गैलीलियो गैलीली की तरह, युवा बायोलॉजिस्ट शेर अली वज़ीर ने भी शहादत के बजाय जिंदगी को चुना. बन्नू के डिप्टी कमिश्नर द्वारा सत्यापित सौ रुपये के न्यायिक स्टाम्प पेपर पर उन्होंने हस्ताक्षर करते हुए उन्होंने घोषणा की कि “मैं दैवीय कानून के खिलाफ डार्विन के विकासवाद व अन्य सभी वैज्ञानिक और तर्कसंगत विचारों को अमान्य मानता हूं. मैं उनका त्याग करता हूं और उन सभी बातों से पश्चाताप करता हूं जो मैंने सेमिनारों, व्याख्यानों, पोस्टों और टिप्पणियों सहित सभी अवसरों पर उपरोक्त के खिलाफ कही हैं.”
“ईश्वरीय नियम के अनुसार एक महिला की बुद्धि पुरुषों की तुलना में कम होती है: मैं इसे सत्य और अंतिम शब्द मानता हूं.”
लगभग चार सौ साल पहले, 1633 ई. में, गैलीलियो को यातना के उपकरण दिखाए गए थे और चेतावनी दी गई थी कि यदि उन्होंने सूर्यकेंद्रित ब्रह्मांड की अपनी बात नहीं छोड़ी तो उनका उपयोग उनके लिए किया जाएगा. इप्पुर सी मुओवे, ‘और फिर भी, यह घूम रहा है,’ गैलीलियो के बारे में कहा जाता है – ऐतिहासिक साक्ष्य के बिना – अपने परीक्षण के अंत के बाद विद्रोह वाले भाव के साथ वह बुदबुदाया. पोप और उसके सभी कार्डिनलों के साथ, पृथ्वी वास्तव में सूर्य के चारों ओर घूमती रही थी.
बन्नू के कॉलेज शिक्षक ने अपने बयान से बने वीडियोटेप में दिखाया कि मनुष्य आतंक के सामने भी अपनी गरिमा बनाए रख सकता है. जब कैमरे ने शूट करना बंद किया होगा और उसके आस-पास मौजूद मौलवी तितर-बितर हो गए होंगे, तो अली ने वास्तव में क्या कहा होगा, हम नहीं जानते.
पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ देश के आर्थिक पतन को रोकने का वादा करते हुए, चार साल के आत्म-निर्वासन के बाद इस सप्ताह के अंत में पाकिस्तान लौट आए. हालांकि, नवाज़ ने देश के उत्तर-पश्चिम में बढ़ती जिहादी हिंसा और इस्लामवादियों की बढ़ती ताकत पर कुछ नहीं कहा.
शेर अली की अल्प-ज्ञात कहानी दर्शाती है कि पाकिस्तान अब धार्मिक कट्टरवाद से कैसे निपटता है, यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है जो इसके भविष्य को परिभाषित करेगा.
जिहादियों के विरुद्ध अली का युद्ध
2014 में कराची के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बड़े पैमाने पर आतंकवादी हमले के बाद, पाकिस्तान की सेना अनिच्छा से उत्तरी वज़ीरिस्तान में युद्ध के लिए चली गई. हालांकि सेना ने इस क्षेत्र में तबाही मचाई, लेकिन आतंकवाद की समस्या समाप्त नहीं हुई. तहरीक-ए-तालिबान के नेता टांक और डेरा इस्माइल खान जैसे निकटवर्ती जिलों में भाग गए. जलालुद्दीन हक्कानी, हाफ़िज़ गुल बहादुर और सादिक नूर जैसे तालिबान से जुड़े सरदारों को किसी ने नहीं छुआ.
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप ने 2018 में रिपोर्ट दी थी कि स्थानीय सरकार समर्थक सरदारों को सेना द्वारा बड़े पैमाने पर क्षेत्र सौंप दिए गए थे, और उन्होंने “विरोधियों को निशाना बनाना और कुछ प्रतिबंधों के साथ नशीली दवाओं और हथियारों की तस्करी सहित आपराधिक गतिविधियों में शामिल होना” जारी रखा. 2018 से, जिहाद के विरोधियों को निशाना बनाने के साथ ही हिंसा बढ़ी हालांकि सेना को निशाना नहीं बनाया गया.
