानसून सत्र में भी काफी ड्रामा देखने को मिला, जब विपक्षी सांसद राज्यसभा में रिपोर्टर की टेबल पर चढ़ गए, सभापति की ओर कागज फेंके गए और फाड़े गए. साथ ही सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया गया. यह नरेंद्र मोदी के बाद 2019 के बाद से आयोजित छह सत्रों में सबसे कम उत्पादक रहा. मोदी सरकार दूसरी बार सत्ता में आई है.
(संपादनः ऋषभ राज)
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