फिर, कुछ अभूतपूर्व घटित हुआ. शोधकर्ता कमर जाफरी ने दर्ज किया है कि खैबर-पख्तूनख्वा में शिक्षित युवाओं ने जिहादियों और उनका समर्थन करने वाले राज्य तंत्र के खिलाफ अहिंसक लामबंदी शुरू की. स्वतंत्रता आंदोलन-युग के पश्तून राष्ट्रवादी नेता अब्दुल गफ्फार खान से प्रेरित होकर, पश्तून तहफुज आंदोलन ने पारंपरिक आदिवासी प्रतिद्वंद्विता को खत्म करने और शांति की मांग करने के लिए संगीत, कला और साहित्य का इस्तेमाल किया.
पेशावर और इस्लामाबाद के विश्वविद्यालयों में शिक्षित, बन्नू गवर्नमेंट पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज के सहायक प्रोफेसर अली ने विज्ञान और तर्क की वकालत करते हुए खुद को इस राष्ट्रवादी पुनर्जागरण में शामिल किया. इस सक्रियता की कीमत जल्द ही चुकानी पड़ी. 2022 की गर्मियों में, उत्तरी वज़ीरिस्तान के मिराली में छात्रों को लेक्चर देकर घर जाते समय, अली की कार के अंदर एक बम विस्फोट हुआ. बमबारी में प्रोफेसर ने अपना एक पैर खो दिया.
उनके चचेरे भाई गुलदार अली खान वज़ीर ने द डॉन को लिखे एक पत्र में कहा, “अक्सर देखा गया है कि अधिकारी को तो छोड़ ही दीजिए पर जब भी कोई पुलिस कांस्टेबल या सिपाही घायल या शहीद होता है, तो मुख्यमंत्री न केवल उनके आवास पर जाते हैं, बल्कि उनके लिए मुआवजे की घोषणा भी करते हैं. लेकिन प्रांतीय सरकार में से किसी ने भी अभी तक घायल प्रोफेसर के परिवार से संपर्क करने की जहमत नहीं उठाई है.”
इससे किसी को आश्चर्य नहीं हुआ. सेना को पीटीएम पर गहरा संदेह था, क्योंकि वह इसके धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद को राज्य और जिहादियों के बीच मजबूत संबंधों के लिए खतरा मानती थी. हालांकि, चोट के बावजूद अली ने अपना काम जारी रखा.
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खैबर में इसके विपरीत ज्ञान का उदय
परिस्थितियों ने दो महीने पहले करवट बदली जब पत्रकार फ़रज़ाना अली ने रिपोर्ट किया कि जब डोमेल शहर में महिलाओं को मौलवियों ने सरकार द्वारा संचालित बेनज़ीर आय सहायता योजना के कार्यालय में जाने से रोक दिया तब अली और अन्य लोगों ने एक सेमिनार आयोजित किया, जहां उन्होंने अन्य बातों के अलावा इस विचार की निंदा की कि पुरुष महिलाओं से श्रेष्ठ हैं. प्रोफेसर और उनकी सहकर्मी शबीना गुल ने यह भी कहा कि पूरी तरह से शरीर को ढंकने वाला बुर्का इस्लाम द्वारा अनिवार्य नहीं है और धर्म के इतिहास में महिलाओं ने उच्च पदों को संभाला है.
स्थानीय मौलवियों ने अली पर हमला बोल दिया. उनमें से कइयों के हस्ताक्षरों से पता चलता है कि उनकी ट्रेनिंग हक्कानी नेटवर्क के मूल संस्था अकोरा खट्टक में दारुल उलूम में हुई थी. महिलाओं के अधिकारों की उनकी रक्षा, अन्य बातों के अलावा, खुद-सेक्सिस्ट डार्विन के जैविक कार्य पर आधारित थी – जैसा कि शुरुआती नारीवादियों ने किया था, जीवविज्ञानी सारा रिचर्डसन हमें याद दिलाती हैं.
धर्म के खिलाफ बोलने का आरोप लगाने वाले और हिंसा की चेतावनी देने वाले मौलवियों के विरोध का सामना कर रहे प्रोफेसर अली को डिप्टी कमिश्नर ज़मान खान मारवात ने बुलाया, और अपने बयान के खारिजनामे पर दस्तखत करने को कहा.
विद्वान मार्टिन रीक्सिंगर ने कहा है कि विज्ञान का विरोध – विशेष रूप से डार्विन – पूरे दक्षिण एशिया में इस्लाम में एक शक्तिशाली विपरीत ज्ञान की धारा का हिस्सा रहा है. हालांकि सैय्यद अहमद खान और अब्दुल कलाम आज़ाद जैसे आधुनिकतावादियों ने विज्ञान को धार्मिक रहस्योद्घाटन के साथ समेटने की कोशिश की, लेकिन उनकी स्थिति को मौलवियों के बीच बहुत कम समर्थन मिला. इसके बजाय, मौलवी वर्ग ने जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक अबुल अला मौदुदी जैसे विचारकों का समर्थन किया, जिन्होंने पश्चिमी विज्ञान को “संदेह की सभ्यता” का हिस्सा बताया.
ताहिर-उल-कादरी और जाकिर नाइक जैसे इस्लामवादी पॉप प्रचारकों ने इस विज्ञान-विरोधी रुख को लोकप्रिय बनाया – जो काफी हद तक छद्म वैज्ञानिक तर्कों पर निर्भर था – और इसे जन संस्कृति में शामिल करने में मदद की.
स्तंभकार और प्रख्यात भौतिक विज्ञानी परवेज़ हुडभोय ने लिखा है कि 2016 में, खैबर पख्तूनख्वा ने जीव विज्ञान की एक पाठ्यपुस्तक पेश की जिसमें विकास को “इतिहास के सबसे अविश्वसनीय और तर्कहीन दावों में से एक” बताया गया. हुडभोय ने एक अन्य पाठ्यपुस्तक में दावा करते हुए कहा, “‘स्थिर और उचित मानसिक स्थिति वाला व्यक्ति’ पश्चिमी विज्ञान के जंगली सिद्धांतों को स्वीकार नहीं कर सकता. सिंध पाठ्यपुस्तक बोर्ड की एक फिजिक्स की पाठ्यपुस्तक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जब एक खास दैवीय वाक्य का उच्चारण किया गया तो ब्रह्मांड तुरंत अस्तित्व में आया.”
कट्टरपंथ के आगे समर्पण
एक राष्ट्र-राज्य के रूप में अपने जन्म के बाद से, पाकिस्तान ने धीरे-धीरे कट्टरवाद के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है: लिंचिंग, हत्याएं और तथाकथित ईशनिंदा करने वालों का राज्य-अधिकृत उत्पीड़न लगातार बढ़ गया है, जिहादी हिंसा बढ़ गई है, और तहरीक लब्बैक-ए-पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी संगठन का प्रभाव बढ़ गया है. अपने पूर्ववर्ती इमरान खान की तरह, शहबाज शरीफ ने भी इस्लामवादियों को बढ़ावा दिया.
पत्रकार सोहेल वाराइच के अनुसार नवाज़ के पास अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए प्रतिक्रियावादी मौलवियों के साथ संबंध बनाने का एक लंबा रिकॉर्ड है. विद्वान सिदरा करामत और अली शान शाह ने कहा कि अपनी ओर से, अन्य राजनीतिक दलों, साथ ही सेना ने, अपनी सत्ता सुरक्षित करने के लिए मौलवियों के प्रतिक्रियावादी इस्लामवाद के साथ गठबंधन किया है.
भले ही लश्कर-ए-झांगवी द्वारा पंजाब में उनके अधिकार को चुनौती देने और यहां तक कि उनकी हत्या करने का प्रयास करने के बाद नवाज़ ने जिहादी आंदोलन के तत्वों पर बेरहमी से हमला किया, लेकिन उन्होंने अल-कायदा सहित अन्य आतंकवादी समूहों के लिए चैनल बनाए रखा.
इस साल की शुरुआत में, पख्तून तहफुज आंदोलन और अवामी नेशनल पार्टी जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों के हजारों समर्थक, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और अन्य जिहादी समूहों के खिलाफ राज्य द्वारा कार्रवाई की मांग करने के लिए बन्नू में एकत्र हुए, जिन्होंने काबुल के पतन के बाद से ही इस क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है. राज्य ने कोई ध्यान नहीं दिया.
नवाज और अन्य राजनेता निर्णय के उस क्षण की ओर बढ़ रहे हैं, जहां उन्हें धर्मनिरपेक्ष पाकिस्तानियों और धर्मतंत्र के अनंत अंधकार के बीच चयन करना होगा. हालांकि, उन्होंने अब तक जो कुछ किया है, वह आशा की एक किरण दिखाता है.
(लेखक एक कॉन्ट्रिब्यूटिंग एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @praveenswami है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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